Wednesday, August 19, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' (भाग- XI)

 XI

मन में खुशी का अम्बार लिये राम रतन ने ग्वालियर अपने घर में घुसते ही अपनी पत्नि को आवाज लगाई, "अजी सुनती हो ?” 

“बड़ी जल्दी आ गए, क्या रहा ?”

“वही हुआ जिसका मुझे पक्का विशवास था |(मिठाई का डिब्बा पकडाते हुए) लो मुँह मीठा करो और बच्चों का भी करा देना | वे संतो को देखने आ रहे हैं |”

“कब आ रहे हैं ?”

“इसी रविवार को,ताज से आएंगे |”

“बात पक्की हो गई है अतः शादी भी जल्दी ही करनी पड़ेगी |”

पत्नि कुछ असमंजस्ता से, “परंतु वे तो अभी देखने ही आ रहे हैं न ?”

“अरे चिंता मत करो | उनके घराने को मैं अच्छी तरह से जानता हूँ | वे एक बार जिस लड़की को देखने जाते हैं तो फिर रिस्ता पक्का ही कर कर आते हैं चाहे लड़की लड़के से 19 ही क्यों न हो | और हाँ इतना भी जान लो कि वे जबान के पक्के तो हैं ही इसके साथ साथ अपने भाई बंधुओं द्वारा उनके बारे में दे दी गई जबान को भी वे कटने नहीं देते |” 

“वो कैसे जी ?”

“तो सुनो अपनी शालू के विवाह में तो हमने देख ही लिया था कि उनका व्यवहार कितना अच्छा था | पता है अनूप शहर में उनकी बारात के लोगों को जब नाश्ता दिया जा रहा था तो वहाँ ठंडे पानी की कमी हो गई थी | एक बाराती ने इस कमी के बारे में ज्यों ही ऊंची आवाज करनी चाही थी तो लाला जी ने उसे बुरी तरह डाँट कर चुप करा दिया तथा बिना कोई शिकायत किये अपने आप बर्फ की एक सिल्ली मंगा कर पानी में डलवा दी थी |” 

अब मैं उनके बडे लड़के की शादी के बारे में एक किस्सा सुनाता हूँ जो मुझे किसी से पता चला है | 

नारायणा गाँव की घनी आबादी से दूर हटकर एक आलीशान बंगला है | बंगले के बाहर काले रंग की एक चमचमाती कार खड़ी है | बंगले के अन्दर भारी भरकम परंतु गठा हुआ शरीर वाला एक व्यक्ति, महेंद्र प्रताप गुप्ता, एक ऊंचे दिवान पर मसन्द के सहारे आधा लेटा हुआ है | उसके हाथ में हुक्के की नली है जिसमें वह कभी कभी दम लगा लेता है | इसी समय दो तीन व्यक्ति आकर सामने बिछे हुए मुढढों पर बैठ जाते हैं | आगंतुकों में से एक हाथ जोड़कर महेंद्र प्रताप का अभिवादन करते हुए, "जीजा जी नमस्ते |”

महेंद्र प्रताप सीधा बैठते हुए तथा मुस्कान बिखेरते हुए, "आओ, आओ मुनीम जी, बैठो |” 

वैसे तो मुनीम जी का नाम कृपा राम था परंतु दिल्ली के दरियागंज इलाके के एक प्रसिद्ध मुनीम जी होने की वजह से वे जगत प्रसिद्ध मुनीम जी बन चुके थे | अतः छोटा बडा सभी उन्हे मुनीम जी कहकर ही बुलाते थे | 

“मुनीम जी घर तो सब कुशल मंगल से हैं ?”

“हाँ जीजा जी सब कुशल पूर्वक हैं |”

“हीरा लाल, आपका का बेटा, क्या कर रहा है ?”

उसने टैक्सटाईल इंजिनियरिंग के डिग्री कोर्स में दाखिला ले लिया है |” 

“कहाँ ?”

“यहीं दिल्ली कालेज आफ इंजिनियरिंग में मिल गया है |”

“बहुत अच्छा  | यह तो बहुत बढिया रहा | होनहार लड़का है | आगे चलकर बहुत तरक्की करेगा |” 

“आपकी कृपा बनी रहनी चाहिए, जीजा जी |”

“क्या बातें करते हो मुनीम जी | हम क्या चीज हैं | कृपा दृष्टि तो उपर वाले की बनी रहनी चहिए | उसी के हाथ में सब कुछ है | जिसकी चाहे पतंग उड़ा दे, जिसकी चाहे काट दे |”

“सो तो है जीजा जी परंतु फिर भी जीवन नैया सुचारू रूप से चलाने के लिए बड़ों का सहारा और आशिर्वाद भी तो बहुत आवशयक होता है |”

“मुनीम जी मैं आपकी बातों से सहमत हूँ परंतु ये बताओ कि आज आपने सहारे की बात कहाँ से शुरू कर दी ? जो व्यक्ति हमेशा से दूसरों का सहारा बनता आया हो आज उसे.......?”      

“चिंता की कोई बात नहीं है जीजा जी | मेरा इशारा तो अपनी बेटी प्रेम की ओर था | आप तो सब जानते हैं कि मैनें अपने दोनों बच्चों को उनकी मम्मी जी के मरने के बाद कैसे पाल पडौस कर बडा किया है | उन्हें मम्मी-पापा की किसी प्रकार की कोई कमी महसूस न होने दी | अब बेटा इंजिनियरिंग कालेज में चला जाता है | मैं सुबह नौकरी पर चला जाता हूँ अतः प्रेम घर पर अकेली रह जाती है | मुद्दा उसके अकेले रहने का नहीं है परंतु उसकी शादी करने का है क्योंकि मेरे विचार से यह ठीक उम्र है शादी करने की |”

“अरे हाँ मुनीम जी ! मेरा तो इस और ध्यान ही नहीं था | अच्छा बताओ कैसा लड़का चाहिए ?”

“मैं आपको क्या बताऊँ कि कैसा चाहिए | आप से हजारों का वास्ता पड़ता है | आप खुद ही समझ लो | यह बात तो ठीक है परंतु....” (अचानक जैसे उन्हें कुछ याद आ गया हो) “आप लाला नारायण को तो जानते होंगे ?”

“वही लाला ठाकुर दास के लडके जिनके रथ में बैठकर एक बार हम कालका देवी माँ के मन्दिर में गए थे |” 

“हाँ हाँ वही नारायण | उन दिनों ठाकुर दास के उपर लक्ष्मी माँ की कृपा थी | परंतु उनके भाईयों ने धोखे धड़ी   से उन्हें मरवा कर सारा माल हडप लिया | उस समय नारायण बहुत छोटा था कि कुछ समझ पाता | अतः शुरू शुरू में तो नारायण को बहुत कष्टों का सामना  करना पडा परंतु उसकी नेक नियत, ईमानदारी तथा मेहनत जल्दी ही रंग ले आई और उन्होने आश्चर्य जनक उन्नति हासिल कर ली |”

“वे अब क्या करते हैं तथा उनका बेटा क्या करता है ?” 

“लाला नारायण का तो गाँव में ही किरयाने का काम है | इस समय हमारे इलाके में शायद सबसे अच्छा काम उन्हीं का है | उनका लड़का शिव गवर्नमैंट आफ इंडिया प्रैस-मिंटो रोड़  में कार्यरत है |”    

“अगर आपकी निगाह में सब कुछ जंचता है तो बात चलाकर देख लेना |” 

महेंद्र कुछ सोचकर, “बात क्या कर लेना | आप यहाँ आए तो हुए हो | नाश्ता वगैरह कर लो फिर मैं जाकर पता कर लूंगा | शुभ कार्य में देरी नहीं करनी चाहिये |” 

 बस्ती के बीचों बीच एक बहुत बड़ी हवेली खड़ी है | अन्दर लम्बा चौडा आंगन है | आंगन के एक कौने में लाला नारायण एक चारपाई पर आराम कर रहे हैं | उन्होने अभी अभी नाश्ता समाप्त किया है | नौकर बचा हुआ सामान वापिस ले जा रहा है | वह उससे कह्ता है, "हरिया अब जरा हुक्का ताजा कर ला |”

“अच्छा लाला जी अभी लाया |”

“और सुन गाय पर धूप आ गई होगी उसे भी छाया में बाँध दे |” 

“ठीक है लाला जी बाँध देता हूँ |” 

इतने में महेंद्र प्रताप अन्दर दाखिल होकर, "भाई साहब राम राम |”

नारायण ने मुडकर देखा, “आ भाई महेंद्र प्रताप बैठ | हमारा अहो भाग्य जो आज सुबह सुबह आपके दर्शन हुए |” 

“आज सुबह सुबह लक्ष्मी की बात आई तो सोचा आपसे ही सलाह कर लूँ |

हुक्के की नली प्रताप की ओर बढाते हुए, “प्रताप, हम ठहरे अनपढ गंवार | भला हम आपको क्या सलाह दे सकते हैं |”

“ऐसा मत कहो भाई साहब | एक तो आप अनपढ गंवार नहीं | दूसरे मैं जो आज इस पोजीशन पर पहूंचा हूँ वह आपकी सलाह तथा रास्ता बताने का ही नतीजा है | बिना इसके मैं किसी काबिल नहीं था |” 

“प्रताप भाई काम आपने किया, मेहनत आपने की तो भगवान ने फल भी तुम्हे ही देना था | फिर भला केवल एक रास्ता सुझा देने से मेरा क्या सहयोग रहा ?”

“प्रगति के पथ पर अग्रसर होने के लिये सही रास्ते का पता होना ही तो सफलता की सबसे बड़ी कुंजी होती है, भाई साहब |” 

“अच्छा, अच्छा ठीक है | बातों में भला आप से कौन जीत सकता है | अब बताओ कैसे आना हुआ ?”

“पहले यह बताओ कि अगर एक भाई दूसरे भाई के लिये अपने विश्वास पर किसी तीसरे व्यक्ति से कुछ तय कर लेता है तो दूसरे भाई का क्या फर्ज बनता है ?” 

“क्या मतलब, क्या बात है | प्रताप साफ साफ कहो |”

“बात कुछ भी हो | पहले यह बताओ कि दूसरे भाई का क्या फर्ज बनता है ?” 

“अगर बात जायज हो तो दूसरे भाई को अपने भाई की इज्जत रखने के लिये तय की हुई बात मान लेनी चाहिए |” 

राम नारायण का उत्तर सुनकर महेंद्र का मन बहुत खुश हुआ | उसने यह कहने में एक पल भी नहीं लगाई, "तो ठीक है, बात तय हो गई समझो |” 

जब नारायण ने महेंद्र की बात पर कोई प्रतिक्रिया जाहीर नहीं की तो वह असमंजस्ता से नारायण के चेहरे के भाव समझने की कोशिश करने लगा | परंतु उनके सपाट मुख पर कोई प्रश्न चिन्ह न देखकर महेंद्र को खुद ही प्रश्न करना पड़ा, "पूछोगे नहीं कि क्या तय हो गया ?”

“मुझे पूछने की क्या जरूरत है |” 

“भाई साहब तय तो आपके लिए किया है |”

“जब तय कर ही लिया है तो फिर पूछने की क्या आवश्यकता रह जाती है | जो तय हो गया सो हो गया |” 

महेंद्र बताने को आतुर होते हुए, "भाई साहब फिर भी.....|”

“देखो, महेंद्र जब तुमने तय किया था तो आपको एक दृड़ विशवास होगा कि मैं आपका किया हुआ फैसला कभी भी नहीं टाल सकता | इसके साथ साथ आपने यह भी सोच समझ कर ही तय किया होगा कि जो आप कर रहे हैं उसमें किसी प्रकार की कोई त्रुटी नहीं रहनी चाहिए | अतः अब और बातें छोडकर मुझे तो केवल इतना हुक्म दो कि मुझे आगे क्या करना है |”

“भाई साहब हुक्म का शब्द प्रयोग करके मुझे शर्मिन्दा न करें | असल में मैनें आपके बड़े  लड़के शिव का रिस्ता अपने साले की लड़की "प्रेम" से तय कर दिया है |”           

राम नारायण ने इस बार थोडा सोचा और कहा कि उसे इस रिस्ते में कोई आपत्ति नहीं है फिर भी प्रचलन के अनुसार लड़के की मंशा जान लेना जरूरी है | 

उनकी इस अड़चन का समाधान भी अन्दर आती हुई उनकी पत्नि ने यह कहते हुए कर दिया कि उसने शिव से पता पर लिया है तथा वह कह रहा है कि वह अपने बडों की मर्जी ओर इच्छा के खिलाफ नहीं जाएगा |

“लो जी अब तो आपकी इस शंका का भी समाधान हो गया है | अतः लग्न व शादी की तिथि सुझवा कर बता देना |”

“भाई महेंद्र जब आपने इतने काम निपटा लिये हैं तो फिर इस काम को क्यों छोड़ते हो | यह शुभ कार्य भी आपके हाथों सम्पन्न हो जाए तो सोने में सुहागा हो जाएगा |”

“ठीक है भाई साहब आप चिंता न करें मैं सब काम पूरे करा दूंगा परंतु (महेंद्र चुटकी लेते हुए) भाई साहब बारात तो आपको ही ले जानी पड़ेगी |”

नारायण ने भी हाजिर जवाबी झाड़ते हुए, “वो मैं जानता हूँ | बारात तो तुम किसी हालत में भी नहीं ले जाओगे | क्योंकि यह तो जगत प्रसिद्ध कहावत है कि, "गन्ने से गंडेरी मिठ्ठी ओर गुड़ से मीठा राला, भाई से भतीजा प्यारा ओर सबसे प्यारा साला |  इसमें तो आप अपने साले का ही साथ दोगे |” (सभी उपस्थित लोग जोर का ठहाका लगाते हैं)

इस तरह अपने भाईयों के विशवास पर ही नारायण जी ने बिना किसी प्रकार की कोई हुज्जत करते हुए तथा अपने भाईयों का मान रखते हुए अपने लड़के की शादी बड़ी   धूमधाम से सम्पन्न कर दी | बारात के लोग ही नहीं बल्कि पूरी बिरादरी में उन्हीं के नाम का गुणगाण हो रहा था | ऐसे हैं नारायण जी | क्या अब भी तुम्हारे मन में कोई शंका है ?”   

“सो तो ठीक है फिर भी मुझे तो अपनी संतो की लम्बाई पर ....|”

“अजी छोड़ो अपनी शंका को, सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दो, और उनके आवभगत की तैयारी शुरू कर दो |”


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