Friday, August 21, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' (भाग- XII)

 XII

संतो साथ वाले कमरे में बैठी अपने माता पिता जी के वार्तालाप को सुन रही थी | उसे जब यह पता चला कि यह वही लड़का है जिसे उसकी बुआ, माला चाहती थी तो एक बार को वह ऊपर से नीचे तक सिहर उठी | वह अभी आगे कुछ सोच भी नहीं पाई थी कि उसकी छोटी बहन कुंती अपनी माँ के हाथ से मिठाई का छीनकर भागकर उसके कमरे में आ गई | 

कुंती ने संतो के मुँह में लड्डू ठूंसते हुए, “बधाई हो बधाई, बहना |”

“किस बात की बधाई”,संतो ने बनते हुए कहा | 

कुंती मिठाई का डिब्बा संतो के हाथ में थमाते हुए, “अब तुम मुझे भी लड्डू खिलाओ और बधाई भी दो |” 

“यह क्या है ? बधाई लो भी और बधाई दो भी | क्या तेरी भी...|”

“संतो इसका मतलब तुझे पता है कि मैं बधाई क्यों दे रही थी | तू वैसे ही बन रही थी कि किस चीज की बधाई | अरे मैनें तो कमरे के अन्दर आते ही तुम्हारे चेहरे की रौनक देखकर भाँप लिया था कि मेरी बहन जी सब जान चुकी हैं |” 

“अच्छा अच्छा रहने दे | अपने को बहुत ज्यादा साईकोलोजिस्ट समझती है | परंतु यह तो बता कि तू किस लिये बधाई मांग रही है ? क्या सचमुच में तुम्हारा भी.....?”

“ना बहना ना | अभी हम इस पचडे में नहीं पडने वाले | मैं तो इस लिये कह रही थी कि तुम्हारे हाथ पीले होने के बाद हम यहाँ के बेताज बादशाह बन जाएंगे | मेरे उपर हुक्म चलाने वाला कोई न रहेगा | अपनी मर्जी के मालिक होंगे | जब इच्छा होगी...उठेंगे और जब मर्जी होगी... खाएंगे”, कहते कहते कुंती का गला भर आया ओर वह संतो के गले लग कर फफक फफक कर रो पडी |          

रात को कुंती तो सो गई परंतु संतो की आखों से नीदं कोसों दूर दिखाई दे रही थी | वह बार बार यही सोच रही थी कि न जाने यह लड़का कैसा होगा ? यही तो वह लड़का है जिसका बुआ माला के साथ प्यार था | माला के याद आते ही वह पुराने विचारों में खो गई और उसके साथ हुए वार्तालाप की झलकियाँ उसके जहन में एक एक करके चलचित्र की भाँति महसूस होने लगी |  

 मन में यही सोचते सोचते कि लड़की का जीवन एक धान के पौधे के समान होता है | वह जन्म कहीं लेती है परंतु फलती फूलती कहीं और है | किंतु नारी मात्र एक पौधा नहीं है ,उसमें चेतना, भावना ओर विचार करने की भी क्षमता होती है | इतना सब जानते हुए भी हमारे पुरूष प्रधान समाज में नारी के विचारों, उसकी चेतना तथा उसकी भावना का कोई महत्व नहीं समझा जाता | तभी तो मेरी बुआ जी अपने प्यार का इजहार न कर पाई और एक निरीह जानवर की तरह बंध कर किसी और के साथ विदा हो गई | ऐसी सब बातों का विचार करते करते संतों न जाने कब निंद्रा देवी के आगोश में समा गई | 

 राम रतन  जी के बच्चों  में उनका एक लड़का तथा तीन लड़कियाँ थी | बड़ी लड़की, उमा तथा लड़के श्रीराम  की शादी हो चुकी थी | अब उनकी दूसरी लड़की के रिस्ते की बात चल रही थी | गुलाब अपनी माता जी ओर सोमनाथ के साथ ग्वालियर पहुंच गया | सोमनाथ का श्रीराम से पहले से ही याराना था तथा कई बार वह ग्वालियर जा चुका था | अतः उन्हे घर पहुंचने में किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं हुई | 

सब आँगन में बैठ जाते हैं तो राम रतन  जी आकर गुलाब की माता जी के गुलाब छूने को झुकते ही हैं कि वे हाथ के इशारे से ऐसा करने से मना कर देती है | अतः वे सोमनाथ की बगल वाली कुर्सी पर बैठ कर उनसे बातें करने लगते हैं | 

“कौन सी गाड़ी से आए हो जी ?”

“ताज एक्सप्रैस से आए हैं | बड़ी अच्छी गाड़ी है | किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती | इसका देहली से चलने का समय तथा यहाँ पहुंचने का समय भी बहुत माफिक आता है | आदमी अगर चाहे तो सुबह आकर अपने सारे काम निबटा कर रात को वापिस देहली पहुंच सकता है |” 

”लेकिन फूफा जी( श्रीराम सोमनाथ को अपनी बुआ शालू के नाते से फूफा जी ही कहता था) हम आपको आज वापिस नहीं जाने देंगे |” (सभी हँसते हैं)

इतने में एक लड़की हाथ में पानी की ट्रै लिये अन्दर प्रवेश करती है | वह एक एक करके सब के सामने पानी देने को जाती है | सभी मेहमानों की चोर निगाहें उस लड़की का अपने अपने तरीके से निरीक्षण करने लगती हैं | अपने आपमें संतुष्ट होकर गुलाब की माता जी राम रतन  से पूछ्ती हैं, "क्या लडकी यही है ? रंग रूप, लम्बाई तथा सेहत से तो ठीक लगती है | कितनी पढी है ? “

जी यह तो मेरी छोटी लड़की, कृष्णा  है | अभी पढ रही है | जिसका रिस्ता करना है वह तो इससे बडी, संतोष, है |

“ब्याह लायक तो यह भी हो रही है |”

“दोनों बहनें उपर नीचे की हैं जी | वैसे इसकी सेहत बड़ी से कुछ इक्कीस है इसीलिए ऐसी लगती है |” 

कुंती गुलाब को पानी देते हुए धीरे से, “जीजा जी नमस्ते |”

गुलाब जो औरों की तरह ही सोचकर विचारों में मग्न था अपने कानों के पास कुंती की आवाज सुनकर अचानक चौंकते हुए, "तो क्या तुम वो नहीं हो ?”

कुंती थोडा मुस्कराते हुए, "नहीं मैं वो नहीं हूँ |” फिर आँख का इशारा करते हुए, “वो तो उपर खिडकी में |”

गुलाब ने अपनी निगाहें उपर उठाकर देखा तो पाया कि एक लड़की खिडकी के झरोखे से नीचे का मुआयना कर रही है | गुलाब ने भी उसको देख कर अन्दाजा लगा लिया कि वह एक सुडौल शरीर की है | रंग गेहुंआ है | नैन नक्श भी ठीक ही लगते हैं | लम्बाई का अन्दाजा लगाना मुशकिल था | गुलाब को ऊपर देखते हुए पाकर लड़की एक और को छुप जाती है | कुंती के मेज पर नमकीन, मिठाई वगैरह लगा जाने के बाद संतोष हाथ में चाय की ट्रे लिये हुए कमरे में प्रवेश करती है | पहले की तरह सभी की निगाहें उसकी तरफ उठने लगती हैं | उसने चाय की ट्रे मेज पर रखकर सभी को नमस्कार किया तथा फिर गुलाब की माता जी के चरण स्पर्श करके ज्यों ही बाहर जाने को उद्यत हुई तो गुलाब की माँ ने उसे टोक कर आए हुए मेहमानों का मुहँ मीठा कराने को कहा | लज्जाती शर्माती संतोष ने काँपते हाथों से सबके सामने बर्फी की ट्रे घुमा दी तथा आकर गर्दन नीची करके अपनी होने वाली सास के साथ वाली कुर्सी पर बैठ गई |          

“तुम्हारा नाम क्या है ?”

“जी, संतोष |”

“कितनी पढी हो ?”

“दसवीं के पेपर दिये है |”

“सुना है सिलाई वगैरह भी जानती हो ?”

“हाँ जी, थोडा बहुत (बीच में संतोष की माँ एक सर्टिफिकेट दिखाते हुए) अजी इसने सिलाई-कढाई का डिप्लोमा कर रखा है | यह देखो इसकी की हुई कढाई के नमुने |”

संतोष द्वारा की गई सिलाई कढाई के नमुने देखकर गुलाब की माता जी को संतोष हो गया कि संतोष एक गुणवंती लड़की है | अतः उन्होने अपना फैसला सुना दिया कि उन्हें लड़की पसन्द है परंतु एक बार लड़का तथा लड़की आपस में बातचीत करके अगर अपना मत भी प्रकट कर दें तो बहुत अच्छा रहेगा | इसलिए उन्होंने संतोष की माता जी से पूछा, “क्यों जी आपकी क्या राय है ?” 

“हमें भला इसमें क्या एतराज हो सकता है | वैसे यहाँ से थोड़ी दूर पर ही सनातन धर्म मन्दिर है | वहाँ बैठने का भी उचित प्रबंध है | अगर आप मुनासिब समझो तो वहाँ चले जाओ, भगवान के दर्शन भी हो जाएंगे ओर अगर घुमना पसन्द करो तो मन्दिर से सटे पार्क में घुम भी लेना |”

 वहाँ जाकर गुलाब ने संतोष को ध्यान से निहारा तो पाया कि उसक शरीर स्वस्थ एवं सुडौल था | उसका गोल चेहरा लालिमा से भरा सुन्दर दिख रहा था | हालाँकि उसके चेहरे पर माता के निशान झलक रहे थे परंतु उसके चेहरे की लालिमा ने उन्हें परास्त किया हुआ था | गुलाब ने अपना निर्णय लिया तथा बिना किसी को बताए वापिस घर आ गया | लड़के को इतनी जल्दी अकेला वापिस आया देख सभी के मुहँ पर हवाईयाँ उड़ने लगी | संतोष की माँ तो अधीर हो तथा आंखों में पानी भरते हुए अपने पति से बोली, "लगता है लड़के को लड़की पसन्द नहीं आई तभी तो इतनी जल्दी अकेला ही वापिस आ गया है |”

“शुभ शुभ बोलो |”

“मेरा दिल तो बैठा जा रहा है |” 

कुंती उदासीनता से, “मेरी बहन में कोई कमी तो है नहीं |” 

राम रतन सभी को ढांढस देने के लिहाज से, “थोडा धैर्य रखो | इनकी माता जी को आने दो | उनसे ही असलियत मालूम पडेगी |” 

इतने में ही गुलाब की माताजी मकान में प्रवेश करते हुए तथा अपने बेटे को अंदर बैठा देखकर, "क्यों बेटा तुम बिना कोई बात किये तथा बिना बताए ही मन्दिर से लौट आए ? हम सब तुम्हें वहाँ ढूंढ रहे थे | क्या बात है ?” 

गुलाब अब भी बिना कुछ बोले अन्दर वाले कमरे में चला गया | उसका अनुशरण करते हुए उसकी माता जी, उसका भाई तथा उसकी छोटी बहन भी अन्दर चले गए |

राम रतन जी का परिवार दिल में चिंता एवम उतावलापन लिये उनके बाहर निकलने का इंतजार करता रह गया | यह घड़ी लड़की वालों के लिए उस पपीहे के समान होती है जो आसमान मे उमड़ते बादलों को देखकर उसकी ओर अपना मुहँ फाड़े इस उम्मीद में बैठा रहता है कि न जाने बारिश की एक बून्द उसकी मनोकामना एवं जीवन की लालसा को पूर्ण करेगी भी या नहीं | 

घर वालों को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा | क्योंकि जल्दी ही गुलाब की माता जी ने बाहर आकर बता दिया कि लड़के को लड़की पसन्द है | परंतु..... |

पहले तो सभी के चेहरे खिल उठे थे ओर एक दूसरे को बधाई देने का सिलसिला शुरू भी हो गया था किंतु गुलाब की माता जी के मुख से निकले परंतु ने सभी को एक बार फिर से जड़वत कर दिया |   

राम रतन जी के मन की दुविधा एवं उनके चेहरे पर उड़ती हवाईयों को समझते हुए गुलाब की माता जी ने उन्हें ढांढस बंधाते हुए कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है मेरा लड़का केवल इतना जानना चाहती है कि लड़की को बस या रेलगाड़ी के सफर के दौरान उल्टियाँ तो नहीं आती ? 

गुलाब की माता जी का कथन सुनते ही राम रतन जी तनाव मुक्त हो गए | उन्हें ऐसा आभास हुआ मानों तैरते तैरते थक कर डूबते हुए एक पुरूष ने थाह पा ली हो | उनके साथ साथ उनके सभी घर वालों के चेहरे प्रसन्नता से उदभाषित दिखने लगे |  राम रतन  जी से उत्तर देते न बना क्योंकि खुशी के कारण उनकी आंखे छलक आई तथा गला भर आया था | अतः श्रीराम को उत्तर देते हुए बताना पड़ा कि संतोष को सफर में ऐसा कुछ नहीं होता |       

इस पर गुलाब की माता जी ने घोषणा कर दी, “लड़की हमारी हुई अर्थात उनकी तरफ से रिस्ता पक्का | बाकी वे सोच लें कि उनकी क्या राय है ?”

संतोष की माँ जिसके मन में खुशी की लहर हिलोरें मार रही थी हाथ जोड़कर बोली, "हमें क्या सोचना है जी | हमारी बेटी सौभाग्य शालिनी है जो आपने उसे अपनी बहू बनाने का सम्मान दिया |” 

गुलाब की माँ भी बहुत खुश दिखाई दे रही थी | वे अपनी प्रसन्नता में इतनी बह गई कि झट से अपने गले से सोने की चैन निकाल कर संतोष के गले में पहना दी |

इस पर बधाई हो ...बधाई हो के उच्चारण से वातावरण गूंज उठा | संतोष की माँ ने एकदम उठकर गुलाब की माता जी(लीलावती) के चरण छूने चाहे परंतु उन्होने फुर्ती दिखाते हुए उनको ऐसा करने से रोक दिया तथा उन्हें अपने गले से लगा लिया |

संतोष की माँ ने दोबारा चरण छूने की कोशीश करते हुए, “हमने तो आपके पैर पहले भी छू रखे हैं जब हमारी शालू की शादी आपके बड़े लड़के से हुई थी |” 

“तब की बात कुछ और थी | उस समय मैं आपको इतना जानती नहीं थी | अब तो मैं आपको प्रत्यक्ष अपनी समधन के रूप में देख रही हूँ | अब आप ऐसा न करें |” 

राम रतन जो अपनी लड़की के रिस्ते की बात पक्की जानकर फुला न समा रहा था अब दोनों सम्धनों की बात सुनकर बोला, यह तो आपका बडप्पन है जी | वरना हमारी जगह तो आपके चरणों में ही है जी | कुंवर साहब(गुलाब) के पिता जी की तरह आप भी महान हैं जी | देखो न आपने लड़के की रस्म कराने से पहले ही लड़की की रस्म कर दी | लाला जी की महानता के चर्चे तो मैनें तभी सुन लिये थे जब आपके बडे लड़के की शादी दारियागंज से हुई थी | फिर प्रत्यक्ष डिबाई में देख भी लिया जब आपके दूसरे लड़के की शादी हमारी चचेरी बहन शालू के साथ सम्पन्न हुई थी | 

लीलावती ने डिबाई वालों की बात बताते हुए कहा, “डिबाई वालों ने तो बारात की आवभगत बहुत अच्छी की थी | सभी बाराती बहुत प्रशंसा कर रहे थे |”

“सो तो सही है जी परंतु लाला जी की महानता का तो कोई मुकाबला ही नहीं हो सकता” | इसके बाद राम रतन जी ने डिबाई में घटी बर्फ के पानी की घटना को सुना दिया |फिर थोड़ी देर रूककर, "अगर आपकी मंजूरी मिल जाए तो लड़के का शगुन करके हम भी अपनी तरफ से बात पक्की कर दें |”

“जैसी आपकी इच्छा | मुझे इस में कोई एतराज नहीं है |”    

राम रतन जी ने विधिपूर्वक गुलाब के माथे पर चन्दन रोली का टीका लगा कर एक गिन्नी भेट स्वरूप गुलाब को दे दी | इसके बाद जब वे गुलाब की माता जी को मिलनी के रूप में भेंट देने लगे तो उन्होने यह कहते हुए लेने से मना कर दिया कि यह मामला मर्दों के दायरे में आता है तथा उनसे पहले वे यह स्वीकार नहीं कर सकती | इस समय इतना ही बहुत है कि हमको लड़की पसन्द आ गई है तथा आपको लड़का | अब आगे के प्रोग्राम आप मर्द लोग बैठ कर सुलझाते रहना |


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