Tuesday, August 25, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' (भाग -XVII)

 XVII

शाम को संतोष की जिठानी"प्रेम" अपने पीहर से वापिस आ गई | अपनी सास के चरण छूकर वह उनके गले लगकर सिसकियाँ भरने लगी | प्रेम को आया जान घर के सभी सदस्य अपनी अपनी सहानुभूति प्रकट करने हेतू वहाँ एकत्रित हो गए | सास ने अपनी बहू को, रोते देखकर, समझाते हुए बडे ही कोमल एवं मधुर शब्दों में कहा, "नहीं बेटी अपना दिल छोटा न कर | परम पिता परमात्मा की करनी के आगे किसका जोर चलता है | अब रो मत | जा अन्दर जाकर आराम कर ले, थक गई होगी  |” 

इतने में संतोष आगे बढकर अपनी जिठानी के चरण छुना ही चाहती थी कि प्रम ने उसे कंधों से पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया | प्रेम कुछ बोली नहीं और धीरे धीरे अपने कमरे की तरफ बढ गई | 

वास्तव में प्रेम की माता जी का स्वर्गवास उसी समय हो गया था जब वह छः साल की रही होगी | उसके छोटे भाई तथा उसका लालन पालन उनके पिता जी(मुनीम जी) ने बहुत ही बेहतरीन एवं सुचारू रूप से किया | पिता ने बच्चों को माँ का अभाव कभी भी महसूस नहीं होने दिया | उन्होने दोनों बच्चों को इस काबिल बना दिया कि अपने जीवन में वे सफलता की सिढियाँ आसानी से चढ सकें | प्रेम को घर ग्रह्स्थी चलाने का पूरा ज्ञान उसकी मुहँ बोली चाची कृष्णा से प्राप्त हुआ था | वह घर के हर काम में चतुर थी | हालाँकि वह शहर में पली बड़ी हुई परंतु ब्याह कर गाँव में आने पर उसने अपने आप को वहाँ के माहौल में इस तरह ढाल लिया जैसे वह बचपन से ही यहीं रह रही थी | प्रेम के छोटे भाई ने भी दिल्ली कालेज आफ इंजिनियरींग से टैक्सटाईल इंजिनियरींग की डिग्री करके बिरला मील में पद भार सम्भाल लिया था |          

धीरे धीरे घर के सभी सदस्य अपने अपने काम में लग जाते हैं | आंगन में जल रही अंगीठी के सामने अकेली संतोष बैठी रह जाती है | संतोष जाती भी तो कहाँ जाती | उसकी जिठानी के आ जाने से उसका आशियाना भी तो छिन गया था | खैर कोई काम न देख संतोष ने धीरे धीरे रात का खाना बनाने का काम शूरु कर दिया | जिठानी जब से कमरे में गई थी उसने एक बार भी बाहर कदम नहीं रखा था | रात के खाने की भी उन्होने मना भेज दी थी | अब रात के खाना खा चुकने के बाद फारिग होकर संतोष एक बार फिर अकेली रह गई थी | सभी अपने अपने कमरों में जाकर आराम करने लगे परंतु संतोष के पास तो अब अपना कहने के लिये कोई कमरा ही न था तो वह कहाँ जाकर रात बिताती | कुछ समय तक तो बैठी वह अंगीठी पर अपने हाथ सेकती रही फिर उसके पास ही एक दरी बिछाकर लेट गई | वह सोचने लगी कि वास्तव में ही यह संसार बडा स्वार्थी है | माना कि बुआ जी और माता जी तो दुकान पर चली जाती हैं परंतु उनका यह तो फर्ज बनता है कि जाते समय मेरा कुछ इंतजाम करके जाएँ | उनके जाने के बाद किसी को मेरी परवाह ही नहीं है कि मैं अकेली कहाँ सोऊंगी | और एक वो हैं कि मुझे यहाँ अकेला छोड़कर चले गए हैं | अबकी बार आएंगे तो मैं साफ साफ कह दूंगी कि मुझे भी साथ लेकर जाएं | मैं इस तरह यहाँ अकेली नहीं रह सकती | अचानक संतोष को अपने नन्देऊ वरूण के शब्द अपने कानों में गूंजते से सुनाई दिये, "भाभी जी  यह उपदेश सब दिखावा है वास्तव में गुलाब का साथ न पाकर आपका मन आपको कचोटता होगा | आपको धिक्कारता होगा | आप खून के घूंट पीकर रह जाती होंगी | मजबूर होकर आप गुलाब की याद को भुलाने की कोशिश करती होंगी | परंतु जब आप अकेले में बैठती होंगी तो रात के सन्नाटे में चारों और आपको गुलाब की मूरत ही नजर आती होगी |” 

सोचते सोचते संतोष का दिल भर आया | आंखों से अश्रु बह निकले और मन की पीड़ा जबान से बाहर आने लगी |

                               विरह का गाना

छोड़ गए बालम मुझे हाय अकेला छोड़ गए |

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हालाँकि लीलावती की अपनी पाँच लड़कियाँ थी परंतु करूणा का करूण क्रन्दन उससे देखा न गया जब एक हादसे में उसके सारे परिवार वाले मृत्यु को प्राप्त हो गए थे | करूणा उस समय लगभग तीन वर्ष की रही होगी जब लीलावती ने उसके पालन पोषण का जिम्मा उठाया था | करूणा का घर में वही दर्जा था जो लीलावती की और बेटियों को हासिल था | कई तो जानते भी नहीं थे कि करूणा एक अनाथ लड़की है | नई ब्याही आई संतोष को भी इसकी भनक तक न थी |

गुलाब की शादी के समय करूणा की उम्र लगभग सोलह वर्ष की रही होगी | वह मकान में नीचे बनी बैठक में अकेली ही सोती थी | वैसे तो करूणा बहुत मृदुभाषी, सहनशील तथा मिलनसार प्रवृति की लड़की दिखाई देती थी परंतु आज जब संतोष को रात बिताने को कोई जगह न थी तब भी करूणा ने संतोष से एक बार भी नहीं कहा कि वह उसके साथ उसकी बैठक में सो जाए | ऐसा भी नहीं था कि बैठक बहुत छोटी थी जिसमें दूसरी चारपाई बिछाने की जगह ही न थी | बैठक इतनी लम्बी चौड़ी थी कि तीन चारपाईयाँ बिछाने के बाद भी उसमें चलने फिरने की जगह रह जाती | संतोष बैठे बैठे सोचने लगी कि अगर करूणा कहती तो वह बैठक में पड़े सोफे पर ही सोकर अपनी रात आराम से बिता देती | वैसे जब करूणा खाना खाकर उठकर जा रही थी तो संतोष ने महसूस किया था कि करूणा उसे कनखियों से देखते हुए उसकी आँख बचाकर अपनी बैठक की तरफ बढ रही थी | संतोष घर में नई सदस्य थी | वह अभी किसी के स्वभाव तथा व्यवहार के बारे में कुछ नहीं जानती थी | अतः जब किसी ने उससे उसके सोने के बारे में कुछ नहीं पूछा तो वह चुपचाप अंगीठी के पास बैठी रह गई |

संतोष पहली मंजिल पर बीच चौंक में बने जाल के पास लेटी हुई थी | वहाँ से पहली मंजिल के साथ साथ नीचे होने वाली जरा सी आहट भी सुनाई दे जाती थी | चारों और सन्नाटा व्याप्त था | घड़ी की टिक-टिक भी ऐसा आभाष दे रही थी जैसे कोई हथोड़ी से धीरे धीरे  कुछ ठोक रहा हो | रात का लगभग एक बजा होगा | बाहर गलियारे में वास्तव में ही धीमी धीमी खट खट की आवाज ने संतोष के कान खड़े कर दिए | वह चौकन्नी हो गई तथा एकाग्रता से कान लगाकर सुनने का प्रयास करने लगी कि कहीं उसे कोई बहम तो नहीं है | धीरे से दोबारा खट खट की आवाज सुनाई दी | संतोष ने अन्दाजा लगाया कि वह आवाज पोली के दरवाजे पर न होकर साथ वाली बैठक के दरवाजे पर हो रही थी | संतोष दम साधकर निश्चल लेटी रही |    

हालाँकि घर में बिजली थी परंतु संतोष को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि बैठक में लालटेन से रोशनी की गई | बैठक के दरवाजे में एक छोटा सा छेद था जिससे बैठक में हो रही मध्यम सी रोशनी निकल कर पोली के फर्श पर पड़ रही थी | यह रोशनी, उपर जाल से, लेटी हुई संतोष को साफ दिखाई दे रही थी | संतोष और भी एकाग्रचित होकर हर आहट का जायजा लेने लगी | पहले बैठक के दरवाजे का ताला जो अन्दर से लगा रहता था खोला गया | फिर धीरे से बैठक का एक पल को दरवाजा खुला और बन्द हो गया | दरवाजा बन्द होने के बाद लालटेन की रोशनी मन्दी कर दी गई | संतोष अन्दर ही अन्दर काँप गई | उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे | उसके शोर मचाने से, अगर वैसा कुछ पकड़ा गया जो वह सोच रही थी तो, घर की बदनामी का डर था | और अगर वैसा कुछ नहीं पाया गया तो उसकी खुद की हँसी उड़ाई जाएगी | आखिर अपना मन पक्का करके दबे कदमों से नीचे जाकर उसने किवाड़ के छेद से अन्दर का दृश्य देखकर उसके अनुसार ही कुछ करने का निश्चय कर लिया | उसने किवाड़ के छेद से जो नजारा देखा उसे देख कर वह भौंचक्की रह गई | उसका शरीर बर्फ जैसा ठंडा हो गया | उसे काठ जैसा मार गया | बड़ी मुश्किल से उसने अपने आप को सम्भाला | इतने में बैठक का दरवाजा खुला, ताला बन्द किया गया, लालटेन बुझा दी गई तथा अन्दर अंधेरे के साथ साथ फिर निस्तब्धता छा गई |   

संतोष अपनी जगह आकर लेट गई | नीदं तो उसे पहले ही नहीं आ रही थी और अब बैठक का नजारा देख कर तो वह उसकी आंखो से कोसों दूर चली गई प्रतीत हो रही थी |  उसके सामने असमंजस्ता की स्थिति बन गई थी | अगर वह रात का देखा हुआ किस्सा अपनी सास को ब्यान करती है तो घर में बखेडा खड़ा होने का डर था | और अगर किसी को नहीं बताती है तो वह बदस्तूर चलता रहेगा जब तक उस पर अंकुश न लग जाएगा | यही सोचते सोचते कि वह क्या करे क्या न करे सुबह हो गई |

संतोष का सारा शरीर टूटा जा रहा था | सिर में भी थोड़ा भारीपन महसूस हो रहा था | वह बार बार उबासियाँ ले रही थी | 

संतोष की सास ने उसको उबासियाँ लेते हुए देखकर, “क्या बात है रात को ठीक से सोई नहीं क्या ?”

“नहीं माता जी ऐसी कोई बात नहीं है | मैं तो आराम से सोई थी |” 

“फिर आज क्या बात है तेरा चेहरा मुर्झा सा क्यों रहा है ?” 

“नहीं माता जी मैं ठीक हूँ |”  

सास कुछ सोचकर, “अरे हाँ रात को तू कहाँ सोई थी ?” 

संतोष कुछ सकपकाते हुए, “यहीं अंगीठी के पास ऐसी सोई कि पता ही न चला कि कब सवेरा हुआ |”

सास ने बडे ही ममता भरे शब्दों में कहा, “तू डर रही है कि अगर तूने साफ साफ बताया तो सभी घर वालों को डाँट पड़ सकती है कि उनमें से किसी ने भी तेरा ख्याल नहीं रखा | क्योंकि मैं जानती हूँ कि मेरे जाने के बाद तूझे अकेला छोड़कर सभी अपने अपने कमरों में जाकर सो गए होंगे | मैं भी तो जाने से पहले तेरा इंतजाम करना भूल गई थी | तेरा चेहरा ही बता रहा है कि तूने रात कैसे काटी होगी | तू मुझे बहकाना चाहती है ? आज से तू करूणा के साथ बैठक में सोएगी |” 

संतोष चुपचाप गर्दन झुकाए अपनी सास की बात सुनती रही | इस दौरान उसने कई बार सोचा कि वह अपनी सास से रात की घटना का जिक्र कर दे परंतु बार बार उसकी हिम्मत जवाब दे जाती थी | क्योंकि माँ के, अपनी बेटी जैसी करूणा पर, विशवास को छेद पाना नई बहू के लिए भारी पड़ सकता था | फिर माँ की आज्ञा से इतना तो हो ही गया था कि उसके बैठक में सोने से आईन्दा के लिए करूणा के गल्त कारनामों पर रोक तो लग ही जाएगी | अतः उसने अपने पति को ही इसकी थोड़ी सी भनक देना उचित समझा | 

संतोष ने गुलाब को लिखे पत्र में केवल इतना ही लिखा, “आजकल मैं करूणा के साथ ही सोती हूँ | उसके व्यवहार से पता चलता है कि उसके कदम कभी भी बहक सकते हैं अतः मेरे विचार से उसकी शादी जल्दी कराना बेहतर होगा | पूरा विवरण आने पर बता दूंगी |”       


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