Sunday, August 23, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' (भाग -XV)

 XV

अपने को अकेला पाकर संतोष ने कमरे का निरीक्षण किया | कमरा खास सजाया नहीं गया था फिर भी हर वस्तु करीने से लगी हुई थी | कमरे के बीचों बीच एक डबल बैड़ बिछा हुआ था | बिस्तर पर शायद नाम के लिये थोड़े फूल बिखेर दिये गये थे | कमरे में मकान के खम्बे की वजह से एक कौना सा उभर आया था | अगर उस कौने में कोई खड़ा हो जाए तो बाहर से कमरे में आने वाले को जल्दी से वह खड़ा हुआ आदमी नजर नहीं आएगा | संतोष को अचानक एक शरारत सुझी और वह झटपट उठकर उस कोने में जाकर खड़ी हो गई | कमरे की बत्ती बुझाकर उसने टेबल लैम्प जला दिया जिससे रौशनी मध्यम हो जाए |  उसका दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था | वह सोचने लगी कि न जाने गुलाब कैसे मिजाज का लड़का है | वह कुछ रंगीले मिजाज का तो अवश्य ही होगा तभी तो उसने उसकी बुआ जी माला को अपने चक्कर में फंसा लिया था | वह तो सब कुछ जानता होगा कि सुहागरात क्या होती है | शायद उसने बुआ जी के साथ भी सुहागरात मना रखी हो | यही सब सोचते सोचते वह एक बार को काँप कर रह गई | तभी दरवाजे पर आहट सुनकर वह कोने में थोड़ी और सिमट गई |    

धीरे से दरवाजा खुला | गुलाब अन्दर दाखिल हुआ | अपने पीछे उसने दरवाजा बन्द किया | पलट कर कमरे की मध्यम रोशनी में उसने महसूस किया कि संतोष पलंग पर नहीं थी | हालाँकि उस छोटे से कमरे में एक आदमी को ढूंढना कोई मुस्किल काम नहीं था फिर भी गुलाब ने ऐसा करने की अपनी तरफ से कोई कोशिश नहीं की | वह वहीं खड़ा सोचने लगा कि लगता है लड़की बहुत चालाक एवं चालू है | देखा नहीं किस तरह से चोरी चोरी फेरों के समय ही अपने पैर के अंगूठे से कैसी कारस्तानी की थी | ऐसा बेशर्म तो कोई लड़का भी नहीं होता और यह तो लड़की है | पता नहीं कैसा स्वभाव होगा तथा भविष्य में जीवन कैसे कटेगा | खैर औखली में सिर दिया तो धमाकों का क्या डर अपनी तरफ से शुरूआत तो खुशी जाहिर करते हुए ही करनी चाहिए | 

संतोष की शरारत के जवाब में उसे भी शरारत सूझ गई | वह चारों तरफ देखता हुआ आगे ऐसे बढा जैसे उसे कुछ दिखाई न दे रहा हो तथा अंधेरे में कुछ ढूंढ रहा हो | वह दो कदम उल्टे चलकर जानकर धडाम से फर्श पर गिर पड़ा और मुहँ से आवाज निकली “हे राम” | 

फिर चारों और निःस्तब्धता  छा गई |

 संतोष थोदी देर तो दिल थामें चुपचाप खड़ी रही परंतु गुलाब के शरीर की कोई हलचल न देख वह अधिक देरी सहन न कर सकी | उसके मन में बुरे विचार आने शुरू हो गए | वह सोचने लगी कि भगवान न जाने उसकी कैसी परीक्षा लेने वाले हैं | अभी एक हादसा, जिठानी के पिताजी का स्वर्गवास, तो होकर चुका ही है कि यह उलझन आन खड़ी हो गई है | अभी तक तो गाँव की औरतों को ही अभागिन कहते सुना था अब की बार तो घर वाले भी मेरी जान को आ जाएँगे | इस विचार से उसकी आंखो से अश्रुधारा बह निकली साथ साथ उसके हाथ भगवान की स्तुति में जुड़ गए कि वह ऐसा कुछ न करे जिससे उसे किसी प्रकार की जिल्लत उठानी पड़े | सोचते सोचते  उसके पैर स्वयं आगे बढ गये | गुलाब के निश्चल शरीर के पास पहुंच कर धड़कते दिल से संतोष ने ज्यों ही उसके शरीर को छुना चाहा वह हरकत में आया तथा संतोष को खिंच कर अपने उपर डाल लिया | इसको गुलाब ने एक विधुत वेग से इस तरह अंजाम दिया कि संतोष उसकी बाहों से छुटकारा पाने में बिलकुल असहाय तथा असमर्थ हो गई | जब संतोष कोशिश करते करते बिलकुल निढाल हो गई तथा अपने को समर्पित कर दिया तो गुलाब ने हाथ बढाकर बत्ती बुझ दी | अंधेरे में हलचल शुरू हो गई और गुलाब की तरफ से सुहागरात मन गई | संतोष अपने को आस्वशत करके उठ खड़ी हुई तथा अपने पहने हुए कपडों को सम्भालते हुए बाथ रूम की तरफ जाने लगी तो उसके मुँह से निकला"बुद्धू" |

गुलाब संतोष का पल्लू पकडते हुए, "यह उपाधि किस लिए ?”

“क्योंकि आपको दीन-दुनिया का कुछ पता ही नहीं |” 

“आपने हमारा अभी देखा ही क्या है जो आपने इतनी जल्दी यह उपाधि दे दी | आज यह तो हमारी पहली बानगी थी आगे आगे देखिये होता है क्या ?”

“परंतु दिव्य नजर रखते हैं ताड़ने वाले |” 

“क्या मतलब ?”

“मतलब यही कि आप सुहागरात ......|” अपना वाक्य पूरा करने से पहले ही शर्मा कर पल्लू छुडाकर भागने का प्रयास करती है परंतु गुलाब उठकर उसे अपनी बाहों में भरकर पलंग पर पटकते हुए, "हाँ अब बताओ कि तुमने कैसे जाना कि मैं ........?” 

“छोडो भी |”

“नहीं पहले बताओ ?”

“अच्छा एक बात बताओ ?”

“पूछो |”

“क्या आपने वह गाना सुना है ," हम तुम मिले जिवें टीच बटना दी जोड़ी |”

“हाँ, हाँ सुना तो है परंतु तुम्हारा इससे क्या अभिप्राय है ?”

“यही कि उसी स्थिति में सुहागरात पूरी होती है | 

आश्चर्य दर्शाते हुए, "तो क्या ऐसा नहीं हुआ ?”

धत्त (शर्माते हुए) और मौका पाकर बाथरूम में घुस जाती है |

संतोष अकेले में अपने आप से बातें करने लगती है | ये तो बहुत भोले हैं | इन्हें तो इतना भी नहीं पता कि सुहागरात कैसे तथा किस तरह पूरी होती है | मैं तो अभी तक यही सोचती रही थी कि ये तो शादी ब्याह के मामले में एक शातिर खिलाड़ी होंगे |  क्योंकि मेरी बुआ माला हमेशा इनके बारे में जिक्र किया करती थी | वे इनसे अपने प्यार के किस्से मुझे सुनाया करती थी | मैं तो यह समझ बैठी थी कि इन्होने माला बुआ के साथ कई सुहागरातें मनाई होंगी | परंतु आज के किस्से से मेरी वे सारी धारणाएँ गल्त मालूम पड़ती हैं | शायद माला भी मुझे यही बताना चाह रही होगी, जब हम दोनों डिबाई आखिरी बार मिले थे, परंतु पिताजी द्वारा बुला लेने से मैं उसकी पूरी बातें न सुन सकी थी | वे यही तो बता रही थी कि कैसे इन्होने माला को गर्त के गड्ढे में गिरने से बचाया था | 

संतोष सोचने लगी कि भगवान श्री कृष्ण को पांचाल नरेश परिक्षित ने सन्देशा भिजवा कर अपने यहाँ बुलाया था कि वे उनसे अपनी पुत्री द्रौपदी के विवाह के बारे में सलाह मशवरा कर सकें | वैसे सलाह मशवरा करना तो एक बहाना मात्र था | वे तो अपनी पुत्री का हाथ श्री कृष्ण जी के हाथ में देना चाहते थे | द्रौपदी भी सच्चे मन से कृष्ण जी को प्रेम करती थी | श्री कृष्ण जी स्वम द्रौपदी को चाहते थे परंतु उन्होने द्रौपदी से शादी नहीं की | अर्थात दोनों में एक दूसरे के प्रति अथाह लगाव होने के बावजूद वे शादी के बंधन में नहीं बंधे परंतु फिर भी जीवन के आखिरी क्षणों तक उनका यह लगाव फीका नहीं पड़ा | उन दोनों का निश्चल प्रेम ,सखा और सखी के रूप में, अमर यादगार बन गया | इसी तरह कृष्ण जी का नाम राधा के साथ लिया जाता है जबकि वह उनकी अर्धांगिनी नहीं थी |  संतोष पक्की आशवस्त हो गई कि गुलाब ने उसकी बुआ माला के साथ अपनी काम वासना की तृप्ति नहीं की होगी तथा मौके का फायदा न उठाते हुए सच्चा प्रेम किया होगा | ऐसा करने में इनको कितना धैर्य तथा संयम रखना पड़ा होगा | संतोष के दिल में अब तक जो धूमिल सी भ्रम की परछाई थी वह आज साफ हो गई तथा वह अपने पर गर्व महसूस करने लगी कि वह एक ऐसे व्यक्ति की पत्नि बनी है जो एक सच्चा, नेक, भोला एवं बला का संयम रखने वाला व्यक्ति है |               

एक फौजी के जीवन में ऐसे कई अवसर आते है कि उसे अपने बीबी बच्चों को घर पर अपने माँ-बाप की देखरेख में छोड़कर नौकरी पर जाना पड़ता है | वह महीनों अकेला रहने पर मजबूर हो जाता है | फौजी तो किसी तरह अकेला अपने दिन काट लेता है परंतु घर पर उसकी बीबी को यह बहुत मुशकिल हो जाता है | क्योंकि अमूमन फौजी की पत्नि के अकेलेपन का बहुत से लोग नाजायज फायदा उठाने की कोशिश करते हैं | वे गिद्ध की नजर रखते हुए अपनत्व का ढोंग करके अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं | ऐसे मनुष्य समझने लगते हैं कि फौजी की अकेली रह रही नारी उनकी पत्नि न सही परंतु उसके प्रति थोड़ी सी सहानुभूति दिखाने मात्र से ही उसे अपने बस में किया जा सकता है | ऐसी ही कुछ कोशिश गुलाब की पत्नि संतोष को रिझाने के लिये की गई थी |

गुलाब का तबादला देवलाली से जोधपुर का हो गया | उसको मजबूरन अपनी पत्नि को अपने घर, देहली छोड़ना पडा |  अभी उसकी शादी हुए ज्यादा दिन नहीं हुए थे अतः संतोष के पास कोई बच्चा नहीं था |  कहने को तो घर पर बड़े भाईयों के समृद्ध एवं भरे पूरे  परिवार थे परंतु इनमें आत्मियता की कमी थी | अतः संतोष की देखभाल का जिम्मा उसकी सास लीलावती पर ही था क्योंकि उसके ससुर स्वर्ग सिधार चुके थे |  वे इतनी सरल स्वभाव औरत थी कि उनका मन बच्चों की तरह निष्कपट था | 

No comments:

Post a Comment