Monday, August 17, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' (भाग X)

 X

“अरे संतो की माँ |”

.................|

“सुनती हो |”

“आई जी |(बाथरूम से आवाज देते हुए) अभी नहा रही हूँ |”

थोड़ी देर बाद, “कहो जी क्या बात है | बताने को बड़े उतावले नजर आ रहे हो ?” 

“अरे अब यहाँ क्या नहा रही हो, अब तो तुम्हें गंगा ही नहलाऊंगा |” 

“ऐसी क्या बात हो गई ?

“हुई नहीं होने जा रही है |” 

“अच्छा पहेली बुझाना छोड़ो और मतलब की बात करो | क्या बात है ?”

“पता चला है कि लडका छुट्टी आ रहा है | संतो के लिये बात करने जा रहा हूँ |” 

“लो सुनो | आप तो ऐसे कह रहे हो जैसे शादी की तारीख ही पक्की कर आए |” 

“पक्की ही समझो |” 

“संतो के लिये पाँच छः लडके तो देख चुके हो कोई भी पसन्द नहीं आया | अब यह् ऐसा कौन है जो बिना देखे ही पसन्द आ गया है |” 

“क्या तुमने डिबाई विजय की शादी में अपनी शालू का छोटा देवर देखा था ?”

“मुझे तो कुछ याद नहीं |”

“अरे वही जो मिलिट्री में है |”

दिमाग पर कुछ जोर डालकर, “क्या वही तो नहीं जिसकी माला के साथ बात होने जा रही थी |” 

“तुमने बिल्कुल सही अन्दाजा लगाया | माला की शादी तो अब हो गई है इसलिये क्यों न हम अपनी संतो के लिए वहाँ बात चलाएँ |”

“लड़का तो ठीक ही है परंतु हमारी संतो के हिसाब से लम्बा है | कहीं यही रूकावट का कारण न बन जाए |”

“इसकी चिंता मत करो | मुझे पूरा विशवास है कि काम बन जाएगा |

दोनों हाथ जोड़कर, “भगवान करे ऐसा ही हो |” 

गुलाब बाथरूम में नहाने के साथ साथ विचारों में खो गया | वह दुखी मन से  सोचने लगा कि अब माला तो मिल नहीं सकती परंतु उसे भुलाया भी नहीं जा सकता तो फिर ऐसी क्या युक्ति निकाली जाए कि माला से यदाकदा मिलन होता रहे | इतने में उसकी नजर  बाथरूम में लगे शीशे पर पड़ गई | शीशे में गुलाब को अपनी छाया सी उभरती नजर आई | प्रतिबिम्ब के चेहरे पर मन्द मन्द मुस्कान नजर आ रही थी | प्रतिबिम्ब ने कहा बरखुरदार आप बिल्कुल सही सोच रहे हो | अपनी भाभी जी की बात मान लो | उनकी भतीजी से शादी कर लो |

 इस युक्ति को जानकर गुलाब का मन गदगद हो गया | उसने सोचा कि ऐसा करने से वाक्य में ही उनके यहाँ या फिर हमारे यहाँ होने वाले हर टेहले ब्याह में हम दोनों का मिलन हमेशा होता रहेगा | 

प्रतिबिम्ब ने गुलाब को सजग करते हुए तथा अपना रौब जमाते हुए कहा, "याद रहे अपनी पत्नि के साथ किसी प्रकार की ना-इंसाफी नहीं होनी चाहिए |”

“नहीं- नहीं, मैं किसी प्रकार की कोई ना-इंसाफी नहीं होने दूंगा |” 

“तो तुम माला से कैसा रिस्ता रखोगे ?”

“मैनें माला से सच्चा प्रेम किया है तथा करता रहूंगा |”

“इसका मतलब अपनी पत्नि से केवल शारिरीक सम्बंध ही रखोगे ?”

“ऐसा नहीं है | मैं उसे भी उसका पूरा हक दूंगा | उसे मेरे से किसी प्रकार का कोई गिला शिकवा नहीं रहेगा |” 

“यह सब कहने की बातें हैं | ऐसा कभी भी मुमकिन नहीं कि कोई दो औरतों को एक जैसा प्यार दे सके |” 

गुलाब एक दृड़ निश्चय के साथ, “पहला लगाव तथा प्रेम निश्छ्ल प्रेम होता है और वह पूरी जिन्दगी के लिये हो जाता है | यह अमर प्रेम किसी भी हालत में मन से निकाला नहीं जा सकता |” 

“अगर तुम्हारी पत्नि को यह पता चल गया तो वह इसे सहन नहीं कर पाएगी | और तुम्हारी जिन्दगी नरक बन कर रह जाएगी |” 

“मैं अपनी पत्नि को सब कुछ साफ साफ बता दूंगा |” 

“तुम बेवकूफ जैसी बातें कर रहे हो | इतना भी नहीं जानते कि एक पत्नि अपने पति को किसी दूसरी औरत से कोई भी सम्बंध रखने को सहन नहीं कर सकती | कभी नहीं |”

“मैं अपनी पत्नि को बडे सरल भाव से समझाऊंगा कि वह्......|”

प्रतिबिम्ब गुलाब की मुर्खता पर हँसते हुए, “एक पत्नि चाहे वह कितनी भी समझदार क्यों न हो अपने पति का प्यार किसी दूसरी औरत के साथ बाँटने को कभी भी राजी नहीं होगी |” 

“मैं...........|”

दरवाजा खटखटाने की आवाज ने गुलाब के विचारों की श्रंखला को विराम दे दिया | उसकी भाभी शालू आवाज देकर खाने के लिये जल्दी आने को कह रही थी | वह जल्दी से सब काम निबटा तथा तैयार होकर खाने की मेज पर आकर बैठ जाता है | उसने खाना शुरू ही किया था कि दरवाजे की घंटी बजती है | गुलाब उठने की कोशिश कर ही रहा था कि उसकी भाभी ने दरवाजा खोल दिया |

शालू आगंतुक को देखकर जो उसके चचेरे भाई राम रतन थे, “नमस्ते भाई साहब जी, आईये |”

राम रतन अन्दर आकर गुलाब के सामने मेज के दूसरी तरफ बिछी कुर्सी पर बैठ जाते हैं | गुलाब उनसे नमस्ते करके अपना नाश्ता करने लगता है | 

शालू अपने भाई राम रतन को पानी देते हुए, “भाई साहब घर में सब कुशल पूर्वक तो हैं ?”

“हाँ वैसे तो सब कुशल मंगल से हैं केवल तुम्हारी भाभी ही ठीक नहीं रहती | उन्हें थकावट के कारण अकसर शरीर में हरारत के साथ साथ जोडों के दर्द की शिकायत बनी रहती है | दवाई देते रहते हैं | वैसे चिंता की कोई बात नहीं है |” (पानी पीते हैं) 

“भाई साहब, खाने का समय है, खाना लगा दूँ या पहले कुछ ठंडा या गरम चलेगा ?”

“नहीं-नहीं, कुछ नहीं |”

“भाई साहब पुराने ख्यालों को छोड़ो | अब तो लड़की की ससुराल में भी सब खाना पीना चलता है | फिर आप तो मेरे भाई हो |” 

“सो तो ठीक है परंतु बड़ा भाई हूँ | और फिर जब तक निभा सकता हूँ तो क्यों न निभाऊँ |”

गुलाब अब तक अपना नाश्ता समाप्त कर चुका था अतः राम रतन उसकी ओर मुखातिब होकर, “बेटा कब आए ?”

“आज सुबह ही आया हूँ |”

“पाकिस्तान-भारत की जंग तो काफी दिन चली ?”

“जी हाँ, शांति बहाल होते होते लगभग तीन चार महीने लग गए |”   

“क्या आप ऐसी लड़ाई में बन्दूक वगैरह से लैस होकर आगे जाकर लड़ते हो ?”

“नहीं जी | हम अधिकतर अपनी सरहद के 20-25 किलो मीटर अन्दर ही रहते हैं |” 

“तो फिर फौज में आपका क्या काम होता है ?” 

“हम राडार की ट्यूब पर अपने हवाई जहाजों की स्थिति देखकर उनको सही रास्ते की सुचना मुहैया करते हैं |” 

“इसका मतलब आप लोगों को जंग के दौरान कोई खतरा नहीं होता ?”

“जहाँ तक खतरे का सम्बंध है, व्यक्ति को खतरा कहाँ नहीं होता ?अभी हम इस छत के नीचे बैठे हैं | मान लो अभी जोर का भूचाल आ जाए तो, बन जाएगा न खतरा ?”

“सो तो ठीक है बेटा | फिर भी इस खतरे में और उस खतरे में बहुत अंतर है | खैर छोड़ो  इस मुद्दे को | बताओ कि कितने दिनों की छुट्टियाँ आए हो ?”

“दस दिनों की |”

“आपकी माता जी कहाँ हैं ?”

पीछे से शालू ने जवाब दिया, "वे पडौस में गई हैं |”

“कब आएंगी ?”

“बस आने वाली हैं |”  

 इतने में गुलाब की माता जी अन्दर दाखिल होती हैं | राम रतन उन्हें नमस्ते करता है | उत्तर में वे भी राम रतन का अभिवादन करते हुए एक खाली कुर्सी पर बैठ जाती हैं | गुलाब समय की नाजुकता को भाँपते हुए वहाँ से उठकर चला जाता है |  

राम रतन शालू की सास की तरफ हाथ जोड़कर, “जी मैं आपके लड़के गुलाब के लिए आया हूँ |”

“क्या आपकी लड़की ब्याह लायक है ?”

“जी हाँ | दसवीं पढी है | सिलाई कढाई का डिप्लोमा भी किया हुआ है |” 

“देखो जी मुझे इन बातों से कोई लेना देना नहीं | मुझे तो केवल इतना भरोसा दिला दो कि आपकी लड़की का स्वभाव हमारी शालू जैसा है तथा चुल्हा चौका सम्भालने में भी वैसी ही चतुर है जैसी शालू |”

“आप शालू से ही दरयाफ्त कर लो |”

“मुझे क्या दरयाफ्त करना है | आप क्या गल्त कहोगे | मुझे तो बस घर चलाने वाली लड़की चाहिये | घर बिगाडने वाली नहीं | अब आप अपने अन्दरले मन से पूछकर खुद ही हाँ ना का जवाब दे दो | अगर आपके अनुसार आपकी लड़की मेरी कही बातों की कसौटी पर खरी उतरती है तो मुझे रिस्ता जोड़ने में कोई आपत्ति नहीं है | फिर भी गुलाब के पिता जी से बात करना जरूरी है |”

“सो तो ठीक है जी |मैं उनसे बात कर लेता हूँ | वे कहाँ मिलेंगे ?”

शालू ने जवाब देते हुए बताया कि वे इस समय तो दुकान पर ही मिलेंगे | वैसे(घड़ी   की ओर देखकर)उनके घर आने का समय हो गया है | अतः भाई साहब आप थोड़ी   देर ओर यहीं इंतजार कर लो | 

लाला नारायण (गुलाब के पिता जी) घर में प्रवेश करते हैं | राम रतन जी खडे होकर उनका अभिवादन करते हुए अपने दोनों हाथ जोड़ते हैं | 

बैठो-बैठो, नारायण खुद भी बैठते हुए, “लाला जी आप कब आए ?”

“अभी कोई एक घंटा पहले |

“घर में सब कुशल पूर्वक तो हैं ? 

“भगवान की कृपा है जी |”

लीलावती, लाला नारायण की पत्नि, “जी, ये गुलाब के रिस्ते के लिये आए हैं |”

“अरे भाई लड़का इनका है फिर मेरे से क्या पूछना है |” 

राम रतन  :- सो तो ठीक है जी | यह तो आपका बडप्पन है जी | फिर भी अगर लड़के से भी उसकी मर्जी पूछ ली जाती तो बहुत बेहतर रहता | 

लीलावती :- शालू जा अपने देवर की इच्छा पता करके इन्हें बता दे |

लाला राम रतन, लाला नारायण जी के बारे में सब कुछ जानते थे कि वे बहुत ही नेक ,ईमानदार, दानी तथा सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं | उन्हें किसी प्रकार का कोई लालच छू तक नहीं सका है | जब शालू ने आकर बताया कि आप बडों की हाँ में ही गुलाब की हाँ है तो राम रतन आगे बात बढाने के लिये दुविधा में पड़ गए | थोड़ी देर तो उनकी समझ में न आया कि बात कहाँ से शुरू की जाए | फिर भी उनके समाज में प्रचलित प्रथा को ध्यान में रखते हुए परंतु राम नारायण जी के प्रति अपने आप में थोड़ी शार्मिन्दगी महसूस करते हुए उन्होने यह पूछना उचित समझा कि, "आपकी कोई इच्छा या डिमांड़ हो तो बता दे ?”

लाला राम नारायण की बजाय उनकी पत्नि ने ही जवाब दिया, “लाला जी आपने हमें शालू के विवाह के दौरान पहले भी परख रखा है | उससे ही अन्दाजा लगा लेना था कि हमारी क्या डिमांड, इच्छा या आकांशाए हो सकती है | वैसे आपकी शंका एवं चिंता को समाप्त करने के लिये बता दूँ कि भगवान का दिया हमारे पास सब कुछ है | मैनें आपको पहले भी बताया था कि  हमें तो लडकी पढी लिखी, सुन्दर तथा सुशील चाहिए | वह घर में मिलती जुलती सी हो तथा चौके चुल्हे का हर काम बखूबी जानती हो | बस इसी को आप  हमारी तरफ से डिमांड, इच्छा या आकांशा कुछ भी मान लो |” 

गुलाब की माता जी के वचन सुनकर राम रतन को बहुत दिनों के अथक प्रयास के बाद आज पहली बार मह्सूस हुआ कि यहाँ उनकी दिली इच्छा हर प्रकार से पूर्ण हो जाएगी | यह सोचकर उनका मन गदगद हो उठा | उनकी आंखों से खुशी के मोती टपकने वाले ही थे कि उन्होने अपने आप को सम्भालते हुए प्रश्न किया, "आप लड़की देखना कब तथा कहाँ पसन्द करोगे ? ‘

लीलावती अपने घर में सलाह करके, “हम लड़की देखनें अगले रविवार को आपके घर ग्वालियर ही आ जाएँगे | और हाँ अगर गुलाब को लड़की पसन्द आ गई तभी हमारी तरफ से रिस्ता पक्का समझो |”    

राम रतन उठते हुए तथा हाथ जोड़कर, “ठीक है जी अगले रविवार को मेरा लड़का आपको ग्वालियर स्टेशन पर ताज एक्सप्रैस के पहुंचने के समय पर मिल जाएगा | जिससे आपको हमारे घर पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं होगी | अब मैं चलता हूँ |”


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