Saturday, August 22, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' (भाग-XIV)

 XIV

बारात की विदाई की तैयारियाँ शुरू हो गई थी | अमुमन इस समय कंगना खोलने, दुल्हे को विदाई के टीके करना तथा समधियों को मेहन्दी भरे हाथों से थापे लगाने इत्यादि कार्यक्रम बड़े चाव, लग्न, उत्साह तथा मजाक भरे व  हर्षोल्लास के वातावरण में सम्पन्न होते हैं | परंतु अग्नि के सात फेरों के बाद जनवासे का खुशहाल माहौल अचानक मुर्दानगी भरा बन गया था | 

गुलाब ने देखा कि उसके बड़े भाई साहब, शिव  तथा उसके पिता जी में धीरे धीरे कुछ गम्भीर बातें हुई और फिर शिव जल्दी में बाहर निकल गए | पिता जी ने सभी को अपनी अपनी रस्में शिघ्रातिशिघ्र निपटाने को कह्ते हुए अपने मंझले लड़के श्री चन्द को दुल्हा दुल्हन को लिवा ले जाने के लिये गाड़ी लाने को कहा | गाड़ी आई परंतु बिना सजी हुई | उस पर एक भी फूल लगा नजर नहीं आ रहा था जबकी गाड़ी वाले से उसके सामने ही बात हुई थी कि गाड़ी को कैसे सजवाना था  |  और जब विदाई हुई तो उससे पहले की सभी रस्मों को नाम के तौर पर पूरा करके, बिना गाजे बाजे के चुपचाप सब अपने घर के लिये निकल गए |  वह इतना ही अन्दाजा लगा  पाया कि कुछ न कुछ बड़ा ही कांड़ हो गया है जो सब दबी आवाज में तथा जल्दी जल्दी सब काम निपटाना चाहते हैं | गुलाब ने जिज्ञासावश एक दो से पूछने की कोशिश भी की परंतु सबने टालने के लहजे में कुछ नहीं, कुछ नहीं कहते हुए बात को टाल दिया | खैर मन में एक अनजान आशंका लिये गुलाब अपनी दुल्हन को लेकर अपने गाँव नारायणा  पहुंच गया |

 गुलाब जब अपने घर को जाने वाली गली में मुड़ा तो वहाँ की हालत देखकर सकते में आ गया | गली में उसकी शादी के लिये जो सजावट की गई थी मसलन फूलों से सजा तौरण द्वार तथा पूरी गली में लगी रंग बिरंगी चमकीली पन्नियों के साथ बिजली की सजावट सब नदारद थी | और जब उसने अपनी बहनों ,भाभियों और रिस्तदारों की औरतों को बिना गीत गाते हुए तथा अपने चेहरों पर उदासीनता लिये नई दुल्हन को लिवाकर ले जाने के लिये आते देखा तो उसके सब्र का बांध टूट गया | वह झट से नीचे उतरा तथा अपनी शालू भाभी को झकझोरते हुए सा पूछा, "क्या हुआ भाभी जी ?”

उसकी भाभी जी ने बनावटी हँसी दिखाते हुए केवल इतना ही कहा, "घर चलो सब पता चल जाएगा |” 

आई हुई औरतें संतोष को लेकर चुपचाप घर की तरफ रवाना हो चली | रास्ते में संतोष के साथ चल रही कुछ बुजुर्ग औरतों के बीच उस हादसे के विषय में, जिसके कारण खुशी का माहौल एकदम गमगीन बन गया था, दबी आवाज में चर्चा शुरू हो गई | 

एक बुढिया :- गुलाब सेठ जी का सबसे छोटा लड़का है | 

दूसरी :- हाँ इसके बाद तो चार लड़कियाँ ही हैं | 

पहली :- सेठ जी की बड़ी तमन्ना थी कि इसकी शादी बड़ी धूमधाम से करंगे |

तीसरी :- तैयारी तो इसी हिसाब से की थी | देखा नहीं घुड़चढी किस शान से की थी | 

पहली :- हाँ बहन छः सात तरह के तो बाजे ही थे | और चार घोड़ों की बग्गी की छटा तो निराली ही थी | 

दूसरी :- सुना है फेरों के एकदम बाद बड़ी बहू(प्रेम) के पिता जी का स्वर्गवास हो गया था | यही कारण है कि इस बहू को धूमधाम से लिवा कर नहीं लाया गया | 

पहली :-(फुसफुसाते हुए) अरे नई बहू के पैर अभी घर में पड़े नहीं कि हो गई गमों की श्रंखला शुरू | 

संतोष के कान इन बुढियाओं की बातों पर लगे थे | अब उसकी समझ में आया कि उसकी विदाई के समय वातावरण क्यों गमगीन हो गया था | अपनी जिठानी के पिता जी के स्वर्गवास की जानकर एकबार को वह सिहर उठी | उसका रोम रोम काँप कर रह गया ओर वह सोचने लगी कि इस हादसे को लेकर(साथ चल रही बुढियाओं के कहने की तरज पर) न जाने ससुराल में उसके साथ कैसा व्यवहार होगा | खैर मन में डरती काँपती संतोष ने घर के अन्दर जाने की सारी औपचरिकता पूरी करते हुए ग्रह प्रवेश किया | इसके बाद मुहँ दिखाई की रस्म प्रारम्भ हुई |

पहली बुढिया दुल्हन का मुहँ देखकर, “अरे बहू तो सुन्दर है | गोल चेहरा, गेहूंआ रंग, सुडौल शरीर सभी अच्छा है |” 

दूसरी :- परंतु बहू के पैर तो कुछ अच्छे ना पड़े | 

तीसरी :- बिलकुल ठीक कहा, अरे सुन्दरता को कोई धर कर चाटेगा क्या ?

चौथी ;- ऐसी सुन्दरता किस काम की जो आते ही किसी की जान ले ले | मैं तो कहती हूँ कि ......|

इन सभी की आपस में हो रही बातें संतोष की सास बड़े धीरज से सुनती रही परंतु जब उसके सब्र का बाँध टूट गया तो उसने चौथी बुढिया को बीच में ही टोकते हुए कहा, "अरी ओ हर देई क्या कह रही है ? किसकी सुन्दरता ने किस की जान ले ली ?(थोडे कठोर शब्दों का इस्तेमाल करते हुए) तुम सब बहू की मुहँ दिखाई करने आई हो या आग लगाने  |”

“सेठानी नाराज न हो | हमने ऐसा कुछ नहीं कहा",सभी एक साथ बोली |

“कहने को तुमने छोड़ा ही क्या है | अभी तो बहू बच्ची है, वह तो शायद अभी तुम्हारे कहने का मतलब न समझ सके परंतु मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि तुम कहना क्या चाहती हो |” 

“सेठानी हमारा कोई गल्त इरादा नहीं था |” 

“अरी कहते हैं कि एक डायन भी अपनी घात सात  घर छोड़कर लगाती  है  परंतु तुम तो अपने बिलकुल पडौस के घर में ही अपनी बातों का जाल फैलाकर उस घर को बर्बाद करने की मंशा बना रही हो |” 

“सेठानी हमने ऐसा तो कुछ नहीं कहा कि आप इतना आग बबूला हो रही हो |” 

लीलावती बिलकुल साफ शब्दों में अपनी मंशा जताते हुए, “तुम सब हमारे यहाँ खुशी में शरीक होने आई हो | जो तुम्हारा कर्तव्य बनता है वह पूरा करो और खुशी खुशी विदा लो | मैं नहीं चाहती कि दुनिया का रोना तुम यहाँ रोने लगो |” 

लीलावती ने बोलना शुरू रखा, “अरे मेरी बड़ी बहू के पिता जी के स्वर्गवास हो जाने का गम तो हम सभी को है परंतु यह भी तो सच है कि उनकी उम्र हो चली थी | अब उनकी मृत्यु को मेरी छोटी बहु के पैरों से जोड़ने का तुम्हारा क्या अभिप्राय है ? सौ बात की एक बात कहती हूँ | खबरदार जो बहु के सामने किसी ने भी इस दुखःद हादसे के बारे में कोई उल्टी सीधी बात की तो | (फिर संतोष की ओर मुखातिब होकर) चल बेटी थोड़ा अराम करले | बहुत समय से ऐसे ही बंधी बैठी है |”

कमरे के अन्दर जाकर संतोष की आखों में आंसू देखकर, “बावली तू रोती क्यों है ? तू किसी बात की चिंता न कर | मैं हूँ न | अधिकतर दुनिया वाले ऐसे ही होते हैं | वे किसी की खुशी सहन नहीं कर पाते | हर चीज में बुराई ढूंढना उनकी आदत बन चुकी होती है | वे किसी और के घर में बढती सुख शांति एवं समृद्धि को पचा नहीं पाते तथा ऐसा कुछ चक्र चलाने की सोचते हैं कि दूसरे का बंटा ढार हो जाए | खैर अब तेरे सामने कोई ऐसी वैसी बात करे तो मुझे बता देना | (बड़े प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए और कमरे का दरवाजा बन्द करते हुए ) चल अब आराम करले |”  

शाम ढल गई | रात का खाना वगैरह से निपट कर सोने का समय हो गया | कमरे में अपने को अकेला पाकर संतोष के दिल की धड़कनें बढने लगी | वह अभी पूरी तरह सोच भी नहीं पाई थी कि गुलाब के कमरे में प्रवेश करने के समय वह किस तरह पेश आए कि उसके देवर तथा नन्दों ने उसे आकर घेर लिया | सभी संतोष के साथ मजाक तथा चुहल बाजी करने लगे | संतोष भौचक्की सी रह गई | उसका शरीर काँपने लगा तथा माथे पर पसीने की बून्दे चमकने लगी | उसकी ऐसी हालत देखकर शीला ने शरारत भरी मुस्कराहट के साथ पूछा, “भाभी जी क्या बात है ?”

“कुछ भी तो नहीं |”

“कुछ तो है तभी तो शरीर काँप रहा है |” 

“किसका ?”

“बनाओ मत, कविता बोली, तुम्हारा शरीर ऐसे काँप रहा है जैसे मन्द मन्द समीर चलने  से लता हिलोरे लेती  है |” 

सीमा, “भईया का डर लग रहा होगा |” 

“भला मैं क्यों डरने लगी |” 

“हाँ तुम तो शेरनी हो, भला तुम्हे किस का डर, परंतु यह घड़ी ऐसी होती है कि अच्छी अच्छी की सीटी पिटी गुम हो जाती है, "शीला ने चुटकी लेते हुए कहा  |”

संतोष ने जो अब तक सम्भल चुकी थी पलट वार करते हुए, "सुना है आप तो एक दबंग तथा निडर लड़की हो, तो क्या बहन जी आपके साथ भी ऐसा ही हुआ था ?”    

“अरे यह तो सब जानती है कि आगे क्या होने वाला है",कविता ने एक कहानी सुनाते हुए कहा | 

“तुम सब ने सुना होगा कि एक कौवा अपने बच्चे को सिखा रहा था कि किस प्राणी से किस तरह सावधान रहना चाहिये | उसने बच्चे से कहा कि जैसे ही तुम्हें देखकर कोई मनुष्य नीचे झुके तुम्हे उड़ जाना चाहिये क्योंकि वह तुम्हें मारने के लिये अवशय ही पत्थर उठा रहा होगा | इस पर कौवे के बच्चे ने पूछा कि पापा अगर उसके हाथ में पहले से ही पत्थर हो तो ? यह सुनकर कौआ बोला कि बेटा तू तो पहले से ही अकलमन्द है अतः तुझे पढाने या समझाने की कोई जरूरत नहीं है जा खेल कूद और मौज उड़ा | अतः मेरी बहनों क्यों अपना तथा उसका भी वक्त बरबाद कर रही हो |(वातावरण में एक जोर का हंसी का ठहाका गूंज जाता है) चलो अपने अपने काम में लगो |” 

कविता की बातें सुनकर संतोष लजाकर रह गई परंतु अन्दर से उसका पूरा शरीर अपनी नन्दों के हंसी मजाक के चलते पुल्कित हो रहा था | इतने में शीला ने अपना मुँह अपनी भाभी के कानों के पास लाकर धीरे से फुसफुसाया, "भाभी जी उधर देखो भाई को भी चैन नहीं है | वह एक पिंजरे में बन्द शेर की तरह इधर उधर चक्कर लगा रहे हैं |” 

जब संतोष ने उधर देखा जिधर उसकी नन्द इशारा कर रही थी तो वास्तव में ही वह सिर से पाँव तक काँप कर रह गई | 

इसी समय सीमा ने यह कहते हुए कि चलो भाभी जी को उसके कमरे में छोड़ आते हैं संतोष की बाँह पकड़कर उसे सहारा देकर उठाना चाहा तो वह एकदम चिल्लाकर बोली अरे कोई देखो भाभी जी तो ऐसे काँप रही हैं जैसे कि इनको बिजली का करंट लग गया हो | (सभी हसँने लगती हैं)

बहुत हो गया चलो चलो वर्ना हम कबाब मैं हड्डी कहलाएँगी | क्योंकि अब कली को फूल बनने का समय आ गया है |  के इस कथन के साथ ही सभी हसंती हसांती संतोष को कमरे में अकेली छोड़कर बाहर निकल जाती हैं |   

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