Monday, August 10, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' भाग-I

 

आत्म-तृप्ति

I

उत्तर प्रदेश में जिला बुलन्द शहर का एक छोटा सा कस्बा डिबाई | डिबाई का नाम कई कारणों से काफी प्रसिद्ध है | एक तो आसपास के बहुत से गाँवों के लिये यही एकमात्र बाजार है | दूसरे यहाँ वृहस्पतिवार को पैंठ लगती है जिसमें आसपास के गाँवों से कारिन्दे अपना अपना बनाया सामान बेचने के लिये यहाँ पटरियों पर बाजार लगाते हैं | इस बाजार में, घरों में इस्तेमाल होने वाला, छोटे से छोटा तथा बडे से बडा सामान मिल जाता है | अर्थात सुई से लेकर सोफे तक | वैसे तो यहाँ के बाजारों में रोजाना ही अच्छी खासी भीड़ रहती है परंतु पैंठ वाले दिन तो बाजार की सड़कों पर तिल रखने की भी जगह नहीं मिलाती | तीसरे देहली से बदायूँ जाने का एकमात्र रास्ता यही है | चौथे गंगा नदी पर नरौरा बिजली परियोजना के लिये डिबाई ही वहाँ की जरूरतों को पूरा करता है | पाँचवे राजघाट या नरौरा पर गंगा स्नान के लिये आने वाले यात्री भी अपना पडाव डिबाई को ही बनाते हैं |

वीरवार का दिन था | शहर में चहल पहल थी | कस्बे के एक समृद्ध व्यक्ति लाला मुंशी राम जी के पौत्र एवं लाला जय प्रकाश के जुड़वां पुत्र आमोद तथा प्रमोद के गंगा चढाने का उत्सव था | घर में इस बाबत तैयारियाँ लगभग पूरी हो चुकी थी फिर भी इस मकसद से कि कहीं कोई त्रुटी न रह गई हो लाला मुंशी राम आसवस्त होने के लिए हर काम का खुद जायजा लेते हुए मुआईना करने लगे |

अपनी पारखी नजरों से देखते हुए वे आगे बढे तथा ताकीद करने लगे कि कौन सा काम कैसे करना है तथा किसे करना है | आँगन के एक कौने में औरतों को गीत गाते सुनकर अपनी पत्नि को आवाज लगाते हुए, "अजी सुनती हो, ये औरतें कैसी मरी मरी आवाज में गीत गा रही हैं | इनसे कहो कि जरा जोर से आवाज बुलन्द करके गाऐं जिससे बाहर आस पडौस में भी पता चले कि उत्सव का शुभारम्भ हो गया है |

गीत गाने वाली सभी औरतें लाला जी की आवाज बखूबी पहचानती थी अत: आवाज सुनते ही उनमें जोश भर गया और वे मुखर आवाज में गाने लगी |

बजरंगी देख यहाँ कोना खाली पडा है एक गलीचा यहाँ भी बिछवा दे |

अच्छा मालिक |

पंडित जी गंगा पर ले जाने वाले क्लश अभी सूने क्यों हैं | इन पर सतिया नहीं बनेगा क्या ? और पूजा वगैरह का सामान तो सब पूरा होगा | एक बार और जाँच करलो कहीं कोई कमी न रह जाए | सारा सामान अपने ही पास रख लो अब यह आप की जिम्मेदारी है |

बिलकुल सेठ जी, मैं सब सम्भाल लूंगा |   

अरे ये पर्दे किस ने टाँगे हैं ? इनको उतरवाकर पहले प्रैस करवाओ फिर टाँगना | कितने भद्दे लग रहे हैं |

मालिक अभी करवा देता हूँ |

बेटा माला तू अभी तैयार नहीं हुई ?

बस हो ही रही हूँ पिता जी |

सभी चलने को तैयार हैं और तू अभी तक ऐसे ही घुम रही है | चल नया सूट पहन कर जल्दी से तैयार हो जा |

पिता जी मेरी चुनरी नहीं मिल रही |

बेटा शालू देख तो इसकी चुनरी कहाँ है ?

जी पिता जी |

बेटा जय प्रकाश क्या सारी गाडियाँ आ गई ?

हाँ पिता जी, उन्हें फूलों से सजवा भी दिया है |

बहुत अच्छा किया | अब खाने पीने का सारा सामान एक गाडी में लदवा दो ?

हाँ पिता जी भाई ब्रह्म प्रकाश यह काम करवा रहा है |

सभी औरतों को एक ही गाडी में बिठवा देना |

ठीक है पिता जी |

और हाँ औरतों की गाडी को और गाडियों के बीच में चलाने को कहना | तथा चलाने वाले को यह भी पक्की हिदायत दे देना कि वह सावधानी से हाँके |

अच्छा पिताजी आपके कहे अनुसार करवा दूंगा |

ऊं ..........कुछ सोचते हुए, वे दिल्ली वाले कहीं दिखाई नहीं दे रहे | क्या वे अभी पहूँचे नहीं ?

पिताजी उनकी खबर आई थी कि वे दस बजे वाली बस से आएँगे,फिर कलाई पर बंधी घडी की और देख कर, दस बजने वाले हैं आते ही होंगे |

क्या कोई लिवाने भी भेजा है ?

नहीं अभी तो कोई नहीं भेजा |

समय हो गया है बेटा किसी को भेज दो,फिर स्वंय ही, अरे ओ राजू जा देख 10 बजे वाली बस पर दिल्ली वाले आते होंगे उन्हें लिवा ला | उन्हें पहचानता हो होगा ?

नहीं सेठ जी |

माला जो वहाँ खडी सब कुछ सुन रही थी, पिता जी क्या राजू के साथ मैं चली जाऊं ?

लाला मुंशी राम माला को ऊपर से नीचे तक देखकर, पर तू तो अभी तैयार भी नहीं हुई है ?

आकर हो जाऊंगी | देर ही क्या लगती है तैयार होने में |

अच्छा जा | राजू देख जरा ध्यान से ले जाना माला को क्योंकि आज बाजार में बहुत भीड् होगी |

दस बजे वाली बस डिबाई के बस अड्डे पर आकर रूकी | माला हर उतरने वाले यात्री को देख रही थी | वह व्यक्ति भी बस से नीचे उतरा जिसे लिवाने वह राजू के साथ यहाँ आई थी | उसको देखकर माला जल्दी से उसकी तरफ लपकी, "जीजा जी नमस्ते" |

नमस्ते, नमस्ते |

कैसी है माला ?

अच्छी हूँ | बिलकुल तन्दुरूस्त | आप देख तो रहे हो |

घर पर सब ठीक हैं ?

केवल एक नहीं है |

कौन ?

वहीं जा रहे हो, खुद देख लेना |

लगता है बातों में बहुत चतुर हो गई हो |

आपका असर तो पडॆगा ही |

क्या मतलब ?

यह चतुराई मैं आप से ही सीख रही हूँ |

अरे वाह | कितना समय बिताती है मेरे साथ जो मुझ से सीख रही है ?

ज्यादा समय नहीं चाहिये, कुछ सीखने के लिए, पारखी नजर रखने वालों को  |

अच्छा जी !

माला और उसके जीजा जी के बीच होने वाली नोंक झोंक को उसी बस से उतरने वाला एक भोला-भाला एवं बेहद शरीफ सा दिखने वाला कोई ग्यारह बारह साल का लड़का बडे ध्यान से सुन रहा था | माला उससे अनभिज्ञ थी अतः उसकी और उसका कोई ध्यान नहीं गया | परंतु माला तथा उसके जीजा जी के बीच हो रहे वर्तालाप के दौरान लड़के नें माला का पूरी तौर से मुआयना कर लिया था | उसके विचार में वह खुद की उमर, 11-12 साल, के बराबर की होगी | गौरी-चिट्टी, इकहरा बदन, चंचल तथा बे-झिझक बातें बनाने में माहिर थी | नयन नक्श के मामले में भी किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी | लड़के से बे-खबर माला ने अपने जीजा जी की अटैची उठाते हुए, "राजू यह इनका थैला उठा ले |

फिर अपने जीजा जी की तरफ देखकर, और कोई सामान तो नहीं है जीजा जी ?

नहीं बस ये ही दो नग हैं |

तो चलें जीजा जी ?

सभी घर की तरफ चल दिये | उस लड़के ने भी उनका अनुशरण करना शुरू कर दिया | राजू ने माला से अटैची भी ले ली तथा तेज कदम बढाता हुआ उनसे आगे निकल गया | माला अपने जीजा जी से बातें करती हुई चल रही थी | बीच बीच में चोर निगाह से वह उस लड़के को भी निहार रही थी जो बस स्टैंड से ही उनका अनुशरण कर रहा था | माला का जब सब्र का बाँध टूट गया तो उसने अपने जीजा जी से धीरे से पूछा, "क्या वह लड़का जो हमारे पीछे-पीछे आ रहा है आपके साथ आया है ?

जीजा जी शायद अपनी साली की शंका समझ गए थे तथा उन्होने इस बात का भी अन्दाजा लगा लिया था कि माला उसे नहीं जानती | अतः शरारती अन्दाज में ऐसे बोले जैसे सचमुच में कुछ जानते ही नहीं, "कौन सा लड़का ?

वही जो हमारे पीछे पीछे आ रहा है ?”

माला के जीजा जी ने झूठे ही पीछे मुड़कर देखते हुए, नहीं तो |

अपने जीजा जी की ना सुनकर माला सोचने लगी कि यह लड़का यहाँ का तो लगता नहीं क्योंकि उसने उसे अपने मौहल्ले में इससे पहले कभी देखा ही नहीं था | फिर हमारे पीछे पीछे आने का उसका क्या मकसद हो सकता है | माला के दिमाग में कुछ गलत आशंकाओं ने घेरा डाल लिया अतः अब वह चोर निगाहों से उस लड़के की गतिविधियों को ज्यादा ध्यान से देखने लगी | आखिर अधिक देर तक उससे न रहा गया | अपने मकान की गली के नुक्कड पर ज्योंही वह लड़का उनके पीछे मुडा, माला एकदम से पल्टी तथा लड़के से तैश में बोली, "ऐ लड़के मेरे पीछे पीछे क्यों आ रहा है ?

लड़के ने अपना धैर्य न खोया तथा शांत स्वभाव से ऊत्तर दिया, "क्योंकि आप मेरे आगे आगे जा रही हैं |  

माला कुछ तैश दिखाकर, तूझे कहाँ जाना है ?

लड़का बड़े शंयम से बोला, वैसे तो बताना जरूरी नहीं समझता फिर भी आपका दिल रखने को बता देता हूँ कि मुझे भी वहीं जाना है जहाँ आपको जाना है |

माला गुस्से में अभी कुछ कहना ही चाहती थी कि उसने अपने जीजा जी के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान को भाँप लिया | फिर झट से जब उसने उस लड़के की तरफ नजर घुमाई तो उसे भी, अपने भाई(माला के जीजा जी) की तरफ देखते हुए, वैसे ही मुस्कराते हुए पाया | माला को समझते हुए देर न लगी कि जरूर कुछ दाल में काला है | माला का गुस्सा एकदम ठंडा हो गया | वह अपनी झेंप छिपाते हुए बोली, "तो आप हमारे छोटे जीजा जी हैं, नमस्ते | 

लड़के ने कुछ जवाब न देकर माला के अभिवादन के उत्तर में केवल अपने दोनों हाथ जोड् दिये | 

 घर पहुँच कर जब तक माला के जीजा जी तथा उनके भाई ने चाय नाश्ता किया कि माला भी बन सवंकर आ गई | गंगा जी को चलने की तैयारियाँ तो पहले से ही पूरी हो चुकी थी | सारा सामान गाडियों में लद चुका था | इतने में शोर उठा कि चलो सभी औरतें बीच वाली गाड़ी में बैठ जाएँ | सबसे पिछली गाड़ी में सामान लदा था तथा बाकी तीन गाड़ियाँ मर्द तथा बच्चों के लिये थी | माला को देखकर लड़के ने महसूस किया कि अब उसमें और भी निखार आ गया था |

माला लड़के को अपनी और अपलक निहारते हुए पाकर, ऐसे क्या देख रहे हो ?

लड़का जल्दी से अपनी नजरें दूसरी तरफ फेर कर, कुछ भी तो नहीं |

माला शोख अदाओं से, मुझे भी नहीं ?

लड़का यह समझ कर कि उसकी चोरी पकडी गई है झेंपते हुए मुस्करा देता है |

माला एकदम से लड़के का हाथ पकड़कर, चलो हम एक ही गाड़ी में बैठेंगे |

लड़का कुछ सकुचाते हुए, क्या आप औरतों की गाड़ी में नहीं बैठोगी ?

माला अपने को देखते हुए, मैं अभी इतनी बडी नहीं हुई |

लड़का जो अब माला को अपना दोस्त समझने लगा था, तो चलो फिर सबसे अगली गाड़ी में बैठ जाते हैं |

फूलों से सजी पाँच गाड़ियों का काफिला अपनी मंजिल की और चल पड़ता है | इन सभी गाड़ियों को इतने सुन्दर ढंग से सजाया गया था कि वे उस पुष्पक विमान को भी मात दे रही थी जो देवता अपने प्रयोग में लाते हैं | गाड़ियों में जुते बैल भी एक से बढकर एक थे | उनके सुडौल शरीर देखते ही बनते थे | सभी बैलों की पीठ, गर्दन, सींग, पैर, तथा पूंछ  आदि को बहुत सुन्दर ढंग से सजाया गया था | बैलों के गले में बंधी घंटियाँ, घाटी नूमा जगहों से निकलते हुए सरगम जैसी आवाज निकालती हुई प्रतीत हो रही थी | ऊपर से औरतों के गीतों की मधुर आवाज समा को बहुत ही मनभावन तथा मोहक बना रही थी |

हँसी खुशी के इस माहौल में पता ही न चला कि रास्ता कब तय हो गया और कर्णवास का गंगा घाट आ गया |          

कर्णवास के घाट पर बनी धर्मशाला काफी पुरानी लगती थी | एक प्राचीन मन्दिर के साथ बनी इस धर्मशाला को भी बहुत सुन्दर ढंग से सजाया-सवांरा गया था | ऐसा लगता था जैसे कामदेव ने किसी को रिझाने के लिये कोई आडम्बर रच रखा हो | गाड़ियों से उतर कर सभी आदमी, औरतें तथा बच्चे धर्मशाला में आकर बैठ गए | बैलों को खोल कर एक तरफ बाँध दिया गया तथा उन्हें पानी-चारा डाल दिया गया |

अब आमोद-प्रमोद के गंगा चढाने की रस्म शुरू हुई | पूजा अर्चना के बाद गंगा जी में वह स्थान तलाश किया गया जहाँ पानी बहुत कम था | इसके बाद पंडित जी को गंगा नदी के उस जल में खडा कर दिया गया | औरतों ने एक बार फिर गंगा जी की स्तूति तथा उसके भेंट स्वीकार करने के गीत गाकर समा बाँध दिया |

पापी तो तैने तार दिए जय जय गंगे मैया |

जो गंगे का ध्यान करे स्नान करे नर भैया,

धन संपत की कमी न रहती दिन-दिन बढे रूपया |

पापी तो तैने तार दिए जय-जय गंगे मैया |

ब्रह्म कमंडल में से निकली शिवजी जटा बहैया,

छित्तर सी जीवन की नैया, पार लगा दो मैया | 

 पापी तो तैने तार दिए जय जय गंगे मैया |

कर्णवास और राजघाट में निर्मल धार बहैया,

अर्पण तुझको आमोद-प्रमोद सबकी पार लगैया |

 पापी तो तैने तार दिए जय जय गंगे मैया |

इसके बाद ऐसा दर्शाते हुए कि आमोद-प्रमोद को गंगा की भेंट कर रहे हैं उन दोनों को गंगा की धारा में प्रवाहित कर दिया गया | पहले से ही गंगा की धारा में खडे पंडित जी ने आमोद-प्रमोद को लपक लिया | इस पर चारों और से सभी आए लोंगों द्वारा गंगा मैया की जय जयकार होने लगी ओर गंगा में बच्चों को चढाने की रस्म पूरी हुई |    

बहती गंगा में हाथ धोने के मुहावरे को चरितार्थ करते हुए अधिकतर लोगों ने गंगा में जी भरकर डुबकियाँ लगाई | इस बीच खाने पीने का सिलसीला शुरू हो गया | खा-पीकर लोग इधर उधर बिखर गए | कोई मन्दिर में चला गया तो कोई धर्मशाला में ही सुस्ताने लगा, कोई पेड़ पर चढ गया तो कोई गंगा किनारे बैठ गया |

लड़का अभी सोच ही रहा था कि वह कहाँ जाए कि उसे अपने पीछे से जानी पह्चानी सी आवाज सुनाई दी, जीजा जी | उसने मुड़कर देखा तो पाया कि माला थी | लड़के ने प्रशन वाचक दृष्टि से उसकी तरफ देखा |

माला ने पास आकर झूमते हुए कहा, जीजा जी, जीजा जी चलो वहाँ जाकर बैठते हैं |

कहाँ ?

माला एक एकांत कौने की और इशारा करते हुए, वहाँ |

लड़के ने हामी में गर्दन हिलाई तथा जिधर माला ने इशारा किया था उस तरफ चल दिया | माला ने भी उसका अनुशरण किया तथा लड़के के पीछे पीछे चल दी | लड़का पेडों के एक झुरमुट के पास जाकर रूक गया | ऐसा प्रतीत होता था जैसे पेडों की लम्बी लम्बी शाखाएँ दूर दूर तक जाकर गंगा के जल को छूना चाहती थी | शितल मन्द हवा चल रही थी | हवा चलने के कारण पेड़ों के पत्तों की आवाज मधुर सगींत सा उत्पन्न कर रही थी | पेड़ों की शाखाओं पर कूदते फान्दते तथा चहचहाते अनेक प्रकार के पक्षी वातावरण को बहुत ही मनोरम तथा मन लुभावना बना रहे थे | गंगा जी के जल में पड़ते भवंरों को देखते हुए दोनों वहीं किनारे पर बैठ गए |

उन दोनों के लिये यह दृशय कौतूहल पूर्ण था | भवंर के आस पास जो भी वस्तु आ रही थी वह उस गड्ढे में धसं जाती तथा लुप्त हो जाती थी | बहुत देर तक दोनों बैठे हुए इन सभी प्राकृतिक नजारों का लुत्फ उठाते रहे | माला ने गंगा जल को स्पृश करने के लिये ज्यों ही अपना हाथ जल के अन्दर डाला कि बडे-बडे कछूओं का झूंड किनारे पर आकर तैरने लगा | इतने विशाल तथा इतनी तादाद में कछुओं को एक साथ देखकर डर के मारे माला के मुहँ से चीख निकल गई तथा वह पास में बैठे हुए लड़के से चिपट गई |

लड़के ने हंसते हुए उसे अपने से दूर हटाते हुए कहा, डरने की कोई बात नहीं है ये उपर नहीं आएंगे | जब आपने जल के अन्दर हाथ डाला तो इन्होने सोचा होगा कि कुछ खाने को मिल रहा है अतः वे सारे एक साथ यहाँ इकट्ठा हो गए होंगे |

माला लड़के से अलग होते हुए, जीजा जी मैं तो बहुत डर गई थी |

हालाँकि माला कुछ देर के लिये लड़के से लिपटी रही परंतु थोड़ी देर में डर खत्म होने तथा लड़के के हटाने से माला उससे अलग हो गई | इससे यही जाहिर होता था कि उन दोनों की उमर अभी ऐसी नहीं थी कि इस वाक्या से उनके दिलों में कुछ हलचल होती | परंतु इतना अवशय हो चुका था कि दोनों को एक दूसरे से लगाव सा हो गया था |

लड़के ने अचानक एक सवाल किया, अच्छा एक बात बताओ आप मुझे जीजा जी क्यों कहती हो ?

आप मेरे जीजा जी ही तो हो |

नहीं मैं आपका जीजा जी नहीं हूँ बल्कि मेरे भाई आपके जीजा जी हैं |

तो फिर मैं आपको क्या कहूँ ?

मुझे आप "तू" कहकर ही बुलाओ क्यों कि इसी शब्द से आपने मुझे पहली बार सम्बोधित किया था |

माला शर्मिंदा होकर अपना सिर झुकाकर बोली, आप मुझे शर्मिन्दा कर रहे हैं | वह तो मेरे से अनजाने में गल्ती हो गई थी | मैने सोचा था कि आप कोई ऐसे वैसे ही आदमी थे जो गल्त काम करने के लिये हमारा पीछा कर रहा था |

लड़के ने चुटकी लेते हुए पूछा, तो अब मैं आपको कैसा लग रहा हूँ | ऐसा वैसा ही या कुछ अच्छा ?

लड़के का प्रशन सुनकर माला का चेहरा लाल सुर्ख हो गया | वह शर्माने के साथ साथ कुछ झेंप सी गई | उसने अपने दोनों हाथ जोड़कर कहा, "मैं आपसे अपनी गल्ती के लिये माफी माँगती हूँ |

अरे आप तो बहुत जल्दी भावुक हो गई | मैं तो मजाक कर रहा था | अच्छा आप मुझे गुलाब कहकर बुला लो |

माला तपाक से, नहीं वह मैं नहीं कर सकती |

क्यों नहीं भला ?

क्योंकि आप मेरे से बडे हो | वैसे अब मुझे आपका नाम पता चल गया है |

तब तो आप मुझे मेरे नाम से ही बुला लेना |

माला ने जोर देकर नकारा, नहीं मैं वह भी नहीं करूंगी |

गुलाब कुछ सोचकर परंतु यह न जानते हुए कि इसका क्या मतलब लिया जाता है, तो... फिर आप मुझे "जी" कहकर ही बुला लिया करो |

हाँलाकि एक लड़की होने के नाते माला जानती थी कि एक लड़की "जी" किसे कह कर पुकारती है | तभी तो गुलाब के मशवरा देनें पर पहले उसे भी कुछ अटपटा सा लगा था परंतु फिर न जाने क्या सोचकर माला ने गुलाब के प्रति "जी" कहकर बुलाने की हामी भर दी |

 माला और गुलाब को मिले ज्यादा समय नहीं हुआ था फिर भी उनमें लगाव कुछ अधिक ही बढ गया था | वे एक साथ खाते तथा जब भी समय मिलता बैठकर खूब देर तक बातें करते रहते थे | गुलाब वहाँ केवल तीन दिनों तक ही रहा था परंतु वहाँ से विदा होते समय उसका मन कुछ उदास सा लग रहा था | ऐसा ही कुछ माला के साथ हो रहा था | जब गुलाब अपने भाई तथा भाभी जी के साथ घर से बाहर जाने लगा तो माला ने सबकी आंख बचाकर धीरे से गुलाब का हाथ दबाकर फिर मिलने को कहा | जिसे गुलाब ने सहर्ष स्वीकार लिया तथा अपने भाई का अनुशरण करता हुआ बाहर निकल गया |

इस के लगभग दो साल बाद गुलाब की बहन की शादी थी | माला भी अपने भाई के साथ शादी में शरीक होने दिल्ली आई थी | जितने दिन माला वहाँ रही गुलाब के साथ लुका छिपी का खेल खेलती रही | उन दोनों को और किसी से कोई मतलब न था जैसे उन्होंने अपनी नई दुनिया ही बसा रखी हो | अपनी बहन की शादी के लिये काम करते करते गुलाब काफी थक सा गया था अतः उसकी विदाई से पहले खाली समय सोचकर वह अपने मकान की उपरी मंजिल पर एकांत में जाकर आराम करने लगा |

गुलाब को अभी कुछ ही समय बीता होगा कि उसे महसूस हुआ कि जैसे कोई आकर उसकी पायतों में बैठ गया है | जब गुलाब ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि वह कौन था तो धीरे से उसे अपने पैरों पर किसी के स्पृश का अनुभव हुआ | उसने आंखॆ खोलकर देखा वह माला थी | हालाँकि माला और गुलाब में आपस का लगाव काफी बढ चुका था परंतु इतना भी नहीं कि रात के इस सन्नाटे में इतनी देर रात में माला का अकेले में गुलाब के पास आ जाना | गुलाब कुछ अन्दाजा न लगा सका कि माला का ऐसे आने का क्या तात्पर्य हो सकता है | अतः वह निश्चल लेटा रहा | माला धीरे से पायतों से उठी तथा चारपाई के सिराने के पास जमीन पर बैठ गई | यह देख गुलाब उठकर चारपाई पर बैठ गया और माला को सहारा देकर अपने पास चारपाई पर बैठा लिया |

गुलाब माला का मुर्झाया चेहरा देखकर, क्या बात है, कुछ उदास सी दिख रही हो ? 

हूँ, मैं कल चली जाऊँगी |

हाँ वह तो है |

जाने से पहले मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ ?”

बे झिझक कहो |

माला एकदम से गुलाब के सीने से लगकर गाने लगती है |

तुम्ही मेरे मन्दिर तुम्ही मेरी पूजा,

तुम्ही देवता हो, तुम्ही देवता हो |

कोई मेरे दिल से पूछे तो जाने कि,

तुम मेरे क्या हो, तुम मेरे क्या हो |

..................

गाना अभी पूरा भी नहीं हुआ था कि किसी के उपर चढने की पैरों की आवाज सुनकर माला एकदम से उठकर नीचे चली गई | गुलाब को माला से ऐसे व्यवहार की बिलकुल भी अपेक्षा नहीं थी | गुलाब इन सब बातों का मतलब समझने लगा था परंतु वह तो इस रिस्ते को अभी तक केवल दोस्ती के रूप में ही तवज्जो दे रहा था | खैर सुबह हुई ओर माला चली गई |  पीछे छोड़ गई गुलाब के मन में एक खिंचाव, अनजानी चुभन और अपने प्रति लगाव |

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