Thursday, October 1, 2020

उपन्यास 'अहंकार' (भूमिका)

 भूमिका 

अनादिकाल से वर्त्तमान काल तक न जाने कितनी रचनाएं मसलन वेद, उपनिषद, महापुराण, पुराण, श्लोक, काव्य, उपन्यास, गद्य, चौपाईयां तथा कहानियां समय समय पर अपने युग का प्रतिनिधित्व करती रही हैं | इनके लिए बाल्मिकि, सूरदास, कबीर, रविन्द्रनाथ टैगोर, हरिवंशराय बच्चन, मैथिलीशरण गुप्त, मुंशी प्रेम चंद, महादेवी वर्मा इत्यादि अग्रणी पंक्ति के रचनाकार हुए हैं गद्य साहित्य में मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक कहानियों के बाद उपन्यासों को हमेशा सराहा गया है |

एक रचनाकार अपने सोच,विचार,स्मृतियों एवं कल्पना से अपने इर्दगिर्द हो रही घटनाओं को जीवन्तता प्रदान करता है | सृष्टि  के साथ साथ मनुष्यों द्वारा बनाए गए नियमों एवं कारनामों को एक रचनाकार,अपनी कल्पना के माध्यम से,कविता,उपन्यास या कहानियों का रूप देकर समाज के साहित्य को उजागर करने का प्रयास करता है |  विश्व की समस्त भाषाओं में साहित्य की निरंतर सृजना हो रही है | साहित्य समाज का दर्पण है | अतः साहित्य का अविच्छिन्न सृजन ही समाज की जीवन्तता को कायम रख सकता है |

त्रेता युग में भगवान श्री राम चन्द्र की जीवनी पर लिखित महाकाव्य दर्शाता है कि रावण एक महान विद्वान व्यक्ति था परन्तु अपने अहंकारवश उसने अपना धन, वैभव और वंश गवां दिया | उसे ऊंच नीच का ज्ञान देने वाले बहुत थे परन्तु उसने किसी की एक न सुनी क्योंकि वह अपने को महाज्ञानी समझता था | आखिर में सब कुछ गवाने के बाद वह खुद भी सदगती को प्राप्त हो गया |

इसी प्रकार द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के युग में महाभारत रची गई | इस काल में राजा कंस और कौरवों ने भी अहंकार से परिपूर्ण ऐसे कई कार्य किए जिससे अपनी मृत्यु से पहले उनको भी अपने धन, वैभव और वशं को गवाना पड़ा था | परन्तु इन महाग्रंथों से मिलने वाली शिक्षा को जानते हुए भी बिरले ही अपने जीवन में उसका अनुशरण करते हैं | ऐसी जवलंत घटनाएं हमेशा होती रहती हैं | भूतकाल में भी हुई हैं | वर्त्तमान में हो रही हैं तथा भविष्य में भी होती रहेंगी |

इसी कड़ी में एक औरत सुन्दर, गौरी, सुशील, म्रदुभाषी, मेहमान नवाजी एवं आदर सत्कार करने में उत्तम, धार्मिक प्रवृति वाली एक सर्वगुण सम्पन्न व्यवहार कुशल दिखाई देती थी | परन्तु अपने लड़के की शादी के विचार ने उसके वर्ताव में बहुत बड़ा बदलाव ला दिया | वह इस विचार से अंदर तक काँप उठी कि अगर उसकी पुत्र वधू उससे इक्कीस निकल गई तो उसके अपने रूप लावण्य की प्रसंशा करने वालो से वंचित रह जाएगी | इस समस्या से पार पाने के लिए उसने एक घर्णित चाल को अंजाम देने की सोच ली और उसे अपने मातृ भक्त बेटे के हित को दाँव पर लगाने में भी कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं हुई |

अपने विचारों को अमली जामा पहनाने के लिए उसने अपने पुत्र की शादी पक्की करने में किसी से कोई सलाह मसवारा नहीं किया | यहाँ तक की उसका लड़का भी अपनी दुल्हन के बारे में अपनी शादी तक अनभिज्ञ रहा | शादी के बाद भी अपने  तथा उसकी पुत्रवधू के बीच बढ़ती कलह को सुलझाने में भी उसने घर के किसी भी सदस्य को दखलंदाजी न करने की चेतावनी दे दी | उसने इस बारे में अपने एक खैरख्वाह , जिससे वह प्रत्येक समस्या का समाधान कराती थी तथा जिसने उसकी हर पल सहायता की थी, की सलाह को भी कोई तवज्जो नहीं दी |        

दया, करूणा, मानवता तथा ममतामयी मूर्ति का यह हठी रूप देखकर सभी आश्चर्य चकित थे | उसके व्यवहार पर गहन चिन्तन करने के बाद यह निष्कर्ष निकला कि हो न हो वह अपने रूप लावण्य के अहंकार की शिकार हो गई है | अत: कई बार उसको चेताने के बाद भी उसका विवेक जाग्रत नहीं हुआ और अंत में अपना सब धन, वैभव और वंश गवाने की आशंका के बाद पशचाताप करती रह गई |  


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