Friday, October 2, 2020

उपन्यास 'अहंकार' (समीक्षा)

 समीक्षा 

‘अहंकार’ उपन्यास एक बहुत ही रोचक एवं सारगर्मित उपन्यास है जो पाठकों को जीवन के संदर्भ मं कई तरह की  शिक्षा प्रदान करता हुआ पारिवारिक पृष्ठ भूमि के आधार पर लिखा गया है | यह एक नारी प्रधान उपन्यास है जिसमें पूरी कहानी मुख्य पात्र ‘पुष्पांजलि’ के इर्द-गिर्द घूमती है | परिवार के अन्य सदस्य तो शतरंज के मोहरों के सामान ही हैं जिन्हें खिलाड़ी अपनी इच्छानुसार जगह देता है | 

विभिन्न लघुकथाओं के माध्यम से मध्य वर्गीय ‘पुष्पांजलि’ के अपने मकान की मनोकामना, ॠण की समस्या, उसकी बढ़ती हुई इच्छाएं, दिखावे की प्रवृति, सुंदरता का दर्प और वैवाहिक सांमजस्य की कमी को लेखक ने बहुत ही प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया है | हालांकि पुष्पांजलि के परिवार के हितैषी ने अपने जीवन से जुड़ी एक सत्य घटना के माध्यम से पुष्पांजलि को यह संदेशा देने की कोशिश की कि अहंकार का फल अंत में विनाश ही होता है परन्तु विनाश काले विपरीत बुद्धी का दंश पुष्पांजलि के दिमाग पर कोई प्रभाव न डाल सका | इसके साथ समय समय पर लेखक ने पुष्पांजलि को चेतावनी देकर पारिवारिक कलह को त्याग कर सौहार्द तथा आपसी सामंजस्य का मार्ग अपनाने की सलाह देकर पाठकों को एक सन्देश देने की कोशिश की है कि व्यक्ति को शंयम रखकर समझदारी से अपने परिवारिक  जीवन को उन्नति के पथ पर अग्रसर करना चाहिए | 

उपन्यास के अन्य पात्र विनीत, जो एक मातृ भक्त है द्वारा अपनी अर्धांगिनी की उपेक्षा करने में अपनी माँ का सहभागी बनना और राम सेवक, जो एक पत्नी भक्त है तथा विजया का उनके विचारों से सहमत होना रजनी को बगावत करने पर मजबूर कर देता है | परिणाम स्वरूप एक छोटे, सुन्दर और व्यवस्थित परिवार में कलह की शुरूआत तलाक की परिणिति के रूप में सामने मुहँ बा कर खड़ी हो गई | 

एक बार फिर अग्रवाल के अथक प्रयासों से विनीत, राम सेवक और पुष्पांजलि पश्चाताप करने को तैयार हो गए और रजनी के मधुर मिलन से पारिवारिक जीवन सुखमय हो गया |  यह उपन्यास एक मनोरंजक और शिक्षाप्रद उपन्यास है जो पाठकों को अवश्य ही पसंद आएगा | 

चेतना मंगल

स्नातकोत्तर, बी.एड.(हिन्दी) 

दिल्ली विश्व विद्यालय  


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