Thursday, October 8, 2020

उपन्यास 'अहंकार' (पशचाताप )

      

पशचाताप   

आफिस से वापिस आने पर अपनी पत्नी के साथ अपने ड्राईंग रूम में बैठी औरत को देखकर अग्रवाल  दंग रह गया था | विश्वास नहीं हो पा रहा था कि जिस औरत को वह पिछले बीस सालों से जानता था, वह वही थी | बीस साल क्या अभी तीन महीने पहले की ही तो बात है | पुष्पांजली  जिसके चेहरे की मंद मंद मुस्कान, बात बात पर खिलखिला कर उन्मुक्त हंसी हंसना तथा जिसकी बोली का मिठास बरबस सामने वाले को, उसके दिल में कि काश मैं भी पुष्पांजली  जैसी होती, जलन महसूस करने पर मजबूर कर देती थी |

जैसे बगीचे में फूलों की खुशबू से सारा चमन महकता रहता है तथा भ्रमण करने वाले हर व्यक्ति का मन प्रफुल्लित हो जाता है उसी प्रकार पुष्पांजली  भी जहां बैठ जाती थी अपने आसपास बैठने वाले का मन मोह लेती थी | वास्तव में ही वह अपने नाम को सार्थक कर रही थी | परन्तु आज वह निशचल, उदास, गंभीर, गहन सोच मुद्रा एवं आँखों में आंसू लिए बैठी थी | वह मात्र एक जीता जागता कंकाल लग रही थी | 

किसी के अंदर दाखिल होने की आहट पाकर पुष्पांजली  की तंद्रा भंग हुई | वह खड़ी हो गयी तथा अग्रवाल  को देखकर दोनों हाथ जोडकर अपने चिर परिचित अंदाज में बोली, “भाई साहब नमस्ते |” 

पुष्पांजली अग्रवाल  की पत्नी की पक्की सहेली थी |अग्रवाल  उससे ज्यादा नहीं बोलता था | इसलिए छोटा सा उत्तर दिया, “नमस्ते |” और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया |

अचानक, “अजी सुनते हो |” के शब्द सुनकर अग्रवाल  के बढ़ते कदम रुक गए | उसने पीछे मुडकर देखा | उसकी पत्नी कह रही थी, “ज़रा पुष्पांजली  के दिल की बात सुना लो |”

अजय वापिस मुडकर ड्राईंग रूम के दरवाजे पर आकर खडा हो गया तथा पुष्पांजली  की तरफ देखकर अनायास ही उसके मुख से निकला, “आपको क्या हो गया जो तीन महीने में ही इतनी कमजोर हो गयी हो आप तो ठीक से पहचानी भी नही जा रही ?”

पुष्पांजली  ने नीरसता से जवाब दिया, “भाई साहब सब भाग्य के ही खेल हैं |”

“अभी तीन महीने पहले तो आप अपने बेटे के विवाह में खुद एक दुल्हन जैसी दिख रही थी फिर अचानक.....?”

क्षण मात्र के लिए पुष्पांजली  के चेहरे पर लालिमा दिखाई दी फिर उसने एक लंबी सांस लेकरअग्रवाल  को बीच में ही टोककर कहा, “भाई साहब न जाने हमारे घर पर किस का ग्रहण लगा है कि शादी के बाद कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है |”

“शादी के बाद ! बहू का व्यवहार तो ठीक है न ?”,अग्रवाल  ने अपने मन में उपजी शंका का निवारण करने हेतू पूछा |

पुष्पांजली  के ‘भाई साहब मेरी और जीजी की किस्मत एक जैसी है’ कहने मात्र से ही अग्रवाल  उसके मन में पनप रही नीरसता की भावना का आशय समझ गया था | यह सोच कि उस स्थिति का असर पुष्पांजली  के परिवार के और सदस्यों पर भी पड़ा होगा अग्रवाल  ने जानना चाहा, “राम सेवक जी तो स्वस्थ हैं ?”

“भाई साहब दुःख दर्द का उन पर तो मेरे से पहले असर हो जाता है | वे दो महीने से बीमार चल रहे हैं |नौकरी भी ठीक से नहीं निभा पा रहे हैं |” 

“अरे इतना सब कुछ हो रहा है और आपने जिक्र भी नहीं किया ?”

“राम सेवक   जी ने तो बहुत बार पूछा कि न जाने भाई साहब ने क्यों अचानक यहाँ आना ही छोड़ दिया है ?”

“मैं तो यही सोचे बैठा था कि सब कुछ कुशल मंगल से चल रहा होगा | अगर ऐसा नहीं था तो कम से कम अंदाजा तो दे देना था |”   

“भाई साहब आपने पहले ही हम पर इतने एहसान किए हैं फिर आपकी अपनी सेहत भी कोई खास ठीक नहीं रहती | इसलिए आपको और चिंता में डालना नहीं चाहती थी |”

“देखो एहसान की बात मत किया करो | जब अपना मान ही लिया है तो यह एहसान शब्द बीच में नहीं आना चाहिए |”

पुष्पांजली  हाथ जोड़कर, “गलती हो गई, भाई साहब आज के बाद ऐसा नहीं कहूंगी |”

अजय पुष्पांजली  की उसके कहने ‘भाई साहब मेरी और जीजी की किस्मत एक सी है’ से ही समझ गया था कि समस्या क्या है | और यह आभाष अग्रवाल  को उसकी पुत्र बधू को पहली नजर में देखने पर हो गया था कि भविष्य में क्या गुल खिलने वाले हैं | परन्तु उसने उस समय अधिक विस्तार से न कहकर केवल इतना कहा था, “पुष्पांजलि आपने अपना जीवन जहां से शुरू किया था विनीत  को आपने वहीं से शुरू करने पर मजबूर कर दिया है |”

अग्रवाल  की बात सुनकर पुष्पांजली  ने कोई जवाब नहीं दिया, वह चुप रही |

अग्रवाल  ने सीधा प्रशन किया, “वैसे समस्या क्या है ?”  

धीरे धीरे पुष्पांजली  ने अपने दिल में बसी चुभने वाली सारी बातें उड़ेलनी शुरू कर दी | अंत में उसने एक ठंडी व लंबी सांस भरी तथा शांत हो गयी | ऐसा लगा जैसे बहुत दिनों से उसके मन में जो गुब्बार भरा था वह निकलने से उसने बहुत हल्कापन महसूस किया था तभी तो वह एक ठंडी व लंबी सांस लेकर थोड़ी देर के लिए शांत हो गयी थी जैसे उसे बहुत भारी चैन का अनुभव हुआ था |

आशवस्त होने पर उसने फिर कहना शुरू किया | भाई साहब शायद आपको नहीं पता परन्तु मैं जानती हूँ कि आप  पिछले २० साल से मुझे निस्वार्थ सहयोग करते आ रहे हैं | अब आपके कारण ही मैं अपने मकान में रह रही हूँ | आपके कारण ही मैं अपने लडके की शादी करने में समर्थ हो पाई हूँ | शायद यह मेरे पिछले जन्म के ही पुन्य होंगे जो मुझे आपका सहारा मिला | जैसे अब तक आपने मेरी नैया के खीवईया बन कर मेरी नैया को पार लगा दिया है अब एक और एह....नहीं नहीं एक और समस्या के तारणहार बन जाओ |

अग्रवाल पुष्पांजली  के क्या किसी के भी पारिवारिक मामले में उलझना नहीं चाहता था | उसे पुष्पांजली  के परिवार की आर्थिक स्थिति के बारे में पूरा अंदाजा था इसलिए उसने पुष्पांजली  का मकान बनवाने के लिए उनकी आर्थिक सहायता करवा दी थी परन्तु उनके अंदरूनी मामले से वह दूर ही रहना चाहता था | इसलिए पूछा, “क्या मतलब ?”

पुष्पांजली  अपने स्थान से उठी तथा अग्रवाल  के पास आकर नीचे झुकते हुए बोली, “कृप्या मेरी इस समस्या का निदान और कर दो जिससे हमारा परिवार बाकी का जीवन सुख चैन से बिता सके |”

अग्रवाल  अपने स्थान से पीछे हटते हुए बोला, “देखो ऐसा मत करो | दया तथा कृप्या तो ऊपर वाला ही करता है | हम तो कोशिश ही कर सकते हैं | वैसे आप अपने लडके को भेजना | पहले मैं उससे सलाह करूँगा कि क्या करना उचित रहेगा |”

अग्रवाल के उसकी गूढ़ समस्या को हल करने के प्रयास के हाँ कहने मात्र से ही पुष्पांजली  के चेहरे पर सन्तुष्टता के भाव उभर आए | जाते जाते पुष्पांजली  का मुख मंडल पहले की तरह ताजा पुष्प के माफिक तो नहीं फिर भी कुम्लाहे सुमन पर ठंडा पानी छिडकने से जैसी रौनक उभर आती है वैसी रौनक उभर आई थी | 

विनीत  की हालत भी अपनी मम्मी से बेहतर नहीं थी | पता चला कि वह रात के समय एकांत के समय में इन्हीं तनाव के सागर में गोते लगाता रहता था | सोचने में वह इतना तल्लीन हो जाता था कि किसी तरह की कोई खबर ही न रहती कि उसके आसपास क्या हो रहा है | उसकी रात की नींद तथा दिन का चैन छीन गया था | लगा वह तन मन से थक गया था | यह भी बात सामने आई कि हमेशा इसी सोच में डूबे रहने के कारण वह आफिस में काम करते समय भी तनावग्रस्त रहने लगा था तथा गलतियां करने लगा था | साफ़ पता चल रहा था कि उसकी सेहत दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही थी |

विनीत को देखकर अग्रवाल ने पूछा, “क्या बात है मुरझाए से लग रहे हो ?”

विनीत ने एक ठंडी सांस ली और थका सा सोफे पर बैठकर कहा, “ताऊ जी घर में कलह की वजह से परेशान हूँ |”

“घर में कलह का कारण क्या है ?”

“सास बहू की आपसी नोक झोंक जिसका कोई अंत नहीं होता |”

“कुछ तो कारण होता होगा ?”

“घर के काम को लेकर |”

“क्यों रजनी ठीक से काम नहीं करती क्या ?”

“मेरे हिसाब से तो ठीक करती है परन्तु मेरी मम्मी जी................|’

विनीत कहता कहता बीच में ही रुक गया | शायद उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपनी मम्मी जी को गलत ठहरा सके | उसे चुप देख अग्रवाल ने पूछा, “अब रजनी कहाँ है ?”

“वह तो छः महीने से अपने पीहर है |”

अग्रवाल अश्मंजस से, “छः महीने से ?”  

अग्रवाल  ने उसे सान्तवना देकर कहा, “देखो चिंता चिता का रास्ता बन जाता है अगर उसे समाप्त न किया जाए | मायूस होकर बैठने से समाधान नहीं मिलता उसके लिए जुगाड करना पडता है जैसे मजिंल पर पहुचने के लिए चलना पडता है | ” और अग्रवाल  ने विनीत  को एक रास्ता सुझाया | विनीत ने जल्दी ही उस पर अमल भी करना शुरू कर दिया |

रजनी को अपनी ससुराल छोड़े लगभग छ: महीने व्यतीत हो गए थे | इस दौरान न तो विनीत  का कोई फोन ही आया तथा न ही कोई चिट्ठी आई | रजनी प्रत्येक दिन कमप्यूटर पर अपने पति विनीत  की मेल, इस आशा में कि हो सकता है वे उसे याद करने का यही मार्ग अपना लें, खोलकर भी देख लेती थी | परन्तु अभी तक उसे निराशा ही हाथ  लगी थी | जैसे जैसे समय बितता जा रहा था रजनी के साथ साथ उसके माता पिता का तनाव भी बढता जा रहा था | 

रजनी को याद आने लगा उसके प्रति विनीत  का प्यार, उसकी जिद के आगे झुकना, उसे खुश रखने का हर प्रयास करना परन्तु उसने अपने अहंम तथा अपनी सास के अहंकार को खत्म करने के खातिर अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली | उसे ससुराल में रहकर ही अपने पति की सहायता से समस्या को सुलझा लेना चाहिए था | अब वह क्या करे यही सोच कर उसकी कंपकपी छूट गयी और वह फूट फूट कर रोने लगी |

आज उसने ज्यों ही कम्प्युटर पर अपने पति की मेल देखी तो उसकी खुशी का पारावार नहीं रहा | उसे जैसे अमृत मिल गया हो | उसने बिना देर लगाए उस पर अपनी नजरें गड़ा दी और पढने लगी | ज्यों ज्यों वह पढती जा रही  थी उसका दिल बैठे जा रहा था | ऐसा महसूस हो रहा था जैसे जिस प्याले को उसने अमृत समझ कर पीना शुरू किया था वास्तव में वह जहर का प्याला निकला | लिखा था, “एक सुन्दर, स्वस्थ, सुशील, एम्.बी.ए. नौकरीपेशा परन्तु तलाक शुदा ब्राम्हण परिवार के लड़के के लिए आवशयकता है एक सुन्दर, सुशील, गृहकार्य में दक्ष, मिलन सार एवं पढ़ी लिखी लडकी की | बेहतर होगा कि वह वर पक्ष के परिवार के सदस्यों की भावनाओं व् संवेदनाओं को भांपते हुए तथा उदार दर्ष्टिकोण अपनाते हुए घुलमिल कर रह सके |”

पढते पढते रजनी के हाथ पाँव कांपने लगे | वह पसीने से लथपथ हो गई | एक बात से रजनी के चोर मन को सान्तवना मिली जब उसने बीच में रुक कर सोचा कि यह इशतहार विनीत  का नहीं हो सकता क्योंकि वह तलाकशुदा नहीं है | उसने अपने को आशवस्त करने के लिए एक बार और उसे दोहराया परन्तु उसकी यह धारणा धराशाही हो गई जब रजनी ने नीचे लिखा पता देखा :

भेजने वाला : विनीत  

म.न. ६५3 हुड्डा 

टे.9313984463                 

एकबार उसकी चीख निकल गई | नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता | विनीत  मुझे तलाक नहीं दे सकता | उसकी चीख सुनकर उसके माता पिता दौड़े हुए आए और अपनी लडकी की हालत देख कर दंग रह गए | वह अपने होश खोकर निढाल सी होती जा रही थी | पिता ने उसे सहारा देकर पूछा, “क्या बात है बेटी इतनी परेशान क्यों है ?”

रजनी ने बिना कुछ कहे बड़े ही नीरस नज़रों से कम्प्युटर के परदे की तरफ इशारा किया और टुकुर टुकुर देखने लगी | जब उसके माता पिता कम्प्युटर के परदे पर लिखे को पढने लगे तो रजनी अपने ही ख्यालों में खो गई | उसके कृत्य जो उसने विनीत  और उसके परिवार के साथ किए थे उसके जहन में चलचित्र की भाँति एक एक करके आंखों के सामने आने लगे | 

शादी के बाद दो तीन महीने ही बीते होंगे कि एक रात को रजनी ने अचानक विनीत  से कहा, “विनीत  इस घर के माहौल में मेरा दम घुटता है | मैं अलग रहना चाहती हूँ |”

रजनी की बात सुनकर विनीत  थोड़ी देर के लिए अवाक खडा अपनी पत्नी को देखता रह गया | उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि रजनी कभी ऐसा निर्णय भी ले सकती है | उसने संयम बरतते हुए पूछा, “इतनी जल्दी ऐसा क्या हो गया जो तुम ऐसी बात कर रही हो ?”

“इस घर में मुझे सभी ढोंगी तथा ड्रामें बाज समझते हैं |”

“तुम घर का काम तो करती हो परन्तु ऊपरी मन से गिरते पड़ते जिससे वह  ड्रामा ही लगता है |”

 रजनी आवेश में बोली, “अच्छा तुम भी, तो ठीक है, मुझे अपने ढंग से जीने की आजादी चाहिए ?”

“तुम्हारा इस आजादी का मतलब क्या है ?”

“मेरा मतलब साफ़ है | मैं कुछ भी पहनूं, कुछ भी खाऊँ, कुछ भी करूँ उसमें मुझे किसी की भी, किसी प्रकार की भी टोका टाकी पसंद नहीं है |”

“अब भी तो तुम ऐसा ही कर रही हो | सभी के कहने के बावजूद तुम सुबह साढ़े आठ बजे से पहले बिस्तर नहीं छोडती | जबकि तुम्हें पता है कि मेरी माँ रोज सुबह साढ़े पांच बजे उठकर मेरे पापा जी के लिए खाना तैयार करती हैं |”

रजनी गुर्राई, “सुबह उठती नहीं तो क्या, इस घर में मुझे चैन से सोने ही कौन देता है ?”

विनीत  कुछ झल्लाकर बोला, “बिस्तर छोडती भी नहीं, सोती भी नहीं तो फिर क्या करती हो ?”

रजनी ने तपाक से जवाब दिया, “करवटें बदलती रहती हूँ |”

“क्यों भला ! वैसे तुम्हें पता है कि तुम कह क्या रही हो ?”

रजनी ने दृड़ता  से जवाब दिया, “मैं ठीक कह रही हूँ | रात को आप डयूटी निभाते हो | सुबह तीन बजे आते हो जिससे मेरी नींद उचट जाती है | सुबह सवेरे माताजी की खटपट शुरू हो जाती है क्योंकि उन्हें पापा जी का टिफिन तैयार करना पडता है | इसके बाद तुम्हारी लाडली बहन का मेरे कमरे में चक्कर काटना शुरू हो जाता है क्योंकि उसे आफिस में दिखाने  के लिए श्रंगार करने को ड्रेसिंग टेबल की जरूरत पडती है | अब आप ही बताओ मेरी आठ घंटे की नींद कहाँ पूरी हो पाती है ?”  

विनीत ने रजनी को आराम से समझाना चाहा, “तुम तो दोपहर में भी आराम कर लेती हो | कभी हमारे परिवार वालों की तरफ भी ध्यान दिया है | इतनी उम्र में भी मम्मी जी सुबह से काम में लग जाती हैं | वे पापा जी का, गुडिया का तथा मेरा टिफिन तैयार करती हैं | यह सोचकर कि तुम्हारे आराम में खलल पडेगा वे तुम्हें आवाज भी नहीं लगाती और तुम अपने आप उनकी सहायता को उठती नहीं |”

रजनी जलभुन कर बोली, “रहने दो रहने दो, अपनी मम्मी की तारीफ़ के ज्यादा पुल मत बाँधो | पापा जी अपनी तनखा भी तो लाकर उनके हाथ पर रख देते हैं | और एक मै हूँ जिसको एक एक पैसे के लिए मोहताज की तरह दूसरों का मुहं ताकना पडता है |”  

“मैं मम्मी जी की तारीफ़ बेकार में नहीं कर रहा हूँ | वे तुम्हें बना ठना हमेशा नई नवेली दुल्हन की तरह देखना चाहती हैं |हालाँकि वे तुम्हें खाना बनाना सिखाना चाहती हैं परन्तु इंतज़ार कर रही हैं कि कब तुम्हारे अंदर ऐसा करने की जागृति पैदा हो | गुडिया तो फिर भी मम्मी जी के काम में हाथ बंटा देती है परन्तु तुम......|”

जैसे पुलिस वाला चौराहे पर खडा चलती ट्रैफिक को रोकने के लिए अपना हाथ उठाकर इशारा करता है उसी प्रकार रजनी ने अपने हाथ के इशारे से विनीत  की बोलती बंद करते हुए कहा, “बस बस बंद करो | अब अपनी मम्मी के साथ साथ अपनी बहन की तारीफ़ के कसीदे भी काढने लगे |”  

“क्यों तारीफ़ लायक काम करने वालों की तारीफ करने में क्या बुराई है ?”

विनीत  की बात सुनकर रजनी बिफर पड़ी, “हाँ हाँ मैं तो निक्कम्मी हूँ, जाहिल हूँ, गंवार हूँ, हर समय शीशे के सामने खड़ी श्रृंगार करने के अलावा घर का कुछ काम नहीं करती |”

विनीत  ने सफाई दी, “देखो रजनी, खाना माँ तथा गुडिया मिलकर बनाती हैं, झाड़ू, पोछा तथा बर्तन मांजने वाली बाई लगी ही हैं |घर में कपडे धोने का काम और रह जाता है परन्तु उसमें भी तुम अपने अपने कपड़े धोकर हाथ साफ़ कर लेती हो | फिर बताओ तुम किस काम में सहायता करती हो ?”

विनीत  की बात सुनकर रजनी बिफर पड़ी, “आपको तो पत्नी क्या होती है इसका ज्ञान भी नहीं है | इस घर में मैं क्या काम करती हूँ, कैसे रहती हूँ, मै कौन हूँ आपको कुछ पता नहीं | मैं आपको बताती हूँ | सुबह पापा जी तथा विजया का खाना मैं बनाती हूँ | जब से मैं आई हूँ झाडू, पौचा, बर्तन तथा कपड़े मैं ही धोती हूँ क्योंकि बाईयों की छुट्टी कर दी गई है | आप रात को चले जाते हैं, दिन में सोते हैं आपको अपनी पत्नी के लिए समय ही कहाँ है | खैर  जब मैं कुछ करती ही नहीं तो आप लोगों पर खाने का बोझ भी क्यों बनूँ | मैं अपने मायके जाकर ही रह लूंगी |” और वह अपना सामान बांधने लगी | 

रजनी अपना सामान बांधने में मशगूल थी | विनीत  ने उसे समझाने की कोशिश जारी रखी, “रजनी तुम तो जानती हो कि मैं अपने माँ बाप का इकलौता लड़का हूँ | दोनों की सेहत भी खास ठीक नहीं रहती | अपनी छोटी बहन की जिम्मेदारी भी मुझे निभानी है | ऐसे में मैं अलग घर बसाने की कैसे सोच सकता हूँ ?”

रजनी तुनक कर तथा हाथ घुमाकर चिल्लाई, “हाँ हाँ तुम्हारी जिम्मेदारी तो तुम्हारे अपने परिवार तक ही सीमित है | क्या मेरे प्रति तुम्हारी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती ?”

अपने ऊपर बेबुनियाद आरोप लगते देख विनीत  थोड़ा आवेश में बोला, “तुम्हारे प्रति मैं कौन सी जिम्मेदारी नहीं निभा रहा ? तुम्हारी हर उल्टी सीधी फरमाईस के सामने झुक जाता हूँ तथा उसे पूरा करने का हर संभव प्रयास करता हूँ | परन्तु जो करना संभव ही नहीं है वह मैं कैसे मान सकता हूँ ?”

रजनी ने, जो शायद कुछ समझना ही नहीं चाहती थी, पलटवार किया, “तुम भी अपने माँ बाप की तरह वही पुराने ख्यालों की दुनिया में जी रहे हो जिन्हें घर, परिवार और बच्चों के अलावा कुछ नहीं सुझता | दुनिया की रफ़्तार से न तुम्हें तथा उन्हें कोई वास्ता नहीं | लगता है तुम सब एक कुँए के मेंढक बनकर रहने में ही खुश हो |”

विनीत  को रजनी के ऐसे कटाक्ष की उम्मीद न थी | वह बाहर से अंदर तक जल भुन गया तथा अपना आपा खोते हुए गुस्से में बोला, “रजनी अपनी जबान पर लगाम दो | तुम अपनी हद से बहुत आगे बढ़ रही हो |”

विनीत  का हाथ ऊपर उठा देख रजनी भी आग बबूला हो गई, “हाँ हाँ मारो | यही रह गया था | मैं अब साफ़ कहे देती हूँ कि मुझे यह रोज रोज की झिक झिक पसंद नहीं | अब मुझे तुम्हारे परिवार के साथ एक पल भी नहीं रहना | और अगर तुम मेरा साथ नहीं निभा सकते तो मुझ से अलग हो जाओ | मुझे तलाक दे दो |”

रजनी के आख़िरी शब्दों ने थोड़ी देर के लिए विनीत  को किंकर्तव्यमूढ़ कर दिया | उसके पैरों के तले की जमीन खिसकती दिखाई दी | उसकी आँखों के सामने अन्धेरा छा गया | उसे गुमान भी नहीं था कि वह इतनी बड़ी बात कह देगी | विनीत  ने संभलकर पूछा, “क्या कह रही हो, तुम्हें तलाक चाहिए ?”

“हाँ हाँ मैनें वही कहा है जो तुमने सुना है | मैं अपने माँ-बाप के घर जा रही हूँ जहां मुझे किसी बात के लिए नहीं टोका जाता | मुझे देखकर वहाँ कोई मुहँ नहीं बनाता बल्कि उन्हें खुशी होती है | तलाक नामा भेज देना मैं दस्तखत कर दूंगी”, कहकर रजनी निश्चल विनीत  को खड़ा छोड़ अपना सामान लेकर बाहर निकलने लगी | 

पुष्पांजली  ने अपने मन की पूर्ति होते देख अपनी बहु को स्वंय ही उसके पीहर छोड़ आने का फैसला कर लिया | विनीत  भी हर द्रष्टिकोण से नाप तौलकर इस निष्कर्ष पहुँचा कि आपस में प्रेमभाव, विश्वास, एक दूसरे को समझने की कोशिश तथा सामंजस्य रखने की भावना न हो तो सम्बंधों को चिरायु नहीं रखा जा सकता | अत: अपने माता पिता के फैसले पर विनीत  ने कोई आपत्ति नहीं उठाई | 

समय के साथ रजनी को लगने लगा कि वह अब विनीत  से अलग नहीं रह पाएगी | परन्तु अभी भी उसके मन के किसी कोने में छिपकर बैठा उसका अहम तथा सास की दोगले व्यबहार का ख्याल उसे पीछे धकेल रहा था |

विनीत  की भेजी हुई मेल को क्लिक करके पढने के बाद तो रजनी कि होश ही फाख्ता हो गए थे | उसका दिन का चैन तथा रातों की नींद गायब हो गई थी | जैसे बंद पिंजरे में एक शेर, यह सोचकर कि शायद उसे बाहर निकलने के लिए कोई रास्ता मिल जाए, पिंजरे के अंदर ही इधर से उधर चक्कर काटने लगता है | उसी प्रकार रजनी अपने विचारों में खोई, कि इस समस्या का हल क्या होगा, अपने घर में पागलों की तरह एक कौने से दूसरे कौने के चक्कर लगाने लगी | उसकी समझ नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे | आखिर उसने अपने अंदर छिपे दंभ को बाहर निकालने में ही अपनी भलाई समझी | अपने मन पर विजय  पाने के पश्चात रजनी ने अपने निर्णय अनुसार मेल भेजा, “मैं बिना शर्त वापिस आ रही हूँ |”

मेल भेजने के बाद रजनी विनीत  के जवाब के लिए ऐसे इंतज़ार करने लगी जैसे एक स्वाती पक्षी, अपनी प्यास बुझाने के लिए, घुमडते मेघों से पानी गिरने का इंतज़ार करता रहता है |”

विनीत  की मेल आई | रजनी ने क्लिक किया | छोटा सा जवाब लिखा था, “नहीं तुम मत आना |”

विनीत  का जवाब पढकर रजनी की रूह काँप गई | उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि कभी मेरे सामने हाथ जोडकर हाड़े खाने वाला व्यक्ति इतना कठोर बन सकता है कि सारे रिश्ते नाते ही भुला दे | रजनी ने अपने आप से कहा कि परिस्थितियाँ मेरी तरह, व्यक्ति को ऐसा कदम उठाने पर मजबूर कर देती हैं और वह फफक फफक कर रो पड़ी 

रजनी को याद आने लगे विनीत  के वे शब्द, जब उसने (रजनी) झूठे ही बताया था, “मैं माँ बनने की राह पर अग्रसर हो चली हूँ |”                                      

विनीत  मेरी सुनकर भाव विभोर हो उठा था तथा बोला था, “बहुत खुशी की बात है कि तुम्हें एक माँ का गौरवशाली तथा ममता से भरपूर रूप प्राप्त होने वाला है | साथ ही मैं तुम्हारा आभारी हूँ कि तुम्हारे कारण मुझे भी एक पिता कहलाने का सौभाग्य मिलेगा |” 

मैं उन्हें कैसे विशवास दिलाऊँ कि रजनी के दिल में व्याप्त रजनी का अन्धेरा अब छंट चुका है तथा उसका स्थान रजनी के बाद आने वाले प्रकाश से सराबोर उन किरणों ने ले लिया है जो संसार के प्राणियों के जीवन में प्रतिदिन एक नए साहस का संचार करती हैं | रजनी ने अपने कृत्यों का प्रायश्चित करने का दृड़ निशचय कर लिया था | उसने अपने मनोभावों से अवगत कराने के लिए विनीत  को फोन मिलाया,”विनीत  मैं तुम्हारे पास आ रही हूँ सदा......?”

विनीत  ने रजनी की पूरी बात सुने बिना ही फोन फोन काटते हुए केवल एक शब्द कहा, “नहीं |”  

इस एक नहीं शब्द ने रजनी के मन में इतना अन्धेरा भर दिया जैसे आज की रजनी के बाद सुबह का प्रकाश कभी दिखाई ही नहीं देगा | वह सारी रात रोती  रही तथा सोचती रही कि अब वह क्या करे | वह किसका सहारा ले | दूसरी तरफ विनीत  की माँ ने अपने बेटे को गुस्से में ‘नहीं’ कहकर फोन पटकते हुए देख लिया था | उसने विनीत पर अपनी झूठी भावनाओं का विश्वास जमाने हेतू समझाया, “बेटा अब तू बे-रूखी से पेश मत आ | स्त्री होने के नाते मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि रजनी के मन में अब हमारे प्रति अनादर एवं नफ़रत की भावना समाप्त हो चुकी है | अब वह अपने कृत्यों का प्रायश्चित करना चाहती है तथा उसके दिल में प्यार, आदर, स्नेह तथा हमारे प्रति इज्जत की भावना लौट आई है |”

“पर माँ.... ?”

“अब आगे कोई आनाकानी नहीं | उसे सूचना भेज दे कि तुम उसे लेने आ रहे हैं |” 

अपनी माँ के मन में रजनी के प्रति किसी प्रकार के कोई रोष को न भांप विनीत  सकते में आ गया | उसके विचारों के अनुसार जिस औरत ने उसके पूरे परिवार की नाक में दम कर रखा था माँ ने उसे कितनी आसानी से क्षमा दान दे दिया था | विनीत  अपनी माँ के सीने से लग कर फफक फफक कर रो पड़ा | माँ की अंदरूनी भावनाओं से अनभिग्य उसके मुहं से निकला, “माँ तुम माँ हो, तुम  धन्य हो |” 

विनीत माँ के सीने से लगा उसके ऊपरी आडम्बर को तो देख सकता था परन्तु अपनी माँ के सीने में दफ़न उस घर्णित चाल की भनक भी महसूस न कर सका जो सोच रही थी, “आने दे रजनी को उसकी नाक में नकेल डालकर कोल्हू के बैल की तरह न पेला तो मेरा नाम भी पुष्पांजलि नहीं |”        

रजनी के माता पिता ने सुबह जब उसका चेहरा देखा तो देखते ही रह गए | सूजी हुई आँखें, पीला चेहरा जैसे शरीर में खून का एक भी कतरा न रह गया हो | उन्हें देखकर रजनी ने उठने की कोशिश की परन्तु अपने को असमर्थ पा बैठी की बैठी रह गई | अपनी लाडली की ऐसी हालत देख कर उसकी माँ ने भयभीत ह्योकर पूछा, “क्या बात है रजनी, कल शाम तक तो तुम ठीक थी | अचानक तुम्हें यह क्या हो गया है ?”

अपनी माँ को सामने देख कर एक बार फिर रजनी की रूलाई फूट पड़ी | वह किसी तरह उठी और अपनी माँ के गले लगकर रोते रोते बोली, “माँ...उन्हों..ने,...उन्हों..ने,...वे...मुझे....त..ला..क..दे.. र..हे..हैं |”

रजनी के शब्दों को सुनकर उसके माँ बाप के होश उड़ गए | उनको अचानक अपनी गलतियों का आभाष हुआ कि विनीत  के माता पिता की शिकायत के बावजूद उन्होंने अपनी लडकी का पक्ष लिया था | यही नहीं उन्होंने समस्या को सुलझाने का रास्ता अख्तियार करने की बजाय रजनी को अपने पास रखने की भूल की थी | कुछ आश्वस्त होने पर रजनी की माँ ने सवाल  किया, “तुम्हें कैसे पता चला ?”

...........................रजनी कुछ न बोली | वह शून्य को निहारती रही |

पिता ने रजनी को झंकझोड़ कर पूछा, “बोलती क्यों नहीं ?”

इस बार रजनी ने मेज पर रखे कम्पूटर की तरफ इशारा किया, “उस पर उनकी मेल पढ़ी थी |”

दोनों उतावलापन दिखाकर, “ज़रा दिखाना क्या लिखा है ?”

रजनी विनीत  की मेल को क्लिक करके एक तरफ हटकर सुबकने लगी | पिता ने पढ़ना शुरू किया | लिखा था, “माँ के अनुसार एक दुल्हा ही अपनी दुल्हन को अपनी ससुराल से उसकी ससुराल लिवा कर ले जाता है | अत: तुम्हें आने की जरूरत नहीं है | प्रथा को निभाने मैं तो नहीं आ सकता परन्तु मेरी मम्मी जी आ रही हैं  |”

मेल पढकर रजनी के पिता जी ने ऐसा जोर का ठहाका लगाया जैसे बात के असर से वे पागल हो गए हों | वे पास रखी कुर्सी पर बैठकर हंसते हुए कम्प्युटर की तरफ इशारा करने लगे | वे तो अपने मन का बोझ जो उनकी लडकी के पीहर रहने से दिन प्रतिदिन बढता जा रहा था हटने के कारण हंसते ही जा रहे थे परन्तु रजनी और उसकी माँ उनकी मुद्रा देखकर हतभ्रत एवं बेचैन हो गई | रजनी भी अपना दुख भूलकर अपने पिता के व्यवहार को लेकर चिंतित दिखाई देने लगी | अचानक रजनी की निगाह जब कम्प्यूटर के परदे पर पड़ी तो वह अचम्भित होकर उसे देखती रह गई | एक झटके में ही उसका सारा तनाव, तड़प, गीले-शिकवे, रोना एवं दुःख दर्द एवं पिता जी की तरफ से उपजी चिंता सब समाप्त हो गए थे |

ससुराल पहुँच कर जब रजनी अपनी सास के चरण छूने लगी तो सास ने एक झटके में उसे बाहों से पकड़ कर अपने गले लगा लिया और बोली, “ना ना रजनी अपनी बेटियों से पैर नहीं छुआए जाते |”

रजनी गदगद हो उठी | रात को अपने मन का संशय मिटाने के लिए रजनी ने विनीत  से जानना चाहा, “क्या वास्तव में ही विनीत  तलाक लेना चाहता था ?”

विनीत  ने रजनी को अपनी बाहों में भर अपने सीने से लगाकर मुस्कराकर बताया, “यह तो तुम्हें राह पर लाने के लिए, मेरे ताऊ जी द्वारा सुझाया, धीरे से एक जोर का झटका भर था | भला प्राणों को भी जिस्म से कभी अलग किया जा सकता है |” 

रजनी कुछ न बोली | पहले से ही विनीत  के स्पर्श से उसे जीवन के परम सुख का आभाष हो रहा था | विनीत  के विचार सुनकर वह उसके सीने से और जोर से चिपक गई जैसे सचमुच ही वह विनीत  के शरीर में घुसकर उसके प्राण बन जाना चाहती हो |         

अग्रवाल के सुझाव से रजनी अपनी ससुराल लौट तो आई थी परन्तु अपने अनुभव से वह शंकित था कि पुष्पांजलि उसे अधिक दिन टिकने नहीं देगी | इसलिए उसने विनीत को आगाह करने तथा समझाने का फैसला किया | उसने बिना किसी को नामजद किए विनीत को कहा, “देखो इस संसार में यह पहचानना मुश्किल है कि कौन अपना है और कौन पराया | अधिकाँश लोग जीवन भर इस अंतर को न पहचानने के कारण परेशानी में पड़े रहते हैं | मित्र और शत्रु की पहचान तो हो जाती है परन्तु जो अपना या मित्र बनकर शत्रु बना रहता है उनकी पहचान अनुभवी या विवेकशील व्यक्ति ही कर सकता है | अनुभवी लोग व्यक्ति के हावभाव तथा आखें देखकर ही पहचान लेते हैं कि सामने वाला व्यक्ति कैसा है | इसीलिए बुजुर्गों और युवा पीढ़ी में अंतर होता है | युवा के पास जोश होता है परन्तु होश नहीं होता इसके विपिरीत बुजुर्गों के पास होश होता है जोश नहीं होता | इसीलिए युवा अज्ञानतावश अपनेपन का नाटक करने वाले किसी छली, फरेबी, कपटी या स्वार्थी व्यक्ति के चंगुल में फंस कर अपना विनाश कर लेते हैं | कभी कभी स्वभावत: हमारे अपने भी इसमें लिप्त पाए गए हैं | अत: अपनी गृहस्थी सुचारू रूप से निर्वाह करने के लिए बहुत सावधान रहने की जरूरत है |”

अग्रवाल ने अपने मन का अंदेशा विनीत को जता तो दिया था परन्तु वह अपनी आखों से अपनी माँ की ममता की पट्टी को   उतारने में असमर्थ रहा और एक दिन रोता बिलखता विनीत फिर अग्रवाल के पास जा पहुंचा | वह बहुत घबराया हुआ था | चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थी | उसकी हालत देख अग्रवाल सकते में आ गया | विनीत को थोड़ा ढांढस देकर अग्रवाल ने पूछा, “क्या हुआ इतना घबरा क्यों रहे हो ?”

विनीत रोकर बोला, “ताऊ जी सब कुछ बर्बाद हो गया |”

“क्या बर्बाद हो गया कुछ बताओगे भी ?”

“ताऊ जी वह रजनी........|”

“रजनी क्या ?”

“र...ज...नी..भाग गई |”

“भाग गई | कहाँ भाग गई ?”

“ताऊ जी वह घर पर नहीं है |”

“क्या घर पर कोई नहीं था जब वह बाहर गई थी ?”

“मम्मी जी थी |”

“फिर वह कैसे चली गई ?”

इस बार विनीत की जुबान उसका साथ देने में असमर्थ जान पड़ रही थी वह हकलाया, “ता...ऊ.. जी.., उसने म..म्मी जी के गा..ल..प.र  दो  थ..प्प..ड़ मारे और बा..ह..र निकल गई |”

“पुष्पांजलि को थप्पड़ मारे !”

“हाँ ताऊ जी मम्मी जी तो यही कह रही हैं |”

“क्या घर में कलह चल रही थी ?”

“वह तो रजनी के आने के दस बारह दिनों बाद ही शुरू हो गई थी |”

“मैनें जो तुम्हें शिक्षा दी थी शायद उस पर तुमने अमल नहीं किया ?”

“ताऊ जी उसके बारे में तो मैं तब सोचता जब कोई बाहर का व्यक्ति हमारे घर होता |”

“तो उसने तुम्हारी मम्मी जी को ही थप्पड़ क्यों मारा ?”

विनीत निरूत्तर अपने ताऊ जी का चेहरा निहारने लगा और गहन सोच में डूब गया | इधर अग्रवाल ने सोचा कि अहंकार क्रोध को जन्म देता है और क्रोध का उद्देश्य सामने वाले को डराना होता है | क्रोध के समय जिस पर अपने रोद्र रूप की छाप छोड़कर उससे समर्पण कराने की कोशिश की जाती है उसके स्वाभिमान को चोट पहुँचती है जिससे क्षुब्ध होकर सामने वाला प्रतिशोध लेने की सोचने लगता है | ऐसा ही पुष्पांजलि और रजनी के बीच हुआ होगा | 

विनीत अपने ताऊ जी की दी शिक्षा के आधार पर अतीत के पन्नों को जोडने लगा |     

“रजनी मेरे पास आने के बाद मुझ से ऐसे लिपट गई थी जैसे अब वह कभी मुझे नहीं छोडेगी |”

“माँ के बीमार रहने के कारण वह घर के सारे काम खुद ही निपटा देती थी |”

“अचानक उसे ख्याल आया कि एक हफ्ता पहले वह अपने पिता जी से बात करने की बात कह रही थी | परन्तु मैनें जब कहा कि पूछ क्या रही हो करलो तो उसने कहा था कि उसके पास फोन नहीं है |”

“इसी समय मम्मी जी ने मुझे किसी काम के लिए आवाज दी थी और मैं रजनी की बात को भूल गया था |”

“उसका फोन कहाँ था ?”

यह सोचने के बाद वह उठा और बाहर जाते हुए बोला, “ताऊ जी मुझे कुछ जरूरी काम याद आ गया है मैं आपसे फिर मिलूँगा |” 

विनीत ने अपने घर जाकर अपनी मम्मी जी से जानना चाहा कि रजनी के पास जो फोन था वह कहाँ है ? उसका अचानक यह प्रशन करना पुष्पांजलि को अचंभित कर गया | वह सोचने लगी कि आज यह अपने ताऊ जी के पास से इतनी जल्दी कैसे वापिस लौट आया | आज उसके चेहरे पर वह आभा भी नजर नहीं आ रही जो अक्सर जब वह वहाँ से लौटता था तो महसूस होती थी | पुष्पांजलि ने पूछा, “क्यों क्या बात हो गई ?”

विनीत ने आज पहली बार अपनी मम्मी जी के सामने रूखे स्वर में पूछा, “उसके पास अपना फोन था न ?”

“हाँ था |”

“फिर एक दिन उसने मेरे से क्यों कहा था कि उसके पास फोन नहीं है ?”

पुष्पांजलि अपने मन में इस बात पर माँ बेटे के बीच दीवार बन जाने की सोच से सिहर उठी | फिर भी साहस करके बताया, “वो वो वह हमेशा फोन पर ही चिपकी रहती थी इसलिए मैनें लेकर रख लिया था |”

“मम्मी जी क्या उसे अपने घर वालों से बात करने की भी मनाही थी ?”

अपने बेटे की बात सुनकर पुष्पांजलि को आज पहली बार अपने आज्ञाकारी बेटे के तेवर देख कर डर सा लगने लगा था | वह उठकर खड़ी हो गई और विनीत को बाहों से पकड़ कर अपने पास बैठाकर बड़े प्यार से बोली, “बेटा ऐसी बात नहीं है | तू तो जानता ही है कि वह कितनी कामचोर थी | वह काम कम और बात ज्यादा करती थी बस इसलिए काम के समय उसका फोन ले लेती थी |”

“उसका फोन है कहाँ ?”

“उसके कमरे में ही होगा ?”

विनीत झट से उठा और कमरे में रजनी का फोन रखा देख अभी कुछ संतुष्ट हुआ ही था कि उसके फोन की घंटी बज उठी | उसने फोन उठाकर पूछा, “हैलो कौन है ?”

“मैं रजनी का पापा |”

“क्या रजनी घर सकुशल पहुँच गई है ?”

“तुम तो ऐसे पूछ रहे हो जैसे तुम्हें रजनी की बहुत चिंता है |”

“हमें तो उसकी बहुत चिंता है परन्तु उसने अच्छा नहीं किया |”

“हमें का मतलब ?”

“मतलब घर के सभी सदस्यों को |”

“तुम सब ने मिलकर मेरी लड़की पर जुल्म के अलावा कुछ नहीं किया |”

“ये सब बेकार की बाते हैं |”

“तुम्हें पता भी है कि पति पत्नी का रिस्ता क्या हो़ता है ?”

“आप कैसी बातें कर रहे हैं ?”

“मैं ठीक कह रहा हूँ | रजनी को तुम लोगों ने महज एक नौकरानी समझा, हमेशा जेल में रहने वाले एक मुजरिम का दर्जा दिया जिसको बाहर के किसी भी व्यक्ति से मिलने की इजाजत नहीं होती | उसका फोन भी छीनकर रख लिया जाता है | जानते हो रजनी की यह दयनीय हालत हमें उसके फोन से पता चली जो चोरी छुपे उसने पब्लिक बूथ से किया था |”

“क्या ! पब्लिक बूथ से किया था ?”

“हाँ जी |”

“ऐसा नहीं हो सकता |”

“तुम्हारी आँखों पर ममता की पट्टी बंधी हुई है | तुम्हें अपनी माँ के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता |”   

“मैं तो रजनी से हमेशा पूछता रहता था कि कहीं उसे किसी प्रकार की तकलीफ तो नहीं है परन्तु उसने कभी कुछ बताया ही नहीं |”

“बताने से क्या फ़ायदा था क्योंकि उसकी बातों को कभी किसी ने कोई तवज्जो ही नहीं दी | बल्कि तुम सबने मिलकर हमेशा उसी की गल्ती निकाली | आदमी कितना झुक सकता है | कितना सह सकता है | जब पानी सिर से गुजरने लगता है तो हाथ पैर मारने ही पड़ते हैं | वही रजनी ने किया और इसमें कोई गल्ती नहीं है |”

“अपनी सास को चांटा मारने को आप गल्ती नहीं मानते ?”

“मानता था परन्तु अब नहीं क्योंकि ऐसे परिवेश में रजनी ने सही किया है |”

“कैसा परिवेश ?”

“ज्यादा भोले मत बनो | तुम्हारी मम्मी जी ने रजनी को कभी अपनी बहू समझा ही नहीं | वह तो उसके साथ नौकरानी जैसा व्यवहार करती थी | क्या तुम्हें पता है कि गाली गलौच करना, ताने देना, यहाँ तक की बिना कसूर के झापट रसीद करना उनकी आ़दत बन गई थी |”

विनीत आश्चर्य से जैसे सोकर उठा हो, “आप यह कैसे कैसे इलजाम लगा रहे हो ?”

“मैं इल्जाम नहीं हकीकत बयाँ कर रहा हूँ |”

विनीत अपना सिर पकड़ कर बैठ गया | उसे यह तो आभाष था कि घर का वातावरण कुछ सौहार्द पूर्ण नहीं रहता परन्तु उसने कभी सोचा भी न था कि उसके चार प्राणियों के घर में ऐसी कटुता पूर्ण माहौल बन गया था | उसकी तंद्रा रजनी के पिता जी की आवाज ने तोड़ी, “अब मेरी बेटी वहाँ नहीं आएगी | वह तुम्हारे सभी के ऊपर एक केस दायर करने जा रही है | अब अपनी करनी का फल भुगतना |” इतना कहकर फोन कट गया |

विनीत थोड़ी देर किंकर्तव्यमूढ़ बैठा रहा फिर एक झटके से अपनी मम्मी के सामने खड़ा होकर उसे घूरने लगा | आज पहली बार अपने बेटे की गुस्से से भरी लाल आँखों को देखकर किसी अनहोनी ने उसे कंपा दिया | थोड़ी देर माँ बेटे के बीच घूरना और असमंजसता से देखना जारी रहा | दोनों के मुहँ पर जैसे ताला लग गया था | शायद दोनों सोच रहे थे कि सामने वाला पहले अपना ताला खोले | आखिर विनीत के सब्र का बाँध समाप्त हो गया और उसने अपना मुहँ खोला, “मम्मी जी क्या यह सही है कि आपने रजनी को थप्पड़ मारा था ?”

विनीत के अचानक किए गए प्रशन से पुष्पांजलि का पूरा शरीर काँप गया और उसके चेहरे पर पसीने की बूंदे उभर आई | वह मिमयायी, “बेटा वो.. वो मेरी कुछ सुनती ही नहीं थी | एक दिन गुस्से में मेरा हाथ उठ गया था |”

अपनी मम्मी की बात सुनकर विनीत बेचैन हो उठा | वह बेबस शेर की तरह इधर उधर चक्कर काटने लगा | उसकी समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे | वह बुदबुदाया, “ताऊ जी ने ठीक ही कहा था |”

उसका बुदबुदाना सुनकर पुष्पांजलि ने पूछा, “तेरे ताऊ जी क्या कह रहे थे ?”

यही कि, “अनुभवी लोग व्यक्ति के हावभाव तथा आखें देखकर ही पहचान लेते हैं कि सामने वाला व्यक्ति कैसा है | इसीलिए बुजुर्गों और युवा पीढ़ी में अंतर होता है | युवा के पास जोश होता है परन्तु होश नहीं होता इसके विपिरीत बुजुर्गों के पास होश होता है जोश नहीं होता | इसीलिए युवा अज्ञानतावश अपनेपन का नाटक करने वाले किसी छली, फरेबी, कपटी या स्वार्थी व्यक्ति के चंगुल में फंस कर अपना विनाश कर लेते हैं | कभी कभी स्वभावत: हमारे अपने भी इसमें लिप्त पाए गए हैं | अत: अपनी गृहस्थी सुचारू रूप से निर्वाह करने के लिए बहुत सावधान रहने की जरूरत है |”

यह सुनकर पुष्पांजलि रोते हुए उठी और विनीत से बोली, “बेटा मैंने ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा हो जाएगा |”

“परन्तु मम्मी जी अब ऐसा हो गया है | आपके अहंकार तथा गुस्से ने समाज में आपके साथ हमारी मान, मर्यादा, आदर, सत्कार को समाप्त करने का काम किया है |” और वह फफक फफक कर रो उठा | 

पुष्पांजलि भी विनीत से पीछे न रही | वह भी विलाप करते हुए कहने लगी, “भाई साहब अग्रवाल की नसीहत न मानने का दूसरा फल आज मुझे मिल गया है |”

विनीत आश्चर्य से, “क्या ! ताऊ जी ने आपको भी आगाह किया था ?”

“हाँ बेटा जब मैनें उनका कहा न मान कर अपना मकान दोमंजिला बनवाना शुरू कर दिया था तो उन्होंने मुझ से कहा था कि जब मेरी सामर्थ्य हो तभी बनवा लेना | इसके बाद रजनी के साथ मेरी खटपट के मद्देनजर भी समझाया था कि अपनी इज्जत अपने हाथ होती है | इसको पाने के लिए दबाव या कोशिश करना काम नहीं आती | यह तो सामने वाले के दिल में आपके प्रति खुद उपजनी चाहिए | अपने अहंकार वश मैनें उनकी इस राय पर भी कोई ध्यान नहीं दिया इसलिए मुझे यह दिन देखना पड़ रहा है | और अब जब रजनी के पिता जी ने धमकी दी है तो ऐसा लगता है कि अग्रवाल जी की तीसरी भविष्य वाणी भी कारगर सिद्ध हो जाएगी |”

विनीत जो अपनी मम्मी की बातें ध्यान से सुन रहा था ने पूछा, “आप किस भविष्य वाणी की बात कर रही हो ?”

मैनें ॠण लेकर जब मकान दोमंजिला करना शुरू किया था तो मेरा रवैया तथा हावभाव देखकर उन्होंने चेतावनी सी देते हुए कहा था, “पुष्पांजलि कोई भी कर्म करने से पहले इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि ‘अहंकार में तीन गए धन, वैभव और वंश’| आज मैं धन और वैभव मतलब आदर सत्कार तो गवां चुकी हूँ तथा वंश मिटने के कगार पर है | वास्तव में ही अहंकार मनुष्य को विनाश के रास्ते पर अग्रसर कर देता है |”

इसके बाद माँ-बेटा आपस में गले लग कर न जाने कितनी देर तक मातम मनाते रहे | थोड़े दिनों बाद कोर्ट से आए नोटिस ने यह बात साफ़ कर दी कि विनीत जीवन भर एक बाप बनने से वचिंत रह जाएगा अर्थात पुष्पांजलि के वंश का अंत क्योंकि रजनी के अनुसार लिखा था कि न तो वह तलाक लेगी तथा न ही अपने ससुराल आएगी परन्तु वह विनीत से जीवन भर केवल अपने भरण पोषण का खर्चा लेगी |   

No comments:

Post a Comment