Sunday, October 4, 2020

उपन्यास 'अहंकार' (हवस)

 


हवस

जब विनीत  दसवीं कक्षा का छात्र था तभी से अग्रवाल उसे अपनी दुकान पर सामान लेने आता जाता देख रहा था | उसका चेहरा ताजा गुलाब की तरह हमेशा खिला रहता था | उसके चेहरे की मासूमियत, मंद मंद मुस्कान, बात करते हुए ऐसा प्रतीत होता था जैसे वाणी से फूल झड रहे हों | कहते हैं कि एक किशोर एवं एक बन्दर की हरकतों में कोई फर्क नहीं होता परन्तु राजेश ने दूसरे बच्चों की तरह विनीत  में वैसी हरकतों का समावेश कभी महसूस नहीं किया था | 

विनीत  के माता पिता जो जीवन यापन के लिए बिहार से आकर लगभग बीस वर्ष से भारतवर्ष की राजधानी देहली में बस गए थे अभी तक अपना खुद का मकान न बनवा सके थे | विनीत  के पिता बहुत सरल स्वभाव के व्यक्ति थे | उन्हें पैसा कमाने के अलावा दुनियादारी से कोई मतलब नहीं था | वे हर महीने अपनी पूरी पगार अपनी बीवी के हाथ पर रखकर अपने फर्ज से मुक्ति पा लेते थे | विनीत  की माँ पुष्पांजली   बहुत महत्त्वकांक्षी थी | देहली में रहते हुए उसने देखा था कि असंख्य लोगों ने उसकी तरह बाहर के राज्यों से आने के बाद, देहली में, अपना खुद का आशियाना बना लिया था | उसके मन में भी ललक रहती थी कि काश उसका भी सिर छिपाने मात्र एक छोटा सा आशियाना बन जाता | 

सच्चे मन से, भगवान से, की फ़रियाद देर सवेर पूरी हो ही जाती है | विनीत  की मम्मी जी को भी भगवान की दया से एक भद्र पुरूष अग्रवाल   का सहारा मिल गया और उसकी आशाओं से अधिक सुख सुविधाओं वाला एक सपनों का महल बनकर तैयार हो गया | पुष्पांजली   अपने परिवार के साथ खुशी खुशी अपने सपनों के महल में जीवन व्यतीत करने लगी | 

मनुष्य का मन कभी संतुष्ट नहीं होता | हर वक्त उसके मन में कोई न कोई नई इच्छा सिर उठाती रहती हैं | एक पूरी होती नहीं कि दूसरी जाग्रत हो जाती हैं | तभी तो मनुष्य को कभी शान्ति नहीं मिलती | इस बारे में गुरू नानक जी का कथन ठीक ही था कि ‘दुखिया नानक सब संसार’ | अगर मनुष्य थोड़ी संतुष्टी कर ले तो न उसका मन भटकेगा न ही अशांत होगा | परन्तु इसके विपरीत अगर इच्छाएं समाप्त हो जाएँगी तो जीवन ठहर कर रह जाएगा | जैसे भगवान को पाने की मन में एक इच्छा रहती है उसी प्रकार जीवन में उचाईयां छूने की भी इच्छा बलवती रहती है |      

ऐसा ही कुछ पुष्पांजली   के साथ हुआ | विनीत  बी.काम. करने के बाद नौकरी करने लगा | वह अपनी लगन, परिश्रम, कुशल व्यवहार एवं काम करने की क्षमता से जल्दी ही अपने मालिक की नजर में चढ गया | उसने दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की करते हुए शीघ्र ही कंपनी की एक शाखा के मैनेजर का पद भार संभाल लिया |

विनीत  भी अपनी मम्मी जी की तरह बहुत महत्त्वकांक्षी था | होता भी क्यों नहीं | एक तो वर्त्तमान युग का नौजवान दूसरे इतनी जल्दी जल्दी पदोन्नति मिलने पर उसे सब कुछ फूला फूला सा नजर आने लगा था | हालाँकि ऐसे होनहार लड़के पर माता-पिता को गर्व होना स्वाभाविक है परन्तु उन्हें बच्चे को यह शिक्षा अवश्य देनी चाहिए कि ‘उतने पैर पसारीए जितनी चादर देख’ और साथ में हारी बिमारी तथा भविष्य के लिए भी कुछ बचाकर रखने की सलाह देनी चाहिए | 

इसके विपरीत यहाँ तो एक महत्त्वकांक्षी माँ की महत्त्वकांक्षा ने अपने महत्त्वकांक्षी बेटे की महत्त्वकांक्षाओं को इतना तूल दिया कि वह अपने को टाटा-बिरला के बराबर समझने लगा |

विनीत  पितृ भक्त कम तथा मातृ भक्त बहुत अधिक था | वह अपनी मम्मी जी के मुहं से निकले हर शब्द को पूर्ण करने को कमर कस लेता था | 

एक तो वर्त्तमान नौजवान की जीवन शैली इतनी खर्चीली हो गई है कि वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हमेशा कर्जे की स्थिति में रहता है ऊपर से अगर उसे माँ की सह मिल जाए तो उसका बंटाढार होना लाजमी है |  

माँ का लाडला विनीत  अभी अच्छी तरह से अपनी नौकरी तथा गृहस्थी का कार्यभार सम्भालने में समर्थ भी नहीं हो पाया था कि उसकी चहेती माँ की महत्त्वकांशाओं को पंख लगने लगे | उसे अपना एक मंजिला सपनों का महल छोटा दिखाई देने लगा इसलिए, अंटी खाली होते हुए भी, उसने अपने सपनों के महल को शीश महल में बदलने का मंसूबा बना लिया | अर्थात उसे दोमंजिला बनाने का प्रस्ताव विनीत  के सामने रख दिया | 

जैसे जब कोई इंस्पेक्टर किसी फैक्टरी में इन्सपेक्शन के लिए जाता है और किसी वस्तु की तरफ इशारा करके कह देता है कि वह वस्तु बहुत लुभाने वाली है तो वह वस्तु उस इंस्पेक्टर के घर पहुंचा दी जाती है | इसी प्रकार विनीत  की माँ ने अपने मन की दो इच्छाओं को गोल मोल करके अपने आज्ञाकारी बेटे के सामने यह कहकर प्रस्तुत किया, “बेटा, हमारे इस छोटे से घर के सामने एक लंबी गाड़ी खड़ी शोभा नहीं देगी |”

एक गिलोए की लता पेड़ का सहारा लेकर ऊपर चढती है तथा बाद में वही लता उस पेड़ के पत्तों. टहनियों और शाखाओं को पूरी तरह पकड़कर पेड़ पर आच्छादित हो जाती है परन्तु इतना अवश्य रहता है कि वह बेल पेड़ को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती | इसी प्रकार पुष्पांजली  , जिसने अपना मकान बनवाने के लिए जिस व्यक्ति की उंगली पकड़ी थी अब उसका पोंचा पकड़ने के अलावा उसके पास कोई चारा न था | वैसे भी हवस की खोपड़ी कभी भरती नहीं |

एक बार नारद जी कहीं जा रहे थे तो उन्हें एक भिखारी टकरा गया | भिखारी ने अपना पात्र नारद के आगे बढ़ाकर कहा, “भिक्षाम देही |”

नारद के पास तो देने के लिए कुछ था ही नहीं अत: बोला, “वत्स मैं तो एक साधु सन्यासी हूँ मेरे पास देने को कुछ नहीं है |”

जब किसी प्रकार भी वह भिखारी नारद के सामने से नहीं हटा तो नारद ने एक कागज़ पर कुछ लिखकर उसके पात्र में डालते हुए कहा, “आप जाकर इसे धन कुबेर को दिखा देना वे तुम्हारी  मन की मुराद को पूरा कर देंगे |”

धन कुबेर का नाम सुनकर भिखारी दौड़ कर खुशी खुशी जल्दी से उसके सामने पहुँच गया और अपना भिक्षा का पात्र आगे बढ़ा दिया | कुबेर ने नारद का सन्देश पढकर अपने सहयोगियों से भिखारी का पात्र अशर्फियों से भरने का फरमान दिया | कुबेर को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि उसका सारा खजाना समाप्त होने को आया परन्तु भिखारी का दान पात्र नहीं भरा | इस पर चिंतित होकर कुबेर ने भिखारी से पूछा, “कृपया यह बताएं कि आपका यह दान पात्र किस वस्तु का बना है जो भरने में ही नहीं आ रहा है ?”    

भिखारी ने हंसते हुए बाताया, “स्वामी यह हवस की खोपड़ी है |”

हवस की खोपड़ी का नाम सुनते ही कुबेर अपना माथा पकड़ कर बैठ गया और फिर भिखारी से क्षमा माँगते हुए बोला, “महात्मन आपकी हवस की खोपड़ी को भरना मेरे बसकी बात नहीं है |” 

अग्रवाल   ने माँ बेटे को लाख समझाया कि सहज पके सो मीठा होए, बेहतर होगा वे एक एक करके तथा आर्थिक दृष्टि से समर्थ होने पर ही अपनी इच्छाओं की पूर्ति करें | 

अग्रवाल ने पुष्पांजलि के सामने अपने जीवन में घटित घटना को उनके सामने रखकर उसको समझाने की कोशिश की, “पुष्पांजलि जब हम भारतीय वायु सेना की नौकरी छोड़कर आए थे तब आप तो हमारे पडौस में रहती थी |”

“हाँ भाई साहब मेरा परिवार वहीं था |”

आपने महसूस किया होगा कि उस समय हमारे पास घर में सुख सुविधा का कोई साधन मौजूद नहीं था ?”   

“कुछ का मतलब ?”

“मतलब कि घर में खाने पीने के अलावा सामान जैसे कूलर, फ्रिज, गाड़ी, और टेलीविज़न यहाँ तक की ढंग का मकान भी नहीं था |”

“हाँ भाई साहब यह तो है |”

“अपनी तथा अपने बच्चों को इन साधनों से मिलने वाली खुशियों को दरकिनार करके पहले मैनें अपने मकान को रहने योग्य बनाने पर तवज्जो दी थी |’

“बिल्कुल भाई साहब |”

“और इस काम को पूरा करने के लिए मुझे कई महीने लग गए थे |”

“हाँ भाई साहब आप मकान बनवाने के काम को बीच बीच में थोड़े दिनों के लिए बंद जो करवा  देते थे |एक बार तो मैं ही क्या सारा मौहल्ला इस बात को कहने लगा था कि न जाने क्यों अग्रवाल ने अपने मकान में अठारह इंच की खंडहर जैसी दीवार खड़ी क्यों छोड़ रखी है |”

“बिल्कुल ठीक, जानती हो क्यों ?”

“क्यों ?”

“क्योंकि मेरे पास इतना पैसा नहीं रहता था कि मैं चिनाई लगातार करवा सकता तथा ॠण मैं लेना नहीं चाहता था |”

मेरी बात सुनकर एकबार को पुष्पांजलि का चेहरा मुरझा गया परन्तु कुछ पलों के बाद ही वह पूरे जोश के साथ बोली, “भाई साहब मेरे पास पैसों की कोई कमी नहीं है | हमारे घर में तीन तीन कमाने वाले हैं इसलिए मुझे ॠण की किस्त भरने में कोई दिक्कत नहीं आएगी |”

अग्रवाल ने सलाह दी, “पुष्पांजलि समय बड़ा बलवान होता है अत: संभलकर चलना ही हितकर होता है |”

पुष्पांजलि की तो जैसे हवस और अहंकार ने मति मार दी थी ऊंची गर्दन करके बोली, “भाई साहब आप बिल्कुल चिंता न करें | हाथ जोड़कर, बस एक बार और सहायता कर दो |”  

अग्रवाल ने पुष्पांजलि की मति को सही रास्ते पर लाने का एक ओर प्रयास किया, “अच्छा एक बात बताओ, मेरा दुमंजिला मकान तो आपने देखा है ?”

“हाँ देखा है |”

“उसकी दूसरी मंजिल पर कभी गई हो ?”

“हाँ एक बार चढी थी |”

“वहाँ का नजारा क्या था ?”

“लगता था कई दिनों से झाडू भी नहीं लग पाया था |”

“इसी से सीख ले लो कि मकान उतना ही ठीक रहता है जिसका रख रखाव अच्छी तरह रखा जा सके |”

“भाई साहब आप अपना मकान किराए पर नहीं देते इसलिए ऐसी हालत रहती है |”

“तो आप क्या किराए पर देने के लिए दुमंजिला बनवाने का विचार कर रही हो ?”

“हाँ भाई साहब इस बहाने कुछ आमदनी भी हो जाएगी |”

अग्रवाल कुछ सोचकर, “यहाँ आपके इलाके में किराया मुश्किल से पाँच हजार मिलेगा |”

“भाई साहब आपने सही अंदाजा लगाया है |”

“और बनवाने में कितनी लागत आएगी ?’

“लगभग सात लाख |”

“इसका बैंक ब्याज कितना बनेगा ?”

“पता नहीं |”

“मैं बताता हूँ, लगभग दस हजार पाँच सौ |”

“भाई साहब अपनी जायदाद तो बन जाएगी ?”

“जायदाद तो फिर कभी भी बन सकती है जब तुम आर्थिक रूप से समर्थ हो जाओगी |”

पुष्पांजलि शायद समझना नहीं चाहती थी बोली, “भाई साहब सब हो जाएगा |”

अग्रवाल साफ़ देख रहा था कि पुष्पांजलि की अपने मकान को दुमंजिला बनवाने की जिद उसे बहुत बड़े आर्थिक संकट में लाकर खड़ा कर देगी | उसने समझाया, “बहन जी जैसे हमारे प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि वे गुजराती हैं और गुजरातियों के खून में व्यापार बसा है उसी प्रकार मैं भी बनिया हूँ | बहनजी बनिए का हिसाब लगा कर देखो | आपको हर महीने पाँच हजार रूपये का नुकसान रहेगा |”  

पुष्पांजलि बस एक ही रट लगाए थी, कोई नहीं सब हो जाएगा और उसका लड़का विनीत अपनी चुप्पी से अपनी माँ की सहमती जता रहा था |

त्रिया और बच्चे की हठ या जिद तो जगत प्रसिद्ध है | अगर वे जिद पर आ जाएँ तो वे मानते नहीं बल्कि मनाकर रहते हैं | आखिर अग्रवाल ने यह सोचकर कि माँ बेटे को संतोष नहीं है तथा अपनी आमंदनी पर बहुत घमंड है और किसी हालत में भी वे उसकी बात मानने वाले नहीं हैं अपने हथियार डाल दिए |  

जैसे सावन के अंधे को हरियाली का आभाष रहता ही है उसी प्रकार विनीत  अपनी भविष्य में होने वाली पदोन्नती के भरोसे बहुत आशक्त था | उनकी जिद तथा अपनी सुरक्षा को जांच लेने के बाद अग्रवाल   को पुष्पांजली की महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सहारा देना ही पड़ा |

अब माँ अपने महल को शीश महल में परिवर्तित करने में जुट गई तो लड़के ने अपनी शान बढाने के लिए पहले मोटर साईकिल खरीदी, फिर इसके बाद अपनी माँ के मन की दबी इच्छा को पूरा करने के लिए अग्रवाल   के सामने कार खरीदने का प्रस्ताव भी रख दिया |

विनीत  के परिवार को पहले से ही जरूरत से ज्यादा कर्ज दिला चुके अग्रवाल ने विनीत  से पूछा, गाड़ी किस लिए चाहिए ?”

विनीत ने मार्मिक शब्दों में कहा, “ताऊ जी आप तो जानते हैं कि मम्मी जी की तबीयत अचानक बिगड जाती है इसलिए उन्हें ले जाने के लिए कुछ तो साधन होना चाहिए |”

“विनीत तुम्हारी बात ठीक है परन्तु मान लो तुम्हें महीने में एक बार ही गाड़ी की जरूरत पड़ती है तो क्या इसके लिए पाँच लाख लगाना अक्लमंदी कहलाएगी ?”

ताऊ जी में आपकी बात समझा नहीं ?”

अग्रवाल ने बनिए का हिसाब समझाया, “देखो पाँच लाख का ब्याज हर महीने लगभग ४५००/- पडता है | अगर अपनी मम्मी जी को महीने में एक बार भी ले जाना पड़ता है तो टैक्सी ज्यादा से ज्यादा ७००/-लेगी |”

विनीत अपना सिर खुजा कर, “वह तो है |”

“ऊपर से पाँच लाख का ब्याज ४०००/- हर माह तुम्हारी जेब में बचा रहेगा |”

“वह तो ठीक है ताऊ जी परन्तु अपनी सवारी तो अपनी ही होती है |”

अग्रवाल ने जान लिया कि विनीत अपनी माँ की तरह अपनी शानौ शौकत दिखाना चाहता है | इसलिए विनीत को उसकी बात समझ नहीं आएगी | अत: पूछा, “गाड़ी के लिए लेने वाले कर्ज की भरपाई कैसे करोगे ?”

“ताऊ जी बस डाउन पेमेंट की समस्या है आगे तो हो जाएगा |”

“वह कैसे ?”

“देखो अब मेरी प्रमोशन होनी है | मुझे उसमें पांच हजार की बढोतरी मिलेगी |”

“परन्तु अभी तीन महीने पहले ही तो तुम्हें प्रमोशन मिली है इतनी जल्दी दूसरी...?”

विनीत  जैसे पहले से ही जानता था कि उसके ताऊ जी उससे क्या पूछेंगे उनका वाक्य पूरा होने से पहले ही तपाक से बोला, “मैनें दूसरी कंपनी में इंटरव्यूह दिया था | जब मेरे बॉस को इसका पता चला तो उसने मुझे यहाँ से नौकरी न छोडने की मिन्नत करते हुए जल्दी ही एक और प्रमोशन देने का आश्वासन दिया है |”  

“ठीक है |”

“मैं आफिस में ओवर टाईम भी करने लगूंगा जिससे तीन चार हजार कहीं नहीं गए |”

“अच्छा |”

“इस ओवर टाईम के पैसों से गाड़ी की किस्त निकल आएगी |”

“और अब जो गाड़ी के लिए लिमिट से ज्यादा पैसा लेना है उसके ब्याज का कैसे करोगे ?”

“वह गुडिया की पगार से हो जाएगा |”

“और हारी बीमारी तथा ऊपरी खर्चे ?”

“ऊपरी खर्चे, कैसा ऊपरी खर्चे ?”,विनीत  ने ऐसे मुहं बनाकर कहा जैसे वह जानता ही न हो कि ऊपरी खर्चे क्या बला होती है |

“गाड़ी कोई पानी से तो चलेगी नहीं |”,अग्रवाल   ने उसे उदहारण दिया |

विनीत  ने बड़े इतमीनान से बताया, “ताऊ जी, वह भी हो जाएगा, मैं ट्यूशन जो कर रहा हूँ |”

जब अग्रवाल   ने भांप लिया कि विनीत  अपने ऊपर बहुत आश्वस्त है तो उसने उसे जाट भाषा में समझाने का प्रयास किया, “विनीत  गाँव की भाषा में कहा जाता है कि ‘न सूत न कपास कोरिया से लठा लठी |”

“क्या मतलब ?”

“मतलब यह कि अभी न तो तुम्हारी उन्नति हुई है, न तुम ओवर टाईम कर रहे हो परन्तु हिसाब पहले से ही लगा लिया कि ऐसे हो जाएगा, वैसे हो जाएगा ?”

अग्रवाल   ने अपने ऐसे विचार प्रकट करने के बाद जब विनीत  का चेहरा निहारा तो उसे ऐसा  महसूस जैसे विनीत  मन ही मन कह रहा हो, “ताऊ जी मेरे भविष्य की बातों को सोचकर आप नाहक ही परेशान हो रहे हो | मैं जो कह रहा हूँ वैसा ही होगा |”    

मौहल्ले तथा आस पडौस वाले तो क्या अग्रवाल   भी असमंजस में था कि आखिर पुष्पांजली   व् विनीत  इतनी शानो शौकत किस के दम पर दिखा रहे हैं और क्यों ? अग्रवाल   ने जब भांप लिया कि अब अगर उन्हें टोका न गया तो माँ बेटे की महत्वकांक्षाओं के चलते शीघ्र ही वे ॠण में इतने लिप्त हो जाएंगे कि उनके घर वाले अच्छा खाना खाने के भी मोहताज हो जाएंगे, विनीत  को समझाने के विचार से कहा, “विनीत  जब तक ॠण जरूरत के लिए लिया जाए तब तक वह जायज और सुखद लगता है परन्तु जब जरूरत हवस का रूप ले लेती है तो शूल बनकर चुभने लगती है | इसका एहसास तुम जल्दी ही करोगे |”

माँ बेटे को अपना भविष्य बहुत उज्जवल एवं हरा ही हरा दिखाई दे रहा था | विनीत  ने जीवन की पतझड़ तो अभी देखी ही कहाँ थी | माँ बेटे की बढ़ती हवस ने अग्रवाल   की चेतावनी का एहसास उन्हें जल्दी ही करा दिया |    

गाड़ी लेने के बाद विनीत  एवं उसकी मम्मी के पैर जमीन पर पड़ने बंद हो गए | छोटे छोटे काम निबटाने के लिए भी अब उनको गाड़ी की याद आने लगी थी | एक दिन विनीत  अग्रवाल   के पास आया और खुशी से झूमता हुआ बोला, “ताऊ जी आपको एक खुश खबरी देनी है |”

“अरे खुश खबरी वह भी पूछकर देनी है, जल्दी बता वह क्या है ?”

“मुझे दिसम्बर से एक और उन्नति मिल जाएगी |”

 “अरे वाह क्या कहने, बहुत खुशी की बात है | वैसे इस उन्नति के एवज में क्या वस्तु खरीदने का विचार है |”

अग्रवाल ने सोचा था कि वह उसके पैसा बचाने का आशय समझ जाएगा इसके विपरीत विनीत झट से बोला, “विजया को स्कूटी दिलवाऊंगा |”

अग्रवाल केवल इतना ही कह सका, “बहुत अच्छा |”

अपने चेहरे पर मधुर मुस्कान लाकर विनीत  ने आगे कहा, “ताऊ जी जब से मैंने गाड़ी ली है मेरे बॉस में कुछ इन्फिरिओरीटी कॉम्पलेक्स आ गया है |”

“वह कैसे ?”

“कह रहा था, पहले तो मकान बनवाया अब यह लंबी नई गाड़ी, लगता है तू तो पूरा टाटा-बिरला है |”

अग्रवाल ने विनीत  का हौसला बढ़ाया, “यह तो सभी को दिख रहा है क्योंकि प्रत्यक्ष को प्रमाण की कोई जरूरत नहीं होती |”

विनीत उन्मुक्त हंसी हंसने लगा | अग्रवाल ने उसकी हंसी में विराम लगाते हुए नसीहत दी, “विवेक, अब दूसरों के अंदर अपने प्रति ऐसा भ्रम और शाख को बचाए रखना अति आवश्यक है |”

अचानक पुष्पांजली   बीमार पड़ गई | पहले से ही पैसों के मामले में कगार पर चल रहे परिवार के सामने विकट समस्या खड़ी हो गई | ऐसे में बैंक के कर्जे की किस्तों को जुर्माना भरकर रोकना पड़ा | गाड़ी की किस्त भरने के लिए पैसा बचा नहीं | अग्रवाल   जो पहले ही अपनी तथा उनकी सामर्थ्य से बाहर तक का ॠण उन्हें दिला चुका था के सामने जाने की शायद विनीत  की हिम्मत नहीं हुई | क्योंकि अग्रवाल   के अनुभवों की चेतावनी के बावजूद उन्होंने अपनी इच्छाओं को दबाया नहीं था | 

लगभग एक महीने बाद जब विनीत  अग्रवाल   के सामने आया तो उसका चेहरा एक मुरझाए हुए गुलाब की तरह प्रतीत हो रहा था | हमेशा मंद मंद मुस्कान वाली आभा गायब थी | उसकी ऐसी स्थिति देख अग्रवाल   ने उसे टटोला, “क्या बात है विनीत  कुछ परेशान दिखाई दे रहे हो ?”

“हाँ ताऊ जी |”

“क्यों क्या हुआ ?”

“आप की शिक्षा ‘सहज पके सो मीठा होए’ को न मानने का फल भुगतने लगा हूँ |”

“मतलब ?”

“यही कि अचानक माँ की बीमारी के कारण इतना पैसा खर्च हो गया कि न तो बैंक की किस्त चुका पाया और न ही गाड़ी की किस्त जमा हो सकी |”

“फिर ?”

“अपने एक दोस्त से २५०००/-रूपये उधार मांगे थे उसने भी अपनी असमर्थता जता दी |”

“तुम्हारे ओवर टाईम का क्या रहा ?”

“वह तो प्रमोशन मिलने के बाद ही शुरू होना था |”

“अरे हाँ, तुम्हें उन्नति कब प्रदान की जा रही है ?”

“समय तो हो गया है परन्तु कुछ पता नहीं चल रहा है कि कब मिलेगी ?”

अग्रवाल   को जीवन का बहुत तजुर्बा था | वह समझ गया था कि विनीत  के बॉस ने अंदाजा लगा लिया होगा कि विनीत  नामक चिड़िया जाल में फंस कर उड़ने में असमर्थ हो चुकी है | अब वह केवल फडफडा ही सकती है | अर्थात विनीत  बहुत कर्जदार और पैसों के लिए मोहताज हो गया है | इसलिए अब अगर उसे प्रमोशन न भी दी गई तो वह उसके यहाँ से नौकरी नहीं छोडेगा | क्योंकि कंपनी से लिया कर्ज वह चुकता नहीं कर पाएगा | अपने मन का अंदेशा साबित करने के लिए अग्रवाल   ने विनीत  से प्रश्न किया, “तुमने अपने बॉस के सामने तो अपनी दुविधा का जिक्र नहीं कर दिया है ?”

“कौन सी दुविधा ?”

“रूपयों की ?”

“कहा था परन्तु उसने भी अपने हाथ ऊपर खड़े कर दिए |”

विनीत के कहने से अग्रवाल को विश्वास हो गया कि अब से उसके बॉस के, विनीत  की प्रमोशन के लिए, हाथ हमेशा ऊपर ही रहेंगे क्योंकि बॉस के सामने विनीत  की टाटा-बिरला होने की पोल खुलकर उसकी लाचारी और हवस उजागर जो हो गई थी | 

अचानक एक दिन राम सेवक के आफिस से एक पत्र आया | लिखा था आप छः महीने बाद रिटायर हो जाएंगे | घर वाले सभी सकते में आ गए | शायद राम सेवक की उसके कागजों में जन्म तिथि गलत लिखी हुई थी | परन्तु अब क्या हो सकता था | रिटायर होने पर राम सेवक की अचानक आमदनी रुक जाने तथा पेंशन न मिलने से पुष्पांजलि के परिवार को फांके करने की नौबत आ गई क्योंकि विनीत की पगार तो मकान, गाड़ी, स्कूटर, बैड तथा सोफे वगैरह की किस्त चुकाने में ही खत्म हो जाती थी |    

पुष्पांजलि को एक बार फिर अग्रवाल की याद आई | वह आई और गिडगिडाकर पश्चाताप करने लगी, “भाई साहब आप ने मुझे बहुत समझाया परन्तु मैंने अपने अंदर अहंकार के कारण अपनी हवस को पहचानने की भूल कर दी जिससे आज मैं धन के अभाव को झेल रही हूँ |”         

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