Thursday, October 1, 2020

उपन्यास 'अहंकार' (समर्पित)

 अहंकार (उपन्यास) 


मेरी पत्नी एवम उनकी सहेली पुष्पांजलि को समर्पित जिनके निश्छल आपसी प्रेमभाव से प्रभावित होकर मैनें उस अनजान ब्राह्मण परिवार की सहायतार्थ कदम बढ़ाए और यह उपन्यास लिखने की प्रेरणा मिली | 

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सृजन

मनुष्य के मन मे अहंकार अर्थात दंभ उत्पन्न होने के विभिन्न कारण हो सकते हैं | कारण कोई भी हो अहंकार से हठधर्मिता और अदूरदर्शिता पनपती है और अंत में यही मनुष्य को विनाश के पथ पर अग्रसर कर देती हैं | अहंकार वश मनुष्य में अपने को हमेशा सही मानने की इच्छा इतनी बलवती हो जाती है कि वह अपने किसी भी सगे संबंधी, रिश्तेदार या खैर ख्वाह की कोई भी नेक सलाह पर विचार करने में भी अपनी भलाई नहीं समझता और अंधे की तरह गर्त के गड्ढे की और बढता रहता है | आखिरी मुहाने पर पहुंचकर जब उसे अपने पैरों के नीचे जमीन महसूस नहीं होती तो वह सब कुछ खोया पाकर पश्चाताप करने लगता है | ऐसा ही इस उपन्यास के मुख्य पात्र के साथ हुआ | उसके अहंकार ने धन और वैभव खोने के बाद उसे अपना वंश खोने की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था | 


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