Tuesday, October 13, 2020

लघु कहानी संग्रह (समीक्षा)

 समीक्षा

एक रचनाकार अपने सोच,विचार,स्मृतियों एवं कल्पना से अपने इर्द-गिर्द घटित हो रही घटनाओं को एक जीवन्तता प्रदान करता है | सृष्टि  के साथ साथ मनुष्यों द्वारा बनाए गए नियमों एवं कारनामों को एक रचनाकार,अपनी कल्पना के माध्यम से,कविता,उपन्यास या कहानियों का रूप देकर समाज के साहित्य को उजागर करने का प्रयास करता है |  विश्व की समस्त भाषाओं में साहित्य की निरंतर सृजना हो रही है | साहित्य समाज का दर्पण है | अतः साहित्य का अविच्छिन्न सृजन ही समाज की जीवन्तता को कायम रख सकता है |

अनादिकाल से वर्त्तमान काल तक न जाने कितनी रचनाएं मसलन वेद, उपनिषद, महापुराण, पुराण, श्लोक, काव्य, उपन्यास, गद्य, चौपाईयां तथा कहानियां समय समय पर अपने युग का प्रतिनिधित्व करती रही हैं | इनके लिए बाल्मिकि, सूरदास, कबीर, रविन्द्रनाथ टैगोर, हरिवंशराय बच्चन, मैथिलीशरण गुप्त, मुंशी प्रेम चंद, महादेवी वर्मा इत्यादि अग्रणी पंक्ति के रचनाकार हुए हैं | गद्य साहित्य में उपन्यासों के बाद मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक कहानियों को हमेशा सराहा गया है | 

श्री चरण सिंह गुप्ता की लघु कहानियों का यह संकलन 'मन की उड़ान-2’ इसी श्रंखला की दूसरी पुस्तक  है | इस रचनाकार ने प्रस्तुत संकलन में अपनी, पहली पुस्तक 'मन की उड़ान' की तरह ही, लेखन प्रतिभा का सशक्त परिचय दिया है | अपनी कहानी "फुर्सत" में वर्तमान युग के नौजवानों को अपने लिए बेहिसाब फुर्सत होने के बावजूद दूसरे के लिए, चाहे वह कोई अपना ही क्यों न हो, कभी फुर्सत न मिलना, "प्रेरणा स्त्रोत" में मनुष्य का अपनी वर्तमान संगत के रंग में रंग कर उसी से प्रेरणा लेकर अपने आप को उसी संगत के अनुसार ढाल लेना ,"जब ठग ठगा गया" में एक मुसाफिर साथी की सूजबूझ तथा चतुराई से एक चतुर ठग का पहचाने जाने पर खुद ही ठगा जाना, "उजाड़" में कभी कभी जनता की भलाई को सोचकर बनाई गई सरकार की योजनाएँ किसी के लिए भी हितकारी नहीं हो पाना, " सहारा" में अपनों के सहारे को तरसते इंसान को जब मुसिबत के समय कोई अनजान भी सहारा दे देता है तो वह व्यक्ति अपने आप को ऋणी मान कर सहारा देने वाले को अपनाने में कोई हिचक नहीं करता,  "संत वाणी" में जताकर कि तृष्णा सब चिंताओं की जड़ है | अतः इसका त्याग ही मनुष्य को मुक्ती दिलाकर सुखी जीवन जीने का रास्ता है, “गौणा” में प्रेयशी द्वारा अपने प्रेमी को ‘आश बिरानी जो करे जीवत ही मर जाए’ का पाठ पढ़ाना, "अब तू ही बता बेटा" में नौकरी में जरूरत से कम पगार मिलने से मजबूरन घूसखोरी की बलवती होती इच्छा,"ममता" में बच्चों का माँ के प्रति अभद्र व्यवहार से भी अपने ममत्व में कोई कमी प्रदर्शित न करना,"तीन चूड़ियाँ" में एक बच्चे की कोमल मानसिकता को बड़े ही मार्मिक ढंग से दर्शाना," ना समझ" में एक अहंकारी मनुष्य को एक सलीके से उसके अहंकार का ज्ञान दिलाकर उसे सदभावना का बोध कराना," नहले पे दहला" में गल्त रास्ते पर अग्रसर होते एक नौजवान को उसी की चाल से मात देते हुए सही दिशा दिखाना तथा "मेरे दादा जी का तारा" में अपने पूर्वजों की आखिरी इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए अपना लक्ष्य निर्धारित करके उसे पूर्णता तक पहूँचाना, पाठक के दिल को छू लेता है | इसी तरह आपकी सभी कहानियों का अंत भी बहुत ही सजीव,कौतुहल पूर्ण एवं बेजोड़ है | आशा है पाठक गण इस संकलन में संग्रहित नूतन कहानियां पढ़कर रचनाकार, श्री चरण सिंह गुप्ता, को लेखन में सफलता की नित नवीन उचाईयों का स्पर्श करने में सहायक बनेंगे |

"भगवान आपको उन्नति के शिखर पर पहुँचने में मदद करे" इसी शुभ कामना के साथ |  


चेतना मंगल 

स्नातकोत्तर  (हिन्दी)

बी. एड.


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