Saturday, October 17, 2020

लघु कहानी (तीन चूड़ियाँ)

    तीन चूड़ियाँ

दास गुप्ता के दो लड़के थे | प्रवीण एवं पवन | दोनों शादी शुदा थे | प्रवीण नारायणा-दिल्ली में रहता था | उसकी पत्नि चेतना थी |  लड़की चक्षु एवं लड़का नयन मात्र 6 एवं 4  वर्ष के थे | पवन गुड़गाँवा 973 सै.23 ए में रहता था | उनके मम्मी-पापा अपनी इच्छानुसार कभी नारायणा तथा कभी गुड़गाँवा रहते थे | परंतु तीज त्यौहार मनाने, दास गुप्ता की पत्नि संतोष, अकसर नारायणा ही पहुँच जाती थी | कारण, गाँव में त्यौहार मनाने का आनन्द कुछ और ही होता है | 

सैक्टरों में न कभी भीड़ दिखाई देती है न वह रौनक हो पाती है | वहाँ के वासी सब अपने में लगे रहते हैं वह भी अधिकतर अपने घरों के अन्दर | वहाँ चाचा, ताऊ, दादा, दादी,बुआ या मौसी शब्दों को सुनने के लिए कान तरस जाते हैं जिनका उच्चारण ही मन में अपने पन का एहसास दिला देता है | वहाँ सभी अंकल तथा आंटी ही होते हैं | वहाँ एक दिखावटी पन सा महसूस होता है | आपस के मेल मिलाप में सच्चे प्रेम भाव का अभाव साफ झलकता है |  थोड़ी बहुत रौनक देखने को मिलती है तो केवल सैक्टरों की मार्किटों में जो अधिकतर् रिहायसी जगह से काफी दूर एकांत में होती हैं |

गाँव की गलियों की हर दूकान पर नयापन दिखाई देता है | जैसा त्यौहार वैसी सजावट | गलियाँ भीड़ से भरी दिखाई देती हैं | हर प्रकार एवं हर मजहब के लोग आते जाते दिखते हैं | गलियों में रेहड़ी पर सामान बेचने वालों का आवागमन बढ जाता है | गाँव का हर वाशिन्दा एक दूसरे को बखुबी जानता है अतः सारे दिन ,राम-राम,नमस्ते तथा दुआ-सलाम चलती रहती है | अतः कुछ न करते हुए भी आपका समय गाँव में एक दूसरे से मिलने मिलाने में ही कट जाता है | 

पहले तो नारायणा गाँव के बाहर एक निमड़ी हुआ करती थी | यह गाँव के बाहर वह जगह थी जहाँ नीम के बहुत सारे पेड़ लगे थे | तीजों के दिनों में इनकी डाल पर रस्सों के झूले डाल दिये जाते थे तथा गाँव की औरतें इन झूलों पर झूलकर भरपूर आनन्द लिया करती थी | औरतें ही क्या नौजवान भी झूलों की ऊँची-ऊँची पींगे बढाकर श्रावण के मेले की रौनक बढा देते थे | गाँव में रहने वाला हर वर्ग का आदमी आपस में ऐसे घुल मिलकर त्यौहार मनाते थे जैसे सभी एक ही परिवार से सम्बंध रखते थे |  परंतु वर्तमान युग की चाल के साथ साथ नारायणा गाँव ने भी करवट बदलनी शुरू कर दी | जैसे सम्मिलित परिवारों का नामो निशान मिट गया, देखते ही देखते नीमड़ी का नामोनिशान भी मिट गया | वहाँ के सब पेड़ काट दिये गए | उनकी जगह ऊंची ऊंची इमारतों ने ले ली | हालाँकि गाँव के बाहर तीजों का मेला अब भी लगता था परंतु अब औरतें और बच्चे उन स्वछ्न्द झूलों का आनन्द लेने से वंचित हो चुके थे | अब तो सबको कृत्रिम तथा बनावटी झूलों पर ही निर्भर रहना पड़ता था | 

आज तीज का पर्व था | औरतों ने व्रत रखा था तथा अपने अपने रसूलों के अनुसार पूजा- अर्चना करने की तैयारियाँ कर रही थी | वैसे तो गावँ की गलियाँ भीड़ी ही थी परंतु केवल दास गुप्ता के घर के सामने गली काफी चौड़ी थी | पूरी गली में यही एकमात्र स्थान था जहाँ रेहड़ी पर सामान बेचने वाले थोड़ी राहत महसूस करते थे | यहाँ वे रेहड़ी को एक तरफ लगा कर कुछ देर के लिये खडे होकर अपनी थकावट मिटाने का प्रयास कर लेते थे | फल,सब्जी,श्रंगार के सामान से भरी रेहडियों पर से लोग सामान खरीद रहे थे | एक ने गली के बीचों बीच रस्सी बाँधकर साडियों की सेल भी लगा दी थी | इतने में आवाज आई तथा गली में गूंजने लगी | चूड़ीवाला ,चूड़ीवाला | चूड़ियाँ लो रंग-बिरंगी चूड़ियाँ | सुन्दर पक्की चूड़ियाँ | पक्के मीने की चूड़ियाँ | चूड़ियाँ लो चूड़ियाँ |     

चूड़ीवाले की आवाज संतोष के कानों में भी पड़ी | उसने पहले अपने हाथों में पहनी चूडियों पर नजर डाली | सभी चूड़ियाँ ठीक ठाक थी | फिर संतोष ने अपनी बड़ी बहू चेतना को आवाज लगाई, “चेतना,चेतना |” 

चेतना जो उपर रसोई में काम कर रही थी, अपनी साड़ी के पल्लू से हाथ पोंछती नीचे आई और बोली, "हाँ मम्मी जी क्या बात है ?” 

“बात क्या बस यह पूछना था कि चूडीवाला आया है | नई चूड़ियाँ पहनोगी क्या ?” 

चेतना अपने हाथों में पहनी चूडियों की तरफ देखते हुए तथा उन पर हाथ मारते हुए, “मम्मी जी देख लो अभी तो ठीक सी हैं |”

संतोष ने अपनी बहू चेतना को समझाते हुए कहा, “ठीक सी ही तो हैं | सारी पूरी तो नहीं | चल नई पहन ले |” 

संतोष एवं चेतना दोनों नीचे गली में आ जाती हैं | चेतना अपने दोनों हाथों में नई चूड़ियाँ पहन कर वापिस उपर आ जाती है | इसके बाद तीज का त्यौहर मनाकर संतोष वापिस गुड्गावाँ लौट जाती है | रक्षाबंधन के त्यौहार पर संतोष फिर जब नारायणा पहूंचती है तो क्या देखती है कि चेतना के हाथों में अब केवल तीन-तीन चूड़ियाँ ही बची थी |

संतोष चेतना के हाथों को देखकर, “चेतना,यह क्या !” 

चेतना संतोष का आशय न समझते हुए उतने ही आश्चर्य से, “क्या मम्मी जी ?”

“तेरे हाथों की बाकी चूड़ियाँ कहाँ गई ? क्या आधी उतार कर रख दी ?”     

“नहीं मम्मी जी |” 

“फिर ?”

चेतना थोड़ासकुचाते हुए, “मुल गई |” 

संतोष थोड़ागुस्सा दिखाकर, “ऐसा कौन सा कैसा  काम करती हो जो 10-12 दिनों में ही तुम्हारी इतनी चूड़ियाँ मुल गई ?”

“मम्मी जी आप भी कैसी बात करती हो | अब मैं कैसे बताऊँ कि कैसे मुल गई |” 

त्यौहार पर संतोष ने अधिक पूछताछ करना अच्छा न समझ चेतना को और नई चूड़ियाँ पहनवा दी तथा अपने काम में लग गई | हालाँकि संतोष के अपने हाथों में केवल तीन तीन चूड़ियाँ ही थी फिर भी उसने और चूड़ियाँ नहीं पहनी क्योंकि अपनी उम्र के अनुसार उसके लिये इतनी चूड़ियाँ ही काफी थी | 

दोपहर का समय था संतोष अपने दिवान पर, जिसे वह तख्त कहती थी, आराम से लेटी हुई थी | उसका पौत्र नयन अपनी अम्मा यानी संतोष के पेट पर बैठा खेल रहा था | 

अपनी अम्मा के पेट पर एक चोट का निशान देखकर नयन ने बडे भोलेपन से पूछा, “अम्मा आपके पेट पर ये क्या हो गया ?”

“कहाँ  बेटा ?” 

नयन अपनी उँगली से अम्मा के पेट की तरफ इशारा करते हुए बोला, “ये देखो आपके पेट पर सफेद सफेद दाग से बहुत हो रहे हैं |” 

संतोष उचक कर अपना पेट देखकर, “वो मैं मोटर साईकल से तेरे बाबा ने गिरा दी थी ना |ये उसी चोट के निशान हैं |” 

नयन ने ऐसा मुँह बनाया जैसे उसे चोट के दर्द का आभाष हो रहा हो, “अम्मा, बहुत चोट लगी होगी |” 

“हाँ बेटा, पर अब तो ठीक हो गई है |”

“अम्मा देखो मेरे भी चोट लग गई है |” 

संतोष ने अपने पोते को ममता दिखाई, “अरे दिखा तो सही कहाँ लगी |” 

नयन ने अपनी एक उँगली उपर उठाते हुए, “अम्मा देखो इस उंगली के उपर |”

संतोष ने नयन की उंगली को देखने के लिये अपने पौत्र का हाथ पकड़ा | उसने अपने पौत्र की उस उंगली का निरीक्षण किया जो उसने चोट लगने के कारण उठाई हुई थी | परंतु संतोष को कोई भी चोट का निशान नहीं दिखाई दिया फिर भी अपने पौत्र का दिल रखने के लिये झूठ्-मुठ ही कहने लगी कि हाय कैसे लगी ? जब से क्यों नहीं बताया ला मूव लगा देती हूँ | जल्दी ठीक हो जाएगी | 

अनायास ही नयन की निगाह अपनी अम्मा के हाथों में पहनी हुई चूडियों पर पड़ी | 

नयन अम्मा के हाथ में पहनी चूडियों को गिनते हुए, “अम्मा जी आपके हाथ में वन, टू, थ्री चूड़ियाँ हैं |”

अम्मा अपने पौत्र का हौसला बढाते हुए, “वेरी गुड़, ओ हो मेरे लाडेसर को तो गिनती भी गिननी आती हैं  |” 

नयन इतरा कर, “अम्मा मैं टूवंटी तक गिन लेता हूँ |” 

“अच्छा, मेरा बेटा तो बहुत होशियार हो गया है |” 

नयन अचानक गम्भीर होकर बोला, “पर अम्मा सुनो |”

“हाँ बेटा बोलो |”

नयन बडे भोलेपन से, “आप तीन चूड़ियाँ ही पहनती हो ?”

संतोष अपने पौत्र के मन की बात जानने के लिए झूठ बोलते हुए, “हाँ पर क्यों ?”  

संतोष की उत्सुकता जागी कि इतना छोटा बच्चा ऐसा सवाल क्यों कर रहा है | उसे अपने पौत्र से ऐसी कोई भी बात सुनने की कतई भी आशा नहीं थी परंतु जब उसने अपने पौत्र के चेहरे को ठीक से निहारा तो उसने महसूस किया कि नयन के दिमाग में सचमुच ही कोई अजीब प्रशन उठ रहा था | अतः संतोष ने नयन से फिर पूछा "हाँ बेटा बोल तू क्या कहना चाहता है ?"

“अम्मा जी आप तीन चूड़ियाँ ही क्यों पहनती हो ?” 

“बस यूँ ही क्योकि मुझे अधिक चूड़ियाँ पहनना पसन्द नहीं |” 

नयन तपाक से, “फिर तो आप भी बच्चों को मारती होंगी |” 

अपने पौत्र की बात सुनकर संतोष सकते में आ गई | वह उठकर बैठ गई | बडे प्यार से उसने अपने पौत्र को गोदी में बिठाया और पूछा, "क्यों बेटा तूने ऐसा क्यों कहा ?”

नयन अपने मन का डर खोलने लगा, “अम्मा जी मेरी मम्मी जी भी तीन चूड़ियाँ ही पहनती हैं |” 

संतोष जिसकी अपने पोते के दिल की बात जानने की जिज्ञासा बढती जा रही थी , “तो क्या बेटा?”

नयन अपने मन की व्यथा को उडेलते हुए बोला, “वे जब चाहे मुझे तथा चक्षु को थोड़ी सी बात पर ही थप्पड़ मार देती हैं |” 

अपने पौत्र की बात सुनकर संतोष ने उसे अपने सीने से लगा लिया और बोली,"नहीं बेटा मैं ऐसी नहीं हूँ | क्या आज तक मैनें कभी तुम्हे मारा है ? नहीं ना |”

नयन भी अपनी अम्मा के सीने से ऐसे चिपक गया जैसे कि अम्मा के मना करने पर उसे बहुत बड़ी राहत मिल गई हो | संतोष को भी अब चेतना की तीन चूडियों का राज पता चल गया था जिन्होंने उसके पोते के कोमल मन में एक प्रकार की गल्त धारणा से दहशत बना रखी थी | 

संतोष ने चेतना को बुला कर आईन्दा से बच्चों पर हाथ उठाने की बिलकुल मनाही कर दी तथा समझा दिया कि हर छोटी-छोटी बात पर मारने से बच्चे ढीठ बन जाते हैं | बच्चों को डराने के और भी कई तरीके हैं | फिर बच्चे इस उमर में शैतानी नहीं करेगें तो कब करेंगे ? और हाँ सुन ((चेतना को शख्त ताकीद करते हुए) आईन्दा से तेरे हाथ में तीन चूड़ियाँ नजर नहीं आनी चाहिये | समझे |

नयन जो अपनी अम्मा की गोदी में दुबका यह सब बातें सुन रहा था बहुत संतुष्ट नजर आया परंतु फिर भी उसका अपनी मम्मी जी की तरफ देखते हुए ऐसा लग रहा था जैसे कह रहा हो मम्मी जी मुझे माफ कर देना मैनें नाहक ही आप पर डाँट पड़वा  दी |      


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