Friday, October 9, 2020

उपन्यास 'अहंकार' (समाधान)

 समाधान 

राम सेवक, पुष्पांजलि, विनीत और विजया | यह चार प्राणियों का सुखमय परिवार था | विनीत की रजनी से शादी के बाद पुष्पांजलि के मन में पनपते अहंकार के कारण अचानक उस घर में कलह का साम्राज्य हो गया और स्थिति इतनी भयावह हो गई कि तलाक की नौबत आ गई |

मेरा इस पंडित परिवार से बहुत लगाव था | मैं हमेशा उस परिवार की समस्या के निवारण के बारे में सोचता रहता था | मेरे पूर्वजों का गाँव वाला मकान अब बहुत घनी आबादी के बोझ से दब गया है इसलिए अपनी सेहत को बरकरार रखने के लिए मैनें अपना एक नया आशियाना गुडगांवा के खुले वातावरण में बना लिया है | इसका यह मतलब कतई नहीं है कि मैनें अपने पैतृक मकान से नाता तोड़ लिया है | आज मैं सुबह सुबह अपने उसी पुराने मकान की पहली मंजिल की खिड़की में बैठा बाहर का नजारा देख रहा था | जब मैं छोटा था तो सामने खुला मैदान था | पेड़ों के झुंड पर तरह तरह के पक्षियों का वास हुआ करता था | मुर्गे की बांग से पता चल जाता था कि सुबह का आगमन हो गया है | सुबह की प्राणदायक समीर की ताजगी तथा चिड़ियों का चहचहाना एक मधुर संगीत बनकर शरीर में स्फूर्ति भर देता था | 

आज वहाँ सामने न मैदान था न पेड़ | जब ये ही नहीं थे तो पक्षी कहाँ से होते | मैदान अब बहुमंजिली इमारतों से भर गया है जिनमें पक्षियों के रैन बसेरों के लिए कोई स्थान नहीं था | घर में मेरी पत्नी शालिनी के अलावा सभी निंद्रा की गोद में समाए हुए थे | वह आई और एक कप चाय मेरे हाथों में थमा कर अपने काम में लग गई | मैनें  अभी चाय की चुस्की ली ही थी कि अचानक मेरे कानों में चिड़िया के चहचहाने ने रस सा घोल दिया | मैं पुलकित तथा अधीर होकर इधर उधर उस संगीतमय आवाज के निर्गम का स्त्रोत ढूढने लगा | 

मैनें देखा कि सामने छज्जे पर रखे फूलों के गमले पर सुन्दर सी दो चिड़िया बैठी थी | उन्हें देखकर मेरी बूढ़ी होती हडियों में शक्ति का संचार हुआ और मैनें झट से उठकर उनके आगे चुग्गा डाल दिया | थोड़ा सा खाकर चिड़िया उड़कर आँखों से ओझल हो गई | अभी मैं यह सोच ही रहा था कि इतने दिनों बाद दिखने पर भी वह जी भरकर उन्हें देख भी न पाया कि दोनों चिड़िया अपने मुहँ में तिनका दबाए फिर वहाँ आ बैठी | अग्रवाल को समझते देर न लगी कि वे अपना घोंसला बनाने की तैयारी में हैं | परन्तु क्या मेरे द्वारा उनको थोड़ी देर पहले डाले गए चुग्गे से प्रभावित होकर वे तिनका लेकर मेरे सामने आकर बैठी थी | 

चिड़ियों का मकसद कुछ भी रहा हो | मैनें उनकी भावनाओं को समझते हुए आनन् फानन में एक घोंसला बनाने योग्य लकड़ी का एक खांचा दीवार पर टांग दिया | मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मैंने देखा कि उसी मुस्तैदी से चिडियों ने उस खांचे में तिनके सजाने शुरू कर दिए | अब अग्रवाल के साथ उसके परिवार के और सदस्य भी उनके कारनामों तथा उनकी परवरिश में रूची लेने लगे थे |

अगले दिन सुबह जब अग्रवाल नें देखा कि अब केवल एक चिड़िया ही तिनके ला रही थी और दूसरी बैठकर धीरे धीरे घोंसले को अंतिम रूप दे रही थी तो उसका माथा ठनका, कहीं दूसरी चिड़िया बीमार तो नहीं हो गई | जब मैंने अपने मन की दुविधा अपनी पत्नी को बताई तो वह मुस्कराते हुए बोली, “मैं मानती हूँ कि घर का बनाना बेशक मर्दों की जिम्मेवारी होती हो परन्तु उसको सजा सवांर कर रहने लायक असली घर बनाना केवल स्त्री यानी मादा ही जानती है |” अपनी पत्नी का सटीक जवाब सुनकर मेरी सब समझ आ गया और आँखों ही आँखों में अपनी पत्नी का धन्यवाद कर दिया | 

चिड़ियों की दिनचर्या देखते देखते मैं और मेरी पत्नी को पता ही न चला कि दस दिन कैसे बीत गए | अब मादा चिड़िया ने उड़ना लगभग बंद सा ही कर दिया था | ऐसा प्रतीत होता था जैसे मादा चिड़िया किसी तपस्या में लीन  थी | केवल नर चिड़िया आती जाती दिखती थी | वास्तव में मादा चिड़िया ने अंडे दे दिए थे तथा वह उनको छाती से लगाए ध्यान मग्न मुद्रा में सेती रहती थी | और एक दिन ऐसा आया जब चिड़ियों ने चीं-चीं, चूं-चूं का आलाप करते हुए पंख फडफडा कर, फुदक फुदक कर, नृत्य की मुद्रा में कोहराम मचा दिया | 

पता चला कि चार चूजे होने की खुशी में चिडियाँ इतना उछल कूद मचा रही थी | धीरे धीरे बच्चे बड़े हुए और एक दिन उड़कर वे न जाने कहाँ चले गए | उनके जाने से मैं बहुत उदास हुआ परन्तु वह यह भांपकर आश्चर्य चकित था कि माँ-बाप चिड़ियों की दिनचर्या में कोई अंतर नहीं आया था | चिड़ियों के ऐसे व्यवहार ने मुझे उनके इस गूढ़ रहस्य पर सोचने को मजबूर कर दिया |

आखिर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि जहां मनुष्य अपने बच्चों से भविष्य की उम्मीदें लगाते हैं वहीं पक्षी अपने बच्चों की निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं | अत: चिड़िया मनुष्य की तुलना में श्रेष्ठ प्रतीत होती है | मेरे मन में ऐसा विचार आते ही मेरा दिमाग अचानक पुष्पांजलि पर केंद्रित हो गया | मैंने सोचा कि इन निरीह चिड़ियों से सबक लेकर अगर पुष्पांजली अपने मन से अपने पुत्र विनीत के प्रति तथा विनीत अपनी माँ के प्रति कुछ दिनों के लिए मोह-ममता का त्याग कर दें तो उनकी वंश बेल फिर से आबाद होने के आसार बन सकते हैं | वैसे भी वर्त्तमान परिवेश में परिवार केवल एक या दो बच्चों में ही सिमट कर रह गया है तथा अधिकाँश बच्चे अपने माता पिता को स्वदेश में अकेला छोड़कर विदेश सेवा में कार्यरत हो जाते हैं | 

चिड़िया की जीवनी से सीख लेकर मुझे एक आशा की किरण दिखाई देने लगी थी कि मैं अपने चहेते विनीत के टूटने के कगार पर खड़े रिस्तो को फिर से बहाल करा सकता हूँ क्योंकि मैं जानता था कि एक आशा की किरण रहने पर भी निराशा पर विजय पाई जा सकती है | मैनें मन में निश्चय कर लिया कि पुष्पांजलि तथा उसके पुत्र को अपने अपने तरीके से समझाने की कोशिश करेगा कि उनके लिए अपना अहंकार तथा जिद छोडकर गृहस्थी की उन्नति की राह पर चलना ही बेहतर होगा |  

अपना मकस कामयाब बनाने के लिए अग्रवाल ने पहले विनीत से उसकी मंशा जानने के लिए बुलाया और सीधा सवाल किया, “मैनें अभी तक पक्की तरह रजनी के बारे में आपकी राय नहीं पूछी है?”

विनीत आश्चर्य से, “ताऊ जी आपका क्या मतलब है?”

“यही कि जैसी आपके घर वालों की सलाह है कि रजनी से तुम्हारा तलाक.......?”

“ताऊ जी यह मेरे घर वालों का विचार नहीं है यह तो रजनी की तरफ से आया है |”

अग्रवाल ने तपाक से पूछा, ‘तो क्या तुम तलाक नहीं चाहते?”

विनीत कुछ असमंजस की स्थिति से उभर कर बोला, “ताऊ जी उसने कारनामा ही ऐसा कर दिया है कि अब उसके साथ रिस्ता रखना जायज नहीं दिखता |” 

“मैं मानता हूँ कि जो रजनी ने किया है वह सरासर हमारी संस्कृति के विरूद्ध है परन्तु क्या उसका ऐसा व्यवहार करने के पीछे आप भी कुछ दोषी नहीं हो?”

अपने ताऊ जी का अपने ऊपर इल्जाम सुनकर विनीत लगभग उछल पड़ा और पूछा, “वह कैसे ताऊ जी ?”

इस पर अग्रवाल ने विनीत को या दिलाने की कोशिश की, “यादद करो वह लम्हा जब मैनें आपको बताया था कि तुम्हारी मम्मी जी ने रजनी को कभी अपनी बहू समझा ही नहीं | वह तो उसके साथ नौकरानी जैसा व्यवहार करती थी | गाली गलौच करना, ताने देना, यहाँ तक कि बिना कसूर के झापट रसीद करना उनकी आदत बन गई थी | आदमी कितना झुक सकता है, कितना सह सकता है, जब पानी सिर से गुजरने लगता है तो हाथ पैर मारने ही पड़ते हैं | वही रजनी ने किया और इसमें उसकी कोई गल्ती नहीं है |” 

विनीत ने तड़प कर कहा, “अपनी सास को चांटा मरने को आप गल्ती नहीं मानते ?”

‘मानता था परन्तु अब नहीं क्योंकि ऐसे परिवेश में रजनी ने सही किया है |”

विनीत चिढ कर, “कैसा परिवेश ?”

“ज्यादा भोले मत बनो | शादी के बाद एक लड़की अपना घर छोड़कर अपनी ससुराल अपने पति पर भरोसा रखकर आती है कि वह उसकी अच्छी तरह देखभाल करेगा परन्तु आपने तो उसके दुःख दर्द का ख्याल तो दूर उससे कभी पूछा भी नहीं |”

“ताऊ जी ऐसी बात नहीं है, मैं उससे पूछता तो था |”

“गल्त, मैनें आपकी आँखों में हमेशा माँ की ममता, बहन का दुलार तथा पिता के भोलेपन का आवरण ही देखा है | कभी भी वह आभा महसूस नहीं कि जो एक पति के चेहरे पर अपनी पत्नी को देखकर आती है |”

विनीत अब थोड़ा खुला, “ताऊ जी मैं इन सबके सामने कैसे पूछता ?”

“अकेले में तो पूछ कर सहानुभूति जाहिर कर सकते थे ? मुझे लगता है कि उन क्षणों में भी आप तो उसे बस शिक्षा ही देते रहे होंगे |”

शायद अग्रवाल की बात से विनीत कुछ सोचने लगा था कि हाँ ऐसा ही था | विनीत को विचारों में खोया देख अग्रवाल ने उसकी तंद्रा तोड़ी, “खैर जो भी अब तक हुआ उसे छोड़ो और बताओ इतना कुछ जानने के बाद आपके दिल में रजनी के प्रति कुछ सहानुभूति पैदा हुई है ?” 

विनीत को समझ नहीं आ रहा था कि वह अग्रवाल के प्रश्न का क्या उत्तर दे | वह असमंजसता के भंवर में गोते लगाता बोला, “ताऊ...जी...परन्तु...मेरी....मम्मी जी ?”

“ देखो विनीत मैं यह नहीं कहूँगा कि छोड़ो उनको परन्तु इतना जरूर कहूँगा कि अपनी गृहस्थी को बरकरार रखने का फर्ज भी तो आपका बनता है ?”

विनीत दुविधा में बोला, “ताऊ जी मैं क्या करूँ ?”

“विनीत आप तो वर्त्तमान के नौजवानों के ख़्वाबों से भली भांती परिचित होंगे और उनके ख़्वाबों को पूरा करने के लिए उनके माँ बाप भी अपनी तरफ से कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते |”

“मैं समझा नहीं ताऊ जी कि आपके कहने का तात्पर्य क्या है ?’ 

मैं तुम्हें समझाना चाहता कि जैसे एक पक्षी का बच्चा समर्थ होने पर अपने सगों की मोह् ममता त्याग कर अपना अलग घर बसा लेता है उसी तरह कुछ दिनों के लिए तुम्हें भी वैसा ही अनुशरण करना पड़ेगा |”

“परन्तु ताऊ जी पक्षियों और मनुष्यों में फर्क होता है ?”

“होता है, बिल्कुल होता है ! परन्तु आप यह तो देखते ही होंगे कि अपने सपनों को साकार करने के लिए आजकल कितने नौजवान अपने मातापिता के साथ रह रहे हैं ?”

“परन्तु ताऊ जी उनकी बात और है वे विदेश में जाकर बस जाते हैं |”

“तो क्या थोड़े दिनों के लिए भी आप ऐसा नहीं दर्शा सकते कि आप भी अपनी उन्नति तथा घर की सुख शांति के लिए अलग रहने पर मजबूर हो ?’ 

“थोड़े दिनों से आपका क्या मतलब है, ताऊ जी ?”

अग्रवाल ने अपने मुख पर आत्म विश्वास का दर्ड भाव लाकर कहा, “यही कि जहां आपकी पत्नी ने गृहस्थी की राह पकड़ी नहीं कि सभी के गीले शिकवे काफूर हो जाएंगे और एक मधुर मिलन हो जाएगा |”

“परन्तु ताऊ जी मैं किसी हालत में अपने अपने माता तथा पिता जी को त्याग नहीं सकता |”

“आपको उन्हें त्यागने के लिए कौन कह रहा है |”

“फिर ?”

 “ मैं तो केवल रजनी को थोड़े दिनों के लिए उनसे अलग रखने की सलाह दे रहा हूँ | आपके ऊपर उनके यहाँ आने जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं रहेगा |”

विनीत विचलित होकर बोला, “मेरी मम्मी जी इस पर राजी नहीं होंगी |”

“आप अपनी मम्मी की चिंता मत करो | उन्हें मनाना मेरा काम होगा | आप अपने विचार बताओ कि क्या तुम रजनी के प्रति सहानुभूति रखते हो या नहीं ?”

अग्रवाल की बात सुनकर थोड़ी देर के लिए ऐसा महसूस हुआ जैसे विनीत की जबान उसके गले में ही अटक कर रह गई थी | वह किंकर्तव्य मूढ़ कुछ पल अपने ताऊ जी को निहारता रह गया | उसके ताऊ जी के बार बार पूछने पर वह खुला, “ताऊ जी आप अगर समझते हैं कि ऐसा करना घर की सभी समस्याओं का निदान है तो मैं इसके लिए तैयार हूँ |”

विनीत का आश्वाशन मिलने के बाद अग्रवाल ने सबसे पहले पुष्पांजलि से बात करना उचित समझा क्योंकि वह जानता था कि राम सेवक और शीला तो उसके पिछलग्गू हैं | अगर पुष्पांजलि मान गई तो वे दोनों अपने आप मान जाएंगे | एक दिन मौक़ा देखकर अग्रवाल अपनी पत्नी के साथ पुष्पांजलि के घर पहुँच गया |

पुष्पांजलि के घर की साज सज्जा के साथ उसका खुद का अपना शारीरिक श्रृंगार पूरे निखार पर था परन्तु चेहरे पर मायूसी झलक रही थी | पता नहीं वह किस कारण थी | कुछ औपचारिकता निभाने के बाद शालिनी ने पूछा, “क्या बात है पुष्पांजलि, कुछ उदास सी दिख रही हो ?”

“जीजी आप तो जानती ही हो कि मेरी उदासी का करण क्या है |” 

“यह तो मैं जानती हूँ कि तुम्हारी चिंता का कारण रजनी है परन्तु हमेशा उसकी सोच कर घुलने से क्या हासिल होगा ?” 

पुष्पांजलि आँखों में आसूं भरकर, “फिर मैं क्या करूँ जीजी ?”

अपनी बात रखने का सही मौक़ा पाकर अग्रवाल बोला, “आपको चिंता के कारण का निवारण ढूँढना चाहिए |”

अग्रवाल की बात से, जैसे बुझते दिये में तेल की एक बूँद फिर रोशनी भर देती है वैसी ही चमक पुष्पांजलि के चेहरे पर झलकी | वह सोचने लगी कि अग्रवाल ने हर पग पर उसकी सहायता तथा नेक मशवरा दिया था परन्तु उसने उनकी अवहेलना करके खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है | इतना होने के बावजूद वे जरूर हमारे घर में सुख शांति लाने का मार्ग अवश्य सुझाएंगे | अत: पूछा, “भाई साहब आपके कहने का क्या तात्पर्य है ?”

“यही कि चिंता तो एक मीठा जहर है जो चिता पर जाने का एक सहज मार्ग है जिसे कोई नहीं अपनाना चाहता |”

“जानती हूँ |”

“जानते हुए भी इसे क्यों अपने गले बांधा ?”

“भाई साहब मुझे कोई शौक नही था वह तो रजनी......?” 

पुष्पांजलि को बीच में ही टोकते हुए, “मै जानता हूँ कि आप अपनी इस चिंता का सारा श्रेय रजनी को ही देने वाली हैं |”

पुष्पांजलि हैरानी से अग्रवाल की तरफ देखकर, “फिर किसे दूं ? यही सत्य है |” 

अग्रवाल ने सीधा प्रश्न किया, “क्या आप इसकी भागीदार नहीं हैं ?”       

अग्रवाल की सुनकर पुष्पांजलि अंदर तक तिलमिला गई | उसके भीतर की भावना उस के मुख मंडल पर तैर गई परन्तु अपने इस रोष की तीव्रता को वह अपनी जबान पर न ला पाई | आहिस्ता- आहिस्ता उसकी खींची हुई मासपेशियों में तनाव कम हुआ और उसने संभल कर पूछा, “भाई साहब यह कैसा प्रश्न है ?”

“वैसे तो यह एक सीधा सा सवाल है फिर भी बटाना चाहता हूँ कि मेरे विचार से अपने इस चिंता के लिए आप खुद भी रजनी के बराबर की हिस्सेदार हैं |”

“भाई साहब वह कैसे?”

अग्रवाल ने पुष्पांजलि को समझाने के लिए पूछा, “आपको यह तो ज्ञात होगा कि क़ानून की नजर में एक आत्म ह्त्या करने वाला व्यक्ति मुजरिम कहलाता है ?”

“हाँ भाई साहब पता है|”

“फिर तो यह भी जानती होंगी कि मनुष्य को आत्म ह्त्या के लिए उकसाने वाला व्यक्ति भी उतना ही दोषी माना जाता है ?”

“हाँ, परन्तु आप यह सब मेरे से क्यों पूछ रहे हैं ?” 

“यही तो मैं आपको समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि आपने अपना हक मानकर रजनी को गाली-गलौच, माँ-बाप के ताने, कामचोर तथा चांटे मार कर इतना मजबूर के दिया कि वह और बर्दास्त न कर सकी और आपके साथ वही कर दिया जो आप उसके साथ करती आई थी |“

“भाई साहब मैं तो उसे सही रास्ते पर लाने का प्रयास कर रही थी |”

“यह प्रयास निर्मलता और अहिंसा से भी किया जा सकता था ?”

पुष्पांजलि ने अपना पक्ष रखा, “क्या आप सोचते हैं कि मैनें ऐसा नहीं किया होगा ?”

“किया होगा परन्तु इसमे आपके अहम् ने हमेशा आपका साथ दिया होगाऔर मन का अहम् केवल अपनी बात ही सही मानता है |”

“भाई साहब आपका कहने का क्या मतलब है ?”

“मैं यह तो नहीं कह सकता कि किस कारण परन्तु इतना जरूर रहा होगा कि ऐसा अनुचित व्यवहार करने के लिए आपके ओहदे ने आपको अवश्य उकसाया होगा |”

अग्रवाल की बात सुनकर पुष्पांजलि चुप हो गई | शायद वह सोचने लगी थी कि वास्तव में ही अग्रवाल की बात सही थी | जैसे लोहे को ढालने के लिए सही समय पर चोट की जाती है ऐसा ही समझ अग्रवाल ने कहा, “देखो पुष्पांजलि गलती तो दोनों तरफ से हुई है और उसकी सूत्रधार आप हो |”

पुष्पांजलि टुकुर टुकुर अग्रवाल की तरफ देखने लगी | अभी तक वह अपने व्यवहार को सही समझ रही थी परन्तु आज पासा पलटता नजर आ रहा था | उसकी गर्दन ह्जुक गई तथा ऐसा महसूस हुआ जैसे वह जमीन में धंसती जा रही है | उसे निश्छल बैठे देख अग्रवाल ने सलाह दी, “अगर आप चाहो तो अभी भी स्थिति को सम्भाला जा सकता है |”

अग्रवाल की बात सुनकर कुछ देर के लिए सूखते पेड़ों पर वर्षा का पानी पड़ने के बाद जैसी बहार पुष्पांजलि के चेहरे पर दिखाई दी | फिर उत्सुकतावश उसने पूछा, “वह कैसे भाई साहब, मैं तो अब किसी कीमत पर उसे अपने साथ रखूँगी नहीं ?”

अग्रवाल ने तपाक से कहा, “बिल्कुल यह अनहोनी तभी होनी संभव होगी जब रजनी फिलहाल आपसे अलग रहेगी  |”  

पुष्पांजलि ने तमक कर पूछा, “फिलहाल से आपका मतलब क्या है ?”

अग्रवाल ने फ़िलहाल, फिलहाल का मतलब न बताकर कहा, “पुष्पांजलि, समय बड़ा बलवान होता है, भविष्य कौन जानता है | दोस्त दुश्मन बन जाते हैं और जिसे आप दुश्मन समझते हैं समय पर जान लेने की बजाय जान बचा देता है |”

अग्रवाल की बात का मतलब समझ पुष्पांजलि ने बेबाक शब्दों में कहा, “ भाई साहब चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए मै अब अपने दुश्मन को दोस्त कभी नहीं बनाऊँगी |”

“मैंने ऐसा करने को कब कहा है ?”

पुष्पांजलि ने थोड़ी देर के लिए असमंजसता की स्थिति में रहकर पूछा, “भाई साहब वैसे आपकी मंशा क्या है ?”

“मेरी मंशा है कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे |”

“आपका मतलब मेरी समझ से बाहर है |”

“मेरा तात्पर्य है कि तलाक की बजाय विनीत की गृहस्थी बस जाए |” 

“भाई साहब यह कैसे संभव है ?”

“आपका असम्भव संभव हो सकता है अगर आप दोनों से हुई गलतियों का प्रायश्चित दोनों अपने अपने तरीके से करने को तैयार हो जाएँ ?” 

पुष्पांजलि आश्चर्य से, “वह कैसे ?”   

“पुष्पांजलि आपको यह त्याग करना पड़ेगा कि आप रजनी और विनीत को अपने से अलग रहने पर सहमत हों |”

पहले तप अग्रवाल का सुझाव सुनकर पुष्पांजलि विचलित सी दिखाई दी फिर साहस करके पूछा, “क्या इसके लिए विनीत मान जाएगा ?”

पुष्पांजलि को समझाते हुए अग्रवाल ने कहा, “हालाँकि विनीत तो आपके लिए हमेशा बच्चा ही रहेगा परन्तु यह भी सत्य है कि वह बड़ा हो गया है, वह भी अपनी गृहस्थी संभालने में समर्थ है |”

फिर अग्रवाल ने चिड़िया के बारे में अपने विचार पुष्पांजलि को सुनाते हुए कहा, “ एक चिडिया की तरह आप का कुछ दिनों के लिए अपनी मोह ममता का त्याग करना ही आपका प्रायश्चित तथा परिवार के लिए हितकर होगा |”

पुष्पांजलि मायूस होकर तथा आँखों में आंसू लाकर बोली, “भाई साहब आप ये कैसी बातें कर रहे हो | मैं विनीत को देखे बिना कैसे जीवित रह पाऊँगी ?”

पुष्पांजलि के ऐसे विचारों ने इतना तो जता दिया था कि वह अपने पुत्र के गृहस्थ जीवन को सुखमय तो देखना चाहती थी परन्तु रजनी को देखना पसंद नहीं करती थी | यही सोच, अग्रवाल ने उसे भरोसा दिलाया, “विनीत को आपके पास आने की कोई पाबंदी नहीं होगी और मैं यह सुनिश्चित करूँगा कि विनीत अलग रहते हुए भी आपसे मिलने रोज जरूर आएगा |” अग्रवाल के कथन ने पुष्पांजलि के मन को बहुत सांत्वना दी | उसने थोड़ी देर सोचा और ऐसा महसूस हुआ जैसे उसने अपने दिल पर पत्थर रखकर कहा हो, “भाई साहब मुझे कोई एतराज नहीं है अगर विनीत इस बात पर राजी हो जाता है |” 

राम सेवक तो पत्नी भक्त था ही अत: अग्रवाल को उसकी हामी की कोई चिंता नहीं थी | अब उसे रजनी तथा उसके घर वालों का विचार जानना था | इसके लिए अग्रवाल ने विनीत से रजनी का फेसबुक कोड लेकर उसके पिता जी को सन्देश भेजा, “नमस्कार, मुझे तो आप जानते ही हैं | मुझे विनीत और रजनी के गृहस्थ जीवन के अवरोध का पता चला | तलाक तो आख़िरी समाधान होता है | अगर आपको मुझ पर विश्वास हो तो क्या मैं रजनी से इस बारे में कुछ बात करके उनके मधुर मिलन का साक्षी बनने की कोशिश कर सकता हूँ ?”

रजनी ने अपने पिता से सलाह मशवरा करके अपने विचार प्रकट किए, “ताऊ जी चरण वन्दना | मैंने आपको वहाँ रहते हुए भी बताया था कि उस घर में मेरे साथ कैसा व्यवहार किया जाता है इसलिए अब मैं उस घर में वापिस नहीं आऊँगी |”

“रजनी मैं आपको उस घर में आने की कतई नहीं कहूँगा परन्तु आप अपने पति के घर में तो आने को राजी हो ?”

रजनी अग्रवाल के समाधान से नावाकिफ, “क्या मतलब , ताऊ जी ?”

“मतलब यह कि आप और विनीत उस घर से दूर अपनी गृहस्थी अलग बसाओगे |”

रजनी के घर वालों ने दो तीन दिनों का समय मांगकर जवाब दिया, “आपके भरोसे पर हम अपना केस वापिस ले रहे हैं | आप विनीत को रजनी को लिवा ले जाने के लिए कभी भी भेज सकते हैं |”

रजनी के घर वालों का जवाब पाकर अग्रवाल को बहुत शकुन मिला | उसने आनन् फानन में विनीत के लिए एक मकान किराए पर लिवा दिया | उसमें चूल्हे चौके का हर सामान रखवा दिया | विनीत रजनी को लिवा लाया | उनकी गृहस्थी का नया सत्र शुरू हो गया | अभी विनीत के घर में खाने पीने के राशन के अलावा सुख सुविधा का कोई सामान नहीं था | मसलन सोने के लिए पलंग न होकर कमरे के एक कौने में जमीन पर ही एक गद्दा बिछा था, ए.सी.की तो बात दूर कूलर भी नहीं था, ठन्डे पाने के लिए फ्रिज न होकर मिट्टी के घड़े का सहारा था, टी.वी. की पूर्ति मोबाईल फोन से हो रही थी इत्यादि | अभी विनीत कर भी क्या सकता था |उसके पिता रिटायर हो चुके थे तथा उनको पेंशन न के बराबर मिलती थी, माँ बीमार रहती थी तथा उसकी बीमारी पर काफी खर्चा झेलना पड़ता था, छोटी बहन शादी के लिए तैयार बैठी थी, मकान बनवाने के लिए कर्ज की किश्त का भुगतान और अब दो जगह की गृहस्थी चलाने के बाद भविष्य के लिए वह कुछ बचा नहीं पाता था | ऐसी स्थिति में वह अपने नए घर में सुख सुविधा के सामान के बारे में सोच भी नहीं सकता था |


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