Saturday, October 10, 2020

उपन्यास 'अहंकार' (मधुर मिलन)

 मधुर मिलन 

दिन गुजरने लगे | विनीत हर रोज दिन में जब भी समय मिलता अपने माता पिता से मिल आता था | जब भी विनीत अपनी माँ के पास जाता था तो उनके चेहरे पर एक शुकून के साथ विषाद की रेखाएं साफ़ नजर आती थी परन्तु दोनों उसे चुपचाप सहन कर जाते थे | एक दिन गर्मियों के मौसम में जब विनीत अपनी माँ से मिलाने गया तो उसके चेहरे पर पसीने की बूँदें देखकर पुष्पांजलि ने कूलर चलाने को हाथ बढ़ाया | इस पर विनीत के मुहँ से निकला, “मम्मी जी इसकी जरूरत नहीं है मुझे पानी दे दो |” 

और जब पानी के लिए पुष्पांजलि ने फ्रिज की तरफ हाथ बढ़ाया तो विनीत ने टोका, “मम्मी जी अब इसकी आदत नहीं रही मुझे ताजा पानी ही दे दो |”

विनीत के शब्द सुनकर  पुष्पांजलि का मन रो उठा | उसे अपने व्यवहार पर ग्लानी महसूस होने लगी कि उसके अपने अहम् के कारण उसके श्रवण जैसे बेटे को कितने कष्ट उठाने पड़ रहे हैं | परन्तु थोड़ी देर में ही त्रिया चरित्र का अहम् अपनी भावनाओं पर हावी हो जाता और फिर पुराने ढर्रे के साथ खिसकने लगता | 

कभी कभी विनीत रजनी को साथ लेकर अग्रवाल  के यहाँ हो आया करता था |इसी तरह पाँच छह महीने गुजर गए |एक दिन विनीत ने अपने ताऊ जी से पूछा, “ताऊ जी अब और यह कितने दिन सहना पड़ेगा ?”

अग्रवाल ने विनीत के मन की व्यथा भांपकर उल्टा प्रश्न किया, “क्या आपने तैयारी कर ली ?”

अपने ताऊ जी का आशय समझ विनीत के चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कान बिखर गई और उसने अपनी ताई जी की तरफ ऐसे देखा जैसे कह रहा हो, “ताई जी आप ही बता दो कि मेरी और से ताऊ जी के मन की माफिक तैयारी कर ली गई है |”

उन दोनों की भाव भंगिमा देखकर अग्रवाल ने जब अपनी पत्नी की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा तो उन्होंने सकारात्मक भाव से सिर हिला दिया |

अग्रवाल रोमांचित हो गया और खुशी में जोर से बोला, “अरे यह भी कोई चुपचाप या इशारों में बताने की बात है अपना मुहँ खोला और ढंग से बताओ |”

शालिनी ने हंसते हुए बताया, “हाँ जी हमारी रजनी उम्मीद से है |”

अग्रवाल मूढ़ में था अत: पूछा, “बस इतना ही या कुछ और ?’

शालिनी असमंजस से, “और क्या ?’

अग्रवाल ठुमक कर तथा हाथ नचाकर, “यही कि हमारा विनीत बाप बनने वाला है” और दोनों ठहाका लगाकर हंस पड़े | इसमें विनीत ने भी साथ दिया और रजनी भी मुस्कराए बिना न रह सकी |  

अग्रवाल ने अपने प्लान की दूसरी सीढ़ी पार कर ली थी | अब उसे यह सूचना पुष्पांजलि तक पहुंचानी थी | उसने इसके लिए अपने घर सत्यनारायण भगवान की पूजा का आयोजन  किया | जिसके लिए अपने पड़ोसियों के साथ पुष्पांजलि और विनीत को भी निमंत्रण दिया | विनीत को ताकीद कर दी कि वह रजनी को साथ लेकर पूजा शुरू होने के थोड़ी देर बाद पहुंचे | रजनी को आते देख पुष्पांजलि कुछ विचलित दिखाई दी | वह सचेत होकर बैठ गई और ऐसे दिखाने लगी जैसे उसने कुछ देखा ही नहीं | पूजा समाप्त होने के बाद जब शालिनी ने जब पंडित जी से अनुरोध किया कि वह रजनी को पुत्रवती होने का आशिर्वाद दें तो पुष्पांजलि के कान खड़े हो गए | आशीर्वाद देने के बाद पंडित जी ने जब रजनी को वहाँ बैठी औरतों के पैर छूकर उनका भी आशीर्वाद लेने की सलाह दी तो पुष्पांजलि के शरीर में भारी हलचल होने लगी | वह पूजा स्थल से उठकर जाने लगी तो शालिनी ने धीरे से कहा, “रजनी को न सही अपने खून व वंश बेल के भागीदार को तो आशीर्वाद देने का तुम्हारा हक बनता है |”

कहते हैं मूलसे ज्यादा प्यारा ब्याज होता है | जब से पुष्पांजलि को यह भनक लगी थी कि उसकी पुत्रवधू गर्भवती है उसकी निगाह रजनी के पेट पर ही टिकी थी जैसे उसकी कोख में कोई खजाना भरा है तथा अगर उसकी निगाह वहाँ से हटी तो उसे कोई चुरा न ले जाए | पुष्पांजलि के चेहरे के भावों से स्पष्ट आभाष हो रहा था कि पुष्पांजलि का रोम रोम पुलकित हो रहा है | उसने शायद मन ही मन आशिर्वाद देकर अपने ब्याज को अपना भी लिया हो परन्तु मन मन भाऊँ मूढ़ हिलाऊँ को चरितार्थ करते हुए उसने शालिनी के कहने से, जब रजनी अपनी सास के चरण स्पर्श करने को झुकी तो लोक दिखावे के लिए मरे हाथों से उसे आशीर्वाद देने का दिखावा कर दिया |

पुष्पांजलि की मन:स्थिति को भांपकर अग्रवाल ने अंदाजा लगा लिया था कि आज से वह अपने परिवार में आने वाले नवजात की सेहत को सुधारने के लिए हर संभव कोशिश करेगी | परन्तु रजनी और उसके बीच सीधा सम्बन्ध न होने के कारण यह ठीक से मुमकिन नहीं हो पाएगा | अग्रवाल ने उन दोनों के बीच पड़ी दरार को पाटने के लिए राम सेवक का सहारा लेना ठीक समझा | उसने उसे अच्छी तरह समझा दियाकि उसे क्या करना है | 

उस दिन के बाद पुष्पांजलि रोज विनीत का बेसब्री से इंतज़ार करने लगी | वह विनीत के लिए कुछ न कुछ नया तथा स्वादिष्ट व्यंजन बना कर तैयार रखने लगी | आते ही वह उसे परोस देती और खाने को बाध्य करती | विनीत के मना करने पर भी वह उसकी ठाली में और दाल देती | राम सेवक मुस्कराता हुआ पुष्पांजलि के बदलते आचरण को निहारता रहता | आखिर मरण जब वह नहीं खा पाता तो अग्रवाल के सिखाए अनुसार वह विनीत को सलाह देता, “बेटा इसे अपने साथ ले जाओ घर जाकर भूख लगे तो बाद में खा लेना |”

पुष्पांजलि भी राम सेवक के सुझाव पर कोई आपत्ति न करती बल्कि उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव उभर आते थे कि उसकी मन की मुराद पूरी करने में उसका पति उसका साथी बन गया था | अपने घर के चिराग के आगमन की लगन ने उसे इतना प्रभावित किया कि वह अपने स्वास्थ्य की सुधबुध भूल्गई और समय पर दवाई न लेने के कारण बीमार हो गई | 

मूर्छित अवस्था में पुष्पांजलि को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा | विनीत और विजया नौकरीपेशा होने के कारण अस्पताल में अधिक समय नहीं दे पाते थे | राम सेवक अकेला कैसे संभाल सकता था | इसलिए रजनी को हाथ बटाना पड़ा | रजनी सुबह खाना बनाकर ले जाती, अपनी बेबसी को दरकिनार कर, बेखबर बिस्तर पर लेटी अपनी सास की दोपहर तक सेवा करती तथा भगवान से उनकी मंगल कामना की प्रार्थना करती रहती | धीरे धीरे पुष्पांजलि के सवास्थ्य में सुधार होने लगा | परन्तु जब से पुष्पांजलि ने आखें खोली थी उसने एक बार भी रजनी को अपने आस पास नहीं देखा था | प्रत्येक दिन उसके लिए घर का ताजा खाना आ रहा था, धुले एवम साफ़ कपड़े आ रहे थे, फल आ रहे थे परन्तु वह यह न समझ पा रही थी कि यह सब कौन कर रहा था | वह सुबह से शाम तक शून्य में टकटकी लगाए सोचती रहती थी | एक दिन शाम के धुन्धल्के में उसने खिड़की से एक साए को गुजरते देखा | उसने अपने दिमाग पर जोर देकर सोचा तो उसे वह परछाई रजनी जैसी दिखाई दी | पुष्पांजलि ने फ़टाफ़ट नर्स को बुलाया और पूछा, “वह कौन थी जो अभी अभी उस खिड़की के पास से गुज़री थी ?”

“वह आपकी सेविका थी |”

नर्स की बात सुनकर पुष्पांजलि अचम्भित थी, “मेरी सेविका |”

“हाँ मैडम जब आप होश में नहीं थी तो दिन में आपकी सेवा करने के लिए उन्होंने एक सेविका रखी थी |”

“तो क्या जो अभी खाना देकर गई थी वह वही सेविका थी ?”

“हाँ मैडम |”

“तो वह अंदर क्यों नहीं आई ?”

“पता नहीं मैडम जब से आपको होश आया है तब से वह केवल खाना देने ही आती है और बाहर पकड़ा कर चली जाती है |”

“ऐसा क्यों ?”

नर्स इसका कोई कारण नहीं बता पाई | उसने केवल इतना बताया कि वह सेविका गर्भवती होने के कारण खुद बेबस थी फिर भी उसने जी  जान से आपकी सेवा की है | यह कहना उचित होगा कि उसकी निश्छल सेवा के कारण ही आज आप स्वस्थ हो पाई हैं |

नर्स की बात सुन पुष्पांजलि का मन उसके प्रति अपने व्यवहार को सोचकर ग्लानी से भर गया | फिर भी अपने अपमान तथा अहम् का दंश भुलाना उसे भारी पड़ रहा था | वह मन ही मन बुदबुदाई, “रजनी तुम हमारे वंश बेल की जन्मदात्री बनोगी जिसके लिए मैं सदैव तुम्हारी आभारी रहूंगी परन्तु तुमने मेरे दिल पर जो जख्म दिया है मै उसे भी कभी भुला नहीं पाऊँगी |” और व्यथा से उसकी आँखें भर आई | 

स्वस्थ होने के बाद घर में प्रवेश करते ही पुष्पांजलि ने रामसेवक से प्रशन किया, “अस्पताल में आपने अकेले मेरी देखभाल कैसे की होगी ?”

“मैं अकेला थोड़े ही था घर के सभी सदस्यों ने आपका पूरा ख्याल रखा था |’

“परन्तु विनीत और विजया तो अपनी नौकरी पर जाते होंगे ?”

राम सेवक आँख चुराकर, “हाँ |”

“तो फिर खाना वगैरह, कपड़े धोना और सारा दिन अस्पताल में मेरी सेवा सुश्रा करना, कैसे कर पाते थे ?”

“आप यह सब क्यों पूछ रही हो ? ऐसे समय में कुछ तो तकलीफ उठानी ही पड़ती है |”

पुष्पांजलि ने टोंट मरने के लहजे में तथा सिर हिलाकर रामसेवक के चेहरे पर नजरें गडाकर कहा, “हाँ यह तो बात है परन्तु कई बार आस पडौस  वालों की सहायता की भी जरूरत पड़ जाती है |”

“आपने बिल्कुल ठीक कहा और फिर समाज होता किस लिए है ?’

“तो आपने समाज के किस व्यक्ति का एहसान मोल लिया ?”

इतने में अग्रवाल ने घर में प्रवेश करते हुए पूछ लिया, “राम सेवक जी घर में सब कुछ तो है अब पुष्पांजलि किस वास्तु के मोल भाव की बात कर रही हैं ?”

अग्रवाल को आया देख राम सेवक को बहुत सांत्वना मिली |वह बोला, “पुष्पांजलि पूछ रही थी कि अस्पताल में उसकी देखभाल के लिए किस किस का एहसान मोल ले लिया |”

अग्रवाल को पुष्पांजलि की सोच पर बहुत तरस आया और फिर अपने में संयम रखकर बोला, “पुष्पांजलि, अपनों द्वारा की गई सेवा एहसान मोल लेना नहीं मानी जाती |”

पुष्पांजलि ने दुखी होकर कहा, “परन्तु भाई साहब , मैं जिसका मुंह भी देखना पसंद नहीं करती उससे ही मेरी सेवा कराने का क्या औचित्य था ?’

अग्रवाल ने बड़ी निर्मलता से समझाया, “देखो पुष्पांजलि आप तो अपने घर की आर्थिक स्थिति से भली भाँती वाकिफ हो |आपकी देखभाल के लिए अलग से नर्स लगाने का मतलब था लगभग तीन हजार रूपये | और ये बहुत मायने रखते और वह घर के दूसरे काम भी नहीं करती | रही बात तुम्हारे उसका मुहँ न देखने की तो रजनी ने यह नौबत ही नहीं आने दी |”      

पुष्पांजलि रोकर बोली, “परन्तु भाई साहब रजनी ने जो मुझे दर्द दिया है उसकी वजह से उससे मैं कोई रिस्ता नहीं रखना चाहती |”

“पुष्पांजलि आप उससे रिस्ता रखो या न रखो परन्तु फिर भी वह आपके पौत्र की माँ तो कहलाएगी ही |”

पुष्पांजलि गुस्से में हाथ मटका कर, “मुझे इससे कोई सरोकार नहीं है |”

“कैसी बात करती हो पुष्पांजलि आप इस सत्य को कैसे झुठला सकती हो ?”

पुष्पांजलि झुंझला कर, “भाई साहब मैं उसके साथ नहीं रह सकती | उसने मेरे आत्म सम्मान को बहुत बड़ी ठेस पहुंचाई है |”

अग्रवाल को उसके कहने से उसे घेरने का मौक़ा मिल गया और चोट की, “पुष्पांजलि आपके साथ यह तो सौ सुनार की एक लोहार की कहावत चरितार्थ हुई थी |”

पुष्पांजलि ने अग्रवाल की बात का आशय समझ कर कंपकपाती आवाज में पूछ, “मतलब ?”

“मतलब यह कि आपने तो उसके आत्म सम्मान पर कई बार वार किया परन्तु आपके मुताबिक़ उसने एक बार में ही अपने आत्म सम्मान की सारी चोटों का बदला ले लिया |’

पुष्पांजलि निरूत्तर चुप बैठी रह गई |             

अग्रवाल ने कहना जारी रखा, “पुष्पांजलि, अक्सर मनुष्य विवेकहीनता और पशु प्रवृति की स्थिति में अपराध कर बैठता है परन्तु जब उसकी आत्मा और विवेक दोबारा प्रबल होकर अपराध की विवेचना करते हैं तो मनुष्य अपराध बोध से भर जाता है | परन्तु एक अहंकारी अपनी करनी का मंथन करके अपराध बोध तो दूर अपने को सही मानकर वह बआर बार अपनी गलती दोहराता रहता है | यही आपने किया है | पुष्पांजलि को बुत की तरह बैठे देख शालिनी बोली, “देखो पुष्पांजलि अग्रवाल जी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं | हालाँकि हमारी संस्कृति बहू का ऐसा व्यवहार बिल्कुल बर्दास्त नहीं करती परन्तु वर्त्तमान के प्रचालन और परिवेश में बड़ों का आप जैसा व्यवहार भी तो कबूल नहीं है | इसलिए आप दोनों ही बराबर की कसूरवार हो | मेरे विचार से अब दोनों अपना अपना प्रायश्चित समझ कर सभावना की राह पर आ जाओ |”

पुष्पांजलि के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह इस निर्णय से खुश नहीं थी | इसलिए अग्रवाल को फिर बोलना पड़ा, “पुष्पांजलि स्थिति को समझो | विनीत बेकार में हर महीने छ: हजार रूपये किराया दे रहा है जबकि आपके मकान की एक मंजिल खाली पड़ी है | उसकी मजबूरी है कि उसको हमेशा दो नाकों में सवार रहना पड़ता है | रजनी की हालत ऐसी है कि कभी भी रकम की जरूरत पड़ सकती है | आप की सेहत भी ठीक नहीं रहती |”

अबकी बार पुष्पांजलि ने मुंह खोला और धीरे से कहा, “परन्तु भाई साहब, किसी हालत में भी मैं उसके साथ नहीं रह सकती |”      

अग्रवाल उसकी बोलने की नरमाई से समझ गया कि वह उसके निर्णय पर मान जाएगी अत: कहा, “साथ रहने को कौन कह रहा है ?”

“फिर ?”

अग्रवाल ने अपना सुझाव दिया, “रजनी को विनीत के साथ मकान के एक मंजिल पर रहने दो ?’

पुष्पांजलि ने बुरा सा मुहँ बनाकर जैसे उसका जायका बिगड गया था, “भाई साहब यह कैसे मुमकिन है ?”

हालाँकि पुष्पांजलि के हावभाव से अग्रवाल ने अंदाजा लगा लिया था कि अपने आने वाले वंशज को अपनी देखरेख में ही इस संसार में पदार्पण होते देखने की इच्छुक थी फिर भी अपने अहम् के चलते वह अपने मन की कमजोरी जाहिर करना नहीं चाहती थी | यही सोचकर कि पुष्पांजलि की बात भी रह जाए और विनीत घर में भी आ जाए अग्रवाल ने राम सेवक से पूछ, “क्यों भाई साहब मेरा सुझाव उचित है या नहीं ?”

अचानक उस पर आई जिम्मेदारी से राम सेवक ने पुष्पांजलि की तरफ देखा और जब उसने पाया कि वह नीची गर्दन करके बैठी है तो उसकी सहमती समझ कहा, “भाई साहब आप तो हमेशा से ही हमें नेक सलाह देते आए हैं | जिस जगह हम आज बैठे हैं यह सब आपकी कृपा के कारण ही हमें नसीब हुआ है | आपके अथक प्रयासों से ही विनीत गृहस्थी की राह पकड़ पाया है | आप मेरे से क्या पूछते हो | जैसा आपको मुनासिब लगे हमें मंजूर होगा | 

पुष्पांजलि का बीच में न बोलना उसकी पक्की सहमती दर्शा गई | अत: विनीत का रजनी के साथ उस घर में आना तय हो गया | थोड़े दिनों तक दिखावे की घृणा को, रजनी की खोख में पल बढ़ रहे वंशज ने अपने साथ, कुछ हद तक धीरे धीरे सदभावना में परिवर्तित कर दिया | नवजात अनमोल की वजह से रजनी और पुष्पांजलि अपने बीच बनी अहम् की दीवार को गिराकर उसके पालन पोषण में ही लगी रहती हैं | आपसी मधुर मिलन से अब पुष्पांजलि का एक सम्मिलित सुखी परिवार है |


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