Tuesday, October 6, 2020

उपन्यास 'अहंकार' (अहंकार का पदार्पण)

 


अहंकार का पदार्पण 

वह बोलती थी तो ऐसा लगता था जैसे उसके बोले हर शब्द से फूल झड़ रहे हों | वह कुछ काम करती तो बड़े कायदे एवम सलीके से करती थी | उसका व्यवहार प्रत्येक के साथ बिना किसी भेदभाव के सज्जनता तथा आदर सत्कार लिए होता था | घर की सफाई ऐसी कि हर वस्तु उसके उचित स्थान पर साफ़ सुथरी रखी मिलती थी | उसका रंग गोरा, कद लम्बा, काले घुंघराले बाल, कजरारी आँखे, भरा-गढा शरीर ऊपर से मतवाली चाल, रंग रूप ऐसा कि उसको देखते ही सामने वाला उसकी और आकर्षित होए बिना रह ही नहीं सकता था | घर का पूरा कार्य स्वयं निबटाने पर भी उस पर थकावट हावी नहीं हो पाती थी | उसका चेहरा हमेशा मंद मंद मुस्कान लिए सुबह के ताजा गुलाब की तरह रौनक लिए रहता था | कहने का मतलब यह कि वह अपने नाम को हर मायने में सार्थक करती प्रतीत होती थी | अर्थात पुष्पांजली अपने बोल, कर्म, वचन एवम व्यवहार से वास्तव में ही हर दृष्टि से पुष्पांजली ही प्रतीत होती थी |

ईश्वर की अनुकम्पा से उसकी अपनी कोख से, एक लड़का और एक लड़की के रूप में, दो सुन्दर सुमन अवतरित हुए ही थे | भगवान की उसके ऊपर असीम कृपा थी कि दोनों बच्चे पल बढ़ कर अच्छी शिक्षा पाकर नौकरी भी पा गए | जैसे माली अपने चमन में पेड़ पौधों पर लगते फल एवम फूलों को दिन प्रतिदिन बढता देखकर प्रसन्नता महसूस करता रहता है उसी प्रकार पुष्पांजली भी अपने बच्चों को जवान होते देख खुशी से झूमती रहती थी | धीरे धीरे उसने अपना एक आशियाना भी बना लिया था | 

समय के साथ पुष्पांजली ने अपने परिवार की बेल बढाने हेतू सोचना शुरू कर दिया | बड़ा लड़का विनीत २४ वर्ष का हो चुका था तो लड़की विजया २२ बसंत देख चुकी थी | पुष्पांजली ने अपने पति राम सेवक से विचार विमर्श करते हुए अपना मत प्रकट किया कि कोई अच्छा सा लड़का खोज कर पहले अपनी लड़की विजया की शादी कर दी जाए | 

पुष्पांजली अक्सर बीमार सी रहती थी | और उसके पति राम सेवक एक पत्नी भक्त व्यक्ति थे | आलम यहाँ तक था कि अगर पुष्पांजली को कभी सिर में मामूली दर्द भी महसूस होता था तो सेवक राम अपनी पत्नी की सेवा सुश्रा के अपने काम से भी छुट्टी कर लिया करता था | उस दिन वह घर पर रह कर चौका-चूल्हा के साथ साथ कपड़े धोना एवम घर की साफ़ सफाई तक का पूरा काम बखूबी निभाता था | अपनी पत्नी के प्रति ऐसी आस्था रखने वाले पति ने अपनी पत्नी को आराम मुहैया कराने हेतू उसे राजी कर लिया कि पहले वे अपने लड़के की ही शादी करेंगे |

पुष्पांजली और राम सेवक उत्तर प्रदेश और बिहार बार्डर के रहने वाले थे | वे देहली में ३०-३१ साल पहले आकर  बसे थे | उनके दोनों बच्चे देहली में ही पैदा होकर पले बढे तथा पढकर अच्छी नौकरी पा गए थे | इस लिहाज से विनीत के लिए देहली से ही जाना पहचाना एक से बढकर एक अच्छा रिस्ता मिल सकता था परन्तु इसके विपरीत अपने घर में दूसरी औरत के आने मात्र के विचार से, चाहे वह उसकी अपनी ही पुत्रवधू ही आने वाली थी, पुष्पांजली का अहम उसके आड़े आ गया |

पुष्पांजली का शरीर सफ़ेद गुलाब की तरह गौरा था.| उसके नयन नक्श में आकर्षण था | वह देखने में सुन्दर एक हूर की परी की तरह मालूम पड़ती थी | कहते हैं की कोई भी व्यक्ति सर्व गुण सम्पन्न नहीं होता | कुछ न कुछ कमी उसके आचरण से जुड़ी ही रहती है | पुष्पांजली, एक सर्व गुण सम्पन्न नारी कहलाने एवम दिखने के बावजूद, अपने को अपने रूप लावण्य के अहम से बचा न सकी, वह अपनी त्रिया बुद्धि पर पार न पा सकी |

पुष्पांजली इस ख्याल से ही काँप उठी कि कहीं उसके लड़के विनीत की भार्या किसी मायने में भी उससे बीस न आ जाए | क्योंकि उसे डर था कि अगर ऐसा हुआ तो कहीं ‘मैं भी रानी तू भी रानी कौन भरेगा घर का पानी’ की समस्या पैदा न हो जाए |       

राम सेवक तो पत्नी भक्त था ही उसके बेटे विनीत की मातृ भक्ति उससे भी असीम थी | इसका फ़ायदा उठाते हुए पुष्पांजली ने अपनी भावनाओं को अमली जामा पहनाने के प्रयास शुरू कर दिए | उसने जल्दी जल्दी बीमार होने का बहाना करना प्रारंभ कर दिया | अब कभी उसे भयंकर सिर दर्द होने लगा, कभी पेट दर्द तो कभी आवाज गुम हो जाने की शिकायत | राम सेवक और उसका बेटा उसकी तीमारदारी में दिन बिताने लगे | जब पुष्पांजली ने यह महसूस कर लिया कि उसने अपनी बीमारी का पक्का सिक्का जमा लिया है तो एक दिन वह अपने पति से बोली, “क्यों जी अपने विनीत के लिए आपको कैसी लड़की पसंद है ?”

“बहू के साथ तुम्हारा समय ज्यादा बीतेगा अत: तुम देखो कि कैसी होनी चाहिए |”

“यहाँ देहली से लोगे तो उसके तो नखरे ही अलग होंगे |”

राम सेवक ने अपनी पत्नी की हाँ में हाँ मिलाते हुए, “बात तो तुम्हारी सही है |”

“अगर नौकरी वाली मिली तो घर का काम कौन करेगा क्योंकि उसके पास तो इन कार्यों के लिए समय होगा नहीं |”   

“तुम्हारी यह बात भी सही है |”

“मेरी बीमारी की वजह से मुझ से पूरा काम होगा नहीं |”

“तुम्हारी यह बात भी सही है |”

पुष्पांजली कुछ तैश में, “यह भी सही है, वह भी सही है किए जा रहे हो, सुझाव कुछ देते नहीं |”

राम सेवक के मुहं से अचानक सत्य निकला, “मैंने सुझाव कब दिया है जो आज देने की हिम्मत करूँ |”

पुष्पांजली ने तुनक कर कहा, “अच्छा जी आज तक जो काम इस घर में हुए हैं सब मेरी मर्जी से ही हुए हैं |”

“इसमें कोई संशय नहीं है फिर भी आज सलाह देता हूँ कि शादी जैसे बड़े काम के लिए हमेशा बड़ों की सलाह लेना बेहतर रहता है |”  

अपने मन में शंका का भाव लाकर पुष्पांजली ने पूछा, “क्या मतलब ?”

“मतलब यह कि विनीत के बड़े पापा अर्थात मेरे बड़े भाई साहब जी से सलाह लेना अच्छा रहेगा |”

पुष्पांजली तुनककर तथा हाथ नचाते हुए, “बस रहने दो, हमें ढंग का खाते तो वे एक पल देख नहीं पाते ऐसे मामले में वे हमें भला सलाह देगें |”

“हमारी इंसानियत एवम फर्ज तो यही कहता है |”

पुष्पांजली अपना आपा खोकर अपने पति को उंगली दिखाकर, “चुप, बड़े आए इंसानियत और फर्ज वाले, वो भी उनके लिए, मेरा बस चले तो मैं उनको शादी की इत्तला भी न दूं |”

राम सेवक ने अपने चिर परिचित अंदाज में कहा, “वह तो तुम्हारे तेवर देख कर ही लग रहा है |”

“ठीक है, ठीक है, यह इधर उधर की लीपा-पोती छोड़ो और काम की बात करो |”

राम सेवक ने एक और नेक सलाह दी, “तो सुनो, भाई साहब एवम भाभी जी, विनीत के अग्रवाल ताऊ जी और ताई जी, से सलाह ले लेते हैं |”

“हाँ –हाँ उनसे तो सलाह जरूर लेंगे |”

“मेरे ख्याल से लड़की देखने के समय भी उन्हें साथ ले जाना उचित रहेगा ?’

पुष्पांजलि कुछ सोचकर, “वह तो समय ही बताएगा कि कैसा प्रोग्राम बनता है |”

“प्रोग्राम तो वैसा ही बनेगा जैसा हम चाहेंगे |”

“वह तो आपकी बात दुरूस्त है परन्तु समय बड़ा बलवान होता है |”

राम सेवक जो अपनी पत्नी के मन की बात नहीं समझ पा रहा था तथा सोच रहा था कि न जाने क्यों वह सीधे नहीं कह सकती की मैं ठीक कह रहा था कुछ झुंझला कर बोला , “तुम बार –बार यह समय को बीच में क्यों अड़ा देती हो ?”

“ठीक ही तो कह रही हूँ अभी न तो कोई रिस्ता ही आया है न कहीं बात चल रही हैं |”

“अब रिस्ते तो आने ही हैं और हम शादी करने का विचार भी बना रहे हैं तो फिर कैसे करना है यह विचार तो बना ही सकते हैं |”

“वह भी बन जाएगा इतनी जल्दी क्या है |”

अपनी पत्नी की बात सुनकर राम सेवक असमंजस में था कि न जाने क्यों विनीत की शादी के बारे में किसी से सलाह लेने में पुष्पांजलि संकोच जाहिर क्यों करती है | वह अपनी पत्नी की मनोभावना को समझने में अपने को असमर्थ पा रहा था |

पुष्पांजली, शालिनी (अग्रवाल की पत्नी) को हमेशा यही जताती थी कि वह बहुत बीमार रहती है तथा कुछ ही दिनों की मेहमान है | धीरे धीरे पुष्पांजली सीधी सादी, भोली भाली, निष्कपट, नि:स्वार्थ शालिनी का विश्वास पाने में सफल हो गई | इसके बाद शालिनी ने पुष्पांजली की धन, मन, शरीर इत्यादि से जितना भी बन सका पूरी मदद की थी | अब पुष्पांजली ने शालिनी को अपनी जिठानी का रिस्ता नवाज कर आपसी रिस्ते का शुभारम्भ कर दिया

उधर यह दिखाने के लिए कि पुष्पांजलि राम सेवक की बात मानती है उसने एक बार अनमने मन से शालिनी से कहा, “जीजी जब विनीत के लिए लड़की देखने जाएंगे तो आप भी चलना |”

शालिनी ने यह सोच कि कहीं से विनीत का रिस्ता आया है पूछा, “क्यों कहीं से रिस्ता आया है क्या ?”

“नहीं अभी तो नहीं पर जब भी आएगा |”

“तब की तब देखी जाएगी |”

पुष्पांजलि ने अपना उल्हाना उतारने के लिए जोड़ा, “भाई साहब को भी चलना पड़ेगा |”

शालिनी ने अपना कोई जुम्मा न लेते हुए जवाब दिया, “समय पर उनसे तुम खुद ही कह देना |”

इस पर पुष्पांजलि मन ही मन बुदबुदाई, “जब समय आएगा तो मैं उसका रूख ऐसे मोड़ दूंगी कि उसके आने की किसी को भनक भी नहीं लग पाएगी |”

इसमे कोई शक नहीं था कि पुष्पांजली अग्रवाल को बहुत आदर देती थी तथा हर पहलू पर उससे सलाह लेती थी इसलिए उसने एक दो बार अनमने मन से विनीत की शादी में पूरा सहयोग देने के लिए अग्रवाल को टोका जरूर परन्तु उसको कार्यान्वित करने का मन नहीं बनाया | क्योंकि उसे डर था कि अगर उनके ऊपर फैसला छोड़ा गया तो मन में बसी उसकी घृणित चाल कामयाब नहीं हो पाएगी | अपने अहम के सामने पुष्पांजली ने अपने आज्ञाकारी एवम मातृ भक्त बेटे के जीवन की खुशियों को बहुत बौना आंका | 

अहंकार एक भाव है जो मनुष्य में हमेशा विद्यमान रहता है | यह प्राक्रतिक है | प्राय पद, प्रतिष्ठा, धन, बल, विद्या, वैभव, रूप या यौवन प्राप्त होने के बाद मनुष्य अहंकारी हो जाता है | विद्वान अहंकारी हो सकता है परन्तु ज्ञानी नहीं | अहंकार मनुष्य के आतंरिक सौंदर्य, प्रेम, करूणा, सदाचार, परोपकार को घृणा के बादलों से ढक देता है |        

एक बार रामसेवक तथा पुष्पांजली अपने गाँव किसी रिश्तेदार के यहाँ शादी में सम्मिलित होने गए थे | बातों ही बातों में एक व्यक्ति ने विनीत के रिस्ते की बात छेड़ दी | पुष्पांजली को जैसे मन की मुराद मिल गई हो | उसने बिना लड़की देखे, जाने पहचाने, गाँव की ग्वारिन समझ उस अनजान लड़की से अपने लड़के का रिस्ता जोड़ने की मन में ठान ली | 

पुष्पांजली का एकमात्र ध्येय था कि उसकी पुत्र वधू किसी मायने में भी उससे इक्कीस नहीं पड़नी चाहिए | अत: सोचा कि गाँव की एक लड़की, रंग रूप, पहनने ओढने, फैशन, बात चीत, सब्ज बाग, पढाई लिखाई इत्यादि में कुछ खास न होकर दब्बू किस्म की आदर सत्कार करने वाली तथा उल्टा जवाब देने की हिम्मत नहीं रखती होगी | इन्हीं बातों के विचाराधीन पुष्पांजली के मन में लड्डू फूटने लगे क्योंकि उसके मन की मुराद पूरी जो होने जा रही थी | उसने यह भी जरूरी नहीं समझा कि अपने लड़के से तो उसकी मर्जी जान ली जाए | उसने लड़के को लड़की दिखाना तो दूर खुद भी लड़की के दीदार नहीं किए और रिस्ते की हाँ कर दी | 

पुष्पांजली की रजामंदी से लड़की (रजनी) का पिता रितेश बहुत आश्चर्य चकित हुआ अत: उसने सेवक राम से अपना संशय खोला, “भाई साहब एक बार लड़के को.......|”

पुष्पांजली रितेश का आशय समझ अपना हाथ नचाकर, “उसकी कोई जरूरत नहीं |”

रजनी की माँ कमला, “परन्तु बहन जी फिर भी एक बार तो........|”

पुष्पांजली पहले के अंदाज में, “न आपने हमारा लड़का देखा न हमने आपकी लड़की देखी |”

कमला ने एक बार फिर कोशिश की, “तभी तो कहना चाहती हूँ कि कम से कम दोनों एक बार मिल...|”

पुष्पांजली ने ऊंची गर्दन करके बड़े आत्म विश्वास से कहा, “मुझे अपने लड़के पर पक्का विश्वास है कि वह मेरी कोई बात नहीं टालेगा | क्या आपको अपनी लड़की पर नहीं है ?”

कमला ने अपना प्रयास जारी रखा, “बहन जी किस माता पिता को अपने बच्चों पर विश्वास नहीं होता फिर भी आजकल के प्रचलन के चलते यह जरूरी सा हो गया है |”

पुष्पांजली कहाँ मानने वाली थी बोली, “औरों के लिए हो गया होगा मेरे घर में ऐसा नहीं है |”

कमला ने लड़की की माँ होने के नाते समर्पण करते हुए, “जैसी आपकी मर्जी |”

पुष्पांजली अपने चेहरे पर विजयी मुस्कान लाकर कमला की तरफ देखकर मन ही मन बुदबुदाई, “तुम क्या सोचती हो मैं अपने लड़के के विचारों को इतने पंख लगने ही नहीं दूंगी कि वह कभी मेरे विचारों के खिलाफ जाने की हिम्मत कर सके |”       

हालाँकि कमला ने अपनी तरफ से अपने बड़े लड़के की मार्फ़त जो देहली में ही काम करता था विनीत के बारे में पूरी तहकीकात कर ली थी तथा वह हर प्रकार से संतुष्ट थी परन्तु फिर भी विनीत की तरफ से वह आश्वस्त हो जाना जरूरी समझती थी |

पुष्पांजली के आचरण ने कमला को सोचने पर मजबूर कर दिया कि पच्चीस वर्ष से देहली शहर के वातावरण में रहने के बावजूद पुष्पांजली के विचार पुराने जमाने की तरह क्यों हैं | उसका पति राम सेवक भी इस मामले में चुप्पी क्यों साधे रहा |

कमला को विचारों में खोया देख पुष्पांजली बोली, “समधन जी चिंता मत करो मैं हूँ ना |”

“नहीं नहीं बहन जी, चिंता की कोई बात नहीं है बस मैं तो यही सोच रही थी कि क्या इस वर्त्तमान समय में भी ऐसी संतान हैं |”

पुष्पांजली ने कमला के कंधे पर हाथ रखकर तथा चेहरे पर एक कटु मुस्कान बिखेर कर आश्वासन दिया, “मेरे बच्चे बहुत आदर सत्कार करने वाले हैं | आप बेफिक्र रहें | एक बार मैनें हाँ कर दी तो वह पत्थर की लकीर है |”

इस पर कमला हाथ जोड़कर विनती करके, “अच्छा हमारे घर चलो | आप दोनों तो एक बार लड़की को अपनी नज़रों से निकाल लो |”

पुष्पांजली ने हाथ का इशारा किया, “कोई जरूरत नहीं है |”

इस बार रितेश ने कमला का साथ दिया, “नहीं नहीं मना मत करो | आप आए तो हुए हैं | आपको कल जाना है | अत: आपके पास समय भी है |”

पुष्पांजली ने टालने के लिहाज से, “परन्तु हम किसी तैयारी से तो आए नहीं हैं |”

“हम भी आपकी तरह हैं, हमने भी किसी प्रकार की तैयारी कहाँ की है |” 

वैसे पुष्पांजली के मन के किसी कौने में रजनी को एक नजर देखने की लालसा हिलोरें मार रही थी क्योंकि वह आश्वस्त हो जाना चाहती थी कि उसकी होने वाली पुत्र वधू किसी मायने में कहीं उससे इक्कीस तो नहीं बैठती | अब पुष्पांजली ने अपने दिखावे को असली जामा पहनाने के लिए कमला से कहा, “अच्छा ठीक है, आप इतना जिद कर रही हैं तो कल जब हम जाएंगे तो रजनी को अपने साथ वहीं बस स्टाप पर ले आना |”

दोनों पक्षों के मन में धुक धुक चल रही थी | कमला सोच रही थी कि लड़का पढ़ा लिखा, ह्रष्ट पुष्ट, सुन्दर, अच्छे आचरण एवम नौकरी लगा है | क्या वह मेरी बेटी रजनी जो सांवली, महज बारहवीं पास तथा गावं के वातावरण में पली बढ़ी को आसानी से अपना लेगा | 

पुष्पांजली सोच रही थी कि रजनी का रंग, रूप, नयन, नक्श और सुंदरता कहीं उससे बढ़कर न हो | फिर अपने आप ही उसे नकार देती कि नहीं नहीं गाँव की गवांर लड़की में इतना आकर्षण और सलीका कहाँ होगा कि वह मुझ से मुकाबला कर सके | इसी उधेड़ बुन में रात बीत गई और जाने का समय आ गया |     

गाँव के बस स्टैंड पर जब पुष्पांजली ने रजनी को देखा तो उसकी बांछे खिल उठी | एक बार गहरी नजर से उसने रजनी का मुआवना किया फिर अपने को ऊपर से नीचे तक निहारा | यह सोचकर उसकी गर्दन गर्व से ऊंची हो गई कि रजनी किसी मायने में भी उससे अव्वल नहीं है | पुष्पांजली ने रजनी को जांच परखने का कायदा दिखाते हुए एक बार फिर रिस्ते की हाँ कर दी | सेवक राम ने अपनी पत्नी का अनुशरण किया और रजनी के पिता रितेश से गर्म जोशी से हाथ मिलाकर मुबारकवाद देने में देर नहीं की | 

जैसे पुष्पांजली अपने कर्मों से अपने नाम को सार्थक करती थी वैसे ही उसकी पक्की सहेली शालिनी, अग्रवाल की पत्नी उससे दो कदम आगे थी | शालिनी शांत स्वभाव, शुद्ध विचारों वाली, ईश्वर में आस्था रखने वाली, निष्कपट, नि:स्वार्थ भाव वाली तथा दूसरों की सच्चे मन, धन तथा तन से सहायता करने वाली सर्वगुण सम्पन्न स्त्री थी | 

परन्तु वास्तविकता यह थी कि पुष्पांजली और शालिनी के जीवन में बहुत बड़ा अंतर था | पुष्पांजली, ‘उतने पैर पसारिये जितनी चादर देख’ वाली कहावत पर विश्वास नहीं रखती थी तभी तो वर्त्तमान में हाथ में पैसा न होते हुए भी उसे शानौ शौकत में रहने की आदत थी | इसी कारण, हालाँकि उसके घर के तीन सदस्य कमाते थे, महीने के आखिरी दिनों तक वह ठनठन गोपाल हो जाया करती थी | उसे अपनी जवान बेटी भी सामने खड़ी शादी के लिए तैयार दिखाई देती थी और भारी लिए कर्ज को चुकाने की भी चिंता थी परन्तु अपने रहन सहन के ढंग में कोई बदलाव लाने के खिलाफ थी चाहे उसे उसकी कितनी भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े | 

शालिनी एक साधारण, सादा एवम चिंता मुक्त जीवन जीने की पक्षधर थी | उसे बाहरी आडम्बरों तथा दिखावे में विश्वास नहीं था | वह पैसे को पैसा समझ कर चलती थी तथा भविष्य के लिए कुछ बचाकर भी रखती थी | उसके घर में सुख सुविधाओं का हर सामान मौजूद होने के बावजूद उस पर किसी प्रकार का कोई कर्जा नहीं था | 

शालिनी अपनी सहेली पुष्पांजली को अपना समझ कर, फिलहाल जब तक उसका कर्जा नहीं उतर जाता, फिजूल खर्ची से बचने की बहुत सलाह देती थी परन्तु पुष्पांजली पर इसका कोई असर नहीं होता था | वही नहीं उस घर के सभी सदस्य इस मामले में एक से बढ़ कर एक थे | पुष्पांजली ने मकान के लिए कर्ज लिया, राम सेवक ने फर्नीचर कर्ज पर ले लिया, लड़का पहले तो मोटर साईकिल लाया फिर कार के लिए भी कर्जा सिर पर चढ़ा लिया, लड़की पीछे कहाँ रहने वाली थी उसने अपने लिए ॠण पर स्कूटी खरीद ली |           

शालिनी अपनी जवानी के समय काफी सुन्दर थी परन्तु उसने इसे अपने दिमाग पर कभी हावी नहीं होने दिया | क्योंकि वह यह सोचकर जीती थी कि प्रकृति का नियम है कि समय के साथ सब कुछ बदल जाता है अत: अपनी किसी चीज पर गुमान नहीं करना चाहिए | इसके विपरीत पुष्पांजली को, जिसका खुलासा उसकी पुत्रवधू के आ जाने के बाद शुरू हुआ, अपने रूप लावण्य का बहुत अहंकार था | वह इसे संसार की सबसे बेशकीमती ईशवरीय देन समझती थी जैसे वह सदा उसके पास रहेगी | अपने सामने बैठी अपनी बूढ़ी होती सहेली के चेहरे को देखकर भी अहंकार वश उसे ज्ञान नहीं आया | उसकी इसी अज्ञानता के चलते आगे चलकर उसके घर मे कलह का साम्राज्य स्थापित हो गया | 

वैसे पुष्पांजली जब तक अपने मन की बात अपनी सहेली को बता न लेती थी उसे उब्काईयाँ सी आती रहती थी | यही कारण था कि अपने गाँव से लौटने वाले दिन ही वह शालिनी के पास जा पहुची | उसे अपनी खुशी सहन नहीं हो पा रही थी अत: दरवाजे में घुसते ही बोली, “जीजी मुबारक हो |”

शालिनी जिसे बात का सिर पैर ही नहीं पता था, “किस बात की मुबारकबाद ?”

पुष्पांजली  चहकते हुए, “आपके लड़के का रिस्ता पक्का कर दिया |” 

शालिनी अपने चेहरे पर शरारती मुस्कान लाकर, “मेरे तो दोनों बेटे ब्याहे हुए है फिर तूने किसका रिस्ता पक्का कर दिया ?”

पुष्पांजली झेंपकर, “जीजी आप भी, मैनें विनीत का रिस्ता पक्का कर दिया है |”

शालिनी ने आश्चर्य चकित होकर उतावलेपन से पूछा, “कब, कैसे और किसके साथ ?”

“एक शादी में अपने गाँव गई थी न वहीं बात चली और कर दिया |”

“विनीत भी साथ गया था क्या ?”

“नहीं |”

“फिर |”

“विनीत मेरे से बाहर थोड़े ही जाएगा |”

“ठीक है वह आज्ञाकारी है परन्तु उसे अपना जीवन साथी चुनने का हक तो देना ही चाहिए था |”

“जीजी उसने कुछ बुरा नहीं माना |”

“अभी बुरा मानेगा भी नहीं क्योंकि भाई साहब की तरह मातृभक्त से पत्नी भक्त बनने में उसे कुछ समय तो लगेगा ही |”

पुष्पांजली ने मन ही मन कहा, “पत्नी भक्त तो तब बनेगा जब मैं उसे बनने का मौक़ा दूंगी |”

विनीत की शादी से पहले टीका चढाने का प्रोग्राम रखा गया | वधू पक्ष के सदस्यों के ठहरने के स्थान पर पुष्पांजलि पक्ष के व्यक्ति इकट्ठा हुए | जैसा कि होता है वधू को निहारने की जिज्ञासा सभी के मन में हिलोरें मार रही थी | सभी यह सोचे रहे थे कि पुष्पांजलि ने अगर अपने से सुन्दर नहीं तो कम से कम अपने लड़के के लिए अपने जैसे रूप लावण्य की लड़की तो चुनी ही होगी |

जब होने वाली दुल्हन सामने आई तो सब की आशाएं धराशाही हो गई | विनीत पक्ष के सभी मेहमानों में एकदम कानाफूसी की लहर दौड़ गई | सबके अपने मत थे |

‘विनीत तो इतना सुन्दर है दुल्हन तो उसके सामने कुछ भी नहीं’

‘विनीत का रंग कितना गोरा है रजनी तो सावली है’

‘विनीत तो गबरू जवान दीखता है दुल्हन तो अलसाई सी है’

‘दुल्हन से अच्छी तो दुल्हन की सास लगती है’ 

‘कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू बाई’ इत्यादि |

किसी ने विनीत से ही पूछ लिया, “तुम्हारा क्या मत है ?”

विनीत ने बनते हुए, “किसके बारे में ?”

“जिससे बंधने जा रहे हो ?”

विनीत अनमने मन से, “जैसा माँ बाप ने कर दिया ठीक है |”

विनीत की रग पहचान कर, “लगता है हमारी तरह पहली बार देख रहे हो ?”

“ऐसा ही समझ लो |”

“हाँ और समझ लो में तो बहुत अंतर है ?”

विनीत थोड़ा झल्लाकर, “हाँ पहली बार देख रहा हूँ |”

आए हुए मेहमानों में से किसी को भी विनीत और रजनी की जोड़ी पसंद नहीं आई थी | शायद यही हाल विनीत का भी था परन्तु दिल से मातृ भक्त होने के कारण वह कुछ बोल नहीं पा रहा था |    

पुष्पांजली ने अपने लड़के विनीत की शादी बड़ी धूमधाम से सम्पन्न कराने की ठान ली | इसके बारे में उसने अग्रवाल से सलाह मशवरा किया | भाई साहब चढत के लिए क्या करना ठीक रहेगा ?”

“चढ़त सीधे घर से पंडाल तक की ठीक रहेगी |”

पुष्पांजलिं कुछ अनमने मन से, “यहाँ तो बग्घी आएगी नहीं |”

“यह तो दिख ही रहा है कि सड़क बहुत उबड खाबड है |”

“तो फिर क्या किया जाए ?”

पुष्पांजलि के कहने मात्र से ही यह तो अंदाजा लग गया था कि शालिनी चढ़त के लिए बग्घी चाहती है इसलिए कहा, “अगर बग्घी जरूरी है तो पैसा दोगुना लग जाएगा |”

पुष्पांजलि अपने चेहरे पर कुछ संतुष्टि के भाव लाकर, “कैसे ?”

“घर से घोड़ी पर तथा आगे जहां से सड़क ठीक है बग्घी कर ली जाए |”

पुष्पांजलि खुश होकर, “भाई साहब आपने तो मेरी समस्या एक दम से हल कर दी |”

“ऐसा करने के लिए हमें उस जगह नाश्ते-पानी का भी इंतजाम करना पड़ेगा जहां घोड़ी से बग्घी बदली जाएगी |”    

पुष्पांजलि अपनी शानौ शौकत दिखाने में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती थी | अग्रवाल जानता था कि वह आमदनी अठन्नी खर्चा रुपय्या वाली कहावत चरितार्थ कर रही है परन्तु भविष्य में अपने मनोभावों की आपूर्ति के लिए ऐसा करना वह जरूरी समझ रही थी | इसलिए पुष्पांजलि ने बिना सोचे समझे वैसा करने की हामी भर दी | 

विनीत की चढत के लिए चार घोड़ों की बघी का इंतजाम कराया गया | इसके बावजूद पुष्पांजलि के चेहरे पर संतुष्टी के भाव नजर न देख अग्रवाल ने पूछा, “अब क्या कसर रह गई ?”

पुष्पांजलि कुछ झिझक के साथ, “भाई साहब बहू पांडाल में कैसे प्रवेश करेगी ?”

“मतलब ?”

“मतलब यही कि लड़का तो बग्घी से पहुंचेगा तो रजनी वहाँ कैसे पहुंचेगी ?”

अग्रवाल पुष्पांजलि के दिल की उड़ान से अनभिग्य साधारण तौर पर बोला, “जैसे अमूमन लडकियां अपनी सहेलियों के साथ आती हैं |”

पुष्पांजलि बुरा सा मुंह बनाकर, “भाई साहब क्या यह जचेगा ?”

“क्यों ?” फिर कुछ सोचकर, “तुम्हारे मन में क्या है ?”

पुष्पांजलि कुछ शर्माकर तथा मुख पर मुस्कान लाकर धीरे से बोली, “अगर दुल्हन को पालकी में लाया जाए तो कैसा रहेगा ?”

अग्रवाल जानता था कि पुष्पांजलि ने अपनी आर्थिक स्थिति को कभी नहीं आंका | वह अंजाम की परवाह न करते हुए अपने मन की धारणा को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोडती थी | वैसे भी इस समय भविष्य में अपनी भावनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए इससे सुनहरा मौक़ा और क्या हो सकता था | वह अपनी दुल्हन के दिमाग में यह बैठा देना चाहती थी कि वह उसे बहुत चाहती है | अत:दुल्हन को पांडाल में लाने के लिए चार कहारों द्वारा उठाई जाने वाली डोली मंगाई गई | वह सभी को यह दिखाने में सफल हो गई कि वह अपनी पुत्र वधु से बहुत प्यार करती है |   

इसके बाद अग्रवाल ने वैसे ही कहा, “अब तो मन की सब पूर्ति हो गई या.......?”

अग्रवाल का वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि पुष्पांजलि ने जोड़ा, “भाई साहब आपकी दुआ से वैसे तो सब ठीक हो गया परन्तु जयमाला स्टेज की बजाय अगर घूमने वाली स्टेज पर हो जाती तो सोने में सुहागा हो जाता |”

इस बार अग्रवाल जो पुष्पांजलि की आर्थिक स्थिति से बखूबी वाकिफ था सलाह दी, “देखो बग्घी और पालकी ने तुम्हारा बजट पचास हजार पहले ही बढ़ा दिया है अब दस बारह हजार और बढ़ जाएंगे |”

पुष्पांजलि उदासीनता से गर्दन नीची करके कहने लगी, “भाई साहब ऐसे मौके जीवन में एक बार ही आते हैं और यादगार बनकर हमेशा साथ बने रहते हैं |

अग्रवाल के पास जवाब में देखलो कहने के अलावा कोई चारा नहीं था |  

जय माला के लिए घूमने वाली स्टेज बनवाई गई | पुष्पांजली स्वयं एक दुल्हन सी दिख रही थी | बम पटाखों की भरमार थी | दारू पानी की तरह बहाई जा रही थी | फ़ार्म हाऊस महल सा चमक रहा था | ऐसा माहौल था जैसे शहर के किसी धनाढ्य व्यक्ति के लड़के की शादी हो रही हो |

रितेश के परिवार एवम उनके रिश्तेदारों ने शादी के ऐसे मन भावने वातावरण का सपनों में भी नहीं सोचा था | वे सभी प्रसंशा करते नहीं थक रहे थे | पुष्पांजली रजनी को अपनी पुत्रवधू बनाकर अपने घर ले आई | घर के सभी सदस्यों एवम मेहमानों ने रजनी का भावभीना स्वागत किया | रजनी की सुहाग रात भी हर्षोल्लास से बीत गई | 

रजनी अब अपने पति के अगले कदम का इंतज़ार करने लगी | रह रह कर, यह सोचकर उसके मन में गुदगुदी उठ रही थी कि अब वह अपने पति के साथ हनीमून पर जाएगी तो कितना मजा आएगा | मन ही मन वह जाने की जगह चुनती तथा वहाँ कैसे क्या करना है इसकी प्लानिंग बनाती | एक, एक दिन उसे एक साल के बराबर लगने लगा | देखते ही देखते एक सप्ताह बीत गया | नई नवेली दुल्हन रजनी का खुमार उतरता जा रहा था | अपनी आशा को निराशा में परिवर्तित होते जान उसने अपने पति विनीत से अपने मन की इच्छा जाहिर की, “क्यों जी कहीं घूमने जाने का इरादा नहीं है क्या ?”

“मन में तो मेरे भी बहुत है |”

“फिर अड़चन क्या है ?”

“माँ की तबियत |”

“क्यों, माँ की तबियत को क्या हो गया ?”

“तुम्हें पता नहीं उनका स्वास्थ्य अचानक बिगड जाता है और बोलती बंद हो जाती है |”

“परन्तु जब से मैं इस घर में आई हूँ ऐसा तो कुछ नहीं हुआ ?”

“ऐसा कुछ नहीं कि वह कितने दिन बाद होता है परन्तु जब होता है तो अचानक कभी भी हो जाता है |”

अभी तक रजनी शायद समझ चुकी थी कि उस घर में करता धरता पुष्पांजली  ही है तभी उसने अपने ससुर की न कहकर अपनी सास का नाम लिया, “इस बारे में आपने अपनी माँ से जिक्र किया ?”

“मैं भला कैसे जिक्र कर सकता हूँ ?”

“और अपने आप उन्होंने सोचा नहीं ?”

विनीत थोड़ा खीजकर, “रजनी क्या हो जाएगा अगर हम हनीमून पर नहीं जाएंगे ?”

विनीत के विचार सुनकर रजनी ने अपनी भौएँ चढ़ाकर टेढी नज़रों से देखकर तपाक से कहा, “होता तो तब भी कुछ नहीं अगर आप शादी न करते |”

अपनी नई नवेली दुल्हन द्वारा शादी पर टोंट ने विनीत के कान खड़े कर दिए | कुछ पल आश्चर्य चकित खड़ा वह एक टक रजनी का चेहरा देखता रह गया | उसने भी अपनी मम्मी जी की तरह रजनी को एक गाँव की गवांर, सीधी सादी और भोली भाली लड़की ही आंका था जो बंद जबान सभी का कहा मानना ही अपना फर्ज समझेगी | विनीत को ऐसा लग रहा था जैसे उसकी अपनी जबान उसके कंठ से नीचे उतर  गई थी | जब उससे कोई जवाब न बन पड़ा तो वह लम्बे पग भरता हुआ कमरे से बाहर निकल गया |

समझो घर में कलह का पदार्पण हो गया था |

धीरे धीरे रजनी ने महसूस किया कि पुष्पांजली के साज-श्रंगार, ओढने-पहनने तथा रहन-सहन में तो कोई अंतर नहीं आया परन्तु उसकी बीमारी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है | पुष्पांजली की बीमारी के बढ़ते उनका पूरा मेकअप करके बिस्तर पर बैठने का समय भी बढता जा रहा था | धीरे धीरे झाड़ू पौचा करने वाली बाई की छुट्टी कर दी गई | 

सेवक राम, विनीत तथा नन्द विजया सुबह अपने काम पर निकल जाते | बीमारी का बहाना बनाकर पुष्पांजली ने सब काम करने छोड़ दिए | अब घर के सभी कामों की जिम्मेदारी रजनी पर आ गई | नौबत यह आ गई कि पुष्पांजली ने बिस्तर पर बैठे बैठे, जब कभी भी रजनी को थोड़ा भी सुस्ताते पाया, उस पर हुक्म चलाना शुरू कर दिया, “रजनी देख नहीं रही घर कितना गंदा दिख रहा है |”

रजनी ने संयम बरता, “हाँ देख रही हूँ मम्मी जी |”

पुष्पांजली  तैश में, “दिख रहा है तो बैठी क्यों है ?”

“मम्मी जी पहले रसोई की सफाई की थी और अब कपड़े धोकर तथा ऊपर सुखाकर अभी आई हूँ  |”

“ठीक है ठीक है, अब घर में झाडू पौचा लगा ले |”  

थकी हारी रजनी ने पूछा, “मम्मी जी क्या यह काम भी रोज मुझे करना पड़ेगा ?”

पुष्पांजली अपना आपा खोकर, “नहीं तो क्या तेरा बाप आएगा यह काम करने ?”

बाप का नाम सुनकर रजनी बौखला गई फिर भी उसने अपने आप को सम्भाला और आराम से चेतावनी देकर कहा, “मम्मी जी, मेरे बाप तक पहुँचने की गुस्ताखी मत करो |”

पुष्पांजली हेकड़ी दिखाकर, “पहुचुंगी, तू मेरा क्या कर लेगी ?”

रजनी ने एकबार फिर समझाने के लिहाज से कहा, “मम्मी जी करने को तो मैं बहुत कुछ कर सकती हूँ | परन्तु मैं अपने माँ-बाप के उन शब्दों से बंधी हूँ जब विदा के समय उन्होंने मुझे शिक्षा देते हुए समझाया था कि बेटी कुछ भी करना मगर अपने सास-ससुर एवम पति से ऊंचे स्वर में जबान मत लड़ाना |इसीलिए आराम से बता रही हूँ कि मैं झाडू पौचा नहीं करूंगी |”

पुष्पांजली अपने पुराने अंदाज में, “तो फिर तू यहाँ किस लिए आई है ?”

“आपका लड़का ब्याह कर लाया है मुझे |”

“विनीत ब्याह कर लाया है तो क्या पटरानी बनकर मेरे सिर पर बैठेगी ?”

“बैठूंगी तो वहीं जहां मेरा स्थान है परन्तु नौकरानी की तरह नहीं |”

“अपने घर के काम करने को तू नौकरों का काम मानती है ?”

“जो काम मेरे करने के थे मैनें बिना किसी हुज्जत के अपने आप कर लिए हैं परन्तु अब जो आप कह रही हैं वे तो नौकरों के ही काम है |”  

पुष्पांजली से रजनी की बात सहन न हुई अत: भडक कर बोली, “तेरा बाप बड़ा धन्ना सेठ है तो उससे ही कह दे कि दो चार नौकर भेज दे |”

“अपने लिए तो वे धन्ना सेठ हैं ही तभी तो उनके यहाँ इन कामों के लिए नौकर हैं |”

पुष्पांजली लगभग चीख कर ऊंगली दिखाकर गरजी, “अपनी बकवास बंद कर और काम पर लग जा |”

अबकी बार रजनी ने भी अपनी ऊंगली अपनी सास की तरफ उठाकर कहना शुरू किया, “बकवास मैं नहीं बकवास आप.............|”

रजनी की बढ़ती निडरता को भांप कर पुष्पांजली का पारा इतना चढ़ा कि वह बिस्तर से उठी और रजनी के गाल पर दो चांटे रसीद कर दिए | पुष्पांजली ने घर में कलह का बिगुल बजा दिया था | अब रजनी और पुष्पांजली के बीच रोजाना किसी न किसी बात पर तनातनी हो जाती और पुष्पांजली अपना हाथ उठाने से न चूकती |

पत्नी भक्त सेवक राम और मातृ भक्त विनीत हमेशा पुष्पांजली का पक्ष लेते | फिर भला रजनी की नन्द विजया पीछे कैसे रह सकती थी | अर्थात उस घर में रजनी की सुनने वाला तथा उसका साथ देने वाला कोई नहीं था | घर का पूरा काम करने तथा सास के चांटे खाकर भी उसने अपने को उस घर में स्थापित करने की भरपूर कोशिश की परन्तु घर की मुखिया सास को रिझाने में सफल न हो सकी | यह उसकी समझ से बाहर की बात थी कि उसकी सास आखिर चाहती क्या थी |

निराश, हताश होकर एक दिन अपनी नारकीय जिंदगी से निकलने के लिए, जब घर के सारे सदस्य एक साथ बैठे थे, रजनी ने बड़े ही निर्मल भाव से अपने पति विनीत से कहा, “जी, मुझे तलाक चाहिए |”

रजनी के मुहं से तलाक शब्द को सुनते ही सब घर वालों की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई | उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक गाँव की गंवारिन ऐसे शब्द को जानती भी होगी | इसलिए विनीत ने आगे बढ़कर रजनी को झकझोरते हुए पूछा, “इसका मतलब जानती हो तुम क्या कह रही हो ?”

रजनी को जैसे अपने कहे पर कोई गिलानी नहीं थी सहजता से उत्तर दिया, “हाँ मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि मैं क्या कह रही हूँ |”

रजनी की इस अप्रत्याशित रूप से दी गई धमकी ने विनीत की हालत पतली कर दी | वह निढाल सा रजनी के सामने से हट गया तथा अपने आप बुदबुदाया, “अब तो पानी सिर से ऊपर निकल गया है | जल्दी कुछ करना पड़ेगा |”

विनीत कुछ सोचकर अपने ताऊ जी के पास पहुँच गया और आज की पूरी कहानी सुनाकर बोला, “ताऊ जी अब इस बारे में जल्दी कुछ करो |”  

“तुम्हारा जल्दी कुछ करने का क्या अभिप्राय है ?”

“यही कि सास बहू की तकरार जल्दी खत्म करो |”

विनीत के सास बहू की तकरार के कहने से अग्रवाल को इतना तो निश्चित हो गया था कि वह तलाक नहीं चाहता था तथा वह भी सास बहू के बीच होने वाली रोज की तकरार से दुखी था | इसके बाद अग्रवाल विनीत के साथ उसके घर पहुँचा | वातावरण बहुत तनाव पूर्ण था | सभी का एक दूसरे के प्रति पारा चढ़ा हुआ था | अग्रवाल को आया देख रजनी रोती हुई उसके पास आई तथा चरण पकड़ कर बोली, “ताऊ जी मुझे इस नरक भरी जिंदगी से छुटकारा दिला दो |”

रजनी के ऐसा कहने पर पुष्पांजली भडक उठी, “मेरे घर को नरक कह रही है, तू तो बड़ी हूर की परी महलों में रहती थी ?”

सेवक राम अपनी पत्नी का पक्ष लेकर बोला, “यह रजनी पक्की काम चोर है | इस घर में काम ही कितना है | विनीत, विजया तथा मैं सुबह ही निकल जाते हैं | यह तो सारा दिन आराम ही करती है | एक वक्त रात का खाना बनाने में भी इसे दिक्कत आती है |”

पुष्पांजली चिल्लाई, “अपने घर का झाडू, पौचा, चौका, बर्तन और कपड़े इत्यादि काम करने में भी इसकी नानी मरती है | यह तो नहा धोकर और श्रृंगार करके बस पलंग पर बैठना चाहती है |”

विजया एवम विनीत ने भी कई ऐसी बातें बताई जो रजनी के आचरण पर धब्बा लगाती थी | इन सबकी सुनने के बाद अग्रवाल ने रजनी से उसके दिल तथा व्यवहार के बारे में जानने हेतू उससे पूछा, “रजनी बेटा, आप भी अपने मन की कुछ कहो ?”

रजनी चुप रही परन्तु अग्रवाल के बार बार पूछने पर उसने अपनी जबान खोली, “मैं अपनी व्यथा आपको अकेले में बताऊंगी |”

पुष्पांजली अपना हाथ नचाकर गुर्राई, “नहीं जब हम सामने बता रहे हैं तो तू क्यों अकेले में बताएगी ?”

जब रजनी अपनी बात पर अड़ी रही तो सेवक राम ने बात को मानने के लिहाज से पुष्पांजली की ओर मुखातिब होकर कहा, “कर लेने दो अकेले में बात |”

इतना सुनते ही पुष्पांजली आपे से बाहर हो गई और अपने पति की ओर आँख निकालकर गुस्से में उंगली दिखाते हुए गरजी, “आप होते कौन हो मेरे घर में मुझे हिदायत देने वाले ?”

रामसेवक मिम्याकर, “मैं होता कौन हूँ ?”

अब पुष्पांजली ने कुर्सी से उठकर और भी विकराल रूप धारण करके अपने पति को चेतावनी दी, “खबरदार, यह घर मेरा है |” फिर चुटकी बजाकर तथा दरवाजे की और इशारा करके, “अगर आप से चुप नहीं रहा जाता तो इसी वक्त निकल जाओ मेरे घर से |”

पुष्पांजली का भैरवी रूप देखकर सभी सकते में आ गए | अग्रवाल को भी सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि जो औरत अपने पति के साथ ऐसा सलूक कर सकती है तो वह मुझे क्या बख्शेगी अगर उसने उसके खिलाफ कोई निर्णय लिया | अग्रवाल एक न्याय प्रिय तथा निडर प्रवर्ति का व्यक्ति था | पुष्पांजली का अप्रत्यासित आचरण उसके ध्येय को डिगा नहीं सकता था | परन्तु वह यह सोचकर चुप बैठा रहा कि वह उनके घर का आपसी मामला है | अगर वे राजी होंगे तभी वह रजनी से अकेले में बात करेगा |

इतने में पुष्पांजली ने अपने दिल का राज बयाँ किया, “भाई साहब अपने पूरे विवाहित जीवन के दौरान मैनें इनकी दो बात मानी और इन दोनों मौकों पर मुझे बेइंतहा हानि और दुःख उठाना पड़ा |”

“वे क्या ?”

पहली तो यह कि जब हमने मकान बनवाना शुरू किया था तो इन्होने अपने गाँव के एक सप्लायर से बिना कुछ ठहराए मकान का सामान लेना शुरू कर दिया |”

रामसेवक बीच में ही बोला, “भाई साहब आपको तो पता ही है कि हमारी आर्थिक स्थिति कमजोर थी | उसने माल उधार देने की हामी भर ली थी |”

पुष्पांजली अपने पति का मुहँ चिढ़ाकर, “हामी भर ली थी, यह भी देखा था कि वह हर जगह हमें लूट रहा था ?”

“कैसे ?”

“भाई साहब एक तो वह माल के रेट ऊलजलूल लगा रहा था दूसरे निम्न क्वालिटी दे रहा था तीसरे पूरा माल भी नहीं दे रहा था |”

अग्रवाल ने पुष्पांजली का पक्ष लेकर कहा, “यह तो वाजिब है कि पूरी जांच पड़ताल करके ही माल डलवाना चाहिए था |”

इसके बाद अपने बेटे विनीत की दुल्हन का ठीकरा भी अपने पति पर फोड़ते हुए बोली, “इस रजनी का हमारे घर में आगमन भी इन गुरू घंटाल के कारण ही हुआ है |”

“वह कैसे ?”

भाई साहब हम तो अपने रिश्तेदार की शादी में अपने गाँव गए थे | वहाँ आपस में बात चलने लगी तो ये पिघल गए | कहने लगे, “लड़की मेरे गाँव के पास की है | नजदीक का रिस्ता अच्छा रहता है | हमें भी आराम रहेगा | जब भी गाँव आएँगे समधाने का लुत्फ़ मिलेगा | ऐसी न जाने कितनी बातें कही | इन्होने मेरी एक न सुनी |”

अग्रवाल ने पूछा, “वैसे तो आप कहती हैं कि पूरे विवाहित जीवन के दौरान आपने इनकी कोई बात नहीं मानी परन्तु ऐसे दोनों मौकों पर जब तुम्हें बात नहीं माननी चाहिए थी आप ने कैसे और क्यों मान ली ?”

इस पर पुष्पांजली चुप रह गई | अगरवाल ने मन ही मन कहा, “मैं जानता हूँ तुम अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहती थी तुम दूसरों के कंधे पर बन्दूक रखकर चलाना अच्छी तरह जानती हो | राम सेवक के कारण तुम्हारे मन में लड्डू फूट रहे होंगे कि तुम्हें बिना मांगे मन की मुराद मिल रही थी |”

अग्रवाल ने अचानक पूछा, “वैसे तुम तो हर वस्तु जांच परख कर लेती हो फिर तुमने एक बार भी नहीं सोचा कि विनीत से तो सलाह कर लेनी चाहिए |” 

पुष्पांजली अफसोस जाहिर करके, “भाई साहब पता नहीं उस समय मेरी बुद्धि कहाँ चली गई थी |”

पुष्पांजली शायद यह सोचकर कि कहीं उसकी मनोदशा का भंडा न फुट जाए उसने जल्दी से कह दिया, “अच्छा आप रजनी से अकेले में बात कर लो |”      

और पुष्पांजली के साथ सभी कमरे में अग्रवाल तथा रजनी को अकेला छोड़कर बाहर निकल गए | 

अग्रवाल ने अब बड़ी सहानुभूति दिखाते हुए रजनी से पूछा, “हाँ बेटा, अब बताओ कि घर में कलह का कारण क्या है ?”

रजनी ने बेझिझक सीधा जवाब दिया, “ताऊ जी, इन्हें अपने घर को चलाने के लिए एक नौकरानी की जरूरत थी न कि बहू की |”

“आप ऐसा क्यों अनुभव करती हैं ?”

“क्योंकि ये रात की ड्यूटी करते हैं | दिन में सोते हैं | मेरा सारा दिन खाना बनाने, कपड़े धोने, स्त्री करने, घर की साफ़ सफाई तथा नौकरों जैसे निम्न वर्ग के काम अर्थात झाडू पौचा लगाने इत्यादि में निकल जाता है | इतने पर भी मुझे थोड़ा आराम करते देख सास के ताने, दुत्कार और चपत सहने पड़ते हैं |”

अग्रवाल ने रजनी को समझाया, “बेटा, अपने घर के काम करने में तो कोई बुराई नहीं है | हाँ ताने, दुत्कार एवम चपत लगाना बिल्कुल गलत है | मैं उन्हें समझाऊँगा |”

“ताऊ जी यह तो सर्व विदित है कि प्रत्येक लड़की अपनी ससुराल में कुछ मीठे सपने संजोकर आती है और उन सपनों को साकार करने के लिए पति पत्नी को एक दूसरे को जानना बहुत जरूरी होता है | इसके लिए दोनों को एकांत तथा समय मिलना भी आवश्यक होता है | मैं जब से इस घर में आई हूँ हनीमून की बात तो दूर रही मैं इस घर की चार दीवारी से अकेले इन के साथ कभी बाहर नहीं गई हूँ |”

“ताऊ जी एक और बात, वैसे तो ये कहती हैं कि बीमार हैं |”

“तुम्हें शक क्यों है ?”

“ताऊ जी बीमार आदमी क्या इतना भारी श्रृंगार करते कभी आपने देखा है ?”

“साफ़ सफाई तो रखनी ही चाहिए |”

“ताऊ जी साफ़ सफाई रखने और श्रृंगार करने में बहुत फर्क है |”

“तुम्हारे कहने का तात्पर्य क्या है ?”

“मेरी सास, बीमार होने के बावजूद, सुबह सवेरे से श्रृंगार करना शुरू कर देती है और यह तब तक चलता रहता है जब तक मेरा घर का काम खत्म नहीं हो जाता |”

अग्रवाल रजनी की बातों का कोई जवाब न दे सका | उसने खुद भी महसूस किया था कि जब भी वह पुष्पांजलि के घर गया था तो रजनी को काम के बोझ से व पुष्पांजलि को सिर से पैरों तक श्रृंगार के बोझ से दबा पाया था | जहां नई नवेली दुल्हन रजनी बिखरे बालों के साथ काम से दबी वास्तव में ही बिना मेकप लिए काम वाली बाई जान पड़ती थी | वही पुष्पांजलि नई नवेली दुल्हन की तरह उसके चेहरे पर क्रीम पाऊडर, होठोंपर लिपस्टिक की लाली, आँखों में काजल, गलें में मोतियों की माला, चोटी में गजरा, पैरों में पजामी, बदन पर टी-शर्ट, नाखूनों पर मैचिंग पालिस यहाँ तक की पैरों में जुराब तथा बिस्तर के पास रखी चप्पल भी कपड़ों से मैच करती दिखती थी | अग्रवाल की तरफ से कोई जवाब मिलता न देख रजनी बोली, “ताऊ जी आप ही बताओ मेरे सामने इनको इतना सजना क्या अच्छा लगता है ?”

“अपनी अपनी आदत है |”

“ताऊ जी यह आदत नहीं अहंकार है |”

“रजनी ने अग्रवाल के मन की बात छीन ली थी | वह तो पहले ही कई बार ऐसा महसूस कर चुका था जैसे पुष्पांजलि अपने रूप लावण्य पर कुछ ज्यादा ही अहंकार रखती है | अब रजनी के कथन ने अग्रवाल के विचारों को तूल दे दिया था |   

रजनी का तर्क सुनकर अग्रवाल दंग रह गया | वह क्या कोई भी सोच भी नहीं सकता था कि एक सुदूर गाँव में पली बढ़ी लड़की ऐसे स्पष्ट विचार व्यक्त कर सकती है | अग्रवाल अपने अनुभव के कारण उसके ‘निम्न वर्ग’ के शब्द के उच्चारण से ही रजनी की सारी दुविधाओं का कारण समझ गया था |

अग्रवाल की एक बुआ जी हरियाणा प्रदेश के एक गाँव में रहा करती थी | अग्रवाल जब छोटा था तो अपने स्कूल की छुट्टियों अक्सर उनके यहाँ बिताता था | शहर की भीड़ भाड़ से दूर हरियाले लहलाते खेतों के बीच लभग सत्तर घरों का वह गाँव बहुत शांत रहता था | उसमें हर जाती एवम वर्ण के वासिंदे थे | एक दो मकान को छोड़कर अधिकतर मकान कच्चे थे | गाँव की गलियाँ धूल मिट्टी से भरी रहती थी | सीवर का कोई वजूद न था | जंगल मैदान के लिए मर्द तो बाहर खुले में चले जाते थे परन्तु औरतें घर में ही निबटती थी | मैला सिर पर ढ़ोया जाता था | 

बुआ जी के घर पर कुँए से पानी भर कर लाना, कपडे धोना, बर्तन मांजना, आँगन लीपना तथा साफ़ सफाई के लिए निम्न वर्ग की औरतें लगी हुई थी | बुआ जी व् उनकी लड़कियों का काम तो बस खाना बनाने तक सीमित था अन्यथा वे हमेशा साफ़ सुथरी नहाधोकर घर की देखभाल करती ही नजर आती थी | गावं के सेठ होने की वजह से दूसरे तबके के लोग इस घर के सभी सदस्यों की बहुत इज्जत करते थे | इनका मेहमान पूरे गाँव का मेहमान माना जाता था | अगर वे कहीं जा रहे होते तो सामने से आने  वाला हर व्यक्ति रास्ता छोड़कर एक तरफ खड़ा हो पहले सेठ के परिवार को जाने का रास्ता दे देता था | 

नाई की हिम्मत नहीं होती थी कि सेठ के घर की पोली(बैठक) पार करके उसके घर में प्रवेश कर जाए | पोली में भी वह एक तरफ खड़ा ही रहता था जब तक कि उसे बैठने का इशारा न कर दिया जाता | 

लिखने तथा कहने का तात्पर्य यह है कि गाँव में रहने वाली उच्च वर्ण के घराने की लडकियां घर की साफ़-सफाई, लिपा-पोती, झाडू-पौचा, इत्यादि का काम नहीं करती थी तथा इन्हें एक निम्न वर्ग के लोगों का काम समझती थी | शायद यही कारण था कि रजनी को हनीमून पर न भेज कर जब घर में झाडू पौचा करने के काम के लिए कहा गया तो वह अपने अहम के कारण बगावत पर उतर आई थी |     

इसी के आधार पर अग्रवाल ने पुष्पांजली के परिवार को समझाया कि अब उन्हें रजनी को अपने परिवार का ही एक सदस्य समझना चाहिए तथा घर के कार्यों को मिल बाँट कर करना चाहिए | पुष्पांजली को हिदायत दी कि ताने, दुत्कार, चपत तथा किसी बात पर भी रजनी के माँ बाप तक पहुँचने पर विराम लगाना होगा | फिर कुछ सोचकर अग्रवाल ने पूछा, “वैसे मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि आपके तथा रजनी के बीच यह मन मुटाव इस हद तक कैसे पहुँच गया ?”

“भाई साहब यह एक नंबर की काम चोर है |”

“काम चोर ! परन्तु जब से मैं यहाँ आया हूँ यह तो काम में ही व्यस्त है ?”

“आपके आने से थोड़ी देर पहले ही तो लगी है |”

“क्या इसे पता था कि हम आने वाले हैं ?”

“नहीं ऐसी तो बात नहीं है |”

“तब भी कर रही है |”

“क्या ख़ाक कर रही है | राम सेवक जी सुबह पाँच बजे अपनी ड्यूटी पर जाते हैं | मजाल कि आजतक इसने उठकर उनके लिए चाय या खाना बनाकर दिया हो |”

अग्रवाल चुपचाप सुन रहा था |

“नौ बजे विनीत तथा ९-३० बजे विजया अपने आफिस जाती है मगर यह मर्दूत तब तक तो बिस्तर ही नहीं छोडती है |”

अग्रवाल पुष्पांजलि के मन की भडांस एकाग्रता से सुन रहा था |

“महारानी जी सबके चले जाने के बाद ऐसे उठकर बाहर निकलती हैं जैसे अलसाई शेरनी अपनी मांद से बाहर निकलती है |”

“अच्छा |”

“फिर थोड़ा बहुत अपनी मर्जी से काम करके दोबारा अपन्ने कोप भवन में गुस जाती है तथा टेलीवीजन फूंकने लगती है या सो जाती है |”

भाई साहब अब आप ही बताईये कि कौन सास अपनी बहू का ऐसा व्यवहार बर्दास्त कर लेगी ?

“देखो पुष्पांजलि हर परिवार का रहन सहन का अपना अलग अंदाज होता है | जब लड़की अपने ससुराल आती है तो वह वहाँ के कायदे क़ानून से अनभिग्य होती है | उसको ससुराल में सीखना या सिखाना पड़ता है |”

“परन्तु यह तो सीखना ही नहीं चाहती |अगर इसको कुछ कहो तो इसके होठों में सिलाई लग जाती है |गाल फूलकर कुप्पा हो जाते हैं तथा लाल लाल आँखे बाहर निकलती प्रतीत होने लगती हैं |”

अग्रवाल ने अचानक सवाल किया, “लगता है रजनी को साज श्रृंगार का भी कोई शौक नहीं है ?”

“साज श्रृंगार तो तब करे जब किसी शक्ल सूरत की हो |”

“रजनी को अकेले आपने ही तो पसंद किया था ?”

पुष्पांजलि झेंपते हुए, “किया तो था परन्तु मुझे क्या पता था कि यह ऐसी काम चोर निकलेगी ?”

“तो क्या आपको अपने लिए एक बहू नहीं काम वाली बाई चाहिए थी ?”

“नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है |”

“अगर ऐसी बात नहीं है तो फिर अपने लड़के के लिए अपनी जैसी सुन्दर और गुणवंती लड़की क्यों नहीं लाई ?”

अग्रवाल के वचन सुनकर पुष्पांजलि का चेहरा खिल उठा |वह इतराई | अपनी सुंदरता की प्रशंसा सुनकर उसकी गर्दन गर्व से अकड गई | उसके शरीर में हलचल सी हुई | उसकी आँखें उसके मन की सारी खुशी बयान करने लगी थी | 

अचानक अग्रवाल ने थोड़ा सीरियस होकर पुष्पांजलि को नसीहत देना उचित समझते हुए कहा, “पुष्पांजलि मनुष्य के मन में छुपा अहंकार एक बहुत महत्त्व पूर्ण भूमिका निभाता है और यह कई कारणों से उपजता है मसलन धन, ज्ञान, बल, पद और रूप आदि |”

“हाँ भाई साहब यह तो है |”

“परन्तु इन सबका अंजाम एक ही होता है |”

“वह क्या ?”

“विनाश |”

अग्रवाल ने अपना तर्क पक्का करने के लिए जोड़ा, “जैसे कहा गया है कि ‘अहंकार में तीन गए धन, वैभव और वंश, न मानों तो याद करो रावण, कौरव और कंस’ |”

पुष्पांजलि समझ नहीं पा रही थी कि उसकी पुत्र वधू से मिलने के बाद अग्रवाल ऐसा व्याख्यान क्यों कर रहे हैं अत: पूछा, “भाई साहब इन बातों से आपका आशय क्या है ?”

“पुष्पांजलि मेरे विचार से हवस भी एक प्रकार का अहंकार है जिसके वशीभूत मेरी राय का आपके ऊपर कोई असर नहीं हुआ और आज आप आर्थिक संकट का सामना करने पर मजबूर हो क्योंकि आपके ऊपर धन संकट मंडरा रहा है | यह आपके अहंकार की पहली अवस्था दर्शाती है |”

पुष्पांजलि ने अपनी गर्दन झुकाकर धीरे से कहा, “सच में भाई साहब अगर मैं आपकी नेक सलाह मान   लेती तो हमें यह दिन न देखने पड़ते |”

“खैर जो हुआ उसका धैर्य से सामना करो | धीरे धीरे संभल जाओगे | परन्तु अब मैं एक और कड़वी बात कहने जा रहा हूँ |”  

 पुष्पांजलि ने उतावले होकर पूछा, “वह क्या है ?”

“यही कि आपके धन का तो नुकसान हो ही रहा है अब अपना वैभव, आदर-सत्कार और मान मरियादा को संभालने का समय है |”

पुष्पांजलि चौंकी, “क्या मतलब ?”

“मतलब यही कि तुम्हारी अपनी बहू पर ज्यादती अधिक दिन नहीं चल सकेगी |”

“भाई साहब मैं उस पर ऐसा क्या जुल्म ढाह रही हूँ ?”

“अपनी पुत्र वधू को चपत लगाना क्या जुल्म नहीं है ?”

“भाई साहब, आप भी मुझे ही दोषी करार दे रहे हैं ?”

“दोषी करार देने की बात नहीं है मैं तो जुल्म की बात कर रहा हूँ |”

“भाई साहब चार सदस्यों के घर में काम ही कितना होता है |”

“जो भी है वह निर्मलता से मिलजुलकर भी तो किया जा सकता है ?”

“भाई साहब, विनीत, विजया और इनके पापा तो सुबह ही अपने अपने कामपर निकल जाते हैं | उनके नाश्ता वगैरह का इंतजाम मैं ही करती हूँ | यह महारानी तो उस समय तक बिस्तर ही नहीं छोडती तो काम क्या करेगी ?” 

“आपको विनीत से कहना चाहिए कि वह उसे अपने घर के वातावरण से अवगत कराए |”

पुष्पांजलि हाथ उठाकर, “अजी राम भजो, हम सब कहकर थक लिए परन्तु वह बदलती ही नहीं |”

“आप सभी का एकजूट होकर कहना गलत है | आप यह मसला सिर्फ विनीत पर छोड़ दो |”

अबकी बार पुष्पांजलि अग्रवाल की तरफ टुकुर टुकुर देखकर अनमने मन से चुप हो गई जिससे अग्रवाल  को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसे राय पसंद नहीं आई | 

पुष्पांजलि को समझाने हेतू अग्रवाल ने फिर कहा, “पुष्पांजलि मानव जीवन में क्रोध, घृणा, ईर्षा, ॠण और अहंकार आदि नाकारात्मक प्रवृतियों का परिणाम बड़ा ही भयानक होकर उभरता है | इसलिए इसे अग्नि के समान वृद्धि होने से पूर्व समाप्त कर देना उचित होता है | इनके कारण अपेक्षाओं की पूर्ति न होने से खिन्नता पैदा होती है और वही क्रोध का आधार बन कर व्यवहार में क्षमा और विवेक को क्षीण कर देती है | हमारे ग्रन्थ, पुराण, उपन्यास इत्यादि इस बात के गवाह हैं कि अहंकार से ग्रस्त व्यक्ति सब कुछ खो देता है और बाद में पछताने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं बचता | बड़े बड़े राजा, महाराजाओं, ॠषी मुनियों के उदाहरण न देकर मैं अपने साथ घटित एक सत्य घटना का वर्णन करता हूँ जिसमें अपने अहंकार के कारण बैंक में समझे जाने वाले एक दबंग नेता ने अपना मान सम्मान और आदर सत्कार खो दिया  था |

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