XXVII
माला ने अपनी भतीजी संतोष, गुलाब की पत्नि, से विदा ली |
अपना सारा सामान लेकर
वह जीने से नीचे उतरने के लिये आगे बढी तो संतोष ने गुलाब को आवाज लगाते हुए कहा, "अजी सुनते हो, बुआ जी जा रही हैं |”
“कौन सी बुआ जी ?”
“गाजियाबाद वाली |”
“गाजियाबाद वाली ! वहाँ मेरी कौन सी बुआ जी रहने लगी ?”
“आपको कुछ नहीं पता | नीचे आकर देखो |”
“गुलाब नीचे आकर, कौन सी बुआ जी जा रही हैं ?”
संतोष अपने चेहरे पर एक शरारती मुस्कान बिखेरते
हुए तथा माला की और इशारा करते हुए, “ये जा रही हैं |”
गुलाब मजाक में मारने के अन्दाज में अपना
हाथ उठाते हुए, “क्या ये मेरी बुआ जी
हैं ?”
संतोष हँसते हुए बचने की कोशिश करते हुए,
“मैनें कब कहा था कि
आपकी बुआ जी जा रही हैं |”
गुलाब एवं संतोष की इस नोंक झोंक से वहाँ
खड़े सभी व्यक्ति मुस्कराए बिना न रह सके | आखिर माला ने हाथ जोड़कर नमस्ते करते हुए
(परंतु गुलाब की और नजरें इस अन्दाज से चलाते हुए कि जैसे कह रही हों, देखो मैनें शुरूआत
कर दी है अब मुलाकात का सिलसिला न तोड़ना | मैं तुम्हारे दर्शन बिना अब न रह पाऊंगी)
| अच्छा चलती हूँ |
माला के इस अन्दाज को हम दोनों के बीच खड़ी
संतोष ने भाँप लिया | संतोष ने एक कटाक्ष भरी नजरों से गुलाब की और देखा |
गुलाब सिर से पाँव
तक काँप गया जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो परंतु वह अपने को सम्भालते हुए माला से बोला, "अच्छा ठीक से जाना
|”
इसके बाद दिन गुजरने लगे | यदा कदा जब भी कहीं
रिस्तेदारी में कोई शादी ब्याह इत्यादि होता तो गुलाब एवं माला का मिलन हो जाता था
| आपस में कुशल क्षेम पूछने भर से ही दोनों की आत्माओं को तृप्ति मिल जाती थी |
देखते ही देखते गुलाब
एवं माला के सभी बच्चों की भी शादियाँ हो गई | सब अपनी जगह खुश थे
|
एक दिन संतोष ने कुछ रूआंसे अन्दाज में कहा, "जी, आज बुआ जी आई थी |”
गुलाब संतोष को न समझते हुए अपने मजाकिया
अन्दाज में ही बोला, “तोषी साथ में यह भी बताया करो कि कौन सी बुआ जी क्योंकि आपकी
कई बुआ जी हैं |”
“देखो यह मजाक करने का समय नहीं है |”
गुलाब ने संतोष के चेहरे पर उदासीनता देखकर, “क्यों क्या बात है सब खैरियत तो है ?”
“दुकान वाली बुआ जी आई थी | कह रही थी कि माला बुआ जी बहुत बिमार हैं |”
गुलाब थोडा चौंकते हुए परंतु संयम रखते हुए, “क्यों क्या बात हुई?”
“उन्हें रीढ की हड्डी में तो दर्द पहले से ही रहता था अब उसने उग्र रूप धारण कर
लिया है |”
“रीढ की हड्डी का दर्द ! परंतु मुझे तो आज तक पता ही न चला कि वह कई साल से बिमार
हैं | मैं तो जब भी उनसे मिला उनके चेहरे पर हमेशा रौनक ही दिखाई दी |”
संतोष शायद जल्दी में थी अतः ज्यादा वार्तालाप
न करते हुए उसने सीधा ही कहा, “ अच्छा अब ऐसा है कि शालू बुआ जी अस्पताल जा रही हैं | मैं भी उनके साथ जाकर
माला बुआ जी का हाल देख आती हूँ |”
“अस्पताल में ! तो क्या हालत ज्यादा बिगड गई है ?”
“हाँ कुछ ऐसा ही सुनने में आया है | अच्छा मैं जा रही हूँ |”
गुलाब अकेले में बैठा विचारों में खो गया
| विचार माला के इर्द गिर्द चक्कर लगाने लगे | गुलाब ने सोचा कि जब
भी वह माला से मिलता था और उससे कुशलक्षेम पूछता था तो उसका पहला वाक्य यही होता था
कि ‘उनके आने से जो आ जाती है चेहरे पर रौनक तो वे समझते हैं कि बिमारों का हाल अच्छा
है’| फिर गुलाब माला से जो थोडी देर और इधर उधर की बातें करता उस दौरान भी माला ने कभी
ऐसा जाहिर नहीं होने दिया कि उसे किसी प्रकार की कोई तकलीफ है |
गुलाब ने अपने आप से पूछा, "भला माला
ने ऐसा क्यों किया होगा |” उसके दिमाग में कई उत्तर एक साथ मचलने लगे |
1- शायद माला अपना दुख बताकर गुलाब को दुखी
नहीं करना चाहती थी |
2-शायद उसे जो थोड़ा समय गुलाब से बात करने
को मिलता था उसमें अपना दुखड़ा रोकर उन सुनहरी एवं हंगीन पलों को बर्बाद करना नहीं चाहती
थी |
3-शायद वह समझती थी कि गुलाब को बताने से
कोई फायदा नहीं था क्योंकि सामाजिक बंधन कुछ इस प्रकार के थे कि गुलाब उसके प्रति अच्छी
तरह सहानुभूति भी नहीं दिखा पाएगा |
वह अपने आप में ही बुदबुदाया चाहे कुछ भी
था माला को कम से कम एक बार तो बता ही देना चाहिये था कि वह कुछ बिमार चल रही है |
गुलाब को अपने उपर
ग्लानि सी मसूस होने लगी कि वह कितना बेपरवाह है जो उसे अभी तक नहीं पता कि माला बहुत
दिनों से बिमार चल रही है |
गुलाब बड़ी बेसब्री से संतोष के वापिस आने
का इंतजार कर रहा था | शाम को जब वह वापिस आई तो उसका उदास चेहरा देखकर गुलाब को किसी
अनजान आशंका ने घेर लिया | अतः बड़े उतावलेपन से उसने पूछा, "माला के क्या हाल हैं ?”
“अच्छे नहीं हैं |”
“क्या मतलब ? अचानक ऐसा क्या हो गया ?”
“यह अचानक नहीं हुआ | माला बुआ के जीवन में ऐसे कई कारण बने रहे जो उन्हें तिल तिल
खोखला करते रहे | हर घर की अलग कहानी होती है | आप तो जानते हैं कि
उनके दो लड़कियाँ तथा एक लड़का है | वैसे तो फूफा जी एक इंजीनियर हैं परंतु उनकी तनखा अर्थात कमाई
इतनी अधिक नहीं है कि घर का खर्चा चलाकर उनके पास कुछ बचता हो | फिर भी बुआ जी(माला)
जब हमारे यहाँ बेबी(प्रभा) की शादी में सम्मिलित होने आई थी तो बहुत खुश व संतुष्ट
दिखाई पड़ रही थी | यहाँ से विदा होने से पहले मेरी उनसे बहुत सी बातें हुई थी |
बातों के चलते सिलसिले
में हमारी कुछ इस प्रकार की बातें हुई थी | उन्होने मेरे से कहा
था, "संतोष तुम तो जानती
हो कि मेरी गुड़िया (लड़की) भी सयानी हो गई है |"
“हाँ बुआ जी वह भी तो मेरी बेबी के साथ की ही है |”
माला कुछ झिझकते हुए, “संतोष तुमने लड़का तो बहुत अच्छा ढूंढा है
|”
“बुआ जी बस उपर वाले की रहमत रही समझो |”
“वैसे तुम्हे यह मिला कैसे ? माला ने पता करने की गरज से पूछा |”
“बुआ जी बात ऐसे बनी कि मेरे बसंत वाले नन्देऊ के छोटे भाई की शादी थी |
बारात में हमने अपने
लड़के प्रबीण को भेज दिया था | उसी रात को इनके पास मेरी छोटी नन्द के ससुर का फोन आया |
उन्होने पूछा, "क्या तू मस्जिद
मोठ शादी में नहीं गया ?" इन्होने मना करते हुए कह दिया कि मौसा जी मेरा जाना क्या बनता
है इसलिए बच्चों को ही भेज दिया है | परंतु मौसा जी ने इन्हें वहाँ जाने पर बहुत
जोर देते हुए बताया कि वहाँ बारात में एक लड़का आएगा जो तेरी लड़की(बेबी) के लिए हर प्रकार
से उपयुक्त है | उसे देख लेना | अगर पसन्द आ जाए तो फिर बताऊँगा कि आगे कैसे
करना है |
हमने अपनी बेबी के लिए अभी तक सपने में भी
उसकी शादी के बारे में नहीं सोचा था क्योंकि वह महज उन्नीस वर्ष की हुई थी |
परंतु शायद जोड़ी संजोग
जोर लगा रहे थे | अपने मौसा जी के कहने से ये उस शादी में चले गए | जब इन्होने लड़का देखा
तो वह इन्हें एक नजर में ही भा गया | इनके अनुसार लड़के में तीन खुबियाँ होनी आवशयक
हैं | पहली, लड़के की सेहत एवं कद काठी अच्छी हो और उसमें कोई एब या बुरी लत न हो | दूसरे, रहने के लिए उनका अपना मकान हो | तीसरे लड़का अपने पैरों पर खड़ा हो | वह लड़का इनकी कसौटी
पर खरा उतर रहा था |
इन्होने घर आकर जब मुझे बताया कि लड़का पसन्द है तो मैं अचम्भा
करने लगी | मैने सोचा कि मेरे लिए तो मेरे पिता जी लड़कों को देखते देखते परेशान हो गए थे जब
कहीं ये मिले थे और ये पहली बार में ही कह रहे हैं कि लड़का पसन्द आ गया | खैर जब बात बननी होती
है तो भगवान रास्ते भी अपने आप निकाल देता है |
जब इन्होने लड़के के बारे में अपने बडे भाई
शिव जी को बताया तो उन्होने दरियाफत करना शुरू किया, "लडके का नाम क्या है?"
“मनोज कुमार गुप्ता |”
“क्या काम करता है ?”
“प्राईमरी स्कूल में मास्टर है |”
“कितना पढा है ?”
“बी.ए. बी.एड. |”
फिर तो आगे बढने तथा तरक्की के बहुत मौके
मिलेंगे | शिव गुलाब ने संतुष्टता दिखाई | फिर पूछा, "अच्छा बताना वह किस का लड़का है ?"
“श्री भजन लाल गुप्ता का |”
शिव ने अपनी आवाज पर कुछ जोर देते हुए पूछा,
"क्या कहा भजन लाल का ?"
“हाँ भाई साहब उन्होने यही नाम बताया था |”
अपने मन की शंका को मिटाने के लिहाज से शिव
ने पूछा, “भजन लाल कहाँ रहते
हैं ?”
“मालवीय नगर |”
मालवीय नगर का नाम सुनकर शिव का उतावलापन
उतर गया तथा वह धीरे से बोला, “तो फिर कोई और होंगे |”
“परंतु भाई साहब यह और पता चला है कि पहले वे दरियागंज रहते थे |”
“दरियागंज ! तो हो सकता है कि ये वो ही हों | फिर थोडा सोचकर, “अच्छा गुलाब तू एक काम कर युसुफ सराय मौसा
जी को टेलिफोन मिला | मौसा जी ने भजन लाल के बारे में पूरी जानकारी देने के बाद शिव
से कहा कि वे बसंत से राधे शयाम को साथ ले जाकर बात कर लें तो बात आसानी से बन जाएगी
| परंतु भजन लाल के बारे में पूरी खबर मिलने के बाद शिव ने किसी को भी साथ लेने की
जरूरत नहीं समझी तथा दोनों भाई ही भजन लाल जी से मिलने पहुंच गए |
घर के अन्दर घुसते ही जो औरत उनके सामने आई
उसे देखकर शिव ने दोनों हाथ जोड़कर कहा, "चाची जी नमस्ते |"
गुलाब अपने भाई साहब के मुहँ से उस औरत के
लिए चाची जी शब्द का इस्तेमाल करते सुन अचम्भित रह गया | फिर उसे ध्यान आया
कि उसके बड़े भाई साहब ने मालवीय नगर आते वक्त बड़े विशवास के साथ कहा था कि अब किसी
को साथ लेने की जरूरत नहीं है क्योंकि वे जान गए थे कि वे भजन लाल को अच्छी तरह जानते हैं तथा उनकी बात को नकारना भजन लाल के लिए मुशकिल पडेगा |
गुलाब की तंद्रा तब भंग हुई जब सामने खड़ी
औरत ने शिव को सम्बोधित करते हुए कहा, "अरे आप ! आज कैसे रास्ता भूल गए ?"
“चाची जी बस पता ही न चला कि आपने मालवीय नगर मकान बना लिया है | दुकान का तो पता चल
गया था कि आपने सेठ मुंशी राम के यहाँ से नौकरी छोड़कर अपना काम शुरू कर लिया है |”
“अच्छा बैठो मैं पानी लाती हूँ |”
“चाची जी अभी थोड़ी देर पहले ही तो घर से निकले थे | प्यास लगेगी तो खुद
ही माँग लेंगे | आप भी बैठ जाओ |”
“ठीक है, वैसे कैसे आना हुआ ?”
“चाची जी, गुलाब की और इशारा
करते हुए, यह मेरा छोटा भाई है | भारतीय स्टेट बैंक में कार्यरत है | इसके पास तीन बच्चे
हैं | एक बेटी तथा दो बेटे | बेटी शादी लायक हो
गई है | उसके लिए आपके बेटे मनोज की बात करने आए हैं |”
भजन लाल जी की पत्नि कृष्णा धीमी धीमी मुस्कराते
हुए बोली, “भला मैं आपको कैसे
मना कर सकती हूँ | परंतु मनोज के बाबू जी एवं बड़ा भाई दिनेश अभी आने वाले हैं इस
बारे में वे ही निर्णय लेंगे |”
इतने में दिनेश तथा भजन लाल जी अन्दर प्रवेश
करते हैं | शिव, भजन लाल को चाचा जी
शब्द से सम्बोधित करके प्रणाम करता है | सारी बात सुनकर भजन लाल जी तीन दिन बाद आ
रहे पहले नवरात्रे को बिरला मन्दिर पर लड़की देखने का प्रोग्राम तय कर लेते हैं |
आगे की कार्यवाही हेतू निश्चित दिन बिरला
मन्दिर पर सभी एकत्रित हो जाते हैं | देखा दिखाई के बाद मनोज जी की तरफ से सवाल
उठाया जाता है, “लड़की में दो कमियाँ
नजर आती हैं |”
इस पर शिव ने यह न पूछकर कि वे कमियाँ क्या
हैं मनोज जी से एक उल्टा प्रश्न कर दिया, “कितनी बातों में से ?”
"दस में से", मनोज जी ने कुछ सोचते हुए कहा |
दस में से दो जानकर शिव थोड़ा मुस्कराया |
फिर बड़े विशवास से
बोला जैसे अब उस रिस्ते को होने से कोई नहीं टाल सकता, "देखो जी आप एक मास्टर हैं | अगर आप की क्लास में
कोई विध्यार्थी परीक्षा में दस में से आठ अंक प्राप्त कर लेता है तो क्या आप उसे फेल
कर देंगे ?”
बुआ जी, मेरे जेठ जी का तर्क सुनकर तथा बात
को जायज समझकर मनोज जी केवल मुस्करा कर रह गए | और इस तरह रिस्ता पक्का
हो गया |
पूरी कहानी सुनकर माला बोली, "संतोष तुम्हारी लड़की
बहुत भाग्यवान है जो उसे हर मायने में ऐसा सुन्दर दुल्हा मिला है |" वैसे, कुछ हिचकिचाहट तथा शर्माते हुए, “तू अपने उनसे कहना कि मेरी गुड़िया के लिए
भी ऐसा ही कोई लड़का ढूंढ दें |”
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