Tuesday, September 8, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' (भाग-XXII)

 XXII

अस्पताल

शाम ढल चुकी है | सभी मरीज टेलिविजन के सामने बैठकर खाना खा रहे हैं | उस पर भारत-पाकिस्तान के युद्ध के समय की खबरें दिखाई जा रही हैं | पाकिस्तानी लड़ाकू जहाज भारी बमबारी कर रहे हैं | इतने में भारतीय वायु सेना का एक नेट विमान पाकिस्तान के जहाज को निशाना बना कर राकेट दाग देता है | राकेट ठीक निशाने पर लगता है और पकिस्तानी जहाज बम फटने जैसी आवाज करते हुए हवा में ही टुकड़े  टुकड़े हो जाता है | यह आवाज कमरे में इतनी तेज गूंजती है कि चरण, जो तीन महीनों से एक मुर्दा लाश की तरह पड़ा था, के कानों को झनझना देती है | गुलाब के मानस पटल पर अभी तक शायद वही दृशय छाए हुए थे जब उसकी यूनिट पर बमबारी होने जा रही थी तभी तो वह चिल्ला उठा, "सब के सब धरती पर लेट जाओ | दुशमन के जहाज उस ओर से बमबारी करते हुए आ रहे हैं | कुछ ही सैकेंडों में वे हमारे ऊपर होंगे | जल्दी करो | भाग्य तुम्हारा साथ दे !अलविदा |”

हडबडाहट में गुलाब उठकर बैठ गया परंतु जब उसे कुछ दिखाई नहीं दिया तो यह कहने लगा, "मुझे कुछ दिखाई क्यों नहीं देता | मैं कहाँ हूँ |” 

कहकर गुलाब अपनी आंखो पर बंधी पट्टी को टटोलते हुए उसे खोलने की कोशिश करने लगता है |

नर्स गुलाब को देखकर तथा उसके हाथ पकड़ते हुए, “यह क्या करते हो ?”

“मैडम आप कौन हैं और मेरी आंखो पर ये पट्टी क्यों बंधी है ?”

“आप अस्पताल में हैं | यहाँ आपकी आंखो का इलाज हो रहा है |”  

"क्यों सिस्टर मुझे क्या हुआ था, "आश्चर्य से  पूछा गुलाब ने |

सिस्टर ने बिना गुलाब के प्रश्न का उत्तर दिये, “यह जानने के लिये कि क्या वास्तव में गुलाब होश में आ गया है,  उससे एक और प्रश्न किया, "क्या आप अपना नाम जानते हैं?” 

“हाँ हाँ भला मैं अपना नाम क्यों नहीं जानूंगा |” 

“तो बताओ क्या नाम है तुम्हारा ?”

“गुलाब, मेरा नाम गुलाब सिहँ है |”

“फिर तो आप यह भी जानते होंगे कि आपके साथ क्या हादसा हुआ था | जिसके कारण आपको यहाँ आना पड़ा | अपने दिमाग पर जरा जोर देकर याद करने की कोशिश करो |”

इसके साथ ही नर्स एक अर्दली को भेजकर गुलाब की स्थिति के बारे में डाक्टर कोहली को सूचना भिजवा देती है | खबर पाकर जब डाक्टर कोहली वार्ड में आते हैं तो नर्स उन्हें सूचित करती है कि मरीज ने अपना नाम गुलाब सिहँ बताया है | 

डा. कोहली:-गुड मार्निंग मिस्टर गुलाब सिहँ गुप्ता |

“गुड मार्निंग सर | परंतु माफ करना श्रीमान जी क्या मैं पूछ सकता हूँ कि मैं किससे बातें कर रहा हूँ ?” 

“मैं डाक्टर कोहली हूँ | आप का इलाज मेरी ही देखरेख में किया जा रहा है | आप अब कैसा महसूस कर रहे हैं ?” 

“वैसे तो मैं  स्वस्थ हूँ परंतु मेरी ये आंखे....?”

“हाँ आपकी आंखे, परंतु भगवान पर भरोसा रखो | कुछ ही देर बाद आपकी आंखो की पट्टियाँ खोली जाएंगी | आशा है आपकी आंखे भी आपके स्वास्थ्य की तरह बिलकुल ठीक होंगी | वैसे गुप्ता जी क्या आपको याद है कि जब आपकी आंखो को चोट पहूंची थी तो आप कहाँ थे ?” 

“हाँ, सर मैं जम्मू में था |(फिर कुछ सोचकर) तो क्या डाक्टर साहब मैं इस समय जम्मू में नहीं हूँ ?”

“गुप्ता जी आपका इलाज सेना अस्पताल आदमपुर में हो रहा है और आप तीन महीने से यहीं हैं |”

आश्चर्य से, “क्या तीन महीने से !”

“हाँ गुप्ता जी तीन महीने से आप बेहोशी की हालत में थे |” 

गुलाब मन में उतावलापन लिए, “डाक्टर साहब क्या मेरे घर वालों को मेरी खबर है ?” 

“उन तक खबर कैसे पहूंचती | आप को तो होश था नहीं और हमारे पास कोई रिकार्ड नहीं था कि आप कौन हैं | पाकिस्तान की उस बमबारी में सैकड़ों जवान जख्मी हो गए थे | उनको जल्दी जल्दी इलाज के लिए जहाँ सम्भव हो सका अस्पतालों में भेज दिया गया | और सभी तो बोल सकते थे अतः उनके घर वालों को खबर कर दी गई थी परंतु आप के बारे में ऐसा सम्भव न हो सका |”

गुलाब अपने माथे पर हाथ रखकर रोते हुए, "हे भगवान तूने यह क्या किया | मेरी माँ तो मरने जैसी हो गई होगी जब उसे मेरी खबर न मिली होगी |”

डाक्टर कोहली ने गुलाब को रोते देख उसका ढांढस बढाते हुए, "सुनो सिंह रोना नहीं | थोड़ी  देर में ही आपकी आंखो की पट्टियाँ खुलने वाली हैं | ऐसा न हो कि हमारी सारी मेहनत पर पानी फिर जाए तथा तुम भी हमेशा हमेशा के लिए देख न पाओ | अतः अपने आप को सम्भालो | आप हमें अपने घर का तथा यूनिट का पता बताओ जिससे हम दोनों जगह सूचना भेज सकें कि आप हमारे पास सकुशल हैं |”               

             गुलाब का घर 

दरवाजे पर दस्तक सुनकर माँ अनिता से कहती है, "देख तो बेटी अनिता दरवाजे पर कौन है ?”

अच्छा कह्ते हुए अनिता बाहर जाकर पता करती है तो डाकिया उसे एक चिट्ठी देकर चला जाता है | अनिता पत्र पर लगी भारतीय वायु सेना की मोहर से समझ गई कि वह पत्र भाई गुलाब के बारे में ही होगा | उसका मन एक और किसी अंजान आशंका से भयभीत होने लगा तो दूसरी और खुशी से लबालब होता प्रतीत हुआ | उसने हिम्मत करके काँपते हाथों से पत्र को खोला तथा पढने लगी | ज्यों ज्यों पत्र समाप्ति की और बढ रहा था अनिता की खुशी बढती जा रही थी | अंत में उसे अपने भाई गुलाब का चेहरा जैसे साक्षात नजर आने लगा | वह अपने भाई के ख्यालों में खो गई कि अचानक उसे अपनी माँ की आवाज सुनाई दी | वह खुशी में झूमती तथा उड़ती हुई सी चिल्लाती हुई माँ की तरफ दौड़ी, “माँ माँ भाई का पता चल गया है | वह सकुशल है | देख देख एयर फोर्स वालों की चिट्ठी आई है |” 

अनिता ने आकर चिट्ठी अपनी माँ की गोदी में डाल दी | माँ पढना लिखना तो जानती न थी फिर भी खुली चिट्ठी को उठाकर ऐसी नजरों से देखा जैसे उसने उसका सारा मजबून पढ लिया था | फिर उन्होने उस चिट्ठी को अपने सीने से लगा कर आंखे बन्द कर ली और थोड़ी ही देर में बन्द आंखो से खुशी के आंसू झर झर बहने लगे | 

अचानक मुर्गे की बांग सुनकर गुलाब की तंद्रा टूट जाती है | वह अपनी पत्नि तोषी की और देखता है जो अभी भी उसके सीने पर अपना सिर टिकाए लेटी उसकी बातें सुन रही थी, "देखो शायद भौर हो गई है |”

“अरे सचमुच यह तो सुबह होने को है | बाहर कुछ धुंधलका हो रहा है तथा मुर्गा बांग भी दे रहा है | संतोष अलसाई सी उठते हुए, "आपके रोचक एवं सस्पैंस भरे संस्मरण सुनने में पता ही न चला कि समय कब बीत गया |”

संतोष बाहर जाने को बढना ही चाह रही थी कि गुलाब ने यह कहते हुए कि अभी तो दिन निकलने में काफी देर है फिर काम भी कुछ नहीं है इसलिए थोड़ी देर सो लो नहीं तो सारा दिन सुस्ती ही चढी रहेगी, अपना हाथ बढाकर बत्ती बुझा दी तथा लेटे ही लेटे  संतोष को खींचकर अपने आगोश में भर लिया | सवेरे के धुंधलके में केवल चादर ही हिलती नजर आई |     


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