Sunday, September 27, 2020

उपन्यास 'ठूंठ' (रिश्ता पक्का)

 रिस्ता पक्का 

समय के साथ सागर जवान हो गया | उसके रिस्ते आने शुरू हो गए | कुंती ने राघवजी के न होने से करण को यह कह तो दिया कि अगर कोई रिस्ता आता है तो बात कर लिया करें परंतु करण जानता था कि उसका बताया रिस्ता कुंती को कभी भी मंजूर नहीं होगा | फिर भी करण ने एक रिस्ता बताया | लड़की सागर की तरह बी.टैक थी तथा नौएडा में ही विपरो कम्पनी में सर्विस कर रही थी | उसके पिता मुज्जफर नगर के मूल निवासी थे | 

करण ने सागर से पूछा, “बोल सागर बी.टैक लड़की चलेगी ?”

“मौसा जी, मैं भी तो बी.टैक ही हूँ |”

“लड़की की लम्बाई पाँच फुट एक इंच है |”

“चलेगी | क्योंकि इससे लम्बी लड़की ऊँची एडी की सैंडल में मेरे से लम्बी दिखाई देगी |”

“विपरो कम्पनी में काम करती है |”

“बिलकुल ठीक है |”

“बात आगे बढाकर देखूँ ?”

“देख लो | आपके कहे अनुसार तो सब वाजिब है |”

“अपनी मम्मी जी से और राय ले लो |”

कुंती, सागर को अकेले में किसी से कोई बात करने नहीं देती थी | उसकी निगाह वहीं लगी रहती थी जहाँ सागर किसी से बात कर रहा होता था | करण के साथ बात करते देख वह वहाँ आ टपकी, "अजी क्या राय लेनी है |"

“यही कि एक लड़की है | लम्बाई पाँच फुट एक इंच है तथा विपरो कम्पनी में काम करती है | सागर की तरह बी.टैक करके नौएडा में ही लगी हुई है |”

“देखो जी, हमारे हिसाब से एक तो लड़की की लम्बाई कम है दूसरे हमें विपरो कम्पनी में काम करने वाली लड़की नहीं चाहिए |” 

अपनी मम्मी की बात सुनकर सागर ने कहा, "क्यों विपरो में काम करने वाली में क्या दोष होता है |"

कुंती सागर को डाँटते हुए बोली, " चुप, मैने कह दिया न कि हमें उस कम्पनी में काम करने वाली लड़की नहीं चाहिए |"

अपनी मम्मी जी की फटकार सुनकर सागर मजबूर नजरों से अपने मौसा जी को देखता हुआ वहाँ से चुपचाप चला गया |  

अपने अब तक के तजुर्बे से करण जानता था कि कुंती उसके बताए रिस्ते को अपने उपर एक एहसान मानेगी जो वह किसी हालत में चढने नहीं देगी | इसलिए करण ने अपने कदम फूंक फूंक कर रखना ही बेहतर समझा | अपने मन की यह धारणा करण ने अपनी पत्नि संतोष को भी उजागर कर दी परंतु वह यह समझना नहीं चाहती थी | वह तो अपने को सर्वेसर्वा मान कर चल रही थी | निशछल प्रवृति की संतोष तो अपने को सागर की बडी मम्मी मानती थी | वैसे भी उसकी नजरों में उसके अपने बच्चे कई प्रकार के खोट रखते हैं परंतु दूसरे उसको हमेशा पाक साफ नजर आते हैं | फिर सागर तो उसकी अपनी मेहनत का फल था तो वह प्यारा क्यों नहीं होता | 

जैसा करण सोचता था ठीक उसी प्रकार हुआ | कुंती एवं सागर ने शिव नारायण जी से उनकी लड़की शीतल के रिस्ते के तहत उसे देखने दिखाने की बात पक्की कर ली | इसके बाद उन्होने करण को इतला कर दी, “ सागर के रिस्ते के बारे में शिव नारायण जी का फोन आए तो बात कर लेना |”

करण को क्या इतराज हो सकता था | वह तो नेकी कर कुएँ में डालने की तर्ज पर अपना फर्ज निभाना चाहता था |

एक दिन शिव नारायण जी का फोन आया, "भाई साहब मैं शिव नारायण बोल रहा हूँ |" 

“नमस्कार जी, कहिए क्या बात है ?”

“मैं आपसे सागर जी के बारे में कुछ पूछना चाहता हूँ |”

“पूछिए आप क्या पूछना चाहते हैं ?”

“वे कहाँ के रहने वाले हैं ?”

“वे चन्दौसी, जो उत्तर प्रदेश में है, के मूल निवासी हैं |

इसके बाद करण ने एक एक करके वे सब बातें शिव नारायण जी को बता दी जो उन्होने पूछी | मसलन ,

“सागर के पिता स्वर्गीय श्री राघवकुमार जी उत्तर प्रदेश सरकार में जिला गणना अधिकारी थे |”

“उन्होने अपना मकान ग्वालियर बनाया था जिससे उनका लड़का अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके |” 

“जैसा कि आजकल अमूमन होता है उनका भी अपने घर वालों से आपसी प्रेम भाव बहुत कम था |” 

“सागर उनका इकलौता लड़का है |” 

“एक तरह से वह कुंती की देखरेख में ही पला बड़ा हुआ है क्योंकि राघवजी का तो मुशकिल में महीने में एक बार ही ग्वालियर जाना होता था |” 

“ग्वालियर रहते हुए अपने साले से भी उनके मधुर सम्बंध न रह पाए | वही स्थिति अभी तक बरकरार हैं |”

“हाँ उनका भतीजा अशोक उनके निकट ही नौएडा में रहता है तथा अपनी बुआ से मेलजोल रखे हुए है |” 

“सागर ने बिरला इंसटिच्युट आफ टैकनोलोजी से बी.ई. की डिग्री  की थी |”

“इस समय वह अस.टी.माईक्रो कम्पनी जो नौएडा में ही है में नौकरी कर रहा है |” 

“मेरे अनुभव के अनुसार उसमें कोई दोष या बुरी लत नहीं है |” 

“मैनें ये जो सब बातें आपको बताई हैं वे उसके गुणों के हिसाब से उन्नीस ही पडेंगी |” 

करण द्वारा कही सारी बातों को सुनने के बाद शिव नारायण संतुष्ट होकर बोले, "हाँ जी जो आपने उनके बारे में खुलासा किया है वैसा ही हमको बताया गया था |"

“अब और कुछ पूछना है तो बताओ ?”

“मुझे इस बात की खुशी है कि आपने सब कुछ साफ साफ बता दिया है | बस अब और कुछ पता करने की जरूरत नहीं है |” धन्यवाद |   

करण ने शिव नारायण को यह कहकर सकते में डाल दिया, “परंतु मुझे बताना है |” 

शिव नारायण भौचक्के से होकर बोले, “वह क्या ?”

“यही कि अब तक जो बातें मैनें आपको बताई हैं वे सागर के हिसाब से उन्नीस ही हैं |”

अबकी बार शिव नारायण जी बहुत खुश होकर तथा हंसते हुए बोले, “भाई साहब आपने यह बात बहुत सुन्दर कही है |” 

इसके बाद एक मॉल में हल्दी राम के एक आऊट लैट पर लड़का लड़की दिखाने का प्रोग्राम बना लिया गया | मिलने का समय रखा गया दिन के ग्यारह बजे | करण समय का पाबन्द था इसलिए वह अपने सभी के साथ ठीक ग्यारह बजे निश्चित स्थान पर पहूँच गया परंतु लड़की वालों की तरफ से वहाँ कोई दिखाई नहीं दिया | करण ने फोन करवा पर पता करवाया तो पता चला कि शिव नारायण जी अपने साथियों के साथ अभी रास्ते में ही थे | 

खैर उनके आने पर देखा दिखाई तथा बातचीत का दौर शुरू हुआ | बात पक्की हो गई और लड़के व लड़की की रोका रूकाई हो गई | तय हुआ कि आगे के कार्यक्रम बनाने हेतू करण के गुड़गाँवा वाले मकान पर बैठक रहेगी |

चलते हुए करण ने कह दिया, "समय पर आने की कोशिश करना |"

करण का आशय समझते हुए शिव नारायण जी कुछ शर्माकर बोले, "जी, जी मॉल की तरह नहीं होगा |"

“परंतु मॉल पर तो आप समय पर पहुँच गए थे”, करण ने बनते हुए कहा |

“बस अब और शर्मिन्दा न करो | मैं जान गया था कि आप वहाँ हमारे से पहले पहुँच गए थे | यह तो आपका बड़प्पन है जो आप ऐसा कह रहे हैं |”

सागर का रिस्ता पका करके सभी प्रसन्नता पूर्वक घर आ गए | परंतु करण महसूस कर रहा था कि कुंती तथा सागर इतने खुश नहीं दिखाई दे रहे थे जितना उनको होना चहिए था | आखिर वे दोनों ही तो थे जो इस रिस्ते के सबसे नजदिकी रिस्तेदार बनने वाले थे तथा भविष्य में उन्हीं को निभाना था | उनके अनमने पन को भाँपते हुए करण ने कुंती से पूछ ही लिया, "क्या कुछ दुविधा है, नए रिस्ते से खुश नहीं हो क्या ?"

कुंती कुछ अनमने मन से बोली, “नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है |” 

“तो फिर कैसी बात है, साफ़ साफ़ कहो ?”

कुंती ने थोड़ा अटकते हुए तथा मन मसोस कर कहा, "उन्होने..बस..ग्यारह्..लाख ..लगाने ..की कही है |"

करण आश्चर्य से, "कब कही ?"

“वहाँ जब बाहर लॉन में बैठे थे |”

“मुझे तो पता नहीं |”

“आप वहाँ नहीं थे |” 

“तो आपने वहीं उसी समय यह बात मुझे क्यों नहीं बताई |”

“मैने सोचा घर जाकर बता दूंगी |” 

“अब बताने से क्या फायदा |”

बीच में संतोष ने अपना मत देते हुए कहा, “जो हो गया सो हो गया |”    

कुंती को चैन न था अतः कहने लगी, “वैसे इसके सभी दोस्तों की जो शादियाँ हुई हैं वे कोई भी पंद्रह से कम की नहीं हुई |”

करण ने जोर देकर कहा, “सो तो ठीक है परंतु जब उन्होने ग्यारह कहे थे उसी समय बात करनी थी | अब तो उन्होने पक्का मान लिया होगा कि ग्यारह में मान गए हैं |”

इस बार सागर बोला, “वैसे मौसा जी ग्यारह में कैसे क्या होगा | इतना तो वे खुद ही खर्च कर देंगे फिर हमें क्या मिलेगा ?”

संतोष ने फिर अपना तकिया कलाम वाक्य कह दिया, “देखो मुझे तो अब उनसे इस बारे में कहना अच्छा नहीं लगता परंतु मैं नहीं जानती | आगे आप जानो |”

थोड़ी देर के मौन के बाद करण ने माहौल एवं बात का रूख बदलने के लिए यह कहते हुए कि वह कुछ सोचकर शिवनारायण जी से इस बारे में बात करेगा पूछा, "फिलहाल यह बताओ कि लड़की कैसी लगी ?"

कुंती मुस्कराते हुए ऐसे बोली जैसे ग्यारह की बात उसके दिल में फंसी हुई हो, " लड़की वगैरह तो सब ठीक है |"

“मुझे तो शीतल सागर से लम्बी लग रही थी”, भाभी  माया ने चुटकी ली |

प्रभा ने अपने भाई का पक्ष लेते हुए कहा, “वह इसलिए महसूस हो रहा था क्योंकि सागर का बैठने का तरीका ठीक नहीं था | वह कमर को टेढी करके बैठा था |”

“जब से चोट लगी है वह ऐसे ही बैठता है”, कुंती ने साफ किया |

“परंतु अब सगाई तक अपनी आदत सुधार लेना, “करण ने सागर को सलाह दी |

संतोष ने महौल में खुशी की लहर को तेज करने के लिहाज से एक मजाकिया तौर पर कुंती की और देखते हुए कहा, "मुझे तो समधी और समधन बहुत पसन्द आए |"

एक बार को लगा कि कुंती आज पहली बार दिल से हँसी थी |

इस बीच करण ने यह सोचकर कि शिव नारायण से ग्यारह के बारे में कैसे बात करनी है उन्हे टेलिफोन मिलाया,  "घर सकुशल पहुँच गए जी ?"

“हाँ जी सब सकुशल पहुँच गए हैं जी |”

“रिस्ता पक्का करने में कोई त्रुटि तो नहीं रही ?”

“नहीं जी ऐसी कोई बात नहीं है | अगर हमारी तरफ से रह गई हो तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ |”

“शिव नारायण जी माफी माँगने वाली कोई बात ही नहीं है | वैसे मुझे आपसे एक बात कहनी है |”

“आज्ञा दिजिए हमें क्या करना है |”

करण सीधा अपने मुद्दे पर आते हुए, "सुना है आपने ग्यारह की बात कही है ?"

“हाँ जी |” फिर जैसे शिव नारायण को अपनी भूल का एहसास हो गया हो बोला, "माफ करना जी मैं आपसे कहना भूल गया |"

“अगर आप मुझे वहीं कह देते तो अब बात करने की जरूरत ही न पड़ती | खैर बात यह है कि जब मैं पहली बार आपसे मिलने आपकी दुकान पर गया था तो मैनें बैठते ही आपकी हैसियत का अन्दाजा लगा लिया था |”

“वह क्या जी ?”

“कि आप खुद ही ग्यारह से ज्यादा की पार्टी हैं |”

“अजी हम कहाँ इतना ऊँचा सोच सकते हैं |”

“मेरा अन्दाजा गल्त नहीं हो सकता |”

“अच्छा जी तेरह कर लो |”

“तो फिर इन तेरह को मैं आपके कथन के अनुसार उन्नीस ही मान कर चलूँगा ईक्कीस नहीं |”

करण के ऐसा कहने से शिव नारायण की उन्मुक्त हँसी सुनाई दी तथा सुनाई पडा, “देख लेंगे जी |”

इस प्रकार कुंती एवं सागर की पहली समस्या का हल निकल गया था |

करण का पूरा परिवार सागर की शादी को लेकर बहुत उत्साहित था | माँ बेटे के साथ सब की सहानुभूति भी जुड़ी हुई थी क्योंकि उनको सहारा देने वाला कोई दिख नहीं रहा था | इसलिए सभी निष्कपट, निस्वार्थ एवं खुले दिल से सागर की शादी में हिस्सा लेने का मन बना चुके थे | वैसे तो करण भी इस हक में था कि सभी इसमें खुशी खुशी शामिल हों परंतु कुंती के पुराने व्यवहार को भाँपते हुए उसके मन में एक शंका ने घर कर रखा था कि उसका कुछ भरोसा नहीं था कि वह कब,  कहाँ तथा किस बात पर नाराज हो जाए और रंग में भंग कर दे | फिर भी संतोष के आग्रह से तथा यह सोचकर कि कुंती का लड़का सागर अब अपनी माँ को सम्भालने में समर्थ होगा, उसकी शादी का कार्य सम्पन्न कराने के लिए अपने कदम आगे बढा दिए | 

शादी की तैयारियाँ होने लगी | शादी में कौन क्या करेगा तथा किस को क्या कार्य करना है के मुद्दों पर चर्चा होने लगी | 

संतोष ने शुरू करते हुए कहा, "कुंती अपने मन में तूने बहू की सिर गूंथी करवाने के बारे में क्या सोचा है ?"

“सोचना क्या है, और कौन है, बेबी को ही ये नेग करना पडेगा |”

“क्यों स्नेह वगैरह भी तो हैं ?”

“हैं तो परंतु अब मैं किस किस के हाड़े खाते फिरूँगी |”

“देख कुंती हाड़े खाने की बात तो ये है कि समय पर तो न जाने किस किस के हाड़े खाने पड़ते हैं | स्नेह वगैरह भी तो अपनी हैं |”

“सो तो ठीक है परंतु प्रभा ही करेगी |”

“इसी तरह अपने आगे तक की सोच लेना कि किस टेहले में किस रिस्तेदार को क्या भुमिका निभानी है |”

“देख संतो तुझे पता ही है कि भगवान के बाद मेरा आप लोंगो के सिवाय और कोई सहारा नहीं है | सागर के पापा जी की जगह उसके मौसा जी सारा काम देख रहे हैं तो सागर की बहन की जगह उनकी लड़की ही सारे नेग करेगी | और लड़के के जीजा जी के सारे नेग फिर मनोज जी को करने ही हैं |” 

हालाँकि मनोज जी ने भी करण की तरह अपनी शंका जाहिर की थी कि वे मौसी जी के व्यवहार को समझ पाने में असमर्थ हैं इसलिए अपने को साधारण तरह से समारोह में सम्मिलित होने का प्रस्ताव रखा था | उनका यह सन्देह किसी हद तक वाजिब भी था |

जब कुंती के पिता जी बिमार थे तो मनोज जी उन्हें देखने ग्वालियर गए थे | उसी समय वे अपनी मौसी कुंती से मिलने की इच्छा से उनके घर चले गए | अभी तक उन्हें नहीं पता था कि उनकी मौसी करण से नाराज चल रही थी | वैसे भी करण से नाराजगी उनके बीच खट्टा बनने का सबब नहीं होना चाहिए था | परंतु ठूंठपन अपना रंग दिखा ही देता है | कुंती ने मनोज जी की कोई आवभगत नहीं की तथा वे थोड़ी  देर अकेले मकान की छत पर बैठकर जैसे गए थे उल्टे पैर वैसे ही लौट आए थे |

परंतु सभी के यह कहने पर कि उस समय और अब में तो कुंती के व्यवहार में जमीन आसमान का अंतर दिखाई दे रहा है मनोज जी ने भी खुशी खुशी सब नेग पूरे करने की हामी भर दी |

सागर की सगाई पर बहू की सिर गूंथी का काम प्रभा ने तथा अन्य काम माया, स्नेह ,रानी एवं कुंती की बडी बहन पार्वती ने सम्पन्न कर दिए | 

शादी की तैयारियाँ होने लगी | खरीद फरोखत तथा कैसे क्या कब और कहाँ करने के प्रोग्राम बनने लगे | प्रवीन ने सागर को अपना छोटा भाई मानते हुए अपनी मौसी को फोन मिलाया," मौसी जी आप भाई की शादी अपने घर गुड़गाँवा से कर लो तो बेहतर होगा |"

कुंती ने उस समय तो कह दिया कि विचार करूंगी परंतु उसके बाद इस बारे में कोई जिक्र नहीं किया |   

शादी के सामान की खरीदारी के लिए एक बार तो साथ गए परंतु उसके बाद तो बस पूछताछ तक की औपचारिक्ता तक ही सीमित रह गए | बताने के बावजूद काम अपनी मर्जी से होने लगे | 

करण को कार्ड की छपाई का मजबून तो भेजा गया परंतु उसमें बताई गई फेर बदल को नजर अन्दाज करके वही मजबून छपवा दिया गया जो देखने के लिए भेजा गया था |

कार्ड में कुंती एवं सागर के नाम को छोड़ कर घर के उन सभी स्वर्गवासियों के नाम छपवाए गए थे जिनको शायद कुंती ने जीते जी कभी इज्जत न बख्सी होगी तथा सागर का उन्हें देखना तो दूर रहा उनका साया भी सागर पर न पड़ा होगा |

अपने पिता समान जीजा जी, श्री सत्य प्रकाश जी का नाम भी अपने कार्ड में छपवाना जायज न समझा तो छोटे जीजा जी करण की क्या औकात थी | लगा सागर की सगाई तक ही कुंती को दूसरों का साथ चाहिए था क्योंकि ऐसा महसूस होने लगा था कि उसके बाद उसने सभी से दूरी बनानी शुरू कर दी थी | लग्न पाँच दिन के बजाय तीन दिन का कर दिया गया उस पर भी किसी रिस्तेदार को मन से नहीं बुलाया | 

पहले से प्रोग्राम बना था कि करण ही सागर की होने वाली ससुराल में उसकी शादी के कार्ड देने जाएगा | परंतु करण ने कुंती एवं सागर के रवैये तथा कार्ड के मजबून को देखते हुए कार्ड देने जाने में आनाकानी कर दी | उसने सोचा कि कार्ड तो वह ले जाएगा परंतु अगर वहाँ उससे किसी ने पूछ लिया कि आप कौन तो वह क्या जवाब देगा | वही बात हो जाएगी कि किसी ने पूछा पहचान मैं कौन तो सामने वाले ने कहा कि 'तू खाँमाखाँ !' तो करण खामाखाँ बनने से बचने ले किए कार्ड देने गया ही नहीं तथा सलाह दे दी कि जब सागर की ससुराल से लग्न पत्रिका देने आएँ तो कार्ड उन्हे ही थमा देना | कुंती की मंशा शायद पूरी हो गई थी तभी तो उसने करण से एक बार भी नहीं पूछा कि क्यों कार्ड देने आप क्यों नहीं जा रहे ?

मनोज जी को शादी के लिए बैंड बाजे तथा घोड़ी करने की कहने के बावजूद सागर ने उन्हें बिना बताए 38000/-रूपये की एक बैंड वाले को अग्रिम राशि भेज दी | जबकि मनोज जी ने 26000/- रूपये में जो बैंड कर लिया था उसकी जमा की गई अग्रिम राशि जब्त हो गई | इन सब कारनामों का आशय शायद किसी से कोई काम न कराकर अपने उपर एहसान न लेना था | 

कुंती की बड़ी बहन एवं जीजा जी उसके घर शादी से एक सप्ताह पहले पहुँच गए तो उसे बहुत खल रहे थे | इन्हीं सब बातों को देखकर करण सोच रहा था कि सागर की शादी में अपने पूरे परिवार को ले जाना बेहतर न होगा क्योंकि जब दो ही उसे खल रहे हैं तो हम आठ को वह झेल पाएगी भी या नहीं |

परंतु संतोष इतनी भाव विभोर एवं प्रसन्न थी जैसे उसके अपने तीसरे बेटे की शादी हो रही थी | वह हर बात में कह देती थी कि सागर तो मेरा सबसे प्यारा बेटा है | उसकी शादी में जाने के लिए वह बड़ी  मुस्तैदी तथा लग्न से हर अलग अलग टेहले में पहनने के लिए अलग नया कपड़ा लाई थी | बहू की मुँह दिखाई, रोटी कराई  एवं उसकी नौतनी के लिए पहले से ही इंतजाम करके बैठ गई | 

छोटे भाई की शादी के नाम पर संतोष ने प्रवीण तथा पवन के व्यापरिक संस्थान भी दो दिनों के लिए बंद करवा दिए थे | संतोष की प्रसन्नता को कोई ठेस न पहुँचे इस वजह से करण का पूरा परिवार तथा मनोज जी का पूरा परिवार खुशी खुशी 18 जनवरी 2010 को लग्न वाले दिन कुंती के यहाँ जा धमका |     


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