Tuesday, September 15, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' (भाग-XXIX)

 

XXIX

संजय को अजमेर के एक सरकारी अस्पताल में नौकरी मिल गई थी | इसलिए वह अजमेर चला गया | अभी वह वहाँ अकेला ही गया था | संजय कावेरी को उसके पिहर छोड़  आया था | माला घर पर अब अकेली रह गई थी | राधे को अपने सोचे हुए मकसद में कामयाब होने का यह सुनहरा अवसर मिल गया |

अपनी सोची हुई युक्ति के तहत बच्चों को सास के घर से लाने के लिए गुड़िया को न भेज वह खुद ही चला गया | जब वह सास के घर पहुँचा तो उन्हें कुछ विचार मग्न पाकर, "मम्मी जी क्या बात है आपके चेहरे पर कुछ उदासीनता का आभाष हो रहा है ?"

माला अपने चेहरे पर बनावटी हँसी लाते हुए बोली, "नहीं जी ऐसी तो कोई बात नहीं है |"

मम्मी जी आप लाख छुपाओ परंतु आपका चेहरा सब साफ साफ बता रहा है कि आपका मन किसी कारण उदास है |

जी बस यूँ ही ! कावेरी के बारे में सोच रही थी |

राधे ने अपनी सास की दुखती रग पर हाथ रखने की चेष्टा करते हुए, "मम्मी जी लगता है संजय की शादी की भाग दौड़ से आप काफी थक गई हैं | आपको आराम की शख्त जरूरत है |"

वह तो है परंतु .............. |

राधे को मन की मुराद मिल गई थी | उसने माला को पूरा वाक्य बोलने से पहले ही टोक दिया तथा अपनी तरफ से बहुत ही आत्मियता दिखाते हुए बोला, मम्मी जी आप किसी प्रकार की कोई तकलीफ न उठाएँ, हम हैं न | आप आराम से बैठो | मैं यहाँ का सब काम करीने से कर दूँगा | इतना कहकर बच्चों द्वारा बिखेरे गए सामान को राधे उठा उठाकर  ठीक जगह पर लगाने लगा |

राधे को ऐसा करते देख माला ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की परंतु वह न माना | वह बिखरी चिजों को उठाता रहा तथा बोलता रहा, मम्मी जी आप माने या न मानें परंतु वास्तव में आजकल की लड़कियाँ होती ही ऐसी हैं | काम चोर | देखो न संजय के जाने के साथ ही अपने मायके चली गई | एक बार भी नहीं सोचा कि आप अकेली रह जाएँगी | कम से कम इतना तो रूक जाती कि आपकी थकावट तो उतर जाती | आपकी उम्र का भी कोई ख्याल नहीं किया | आजकल के बच्चों को तो बस अपना सुख चाहिए | उन्हें बड़े बूढों की परवाह कहाँ है | उनकी फैमिली तो बस अपने आदमी और अपने बच्चों तक ही सीमित रहती है |

 माला ने बीच में कई बार राधे को टोकने की कोशिश की परंतु उसने एक न सुनी और अपना ही राग अलापता रहा | जब उसने बिखरा हुआ सारा सामान ठीक से लगा दिया तो माला से बोला, "मम्मी जी अब आप लेट जाईये | मैं आपके पैर दबा देता हूँ |"

अजी आप यह क्या कह रहे हैं ? माला अचम्भित होकर बोली |

क्यों इसमें हर्ज क्या है ,राधे ने बडा भोला बनते हुए कहा तथा माला को बाँह से पकड़ कर बिस्तर की और ले जाने लगा |

नहीं नहीं ऐसा मत करो मुझे अच्छा नहीं लगता | माला ने बड़ी मुश्किल से अपने को छुड़ाया |

क्यों मम्मी जी आप मुझे अपना बेटा नहीं मानती ?

मानती हूँ !परंतु.......|

अब परंतु वरंतु कुछ नहीं | एक तरफ बेटा मानती हो दूसरी तरफ सेवा करने का मौका नहीं देती |

अभी मैं इतनी कमजोर थोड़े ही हो गई हूँ कि मुझे आपसे अपना काम करवाना पड़े |  

हाँ हाँ आप ठीक कह रही हैं आप परंतु इस उम्र में काम करने की भी कोई सीमा होती है | अभी तो मैं जा रहा हूँ परंतु सुबह गुड़िया को भेज दूंगा | आप कुछ काम न करना | वह अपनी नौकरी पर जाने से पहले आपका नाश्ता वगैरह निपटा देगी | शाम को फिर मैं आ जाऊँगा |

माला नहीं जी नहीं जी चिल्लाती रह गई और राधे बिना कुछ सुने बच्चों को लेकर बाहर निकल गया |

घर पर गुड़िया  अधीरता से बच्चों का इंतजार कर रही थी |

जब राधे बच्चों के साथ घर के अन्दर आ गया तो गुड़िया  ने पूछा, "आज आपने घर आने में इतनी देर कहाँ लगा दी ?"

मैं तुम्हारी मम्मी जी के पास रूक गया था |

क्यों क्या कोई खास बात थी ?

ऐसी कोई बात नहीं थी बस यूँ ही | आपकी मम्मी जी को काम करते देखा नहीं गया | वे बहुत थकी सी लग रही थी | इसलिए उनके काम में हाथ बटाने लग गया था | तुम भी कल जब स्कूल के लिए बच्चे छोड़ने जाओ तो अपनी मम्मी जी का नाशता बना आना |

अरे वाह क्या बात है मम्मी जी पर बडा तरस आ रहा है |

तरस की बात नहीं है यह फर्ज की बात है | उनका अपना लड़का तो उनकी तरफ कोई ध्यान देता नहीं, मैं तो आँखे नहीं मूँद सकता | मुझे तो अपना फर्ज निभाना ही पड़ेगा |

गुड़िया अपने शौहर राधे की बातें सुनकर अवाक उसे देखती रह गई | उसकी समझ में नहीं आया कि अचानक उसके पति राधे के मन में उसकी मम्मी माला के प्रति इतनी सहानुभूति कहाँ से तथा कैसे जागृत हो गई थी |

गुड़िया ने बातों की गहराईयों मे जाने के लिए अपने पति से प्रशन किया, "मैं आपकी बातों का कोई भी मतलब निकालने में असमर्थ हूँ | इसलिए मुझे ठीक से समझाओ कि आपका तात्पर्य क्या है ?"

देखो गुड़िया मतलब वतलब तो मैं जानता नहीं अपितू इतना अवशय पहचान गया हूँ कि तुम्हारी भाभी अर्थात संजय की बहू  मम्मी जी की सेवा सुश्रा नहीं कर सकती | इसलिए इसका जिम्मा हमें ही उठाना होगा | कल से हम दोनों सुबह बच्चों को स्कूल के लिए छोड़ते हुए तुम्हारी मम्मी जी का सुबह का सारा काम निबटा कर ही अपनी अपनी नौकरी पर जाया करेंगे |

अगले दिन सुबह बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करके गुड़िया बोली, "चलो जी शुभ काम में देरी क्या |"

राधे ने चुटकी लेते हुए कहा, "अरे वाह कमाल कर दिखाया | मेरा कहा पहली बार में ही करने को तैयार हो गई |"

गुड़िया अपने चेहरे पर बनावटी गुस्सा लाकर, "मैनें कब आपका कहा ठुकराया है ?"

ठुकराया तो नहीं परंतु तर्क वितर्क करने के बाद ही किया है |

मैं क्या करूँ आपने पहली बार ऐसा सुझाव दिया है जिसमें तर्क वितर्क करने योग्य कोई पहलू ही नहीं है |

राधे अन्दर ही अन्दर बहुत प्रसन्न हो रहा था कि उसका तीर ठीक निशाने पर बैठा है | इसलिए बात ज्यादा न बढाते हुए बोला, "अच्छा अच्छा अब चलो वर्ना हमारे साथ साथ बच्चों को भी देर हो जाएगी |"

राधे तथा गुड़िया बच्चों को स्कूल के लिए बस में बैठा कर माला के घर पहुँचे | सुबह सुबह दोनों को एक साथ देखकर माला को बहुत आश्चर्य हुआ, "आप दोनों सुबह सुबह यहाँ ?"

हाँ मम्मी जी इन्होने रात को यहाँ से जाने के बाद एक बहुत अच्छा सुझाव दिया था |

वह क्या ?

कि हम दोनों सुबह आपका काम निबटा कर ही अपनी अपनी नौकरी पर जाया करेंगे | 

माला के लाख मना करने पर भी राधे तथा गुड़िया काम में लग गए तथा पूरा काम करके जाते जाते यह कह गए,मम्मी जी आप किसी प्रकार की चिंता न करें | कोई और करे न करे हम दोनों आपका पूरा पूरा ख्याल रखेंगे | हमारे पीछे से आप कोई काम करने का कष्ट न करना | ड्यूटी से वापिस आकर हम आपका शाम का काम भी निपटा कर ही अपने घर जाएँगे |

कावेरी ने तो अपनी सास, माला, के दिल में अपनी आस्था के कदम अभी रखे भी नहीं थे कि राधे और गुड़िया ने उसकी गैर मौजूदगी में वहाँ अपने पैर पसारने शुरू कर दिए थे | तभी तो राधे और गुड़िया के जाने के बाद माला सोचने पर मजबूर हो गई थी कि वास्तव में ही उसके दामाद और बेटी कितने अच्छे हैं | मेरा कितना ख्याल रखते हैं | क्या असलियत में कावेरी मेरे मन मुताबिक काम नहीं कर पाएगी | मुमकिन है मेरे दामाद की बात सही निकले | क्योंकि संजय तथा कावेरी दोनों पढे लिखे हैं | अनपढ गंवार समझ कर अपने रूतबे के चलते मुझे अनदेखा करने लगें | इत्यादि |

अपने कहे अनुसार शाम को गुड़िया तथा राधे दोनों माला के घर आ धमके | उन्होने पूरा काम किया तथा अपने घर जाने को विदा माँगी, "अच्छा मम्मी जी हम चलते हैं सुबह फिर आ जाएँगे |"

माला ने ममत्व दिखाते हुए अपनी इच्छा जाहिर की, इतनी देर हो गई है | मुझे अच्छा नहीं लग रहा कि अब आप दोनों वहाँ जाकर अपना खाना बनाओगे | आप सभी यहीं खाना खाकर जाओ |

राधे हाथ जोड़कर, "मम्मी जी हमारी चिंता मत करो | हम अभी काम करने लायक हैं |"

माला ने गुड़िया की बाँह पकड़कर उसे रोकते हुए बोला, गुड़िया तुझे मेरी कसम है | खाना यहीं खाकर जाओ |

अच्छा मम्मी जी आज तो हमें जाने दो | हम कल से सोचेंगे” ,कहते हुए राधे ने गुड़िया  तथा बच्चों को साथ लिया और बाहर निकल गया |

अगले दिन फिर सुबह राधे तथा गुड़िया, माला का चुल्हा चौका निपटा कर अपनी नौकरी पर चले गए | उनके जाने के बाद माला ने निशचय कर लिया कि आज से शाम का खाना वह अपनी बेटी के परिवार को अपने यहाँ से खिला कर ही विदा करेगी | शाम को माला ने अपने सोचे अनुसार ही राधे के परिवार को अपने यहाँ खाना खाने के लिए बाध्य कर दिया | इसके बाद लगभग दस दिन और ऐसे ही चलता रहा |  

माला दिन प्रतिदिन अपने दामाद एवं बेटी की सेवा भाव से आशवस्त होती जा रही थी | अब वह उनके दुख तकलिफों के बारे में बहुत कुछ सोचने लगी थी | वे किराए के मकान में रह रहे हैं | मेरे मकान में तीन कमरे हैं | खाली पड़े रहते हैं | उनको किराया भरना पड़ता है | संजय की नौकरी का तो कोई पता नहीं कि कहाँ लगे | क्यों न एक कमरा गुड़िया को ही दे दूँ | वे जल्दी सुबह तैयार होकर यहाँ आते हैं शाम को भी थके माँदे आकर मेरा पूरा काम करके अपने घर लौटते हैं | उनके यहाँ रहने से मेरा काम भी हो जाया करेगा तथा उन्हें अधिक दिक्कात भी नहीं उठानी पड़ेगी | मान लो संजय आ भी गया तो एक कमरा तो उसके लिए रहेगा ही | यही सब सोचकर माला ने अपने मन की बात गुड़िया को बता दी |

"अंधे को क्या चाहिए दो आँखे" पहले तो दिखावे के लिए राधे ने ना-नुक्कड की परंतु फिर अपनी ससुराल में बसने को राजी हो गया | आज वह अपने मन की मुराद की पहली सिढी चढ गया था | 

समय व्यतीत होने लगा | माला के मन पर अपने दामाद की सेवा एवं सहानुभूति की परत चढती गई | अपनी बहू की सेवा का स्वाद चखने से पहले ही वह उसे बेगानी सी महसूस होने लगी थी |

एक दिन संजय और उसकी पत्नि कावेरी अचानक अपने घर आ गए | अपने घर में अपनी बहन के परिवार को बसा देख संजय का माथा ठनका परंतु अभी इस बारे में बात करना उचित नहीं समझा | उनके साथ कावेरी का भाई भी था | संजय का सामान इतना अधिक था कि एक कमरा उसके सामान से ही भर गया | रात को सोने की समस्या उत्पन्न हो गई | अपने मन में समस्या का निधान सोचकर संजय ने अपने जीजा जी से विनती करते हुए कहा, "जीजा जी आज रात आप हमारे साथ बाहर बरामदे में सो जाना तथा कावेरी अपनी नन्द के साथ अन्दर सो जाएगी |"

राधे ने दो टूक जवाब दिया, "देखो साले साहब मुझे यह पसन्द नहीं है कि कोई हमारी सीमा लाँघे और न ही मैं किसी की सीमा लाँघना चाहता |"

संजय को अपने जीजा जी का आशय समझ नहीं आया अतः उसने पूछा, "आपका सीमा लाँघने का क्या मतलब है ?"

मतलब साफ है | मैं तो अपने कमरे में ही सोऊँगा | मैं नहीं जानता कि आप कहाँ तथा आपकी पत्नि कावेरी कहाँ सोएगी |

अपने जीजा के व्यवहार से हतभ्रत संजय कुछ कहना ही चाहता था कि राधे अनसुनी करके अपने कमरे में घुस गया |

सुख दुख उठाकर किसी तरह संजय, कावेरी तथा उसके भाई ने वह रात बिताई | यह संजय की समझ से बाहर की बात थी तथा उसे इस बात का अपार आश्चर्य हो रहा था कि उसकी मम्मी जी ने राधे के व्यवहार पर कोई टिप्पणी नहीं की |

संजय दस दिनों की छुट्टी आया था | उसने सोचा था कि इस बार वह कावेरी को अपनी मम्मी जी की सेवा के लिए उनके पास छोड़ जाएगा | इस बीच एक दिन संजय तथा माला साथ साथ किसी काम से बाहर कहीं गए थे | अकेले में कावेरी ने गुड़िया से राधे के उस रात के रवैये के बारे में जिक्र छेडते हुए पूछना चाहा, "बहन जी उस दिन जीजा जी ने ऐसा शख्त रूख क्यों अपनाया था |"

कैसा शख्त रूख ?

कि वे अपनी सीमा में रहकर ही अपने कमरे में सोएँगे |

इसमें उन्होने क्या गल्त कहा था ?

एक घर में रहकर ऐसी बातें शोभा देती हैं क्या ?

गुड़िया एक दम बिफरते हुए, तू अपनी शयानपत अपने पास रख | तू ज्यादा पढी लिखी होगी तो अपने लिए | कान खोलकर सुनले यह कभी न होगा कि तुम दोनों कुछ भी बोलते रहो और हम मानते रहें |

अपनी नन्द के हावभाव देखकर कावेरी सकते में आ गई फिर भी संयम रखकर बोली, बहन जी मैनें तो ऐसी चुभती बात कुछ नहीं कही |

कह भी मत देना | मैं भी इस घर में बराबर के हिस्से का हक रखती हूँ |

पर बहन जी......... |

बहन जी, वहन जी कुछ नहीं | ध्यान से सुन ले अगर ज्यादा ऐड-तैड करी तो तूझे लाश में बदल कर बाहर सड़क पर फिंकवा दूंगी | खबरदार आगे से हमारे आचरण के बारे में मुहँ भी खोला तो | बड़ी आई मुझ से जवाब तलब करने वाली | बड़बडाती हुई गुड़िया  अपने कमरे में चली गई | अवाक कावेरी उसे जाता देखती रह गई |

कावेरी अपने पीहर में बचपन से ही दूसरों के रहमों कर्म पर पली बड़ी हुई थी | माँ-बाप उसके बचपन में स्वर्ग सिधार गए थे | इसलिए अपनी जवानी तक उसने एक डरी तथा सहमी हुई जिन्दगी काटी थी | वह अपने मन में सपने संजो कर आई थी कि शादी के बाद ससुराल में अपने सास ससुर की छत्रछाया के तले वह अपने बचपन के खोए दिन लौटाने की चेष्टा करेगी | परंतु गुड़िया के आज के व्यवहार ने तो एक ही झटके में उसकी सारी आशाओं को चकनाछूर करके खंडहर बना दिया था | गुड़िया ने कावेरी की सारी आकांशाओं पर फलने फूलने से पहले ही तुषारपात कर दिया था | 

कावेरी इतनी सहम तथा भयभीत हो गई कि जहाँ वह बैठी थी वहाँ से उठना उसके लिए दुस्वार हो गया | वह दिवार का सहारा लेकर गुमसुम बैठ गई | उसे अपने दिमाग पर गुड़िया के कहे शब्दों के हथौडे से बजते महसूस हो रहे थे |

माला तथा संजय ने वापिस आकर कावेरी की ऐसी हालत देखी तो दोनों सकते में आ गए | संजय ने गुड़िया के कमरे में झाँका तो उसका चेहरा तमतमाया हुआ था | उसे समझते हुए देर न लगी कि राधे की तरह ही गुड़िया ने भी कावेरी के कोमल दिल को ठेस पहुँचाने में कसर नहीं छोड़ी होगी |

अपनी नन्द का रौद्र रूप देखकर कावेरी इतना भयभीत हो चुकी थी कि संजय के पूछने पर वह बस यही कहती रही, बस अब मुझे इस घर में नहीं रहना है |

क्यों ?

क्योंकि यहाँ मैं जिन्दा नहीं बचूंगी |

तुम ये क्या कह रही हो ?

गुड़िया की तरफ आँख उठाकर देखने की हिम्मत तो दूर कावेरी में इतना भी साहस नहीं था कि वह गुड़िया के कहे शब्दों को भी दोहरा सकती | माला के समझाने पर भी उसने उस घर में रहने से मना कर दिया और दस दिन बाद वह भी संजय के साथ चली गई | आज राधे ने सफलता की दूसरी सिढी पर कदम रख दिया था |

आपने देख लिया माता जी | न रह पाई आपकी सेवा के लिए | आजकल की पढी लिखी लड़कियाँ किसी काम की नहीं | माँ-बाप का शब्द तो उनकी डिक्शनरी में होता ही नहीं | उनका परिवार तो बस पति तथा उनके बच्चे ही हैं | खैर हम हैं न | आप किसी प्रकार की कोई चिंता न करें | राधे ने खाने की थाली माला के सामने रखते हुए कहा, "लो सब भूल कर अब गरमा गरम खाना खा लो |"  

माला का मन उदास था | उसने यह कहते हुए खाने की थाली सरका दी, भूख नहीं है |

मम्मी जी कावेरी के लिए इतनी चिंता मत करो | वह है ही इस लायक कि इस घर से बाहर ही रहे | गुड़िया  ने साफ साफ शब्दों में कहा |

राधे तथा गुड़िया द्वारा माला के मन में कावेरी के प्रति इसी तरह की घृणा एवं नफरत भरते भरते एक महीना बीत गया | अब राधे ने अपना अगला मोहरा चलने की सोच अपनी मम्मी जी को उकसाना शुरू कर दिया |

मम्मी जी केवल आपका मकान ही मकान रह गया है अन्यथा यह पूरी पंक्ति तो मार्किट बन गई है | देखो न मार्किट बनने से वे तो सारे ऊँचे हो गए हैं और आपका मकान झील सी में रह गया है |

राधे के कहने से माला को अपनी पुरानी परेशानी स्मरण हो आई जब वर्षा के दिनों में हकीकत में ही पानी भरने से उसका  घर एक झील बन गया था | वर्षा का पानी भरने से उसका कितना नुकसान हुआ था | इसलिए राधे की बात का समर्थन करते हुए वह बोली, " हाँ जमाई जी पिछली बरसात में वाकई में मेरा मकान झील बन गया था |  वर्षा ऋतु के आगमन का डर तो मुझे अभी से भयभीत करने लगा है |

जैसे लुहार लोहे को ढालने के लिए उसके गर्म होते ही उस पर चोट मारता है उसी प्रकार माला के दिल की तड़प सुनते ही उसने  तपाक से अपना सुझाव दिया, मम्मी जी अब तो आपको अपने इस मकान की अच्छी कीमत मिल जाएगी | इसे बेचकर उस पैसे से यहीं नजदीक में दूसरा मकान लेने के साथ साथ अपने भविष्य के लिए अच्छा खासा बचा भी लेंगी |

इतना कहकर राधे ने चोर निगाह से अपनी सास की तरफ ऐसे देखा जैसे उनका चेहरा पढने की कोशिश कर रहा हो |

माला ने कुछ सोचते हुए, "हाँ आप बात तो वाजिब कह रहे हो | परंतु...........|

माला अपनी बात पूरी करती इससे पहले ही जैसे राधे उसके मन की बात भाँप गया हो एकदम कह उठा, मम्मी जी आप उसकी चिंता न करें | मैं इसके बिकने से पहले अपने लिए दूसरे मकान का इंतजाम कर लूंगा | जिससे हमें किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो | एक मकान छोडेंगे तो दूसरे में जाकर बस जाएँगे |

बडे अनमने मन से माला ने राधे की बात का समर्थन कर दिया | राधे आज अपने लक्ष्य की और बढता हुआ तीसरी सिढी चढने में कामयाब हो गया था |

एक महीने की मशक्क्त के पश्चात राधे ने दोनों हाथों में लड्डू होने की बात को चरितार्थ कर दिखाया | उसने पहले मकान का सौदा भी कर दिया तथा दूसरा दोमंजिला मकान भी ढूंढ लिया |

भूमि तल पर तो उसने अपने सास व ससुर को बसा दिया तथा पहली मंजिल की रजिस्ट्री गुड़िया के नाम कराकर उसमें खुद अपने परिवार के साथ रहने लगा | आज उसने अपना मकसद पूरा कर लिया था |

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