Sunday, September 20, 2020

उपन्यास 'ठूंठ' समीक्षा

 समीक्षा

‘ठूँठ’ मन की उड़ान पर आधारित एक पूरक उपन्यास है | इसको दस भागों में विभाजित करके लेखक ने एक सराहनीय कार्य किया है क्योंकि इस का हर भाग इसके मुख्य पात्र कुंती के, समय और परिस्थितियों के अनुसार, बदलते चरित्र, सोच एवं आचरण का विश्लेषण बहुत ही मार्मिक तथा रोचक ढंग से प्रस्तुत करता नजर आता है | 

उपन्यास के प्रारम्भ में, एक मनुष्य में ठूंठता क्या होती है को बहुत ही सरलता से समझाया गया है | बच्चे के नामकरण के समय, संतोष द्वारा भगवान का आशीष मानकर, आशीष नाम  सुझाना उपन्यास के मूल पहलू को गरिमा प्रदान करता है | भाग ‘एहसान फरामोश’ मनुष्यता के नाम पर एक ठूँठ रह चुकी माँ के ह्रदय की उस तह को उजागर करता है जो किसी कीमत पर भी किसी का भी अपने दुलारे पर साया तक सहन नहीं कर सकती चाहे वह वही औरत क्यों न हो जिसके अथक प्रयासों से उसकी गोद भरी थी अर्थात वह माँ बन पाई थी |    

इसी तरह विघटनकारी, खुली लगाम, बे-लगाम, खाऊँ पांडू मानस की सी बाँस, तथा चिन्तन में कुंती अपनी आदत अनुसार अपने सगे संबंधी यहाँ तक की अपने पति को भी दरकिनार करके आश्वस्त हो जाना चाहती है कि उसके इकलौते पुत्र पर किसी और की सहानुभूति या प्रभाव का कोई रंग न चढ़ने पाए | 

परन्तु परिस्थितियाँ हमेशा एक जैसी नहीं रहती | समय के साथ ज्यादती, द्वेष, असत्य एवं घृणा का अंत अवश्य होता है | तभी मनुष्य अपने अंदर व्याप्त बुराईयों और कमियों का पश्चाताप करने पर मजबूर होता है | अंत में ठूँठ उपन्यास के लेखक ने भी यही दर्शाया है कि जब तक कुंती चापलूस वफादारों से घिरी रही तब तक उसे समाज और रिश्ते नातों की अहमियत का ख्याल ही न आया परन्तु जब एक एक करके चापलूसों का जमावडा समाप्त हो गया और अपने पुत्र सागर की शादी के बाद रात बिताने के लिए वह अकेली रह गई तब उसे महसूस हुआ कि अकेलापन अर्थात ठूँठपन कितना भयानक होता है |

हालांकि समय के बहाव के साथ अब कुंती के व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया है परन्तु कहावत है कि पुरानी आदत एवं लत आसानी से जड़ से समाप्त नहीं होती | परन्तु भगवान की लीला अपरम्पार है | उसने हर प्राणी का भविष्य छुपाकर रखा है | कब किसके साथ क्या घटित हो जाए कोई नहीं जानता | कुंती के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ और वह ठूँठपन छोड़ने के लिए मजबूर हो गई | इसीलिए अब लेखक के साथ साथ मैं भी भगवान से करबद्ध प्रार्थना करती हूँ कि कुंती की सदबुद्धी को बनाए रखे और कुंती के ठूँठपन का अंत करने में सहायक बनें |


चेतना मंगल 

स्नातकोत्तर(हिन्दी)

बी.एड. 



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