Thursday, September 10, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' (भाग-XXV)

 XXV

देवलाली माहाराष्ट्र के नासिक जिले में एक रमणिक स्थान है | यह एक हिल स्टेशन का दर्जा भी रखता है क्योंकि यहाँ का मौसम भी पहाड़ी इलाकों की तरह पूरे वर्ष बहुत सुहावना रहता है | गुलाब आजकल यहीं पर तैनात था | बम्बई की एयर फोर्स की डिपो बन्द हो गई थी तथा उसका सामान देवलाली की डिपो में आ रहा था | गुलाब वहाँ इंस्पैक्शन टीम का सदस्य था अतः आने  वाले हर सामान की शिनाख्त करके उसे यहाँ की डिपो के खाते में लेना पड़ता था | काम इतना अधिक था कि दिन में 18-18 घंटे काम करना पड़ता था | वैसे अब काम समाप्ति पर था | 

एक दिन वह थका मादा काम से वापिस आया तो उसे अपने बिस्तर पर एक पत्र रखा हुआ मिला | पत्र का ऊपर से मुआईना करने पर वह समझ न सका कि पत्र कहाँ से आया था तथा किसने भेजा था | क्योंकि जिस ढंग से उस पर पता लिखा था उस ढंग से आजतक किसी ने भी नहीं लिखा था | पत्र के भेजने वाले के बारे में भी केवल इतना लिखा था "आपका भतीजा" | पता उसका ही था अतः गुलाब ने पत्र खोल लिया | पत्र के अन्दर की लिखाई को देखकर भी  गुलाब को शंका हुई कि कहीं यह पत्र किसी और का तो नहीं क्योंकि उसकी समझ में नहीं आया कि वह पत्र किसका था | यहाँ भी उसके नीचे वही  लिखा था "आपका भतीजा" खैर उसने पढना शुरू किया, लिखा था |

आदरणीय चाचा जी,

नमस्ते | आपको जान कर दुख होगा कि यहाँ सब कुछ ठीक नहीं चल रहा | आपके न रहने से चाची जी बिना लगाम की घोड़ी के जैसा व्यवहार करती हैं | वे आजकल मौहल्ले में चर्चा का विषय बनी हुई हैं | अगर अभी शुरू में ही उन पर अंकुश न लगाया गया तो उनके हौसले बुलन्द हो जाएँगे तथा आपको पछताना पड़ेगा | मेरा बताने का फर्ज था अतः लिख दिया आगे आप खुद समझदार हो | 

आपका भतीजा |

....................

ज्यों ज्यों पत्र बढता गया गुलाब का शरीर पसीने से लथपथ होता गया | वह सोचने लगा कि अभी तो पंद्रह दिन पहले वह घर से आया है | अभी तक के व्यवहार से ऐसा कोई आभास नहीं लगा था कि  संतोष ऐसा कुछ कर सकती है जो हमारे खानदान के नाम को बट्टा लगने का अन्देशा होता तथा उसे खुद को नीचा देखना पड़े | संतोष एक शरीफ खानदान की एक शरीफ लड़की थी | गुलाब को भरोसा था कि वह कोई ऐसी नीच हरकत नहीं करेगी जिससे कोई उसकी तरफ उंगली उठाने की भी जुर्रत कर सके | परंतु यह सब पत्र में क्या लिखा था | उसे मिला पत्र तो कुछ और ही ब्यान कर रहा था | 

कोई और होता तो ऐसा पत्र पढकर अपना आपा खो बैठता परंतु इसके विपरीत गुलाब ने अपना संयम नहीं खोया | अलबत्ता उसकी आंखो के सामने संतोष का मासूम एवं भोला भाला चेहरा घुमने लगा | उसके मन में एक आशंका ने जन्म ले लिया कि कहीं संतोष को बदनाम करके तथा लांछन लगाकर अपने राह के रोड़े को तो हटाना नहीं चाह रहा है | वह यह सोचकर पूरा का पूरा काँप कर रह गया कि शायद एक अकेली अबला पर मेरे पीछे से न जाने क्या क्या जुल्म ढाए जा रहे होंगे, क्या क्या कटाक्ष उसे सुनने को मिल रहे होंगे | वह बेचैन हो उठा | आखिर उसने निष्कृष लिया और छुट्टी लेकर घर के लिये रवाना हो गया | 

हालाँकि घर से एक अनजान भतीजे का पत्र पाकर गुलाब का मन विचलित हो गया था परंतु रेलगाड़ी में बैठने के बाद उसने अच्छी तरह सोच विचार किया | संतोष के मिले पत्र से साफ जाहिर था कि वह बदनामी से कितना डरती है | अपने घर की, जिससे वह अभी अभी जुड़ी थी, कोई बदनामी न हो तभी तो उसने करूणा के बारे में शोर न मचाकर चुपके से मुझे लिखा है कि उसके बहकने वाले कदमों पर जितना जल्दी अंकुश लगा दिया जाए उतना बेहतर होगा | अगर संतोष ऐसी वैसी होती, जैसा उसके बेनाम भतीजे ने लिखा है, तो वह वक्त एवं मेरी गैर मौजूदगी का फायदा उठाकर अपनी नन्द करूणा का साथ देना ही बेहतर समझती | अब यह भी तो मुमकिन है कि संतोष को चरित्रहीन बताकर उसकी आड़ में कोई अपना ही ऊल्लू सीधा करना चाहता हो | गुलाब को अपनी पत्नि संतोष के चरित्र पर लेश मात्र भी शंका नहीं थी | अतः उसने निश्चय कर लिया कि वह घर जाकर पहले पूरी स्थिति का जायज लेगा तथा उसके बाद ही कुछ कार्यवाही करेगा |  

संतोष लेटे हुए गुलाब की छाती पर अपना सिर रख कर धीरे धीरे रो रही है | गुलाब प्यार से उसकी पीठ तथा सिर पर हाथ फेरता हुआ उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा है | परंतु संतोष है कि चुप होने का नाम ही नहीं ले रही | जब संतोष के अन्दर का सारा लावा निकल चुका तो वह शांत हुई तथा बोली, "मैं अब यहाँ अकेली नहीं रहूंगी |”

“तुम यहाँ अकेली कब थी | सभी तो थे यहाँ तुम्हारे साथ | मतलब मेरी माँ, बहन, भाई इत्यादि | अकेला तो मैं वहाँ रह रहा हूँ |” 

“मेरा मतलब है कि आपके बिना अब मैं यहाँ नहीं रहूंगी |” 

“क्यों अचानक क्या बात हुई ?”

“बस यूँ ही | वैसे आप तो जानते होंगे कि एक अकेली औरत को यह समाज किस निगाह से देखता है | मुझे लगता है कि जैसे पुरूषों की भूखी नजरें मुझ पर गड़ी रहती हैं | स्त्रियों की शंकित निगाहें मेरा पीछा करती है | कई अपने मजाक के बहाने मेरे नजदीक आने की कोशिश करते हैं | मुझे महसूस होता है कि कई तो अपनों में से ऐसे भी हैं जिनकी लालायित आंखे मुझे अपनी हवस का शिकार भी बनाना चाहती हैं | अतः मुझे आपके बिना यहाँ रहना अच्छा नहीं लगता |” 

संतोष ने अपने पति के सामने अपना मन उडेल कर रख दिया था | उसकी निडरता पूर्ण कहने के लहजे से ही गुलाब समझ गया था कि संतोष बिलकुल पवित्र है तथा उस पर अपनों में से ही कोई लांछन लगाने की कोशिश कर रहा है | न तो गुलाब ने ही उससे पूछने की जरूरत समझी तथा न ही संतोष ने साफ साफ बताया कि वह कौन था | 

वैसे गुलाब ने अपने संयुक्त परिवार में 17 साल गुजरे थे अतः वह इतना तो अनुमान अवश्य लगा सकता था कि उसमें कौन ऐसा था जो इतनी नीच हरकत कर सकता  है | चाह कर भी वह इस बारे में कोई बवंडर न खड़ा कर सका क्योंकि उसकी अपनी पत्नि तथा उसके खानदान की इज्जत दाँव पर थी | इस घटना से गुलाब के मन में संतोष के प्रति विशवास और गाढा हो गया |   

गुलाब ने कुछ सोचकर, “देखो मुझे अभी तक शादी करने की भी इजाजत नहीं मिली है तो बताओ मैं तुम्हे अपने साथ कैसे ले जा सकता हूँ ?” 

“मुझे कुछ नहीं पता | अब अकेले रहकर मैं यहाँ किसी षडयंत्र का शिकार नहीं होना चाहती | मैं आपके बिना यहाँ एक पल भी नहीं रहूंगी |” 

बहुत समझाने पर भी जब संतोष साथ जाने के लिए अड़ी रही तो गुलाब ने हथियार डाल दिए तथा संतोष को अपने साथ ले जाने का मन बना लिया |

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