Sunday, September 13, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' (भाग-XXVIII)

 XXVIII

खैर समय के साथ गुड़िया की भी शादी हो गई | गुड़िया का दुल्हा देखने में तो ठीक ठाक तथा सुन्दर था परंतु न तो उसका अपना मकान था तथा न ही वह कोई ढंग का काम करता था | जल्दी जल्दी गुड़िया दो बच्चों की माँ भी बन गई | माला बुआ का बेटा संजय, डाक्टरी की डिग्री हासिल करने के लिए, पाँच साल के लिए ट्रेनिंग पर चला गया | माला की छोटी लड़की भी पढाई के लिए इन्दौर चली गई | अब बुआ जी तथा फूफा जी घर पर अकेले रह गए थे |

गुड़िया के बच्चे बड़े होने लगे | गुड़िया के पति राधे की छोटी सी कमाई से उसके घर का खर्चा चलना मुश्किल हो गया | अब गुड़िया के नौकरी करने के अलावा कोई चारा नहीं दिख रहा था | परंतु समस्या थी कि अगर गुड़िया नौकरी पर निकल गई तो उसके बच्चों की देखभाल कौन करेगा | उसकी अपनी सास स्वर्गवास सिधार चुकी थी | ससुर इस लायक नहीं था कि वह बच्चों की देखभल कर सकता | उसको तो खुद उसकी देखभाल करने वाला कोई चाहिए था |    

गुड़िया ने अपनी यह समस्या जब अपनी मम्मी जी अर्थात माला बुआ को बताई तो अपनी लड़की के लिए उनका मन पसीज गया | पसीजता भी क्यों न, माँ की ममता आड़े  जो आ जाती है माला ने बिना कुछ सोचे समझे गुड़िया की अनुपस्थिति में उसके बच्चों की देखभाल का जिम्मा उठा लिया|

अब माला गुड़िया के बच्चों को दोपहर में जब वे स्कूल से वापिस आते थे तो बस स्टाप से अपने घर लाने लगी | घर लाकर वह बच्चों के कपड़े बदलती, खाना खिलाती तथा फिर थके हारे बच्चों को कुछ देर के लिए सुला देती | मसलन वह उनका हर काम करने लगी | शाम को गुड़िया अपने आफिस से वापिस अपने घर जाते समय बच्चों को साथ ले जाती | समय एक पक्षी की तरह पंख लगा कर उड़ने लगा | माला का लड़का संजय अपनी डाक्टरी की परीक्षा पूरी करके वापिस आ गया | थोड़े अंतराल के बाद उसकी शादी भी धूमधाम से सम्पन्न हो गई |

मन में हजारों सपने संजोए, घबराई सी, सकुचाई सी, लज्जा में सिमटी कावेरी ने धड़कते दिल से कवेरी ने अपनी ससुराल की धहलीज पार करके घर के अन्दर कदम रखा | अभी वह वहाँ के अजनबी माहौल का जायजा ले भी नहीं पाई थी कि किसी ने उसे अपनी बाहों में भरकर अपने सीने से लगा लिया |

कावेरी ने अपनी माँ को बचपन में ही खो दिया था | वह  माँ की ममता तथा उसके आँचल के नीचे मिलने वाले सुखद अहसास से अभी तक वंचित रही थी | अनजान औरत के सीने से लगी कवेरी भाव विभोर हो उठी | उसके चक्षु खुशी से छलछ्ला गए | शायद कावेरी को ऐसा आभाष हो रहा था जैसे उसकी अपनी माँ ने यहाँ आकर उसे अपने सीने से लगा लिया था | परंतु जब कावेरी ने अपना चेहरा उपर उठा कर अपनी माँ से अपने मन में भरी हजारों शिकायतों का ब्यौरा देना चाहा तो सामने खड़ी औरत को निहार कर वह शक्ते में आ गई | वह सास थी जो कावेरी की भाव भंगिमा को महसूस करके मन्द मन्द मुस्करा रही थी | कावेरी को ऐसा लगा जैसे उनकी माथे की झुर्रियाँ उपर नीचे होकर उसे आशिर्वाद दे रही थीं | वह अभीभूत होकर नीचे झुकी और अपनी सास के चरण छू लिए |    

 माला ने उसके चरणों में झुकी अपनी नई नवेली दुल्हन को बड़े प्यार से कधों से पकड़  कर उठाया तथा "दूधों नहाओ पूतों फलो" का आशिर्वाद देते हुए एक फूलों का गुलदस्ता ,जो माला ने अपने आँगन में उपजे फूलों से खुद अपने हाथों तैयार किया था कावेरी को भेंट किया | इसके बाद माला ने दिल की मनोकामना को व्यक्त करते हुए कि "नव विवाहित जीवन उनके लिए मंगल मय हो" कावेरी का हाथ पकड़ कर अंदर ले जाते हुए कहा,इस घर में तुम्हारा स्वागत है |

कावेरी को और भी आश्चर्य तब हुआ जब उसकी सास ने घर के दूसरे सदस्यों के साथ खाना न खाकर उसके साथ खाने की जिद कर ली | कावेरी को उस समय अपनी स्वर्गवासी माँ द्वारा, जब वह अस्मंजस्ता के महौल में  उसकी याद करते करते सो गई थी तो उसके सपनों में आकर, कहे वे शब्द याद आगए, "बेटी मुझे तुझ पर पूरा विशवास एवं गर्व है | दिल में कोई पूर्वाग्रह लेकर मत जाना | परिवार की नींव प्यार, विशवास व त्याग पर हो तो वह परिवार किसी किले से कम नहीं होता | तू मन में अच्छी भावना लेकर जाएगी तो सब अच्छा ही अच्छा होगा |"   

कावेरी अपने पति संजय के साथ हनीमून से वापिस आई तो उसकी सास उसका बेसब्री से इंतजार कर रही थी | माला ने कावेरी को एक गुलदस्ता थमाते हुए कहा, "खुशियों से तुम्हारी झोली सदा भरी रहे |" सास बहू में आत्मियता बढती जा रही थी

एक तरफ परिवार में प्रेमभाव, विशवास, त्याग, प्रेमवाणी एवं प्रशंसात्मक रवैये से एक दूसरे में घनिष्टता बढाने का प्रयास किया जा रहा था तो दूसरी तरफ गुड़िया का पति राधे शयाम सास बहू के बीच गहरी होती घनिष्टता से दिन प्रति दिन चिंता में घुलने लगा |

वह महसूस कर रहा था कि जब से कावेरी ने इस घर में कदम रखा है उसकी सास माला केवल उसकी बन कर रह गई है | अब उसका ख्याल अपनी लड़की गुड़िया की समस्याओं से एकदम हट चुका है | माला को उसके धेवते धेवती कि कोई चिंता नहीं रही थी | वह भूल गई थी कि संजय की शादी से पहले वह क्या क्या किया करती थी |

राधे सोच रहा था कि अगर उसकी सास का यही रवैया रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हम पहले की स्थिति में आ जाएँगे | गुड़िया को नौकरी छोड़नी पड़ेगी और घर के खर्चे का सारा भार मेरे कंधों पर आ जाएगा | इससे पहले कि सास बहू में पक्का जोड़ बैठ जाए  उसे कुछ करना होगा कुछ चक्र चलाना होगा | और यह सब सोचते सोचते अचानक वह एक घिनौनी हँसी हँसने लगा | शायद उसने अपने मकसद में कामयाब होने का चक्र व्यूह रच लिया था |  

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