Friday, September 11, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' (भाग-XXVI)

 

XXVI

समय व्यतीत होने लगा | गुलाब देवलाली से जोधपुर, जोधपुर से देहली, देहली से अमृतसर, अमृतसर से बागडोगरा (आसाम), बागडोगरा से कानपुर में सर्विस करता हुआ 15 अगस्त 1979 को नौकरी छोड़कर घर आ गया | इस दौरान वह तीन बच्चों का पिता बन चुका था | यहाँ आकर गुलाब भारतीय स्टेट बैंक में नौकरी लग गया तथा जीवन एक सुखद राह पर चलने लगा | उसके उपर भगवान की ऐसी कृपा रही कि उसे कभी भी किसी प्रकार की भी अड़चन का सामना नहीं करना पड़ा | गुलाब की पत्नि संतोष एक सरल स्वभाव, मृदुभाषी, दानी, पूजा पाठ में विशवास करने वाली चतुर तथा गुणवती गृहणी थी | घर गृहस्थि को सुचारू रूप से चलाना वह बखूबी जानती थी | आलस उसको नाममात्र को भी छू तक नहीं गया था | सेवा भावना उसमे कूट कूट कर भरी हुई थी | मेहमान नवाजी की सुदृड नीव अपनी ससुराल में मानो उसने ही रखी थी | हालांकि वह खुद दसवीं पास थी परंतु गुलाब को जोधपुर यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल कराने का श्रेय संतोष को ही जाता है | क्योंकि वह रात को पढाई करते गुलाब के साथ जागकर उसकी जरूरतों को पूरा करती रहती थी जिससे गुलाब की पढाई में कोई बाधा न आए |  एक मध्यवर्गिय व्यक्ति के लिहाज से उसके पास सब सुविधा उपलब्ध थी |

सुखमय जीवन का समय बहुत जल्दी व्यतीत होता नजर आता है | देखते ही देखते वह समय भी आ गया जब गुलाब की लडकी, प्रभा, का रिस्ता पक्का हो गया | तैयारियाँ होने लगी | निमंत्रण पत्र भेज दिए गए | नियत समय पर मेहमानों का आवागमन शुरू हो गया | गुलाब के चार मंजिला मकान की पहली मंजिल पर आने वाले मेहमानों का स्वागत किया जाता था | उनके सोने बैठने का इंतजाम उसके मकान की तीसरी तथा चौथी मंजिल पर था |

आने वाले मेहमानों में से अचानक एक ऐसे  मेहमान को, जिसके दिदार की लालसा वह 22 सालों से अपने मन में संजोए था तथा इन सालों में ऐसा कोई दिन मुश्किल से ही गुजरा होगा जब गुलाब ने उसे याद न किया हो, अपने सामने खड़ा देखकर हतभ्रत रह गया | दृष्टि मिलते ही जैसे उन दोनों को काठ मार गया हो | पत्थर की मूर्ति की तरह वे अपने अपने स्थान पर जड़ होकर रह गए | वे अपलक दोनों एक दूसरे को देखे जा रहे थे | अपने दरमियान 20-22 वर्ष के लम्बे मौन को तोड़ते हुए गुलाब ने ही आश्चर्य से पूछा, "माला तुम यहाँ ?                                                               

जैसे उस पत्थर की मूर्ति में प्राणों का संचार हुआ हो | उसके बदन में हल्का सा कम्पन महसूस हुआ | फिर आहिस्ता आहिस्ता वह कदम बढाती गुलाब की ओर बढी | ऐसा लग रहा था जैसे अपना हर कदम उठाने में उसे अतिरिक्त शक्ति का प्रयोग करना पड़ रहा था |

गुलाब अब भी एक टक उसे देखे जा रहा था तथा सोच रहा था | वही गोरा चिट्टा रंग, छरहरा बदन, सुर्ख होंठ, चेहरे पर वैसी ही मासुमियत जिसका वह कभी दिवाना था |   इतने लम्बे अंतराल के बाद आज भी गुलाब अपने होठों द्वारा उसके मखमली गालों के अनायास स्पर्श की अनुभूति को नहीं भुला पाया था | उस दिन से आज तक उन क्षणों को याद करते ही उसका हृदय लगभग प्रत्येक दिन रोमांचित हो उठता था | गुलाब ने मह्सूस किया कि इतने लम्बे अरसे के बावजूद माला रंचमात्र भी न बदली थी | अब तक वह गुलाब के काफी नजदीक आ चुकी थी |

माला के होंठ फड़फडाए लेकिन उनसे बोल न फूटे | उसकी हालत देखकर गुलाब ने ही कहा, "माला यकीन नहीं आता कि तुम मेरे सामने हो | खुली आंखो से कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा, कहते कहते गुलाब ने माला का हाथ अनायास अपने हाथों में ले लिया |

माल के होंठो में एक बार फिर कम्पन्न हुआ परंतु भरसक कोशिश के बावजूद भी वह बोल न पाई | शायद वह कहना तो बहुत कुछ चाहती थी परंतु उसकी वाणी उसे हर बार धोखा दे जा रही थी | जब माला की जिव्हा हार गई तो भावना के वेग ने हृदय के बाँध को तोड़ दिया | अश्रूओं के रूप में आंखो के रास्ते उसकी भावनाएँ बाहर बहने लगी | उसने अपने आसूओं को लाख छुपाने की कोशिश की परंतु उनकी चन्द बून्दे अनायास ही गुलाब के हाथ पर गिर पड़ी |

अपने हाथ पर टपकी बून्दो को देखकर गुलाब अधीरता से बोला, "माला तुम रो रही हो ,मैं तुम्हारे मुँह से दो शब्द सुनने को तरस रहा हूँ | कुछ तो बोलो |

माला अब भी खमोश रही | वह बस रोए जा रही थी | अतः गुलाब ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा, "माला मैं तुम्हारे आंसू नहीं देख सकता | कहीं ऐसा न हो कि इन्हें देखकर मैं भी कच्चा पड़ जाऊँ | माला अगर दबी आग को तुमने और अधिक हवा दी तो इसका  चिंगारी बनकर हमारे दोनों के परिवारों को झुलसा देने का डर है | अतः माला अपने आप को सम्भालो |

गुलाब की बात सुनकर सहसा माला को कर्तव्य बोध हुआ और धीरे से उसने अपने आंसू पोंछ लिए | गुलाब ने महसूस किया कि उसकी तरह माला के दिल में भी अभी तक उसके प्रति प्यार का बीज दबा हुआ है जो उसे सामने पाकर अनायास ही अंकुरित हो गया है | 

जब माला को बोध हुआ कि उसके हाथ गुलाब ने अपने हाथों में थामें हुए हैं तो अचानक उसके मुँह से निकला, "अरे यह क्या कर रहे हैं आप, कहीं किसी ने देख लिया तो गजब हो जाएगा |

 न चाहते हुए भी माला ने अपने हाथ धीरे से गुलाब के हाथों से छुड़ा लिए |

माला गुलाब की लड़की की शादी में आई थी | वह गुलाब के घर पूरे चार दिन रूकी | इस दौरान वे कई बार आमने सामने पड़े परंतु काम की व्यस्तता एवं घर में मेहमानों की भीड़-भाड़ में आपस में कोई बात न कर सके | शादी के बाद काफी मेहमान विदा ले चुके थे | गुलाब को महसूस हो रहा था कि माला जान बूझकर अपनी विदाई कराने में देर कर रही है | शायद वह अपने मन में दबी कोई बात गुलाब के सामने खोलना चाहती थी | अब न तो घर में अधिक मेहमान थे न ही गुलाब किसी काम में व्यस्त अतः उन दोनों को अपने अपने दिल की बात कहने का सुअवसर मिल ही गया |

आप इतने दिन कहाँ थी और आपको मेरी लडकी की शादी की सूचना कैसे मिली ?

आपका भेजा हुआ कार्ड गया था | आपने ही तो भेजा होगा ?

गुलाब आश्चर्य से,मेरा कार्ड ! मैनें भेजा ! परंतु मैं तो जानता ही नहीं था कि आप रहती कहाँ हैं | हाँ इतना अवश्य पता था कि आपकी शादी आमला में हुई थी |

देख लो, हमें आपके दर्शन करने की कितनी लालसा थी कि बिना बुलाए ही आ गए |

मन में तो मेरे बहुत थी कि भाभी जी से आपका पता लेकर आपको निमंत्रण भेज दूँ परंतु कहीं कोई गल्त न समझ बैठे चुप रहा | वैसे मैनें थोडे से कार्ड भाई साहब श्री चन्द जी को दे दिये थे कि वे अपने से सम्बंधित सभी रिस्तेदारों को भेज दें | इसमें आप भी शामिल थी | अगर मुझे यह पता होता कि आप अब गाजियाबाद रह रही हैं तो मैं स्वम ही आपके यहाँ हाजिर होता |

बस बस अब रहने दो बातें बनाने को | (थोडी सिरीयस होते हुए) यहाँ से मेरे विदा होने का समय आ गया है | अब मेरी एक छोटी सी बात ध्यान से सुनो और समझो | मैं चलते चलते बता देना चाहती हूँ कि "मेरी आत्मा अभी भी आपकी है" |

गुलाब भावुक होते हुए, "माला |

हाँ मेरे शरीर का मालिक बेशक कोई और बन गया है | मैं उनके प्रति वफादार भी हूँ | उनकी इच्छानुसार मैनें अपना जिवन बिताया है तथा आगे भी बिताती रहूंगी | परंतु मेरी आत्मा के मालिक पहली बार आप ही बने थे | इतने वर्षों तक रहे हैं | अब भी हैं तथा मेरी मृत्यु तक .........|(गुलाब अपना हाथ माला के होठों पर रख देता है तथा उसका वाक्य अधूरा ही रह जाता है) |

इसके बाद माला एक गहरी नजर गुलाब पर डालती है | उसकी आंखे छलछला आती हैं | वह उन आसूओं को पीने की कोशिश करते हुए मुड़कर एकदम बाहर चली जाती है | गुलाब एक बुत की तरह खड़ा का खड़ा देखता रह जाता है |

 

 

 

 

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