Saturday, September 5, 2020

उपन्यास 'आत्म तृप्ति' (भाग-XXI)

 गुलाब के पिताजी का आकस्मिक निधन हो जाता है | उसकी माँ बिमारी की सी हालत में चारपाई पर लेटी है | उनकी लडकी पास बैठे हुए कुछ बुन रही है | दिवार पर लगी घड़ी  शाम के चार बजाती है | चाय का समय जान कविता माँ से पूछती है, "माँ चाय लोगी या पहले दवाई दे दूँ ?”

“बेटी मुझे दवाईयों से कब तक जिन्दा रखोगी |”

“फिर वही बात | भगवान पर भरोसा रखो | वह सब ठीक करेगा |” 

माँ थोडा झुंझलाकर, “क्या ठीक करेगा | देखते-देखते तीन महीने बीत गए हैं | अभी तक गुलाब का कोई पता नहीं चला कि वह कहाँ है |” 

“माँ एयरफोर्स वालों ने तो अभी तक भाई के बारे में ना-उम्मीदी की कोई खबर दी नहीं है फिर......|”

“बस इसीलिए तो उम्मीद एवं आशा लगाए बैठी हूँ कि मेरा गुलाब आएगा | जरूर आएगा| 

इसी समय गुलाब से बड़ा भाई सोमनाथ अन्दर प्रवेश करते हुए अपनी माँ की बात सुनकर, "माँ वैसे तो उम्मीद पर दुनिया कायम है परंतु अगर कोई ना उम्मीदी पर उम्मीद रखता है उससे बड़ा मूर्ख कोई नहीं होगा |”

“बेटा तेरी ये पहेलियाँ मुझे न तो कभी समझ आई हैं और न ही आएंगी | तू मुझे साफ साफ शब्दों में बताया कर कि तू कहना क्या चाहता है |” 

“मैं क्या कहूंगा माँ ये तो सभी कह रहे हैं |”

“सभी क्या कह रहे हैं ?”

“कि.....कि....गुलाब शायद अब कभी लौट कर नहीं आएगा |”

माँ बिस्तर से उठने का प्रयास करते हुए तथा गुस्से में भरकर, "अरे तू कैसा भाई है जो अपने छोटे भाई के बारे में दूसरों से ऐसा सुन लेता है | औरों के साथ साथ तूने भी ऐसा कैसे सोच लिया | हे भगवान, अपनी माँ को ढांढस देना तो दूर उसके जले पर नमक और छिड़क रहा है |”

“माँ तुम तो खामखाँ नाराज होती हो | देखो न अब तीन महीने व्यतीत हो गए हैं | एयरफोर्स से अब तक केवल यही पता चल सका है कि गुलाब लापता है | मान लो अगर वह इस दुनिया में अभी तक जिन्दा है तो क्या इतने दिनों में उसकी कोई खैर खबर नहीं आ जाती | वह खुद ही अपनी सलामती का समाचार भिजवा देता |” 

“अरे निर्ल्लज क्या तूने कभी अपनी तरफ से कोशिश की है अपने छोटे भाई का सुराग लगाने की ?” 

सास की तेज आवाज सुनकर सोमनाथ की पत्नि बिमला अन्दर आते हुए उनका आखिरी वाक्य सुनकर, "माता जी, मिलिट्री एरिया में भला बाहर के लोग क्या सुराग लगा सकते हैं | हमें तो बस उनकी सुचनाओं पर ही निर्भर रहना पड़ेगा |” 

“बहू, सो तो किसी हद तक सच है परंतु फिर भी कोशिश तो की जा सकती है | हाथ पैर चलाने से ही मंजिल तक पहूंचा जा सकता है | हाथ पर हाथ धर कर बैठने से कुछ हासिल नहीं हो सकता |”

“माता जी आप समझती क्यों नहीं अपनों की चिंता कौन नहीं करता ? सभी को अपनों से बिछुड़ने का दुख तो होता ही है | परंतु चिंता और दुख सहन करने की भी एक सीमा होती है | क्या तुम चाहती हो कि एक की चिंता करते करते घर के और सारे लोग भी घुल घुल कर परलोक पहुंच जाएं ?” 

“मैं ऐसा कब कह रही हूँ |”

“तब फिर तीन महिनों से आपने सभी को परेशान क्यों कर रखा है ? सारा सारा दिन आपकी रोनी सूरत देखने को मिलती है | न ढंग से खाती-पीती हैं न दूसरों को खाने-पीने देती हैं | न खुद को चैन है न हमें लेने देती हैं |” 

“बहू मैनें कब कहा कि तुम चैन से न रहो | मैं तो तुम्हारे सामने भी नहीं पड़ती कि मेरी रोनी सूरत तुम्हे नजर आए |” 

“सो तो ठीक है | परंतु अगर मैं न आऊं तो लोग तो मुझे ही कहेंगे कि देखो कैसी बहू है सास की थोड़ी सी भी परवाह नहीं | दोनों बड़ों ने तो अपना-2 एक एक मकान सम्भाल लिया | इल्लत हमारे लिये छोड़ गए |” 

“बहू भगवान से कुछ डरो | अरे मैं यहाँ अपने लड़के की चिंता से परेशान हूँ परंतु तुम्हे उसकी कोई परवाह नही | बस तुम्हे तो मकान पर कब्जा जमाने  की चिंता है |”

“लो और सुनो, सच्ची बात कह दी तो आग लग गई | क्या मैनें गल्त कहा है ? दोनों बड़े  क्या कभी आपको हमेशा देखते रहते हैं | हमें तो चौबीसों घंटे आपकी रोनी सूरत जबरदस्ती देखनी पड़ती है |” 

अपनी भाभी जी की अपनी माँ के प्रति ऐसी जली कटी बातें सुनकर कविता, "भाभी जी आप क्यों इतने कड़वे शब्द बोलकर माँ के दुखी मन को और अधिक दुखित करना चाहती हो ?”

“बीबी जी, मैनें इसमें क्या गल्त कहा है | मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि जो होना था वह तो हो गया अब उसके लिए सारी जिन्दगी अपनी आंखे फोड़ने से क्या हासिल होगा | अगर आप लोगों को मेरी इतनी छोटी सी बात समझ नहीं आती तो फोड़ते रहो अपनी आंखे और हो जाओ अंधे | मैं तो चली |”

सोमनाथ जो अभी तक अपनी पत्नि बिमला की बातें सुन रहा था उसके जाने के बाद उसकी तरज में ही बोला, "माँ बिमला ठीक ही तो कह रही थी | तुमने गुलाब के हिस्से के नाम पर घर का आधा हिस्सा बन्द कर रखा है | हवा पास न होने की वजह से हमें घुटन में रहना पड़ रहा है | अब तीन महीने से उसका कुछ पता नहीं कि वह जिन्दा भी है या... | इसलिए मेरे विचार से आप ये बन्द कमरे खोल दें तो बेहतर होगा | वैसे भी हिसाब से देखा जाए तो वह इस मकान में से मांगता ही क्या है | दोनों बड़े भाईयों ने भी तो एक एक मकान पर कब्जा जमा ही लिया है अतः यह मकान मेरा होना चाहिए | गुलाब तो बाहर रहता है तथा हमेशा बाहर ही रहेगा | फिर आपको यह पूरा मकान मेरे लेने में कोई एतराज नहीं होना चाहिए |” 

“हाँ तुम तीनों ही अपने बाप की जायदाद हड़पना चाहते हो परंतु जब तक मैं जिन्दा हूँ ऐसा हरगिज नहीं होने दूंगी | गुलाब का पूरा हक दिलवाकर ही इस दुनिया को छोडूंगी |” 

अपनी माँ की दुविधा को समझते हुए कविता ने बात का अंत करने के लिहाज से कहा, "माँ तुम ज्यादा मत बोलो | जो भगवान करेगा अच्छा ही करेगा | किसी के कहने से कुछ नहीं होता |”

सोमनाथ थोडा तैश में आते हुए, “अरी अब भगवान के करने को रह क्या गया है | अब तो जो करना है हमें ही करना है | परंतु ये(माँ की तरफ इशार करते हुए) हमें करने दे तब न | नागिन की तरह ये तो कुंडली लगाए बैठी हैं | मतलब साफ है कि न तो धन माल का इस्तेमाल करेंगी और न करने देंगी |” 

“भईया क्यों ऐसे चुभते हुए शब्द बोलते हो | भाई गुलाब की कुछ तो खबर लगने दो | अभी से आप अपने को पूरे घर का मालिक क्यों समझ रहे हो | माँ के दिल की व्यथा को आप क्यों नजर अन्दाज कर रहे हो | क्या जमीन जायदाद के लिए आपकी आंखो पर पर्दा पड़ गया है जो आपमें समय की नाजुकता को भांपने की क्षमता भी नहीं रही |” 

अपनी छोटी बहन का तर्क सुनकर सोमनाथ ने भड़क कर चेतावनी दी, “कविता जो माँ की तरफदारी करते हुए तू इतना बोल रही है क्या तूने कभी सोचा है कि हमें कितनी घुटन में रहना पड़ रहा है  | मकान के आगे का सारा हिस्सा बन्द रहता है | अन्दर रहकर हम इंसान की सूरत तक देखने को तरस जाते हैं | मैं बताए देता हूँ अगर तीन चार दिनों में ताले नहीं खोले तो मैं तालों के साथ साथ दरवाजे भी तोड़ दूंगा |(प्रस्थान करते हुए) देखता हूँ मुझे कौन रोकेगा |”

माँ हाथ जोड़कर तथा आसमान की ओर देखकर, "हे भगवान तू मुझे कैसे कैसे दिन दिखाएगा | मेरे गुलाब को भेज दे | मैं उसका हिस्सा उसे सौंप कर सुख से मरना चाहती हूँ |”

  

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