Saturday, September 19, 2020

उपन्यास 'ठूंठ' (भूमिका)

 भूमिका


जब कोई व्यक्ति किसी डाक्टर के पास अपना इलाज कराने जाता है तो डाक्टर दवाई लिखने से पहले या किसी नतीजे पर पहूँचने से पहले मरीज के विभिन्न प्रकार की कई जांच कराता है तथा कई प्रशन पूछता है | सबसे आखिर में डाक्टर मरीज से यह पूछना नहीं भूलता कि क्या आपके घर में वह बिमारी किसी और को तो नहीं | अगर वह बिमारी खुदा न खास्ता मरीज के माँ बाप को भी रही हो तो डाक्टर उसे पारिवारिक या पुस्तैनी बिमारी का नाम दे देता है | हालाँकि यह जरूरी नहीं है कि पुस्तैनी बिमारी परिवार के हर सदस्य को हो | कोई सदस्य इससे अछूता भी रह सकता है | यह तो रही पारिवारिक बिमारी की बात |

परंतु क्या कभी पुस्तैनी ठूंठपन भी हो सकता है ?

ठूंठ का मतलब तो सभी समझते हैं कि एक सूखे पेड़ का तना अगर जमीन में गड़ा रह जाए तो उसे ठूंठ कहते हैं | उस ठूंठ में एक हरे भरे पेड़ की तरह चेतना नहीं होती | वह फल फूल नहीं सकता | कटी डालियों के कारण उस पर बैठकर कोई पक्षी चहकता नहीं | 

इसके विपरित मनुष्य की चेतना कभी सूखती नहीं, उसके मरने तक कभी खत्म नहीं होती | जीते जी वह ठूंठ नहीं बन सकता और अगर बन भी जाए तो उसके ठूंठपन का इलाज किया जा सकता है | फिर भी इलाज के लिए यह आवशयक हो जाता है कि वह व्यक्ति विशेष अपने ठूण्ठपन को हरियाली में बदलने की मंशा रखता हो | अर्थात समाज में एक दूसरे का सहारा बन कर हँसी खुशी जीवन व्यतीत करने का इच्छुक हो | 

ठीक उसी प्रकार जैसे एक घोडे को जबर्दस्ती पानी के किनारे तक  तो ले जाया जा सकता है परंतु उसे पानी पीने कि लिए बाध्य नहीं किया जा सकता | घोड़ा पानी तभी पियेगा जब उसकी मंशा होगी |  

श्री राम सहाय गुप्ता एक सरल एवं सादा जीवन व्यतीत करने वाले इंसान थे | वे भरपूर सज्जन, मृदुलभाषी, कोमल हृदय, उत्तम आचरण एवं घर में आए मेहमान को देवता स्वरूप समझते थे | इन सबके बावजूद उनके घर में हमेशा कलह का साम्राज्य रहता था | यहाँ तक की उनका एक मात्र पुत्र संत राम भी अपने पिता से कभी सहमत न हो पाया | इसी प्रकार संत राम के तीनों पुत्र भी अपने पिता को अपने साथ रहते हुए एक आँख देखना पसन्द नहीं करते थे | इसीलिए वह सबसे अलग रहकर एक ठूंठ की तरह एकाकी जीवन जीने के लिए मजबूर था | मैं अपने इस संकलन में ऐसी ही एक पुस्तैनी ठूंठ का जिक्र कर रहा हूं | 

यही पुस्तैनी आदत या कहो ठूंठपन राम सहाय जी की सबसे छोटी लड़की कुंती में ठूंस ठूंस कर भरा था | वह इस आदत को बदलने की भी इच्छुक नहीं थी | 

अब उसका इकलौता लड़का सागर, अपनी माँ को विरासत में मिला ठूंठपन, अपनी झोली फैलाए लेने को तैयार खड़ा था |

कैसे ......?


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